*भद्रा ददृक्ष उर्विया वि भास्युत् ते शोचिर्भानवो द्यामपप्तन्।आविर्वक्ष: कृणुषे शुम्भमानोषो देवि रोचमाना महोभि:।।* *हे उषे! तू दिव्य रश्मियों से शोभायमान होती है।तू उज्जवल रश्मियों से
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