ऐसे थे प्रख्यात स्वतन्त्रता सेनानी और पत्रकार राम प्रसाद बहुगुणा, उनकी 30वीं पुण्यतिथि पर श्रध्दांजलि

प्रख्यात स्वतन्त्रता सेनानी और पत्रकार राम प्रसाद बहुगुणा जी को 30वीं पुण्यतिथि पर हार्दिक श्रद्धांजलि!

✍️ रमेश पहाड़ी

आज मेरे तथा मेरे समान ही अनेक पत्रकारों और समाजसेवियों के प्रेरक, मार्गदर्शक तथा गुरु स्व. राम प्रसाद बहुगुणा जी की 30वीं पुण्यतिथि है। देश को परतन्त्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने में अपना सर्वस्व होम कर देने वाले प्रख्यात स्वतन्त्रता सेनानी और आमजन की वाणी को मुखर करने में अपना पूरा जीवन समर्पित करने वाले राम प्रसाद बहुगुणा जी का देहावसान आज ही के दिन 1990 में हुआ था।

देश की स्वतन्त्रता की लड़ाई में विद्यार्थी जीवन में ही शामिल होने वाले उत्साही युवक रामप्रसाद ने गाँव-गाँव में घूम कर लोगों को स्वतंत्रता के आंदोलनकारियों की बातें और सत्याग्रह के अर्थ समझाने का बीड़ा उठाया। कागजों पर आज़ादी के नारे, गीत लिखकर चिपकाने और लोगों को आंदोलन की गतिविधियों में जुड़ने का अभियान शुरू किया। बाद में कागजों पर हाथ से लिख कर ‘समता’ नाम से एक अनियतकालीन अखबार निकालना शुरू किया। इसमें आज़ादी की लड़ाई में लोगों को शामिल होने की प्रेरणा होती। स्वतन्त्रता की लड़ाई में उन्हें जेल की यातना भी भुगतनी पड़ी लेकिन अपने लक्ष्य से विचलित न होकर, बहुगुणा जी ने उसे और अधिक शक्ति से आगे बढ़ाया।

सामाजिक गैरबराबरी, अन्याय, उत्पीड़न, शोषण व विषमता के खिलाफ अपने अभियान को पूर्ण समर्पण के साथ संचालित करने के लिए उन्होंने पारिवारिक व्यवसाय को भी दाँव पर लगाया और परिवार की आर्थिकी को संकट में डालकर भी समाज-सेवा के अपने अभियान को आगे बढ़ाया। इसके लिए 1953 में उन्होंने ‘देवभूमि’ नाम से साप्ताहिक समाचार पत्र का प्रकाशन पहले चमोली और फिर नन्दप्रयाग से आरम्भ किया। इसके माध्यम से शासन-प्रशासन तथा जनता के बीच एक रचनात्मक सम्बन्ध कायम किया। अपर गढ़वाल में देवभूमि पहला अखबार था। इसके माध्यम से उन्होंने सामाजिक समरसता का वातावरण बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। छुआछूत, अंधविश्वास, अन्याय के विरुद्ध लड़ने के लिए उन्होंने अपने परिवार की अर्जित सम्पत्ति को भी दाँव पर लगाया और परिवार को आर्थिक संकटों से जूझने को विवश किया लेकिन अपने सिद्धांतों और समाज-सेवा के अपने लक्ष्य को डिगने नहीं दिया। 29 जनवरी 1990 को अंतिम साँस लेने तक उन्होंने देवभूमि का सम्पादन जारी रखा और उसके प्रति लोगों की आशाओं, विश्वास को कमजोर नहीं पड़ने दिया।

इस मिशनरी पत्रकारिता में रामप्रसाद जी को सामाजिक सम्मान तो बहुत मिला लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति लगातार कमजोर होती गई। पत्नी सुशीला बहुगुणा जी ने इस कमी को बड़ी कुशलता से झेला और बच्चों ने भी इसमें सहयोग दिया तथा उनके संकल्पों-आदर्शों में कोई व्यवधान नहीं पड़ने दिया। पत्नी और बच्चों ने देवभूमि के प्रकाशन को बहुगुणा जी के देहावसान के बाद भी जारी रखा लेकिन सरकार से अपेक्षित सहयोग न मिलने के कारण अंततः वह बन्द हो गया। 

देवभूमि के माध्यम से रामप्रसाद जी ने अनेक लोगों को पत्रकारिता सिखाई, पत्रकारिता व समाज-सेवा के महत्व को समझाया और अनेक पत्रकारों तथा समाजसेवियों को तैयार किया। नागपुर से मुझे वापस लौटाने में ‘देवभूमि’ और बहुगुणा जी का ही प्रमुख योगदान रहा। मैंने 9 फरवरी 1972 से 31 अक्टूबर 1974 तक देवभूमि में काम किया और बहुगुणा जी से पत्रकारिता के माध्यम से, निष्ठापूर्ण सामाजिक सेवा की शिक्षा प्राप्त की। मेरे समान अनेक लोगों, जिनमें उमाशंकर थपलियाल जी, पुरुषोत्तम असनोड़ा जी, समीर बहुगुणा जी, लक्ष्मी प्रसाद भट्ट जी सहित अनेक लोग शामिल रहे, के महान गुरु, जो वास्तव में एक सीधे, अच्छे, सच्चे मनुष्य और प्रखर तथा प्रबुद्ध पत्रकार थे और हम सबके आदर्श रहे, को उनकी 30वीं पुण्य तिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि।