उत्तराखंड राज्य आन्दोलन की मौत है अजीम आन्दोलनकारी बाबा बमराड़ा का गुजर जाना

 

हरीश मैखुरी

उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी बाबा मथुरा प्रसाद बमराड़ा नहीं रहे, वे जीवन के अंतिम क्षणों तक आंदोलनकारी रहे। मूल रूप से पौड़ी जनपद के रहने वाले मथुरा प्रसाद बमराड़ा अपने जीवन काल पर्यन्त परमानेंट आंदोलनकारी रहे। शायद ही कोई जनांदोलन हो जिसमें बाबा मथुरा प्रसाद बमराड़ा ने हिस्सा ना लिया हो। उन्होंने कभी सरकार से समझौता नहीं किया, यही कारण रहता कि जब भी वह भूख हड़ताल करते कुछ दिनों बाद उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती कर दिया जाता। करीब साल भर दून हॉस्पिटल में रखे गए, लेकिन वह भोजन नहीं करते थे, अब उनकी आंतें सूख गई थी।

गैरसैंण स्थाई राजधानी को लेकर उनका स्पष्ट मत था कि राज्य की राजधानी प्रत्येक स्थिति में गैरसैंण ही होनी चाहिए। दून हॉस्पिटल में मुलाकात के दौरान बाबा मथुरा प्रसाद बमराडा़ ने कहा कि “जिस तरह के लोग अब उत्तराखंड की सत्ता चला रहे हैं वे पश्चिम उत्तर प्रदेश के बदमाशों के प्यादे भर हैं ये कभी भी गैरसैंण स्थाई राजधानी नहीं चाहेंगे। उत्तराखंड आंदोलनकारी और उत्तराखंड के बारे में पहाड़ों की दृष्टि से सोचने वाले अपनी तरह के अलग व्यक्तित्व थे। उत्तराखंड डॉट कॉम उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।