डाॅ हरीश मैखुरी
आज कल कुछ छुद्र किस्म के लोग नवरात्रि के नाम पर पशुओं की बलि कर रहे हैं। वहीं कुछ लोग ईद के नाम पर पशुओं का कत्लेआम करते हैं। ये बलि और कुर्बानी वाले हरामखोर और राक्षसी प्रवृत्ति के नर पिशाच होते हैं, एक नम्बर के हत्यारे और मक्कार, घटिया किस्म के अंध विश्वासी और जाहिल भी । इन्होंने देवी देवताओं और खुदा को भी अपनी तरह का हत्यारा और भिखारी समझ लिया, जब तुम जानवर की हत्या करोगे और भगवान को दोगे तब वो खायेगा? वेद कहते हैं जो विज्ञान सम्मत नहीं है वह शास्त्र नहीं है और जो शास्त्र सम्मत नहीं है वह आचरणीय नहीं है । इसलिए इन हत्यारों पर विश्वास का मतलब है आत्म हत्या करना । इन सभी तरह के हत्यारों के विरूद्ध पशु क्रूरता अधिनियम में मुकदमा दर्ज कर जेल भेजा जाना चाहिए। और कानून को धर्म या मजहब की आड़ में हत्या की छूट नहीं देनी चाहिए। बूचड़खानों और पशुवध कारखानों पर भी अविलम्ब रोक लगनी चाहिए। भारत सरकार के जन्तु कल्याण बोर्ड और एनीमल वैलफियर संगठनों को भी बिना भेदभाव के इन कार्यवाही का दबाव बनाना चाहिए। भारत जैसा जैव विविधता सम्पन्न संस्कारित देश मांस भक्षण के लिए कुकृत्य करे भारतीय संस्कृति और मानवता के विरूद्ध है।