आबकारी से आय और शराब नीति का सच

 

अभी दो दिन हुए उत्तराखंड सरकार ने अपना 40 हजार करोड़ का बजट पेश किया, इस नये कर विहीन बजट में आबकारी से राजस्व का लक्ष्य मात्र 2300 करोड़। पिछले साल 1900 करोड़ मिले थे जबकि लक्ष्य 2150 का था, अब अगर मान भी लिया जाय की इस साल पूरा 2300 करोड़ मिल जाएगा फिर भी ये बजट का 5.75: बैठता है, इसका अर्थ ये है कि सरकार अपने राजस्व का 94.25ः आबकारी के अतिरिक्त के संशाधनों से प्राप्त करती है, अगर इन 94.25ः संशाधनों पर थोड़ी सी मेहनत की जाय तो हमें आबकारी की आय की जरूरत ही नहीं पड़ेगी, लेकिन ये बात फैला- फैला कर इतनी फैला दी गयी है कि जैसे आबकारी से ही ये प्रदेश चल रहा है, आबकारी से प्रदेश को कोई लाभ नहीं होता, केवल सत्तासीनों और शराब लाबी की झोली जरूर अवैध रूप से भर जाती है।

शराब नहीं रोजगार दो आन्दोलन और तमाम शराब बंदी आन्दोलन महिलाओं द्वारा लगातार शराब विरोध किये जा रहे आन्दोलन और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को ताक पर रखकर सरकार केवल 5.75ःराजस्व के लिए देवताओं की भूमि को शराब के लिए कलंकित कर रही है, इससे अधिक शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता है। सरकार चाहती तो कुछ नये कर लगा कर अथवा शराब के राजस्व के बदले के खर्च में कटौती कर भरपाई कर शराब बंदी कर सकती है। पर इसके लिए जिस दृढ़ संकल्प और इछाशक्ति की आवश्यकता है वह सरकार के पास है ही नहीं। या सरकार ने शराब लाबी के आगे सरेंडर कर दिया है, जो भी है यह पहाड़ की बर्बादी और देवभूमि की पवित्रता की कीमत पर है।