चुनाव ड्यूटी से लौट चार शिक्षकों में एक की मृत्यु तीन गंभीर रूप से घायल लेकिन ऐयर एम्बुलेंस छोड़िए एम्बुलेंस वाहन तक नहीं मिला

सभी सरकारी शिक्षकों व सरकारी कर्मचारियों से निवेदन है कि इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें।आज आपमें से कइयों ने सुना होगा कि चुनाव की ड्यूटी से लौटते हुए चार शिक्षकों की गाड़ी देवप्रयाग में दुर्घटना ग्रस्त हो गयी, जिनमे से एक की घटना स्थल पर ही दुखद मृत्यु हो गयी जबकि तीन गम्भीर रूप से घायल हैं। उन तीन में से दो जौलीग्रांट हॉस्पिटल् में जीवन की जंग लड़ रहे हैं। इन दो में से एक संयोग से मेरा एक स्नेही मित्र है। ये दुर्घटना सुबह 6 बजे पौड़ी देवप्रयाग मार्ग पर होती है, जब ये सब पौड़ी में मतपेटी जमा कर घर लौट रहे थे। गांव वालों व पुलिस की सहायता से इनको पौड़ी बेस अस्पताल ले जाया जाता है, खुद पौड़ी के जिलाधिकारी इनको अस्पताल देखने जाते हैं। अस्पताल से इनमें से दो को हायर सेंटर रेफर किया जाता है। लेकिन सवाल है कि इन्हें ले जाएगा कौन। खुद जिलाधिकारी अस्पताल खानापूर्ति करने गए, क्या वो ये सुनिश्चित नहीं कर सकते थे कि उनके इन सरकारी कर्मचारियों को तुरन्त एयर एंबुलेंस से देहरादून भेजा जाए, आखिर सब जानते हैं कि सड़क दुर्घटनाओं में टाइम का बहुत महत्व होता है। जितनी जल्दी अस्पताल में पहुंचे उतनी जल्दी खतरा टल जाता है। डी एम या एस डी एम को क्या ये पता नहीं था कि ये शिक्षक किसी बारात से नहीं बल्कि सरकारी ड्यूटी से आ रहे थे,।

एयर एम्बुलेंस तो छोड़ो इनको कोई साधारण एम्बुलेंस भी उपलब्ध नहीं कराई गई। और नीचता की हद है कि अपने खर्चे पर एम्बुलेंस करानी पड़ी। मेरे मित्र के लिए संयोग से एक दूर के रिश्तेदार पौड़ी में थे, जब उन्हें पता चला तो वो अपने खर्च पर एम्बुलेंस व नर्स के साथ उनको देहरादून लेकर आ गए, दूसरे शिक्षक को भी कोई जानने वाला पौड़ी से अपने खर्च पर देहरादून जौलीग्रांट ले आया, तीसरे का शायद वहां कोई नहीं था तो नहीं मालूम उनकी स्थिति क्या है। जौलीग्रांट में भी सरकार की तरफ से कोई पूछने वाला नहीं। दोनों गम्भीर हैं। कोई शिक्षक संघ या शिक्षक नेता सुध लेने को तैयार नहीं। लानत है सरकारी कर्मचारी संघों पर, जो सिर्फ राजनीति करते हैं। अगर पौड़ी के सरकारी कर्मचारी या शिक्षक भी मदद के लिए आ जाते तो शायद कुछ स्थिति बेहतर होती।
क्या राजकीय शिक्षक संघ या कर्मचारी संघ ये व्यवस्था नहीं कर सकते कि ऐसी किसी भी आपातकालीन समय मे संघ के प्रतिनिधि अस्पतालों में खड़े होकर इस कुव्यवस्था से अपने साथियों को मरने से बचाएंगे, यदि सब सरकार के भरोसे ही छोड़ना है तो माफ करना सरकार आप जैसे ही कर्मचारियों के दम पर चलती है, जो किसी मानवीय दृष्टिकोण से काम न करते हैं न दायित्व निभाते हैं। पौड़ी के DM या SDM भी तो सरकारी कर्मचारी है जिन्होंने इन्हें मरने छोड़ दिया। पौड़ी अस्पताल के चिकित्साधिकारी भी तो सरकारी कर्मचारी हैं जिन्होंने एम्बुलेंस तक की व्यवस्था उन मरते हुए कर्मचारियों के जिम्मे छोड़ दिया। सभी शिक्षक संघों व कर्मचारी संघों से निवेदन है कि पौड़ी के DM व अन्य अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाई का रास्ता निकालें, और इन संघों के नेताओं को खुद जौलीग्रांट जाकर इनके इलाज की निगरानी करनी चाहिए, व आगे से ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि किसी भी सरकारी शिक्षक या कर्मचारी के साथ ऐसा कुछ दुर्भाग्य से हो जाए तो संघ के प्रतिनिधि इन कुव्यवस्था से अपने साथी को बचाने के लिए मौजूद हों, नहीं तो अगले नम्बर आपका भी हो सकता है।
-अनुज जोशी