भारतीय संस्कृति के ताबुत पर जातीय राजनीति की कील?

 

डॉ हरीश मैखुरी 

भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म का जातीय आधार पर राजनीतिक गुणाभाग और अर्थशास्त्र आंकने वाले महानुभावों को जानकर हैरानी होगी कि भारत में कभी भी जातियां इस रुप में मौजूद नहीं थी जैसी आज हैं। आज तो सरकार ही जाति प्रमाण पत्र बांटने की सबसे बड़ी एजेंसी बन गई है। वोट की राजनीति के लिए जातियों का गणित खेलना विकास और लोक कल्याण के कार्यों से काफी सस्ता पड़ता है। आरक्षण भी इसी तरह की कुंजी है, जो लोग जातियों के आधार का विरोध करते हैं वे ही जाति के आधार पर आरक्षण की लाईन में खड़े रहते हैं, और आरक्षण का लाभ लेते के बाद ज्यादातर बौद्ध या इसाई बन जाते हैं। इसी से जातिवाद की विडम्बना को समझा जा सकता है। लेकिन गूढ़ ज्ञान यही है कि भारत में जातियां कभी रही ही नहीं। यहां तो पेशे थे। पेशे यानी अपना व्यवसाय। उसी के आधार पर 4 वर्ण थे – 1-जो कला कौशल और श्रम सेवा संबंधी कार्य करते थे और स्वच्छ मन चित ह्रदय से बच्चों जैसे निर्विकार थे उन्हें शुद्धचित्त (शूद्र) कहा जाता था। जन्मनात् जायते शूद्र: अर्थात प्रत्येक व्यक्ति जन्म के समय असीमित संभावना लिए शुद्धचित ही होता है।  2-लोग व्यापार विपणन वितरण आदि  व्यावसायिक कार्यों में लगे रहते थे उन्हें वैश्य कहा जाता था 3- जो लोग सुरक्षा संबंधी कार्यों में कार्य करते थे उन्हें क्षत्रिय कहा जाता था 4- जो लोग भारतीय संस्कृति और समाजिक सुरक्षा समाज को ज्ञानवान प्रज्ञावान सुसंस्कृत सभ्य और ब्रह्म को जानने लायक बनाते थे उन्हें ब्राह्मण कहा जाता था। य:ज्ञानी सह पंडित: यानी जो जिस भी विषय का जानकार है वह उसी का पंडित है। य:ब्रह्मज्ञानी श: ब्राह्मण: अर्थात जो ब्रह्म को जाने वही ब्राह्मण है। ब्राह्मणत्व जन्म से इत्तर अर्जन का विषय है, एक कठिन साधना मार्ग। प्रत्येक योगी साधक स्वत:ही ब्राह्मत्व को प्राप्त हो जाता है इसीलिए साधू की जाती नहीं पूछी जाती। साधना मार्ग में वस्त्र भले गौण हो सकते हैं मगर आचरण की सुचिता अनिवार्य है । 

 सभी अपनी मर्जी से पेशे चुनने के लिए स्वतंत्र थे, जैसा पेशा करो वैसा वर्ण बन जाएगा। यानी ब्राह्मण का लड़का अगर पशुबध का निर्मम पेशा चुन ले तो वह बधिक या खटीक हो जाएगा ब्राह्मण नहीं रहेगा। और शुद्र का बेटा शास्त्रों में पारंगत हो जाए और वह ब्रह्म कर्म करने लगे तो वह ब्राह्मण हो जाएगा। ऐसी थी हमारी भारतीय परंपरा। द्रोणाचार्य इसके उदाहरण हैं जो ब्राह्मण होते हुए भी धनुर्विद्या युद्ध कौशल की निपुणता के कारण क्षत्रीय हो गये। और क्षत्रीय राजा कौशकी भी इसी के उदाहरण हैं जो क्षत्रीय राजा होते हुए भी ब्रह्म को जानने के कारण ब्रह्मज्ञानी विश्वामित्र कहलाये, दुर्लभ गायत्री महामंत्र उन्हीं की कृपा से दुनियां में निसृत हुआ। निशाद एकलव्य भी ज्ञान प्राप्त द्वारा पंडित बन गये थे। आज के समय में भी 56 हरिजनों को वेद पाठी बना कर तिरूपति मंदिर में पंडित नियुक्त किया गया है।
यानी जाति कोई परमानेन्ट चीज नहीं एक तरह की व्यवस्था है। फिर परमानेन्ट जाति प्रमाण पत्र और जातिगत आधार पर वोट की राजनीति क्यों? जो लोग आरक्षण का लाभ लेकर धर्म बदल गये उनका असल ? यही जातियों की राजनीति हमारे मीडिया की टीआरपी श्रोत और नेताओं की आक्सीजन होती है। वर्ना जातियां होती नहीं थी, अपितु लोग सुविधा के लिए इनको पेशों के आधार पर तेली कोली जोशी लुहार सुनार चमार धुनार सहकार खटीक आदि पुकारते थे लेकिन सभी पेशों का सम्मान एक एक समान था। काम का निरादर नहीं था। भारत विश्व गुरु था भारत में अज्ञानता को कोई स्थान नहीं था यहां पांच लाख  गुरुकुल थे, 25 साल की अवस्था तक विद्यार्जन अनिवार्य था,  नालंदा और तक्षशिला जैसे लाखों विद्यार्थियों की क्षमता वाले आवासीय विद्यालय थे। विद्यालयों और गुरुकुलों की आर्थिकी मंदिरों से चलती थी। शतप्रतिशत साक्षरता थी। अपनी इस व्यवस्था में भारत एक सुसंस्कृत इकोफ्रेन्डली समृद्ध इकोनॉमी था और सोने की चिड़िया कहलाता था। लेकिन सातवीं सदी से मुगल आक्रांता चंगेज खां गौरी गजनी बाबर अकबर औरंगजेब सब भारत को लूटने आये, लाखों की संख्या में भारतीय युवकों की हत्यायें कर उनकी पत्नियों को आक्रांताओं द्वारा खुद को रखा गया और एक हिंसक आततायी सभ्यता यहां फैलाते रहे कुनबा बढ़ाते रहे । इसके बाद 16 वीं सदी में बचीखुची समृद्धि और संस्कृति अंग्रेज साम्राज्यवादियों के कारण समाप्त होती गई। यानी लुटेरे आ कर केवल देश को लूटते ही नहीं रहे बल्कि उन्होंने सबसे पहले भारतीय संस्कृति की समृद्धि स्रोत मंदिरों को नष्ट किया इसके मूल स्रोत ब्राह्मणों को खलनायक के रूप में पेश किया। मुगल काल तक भारत में 18000 मंदिर तोड़ कर उनके उपर मस्जिदें बनाई गई। दुर्भाग्य से भारतीय संस्कृति के समापन और धर्मांतरण की यह परंपरा आज भी जारी है। देश के पहले शिक्षामंत्री मौलवी मौलाना आजाद ने भारतीय शिक्षा और समृद्ध परम्परा को इतिहास में तब्दील करने और भारतीय सड़कों व प्रतीकों को विदेशी आक्रमणकारियों के नाम पर रखाने और इतिहास से भयंकर छेड़छाड़ कर प्रस्तुु करने मेंं कोई कोरकसर नहीं छोड़ी। वर्ना हमारे देश पर आक्रमण करने वाले आक्रांता और देश को गुलाम बनाने वाले औरंगजेब अकबर बाबर सिकंदर जैसे दुर्दांत लोग महान कैसे कहलाये जा सकते हैं?

आज जातीय आधार पर वोट भिखारी और तुष्टिकरण पुरोधा दल बल और छल से भले भारतीयों को जातियों में बांट कर अपना वोट बैंक सैट कर लेते हैं लेकिन इससे भारतीय संस्कृति की हत्या हो जाती है।