कर्नाटक में मोदी नहीं हारे बल्कि हिंदू परास्त हुआ

सोशल मीडिया व अन्य जगहों पर कुछ अति समझदार हिंदू यह प्रचार कर रहे हैं कि कर्नाटक हाथ से निकलने का मुख्य कारण मोदी जी के मुस्लिमों को रिझाने के प्रयास है जिसके कारण हिंदू भाजपा से दूर हो गया-एक विश्लेषण*

ऐसी परिभाषाएं सिर्फ हिंदुओं के लिए ही गढ़ी जाती है, क्योंकि इनकी राजनीतिक जागरूकता बहुत कम है और इन्हें आसानी से हुतिया बनाया जा सकता है। कभी मुस्लिमों को देखा है कि वह किसी पार्टी के दूर आ गया या पास आ गए, उनका सिर्फ एक ही एजेंडा है कि जो इस्लाम के लिए बेहतर है उन्हें सिर्फ उस पार्टी को जिताना है, एकमुश्त होकर वोट देने के लिए कितनी ज्यादा राजनैतिक जागरूकता की जरूरत होती होगी जो हिन्दुओ में कभी नही रही। कांग्रेस ने भी हिंदुओं के लिए कई बेहतर घोषणा की थी परंतु मुस्लिमों का एकमुश्त वोट फिर भी उसको ही गया, यह मुस्लिमो की राजनीतिक जागरूकता का परिणाम है… हिन्दुओ की तरह नहीं की पूरे देश को साथ लेकर चलते हुए धीरे-धीरे देश को हिंदू राष्ट्र में बदल रहे मोदी जी जैसे व्यक्ति पर एक हार के बाद ही प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दें।
हिंदू और सनातन संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए आज वह सब हो रहा है जिसकी जरूरत है परंतु कानून और संविधान का भी ध्यान रखना होगा भले ही इसमें कुछ प्रावधान गलत है परंतु देश में 30% हो चुकी मुस्लिम आबादी को सीधे-सीधे सड़कों पर उतरने का मौका नहीं दे सकते।
मोदी जी और भाजपा मुस्लिमों को लुभाने के लिए कुछ नहीं कर रहे बल्कि सिर्फ बैलेंस बना रहे हैं जो एक रन योजना का हिस्सा है परंतु अधिकतर हिंदुओं की राजनीतिक जागरूकता इतनी शून्य हो चुकी है कि वे अपने कर्तव्य को तो निभा नहीं रहे हैं परंतु जो जी जान से यह सब कर रहे हैं उन्हीं को गिराने के लिए प्रचार कर रहे हैं।
मोदी जी जैसे राजनेताओं और भाजपा जैसी राजनीतिक पार्टियों को असली ताकत जनता के सहयोग से ही मिलती है और जनता का सहयोग सिर्फ वोट देना भर नहीं बल्कि राष्ट्रहित के विरुद्ध हर छोटी बड़ी बात पर प्रतिक्रिया के साथ-साथ प्रतिकार करना भी है।
मुस्लिम कभी राजनेता या राजनीतिक पार्टियों के भरोसे नहीं रहते, ना ही वे इनमें नुक्स निकालने में कोई इंटरेस्ट रखते हैं। उन्हें सिर्फ इतना पता है कि जिसको वह बनाएंगे वह इस्लाम को आगे ले जाने के लिए काम करेंगा, बाकी जरूरत वह खुद पूरी कर लेंगे। राजनीतिक पार्टियां मुसलमानों के लिए काम करती नहीं है बल्कि मुस्लिम उनसे काम लेते हैं, उनके काम लेने के तरीकों को पहचानिए। काम लेने के लिए वे एकजुट होकर किसी सरकारी ऑफिस, पुलिस स्टेशन, कोर्ट आदि पर चढ़ाई भी कर सकते हैं, हिंसा भी कर सकते हैं, घेराव भी कर सकते हैं, सड़क रोक कर धरने भी कर सकते हैं, उनके डर से राज्य सरकारें फिल्में बैन कर सकती है, हिंदुओं को दी जाने वाली योजनाओं को बंद कर सकती हैं… वोट देने के अतिरिक्त क्या आप सभी एकजुट होकर ऐसा कुछ कर पाए जो सिस्टम व सरकार आपके दबाव में आ जाये, हम सिर्फ जातिवाद के लिए धरना करते हैं या पेट्रोल प्याज के दाम के लिए????
जब कभी कोई दंगा होता है तो कितने हिंदू मैदान में आते हैं??? या तो घर में छुप जाते हैं या पुलिस की ओर दौड़ते हैं परंतु मुस्लिमों का बच्चा-बच्चा सड़क पर होता है और बदला लेने के लिए झपट रहा होता है, ऐसे हिंसक और बर्बर समुदाय से सीधे-सीधे टक्कर लेने की हिम्मत आज के हिंदू में बची नहीं है, समाज का बड़ा हिस्सा अपने स्वार्थ पूरा करने में, ज्यादातर युवा नशे और इश्कबाजी में खत्म हो रहे हैं… सोशल मीडिया पर सूखा जोश दिखाते हैं… इसलिए बैलेंस बनाने वाली नीति से ही काम किया जा सकता है जो भाजपा और मोदी जी कर भी रहे हैं।
रहीं बात कर्नाटक में सत्ता हाथ से जाने की तो पिछली बार की तुलना में इस बार भाजपा को सिर्फ 1% के आसपास कम वोट मिले हैं जबकि कांग्रेस को मिलने वाले अधिकतर वोट जेडीएस के खाते के है जो उसको ना जाकर कांग्रेस को चले गए।
*रही बात हिंदू बहुल राज्य में कांग्रेस के जीतने के तो राज्य जरूर हिंदू बहुल है परंतु उसमें लाखों लोगों का ईसाई और इस्लाम में धर्मांतरण किया जा चुका है, लाखों सेकुलर हिंदू भी है और लाखों लालची हिंदू भी है जो चंद पैसों के लिए कहीं भी वोट दे सकते हैं।*
सारा ठीकरा भाजपा और मोदी जी पर फोड़ने की बजाय उनको पहचानो जिन्होंने भाजपा रूपी राष्ट्रवादी सरकार को राज्य में आने से रोकने के लिए हर संभव प्रयास किए, इस्लाम और ईसाइयत की जुगलबंदी को पहचानिए जिसने दक्षिण के इस सबसे बड़े राज्य को हिंदुत्ववादी मानसिकता से मुक्त करने का प्रयास किया और सफल भी हुए।
कर्नाटक में बहुत तेजी के साथ फैल रहे चर्चो और मस्जिदों के नेटवर्क द्वारा की गई मेहनत को पहचानिए। माना कि भाजपा ने कर्नाटक में लोगों के मन चाहे कुछ काम नहीं किये होंगे परंतु उनको यह भी पता है कि जिस कांग्रेस सरकार को वह लाए हैं वह भी यह काम कतई नहीं करेगी… परंतु फ्री की घोषणाओं के चक्कर में और इस्लाम और ईसाइयत के गठजोड़ द्वारा किए गए सेकुलरवादी प्रचार का शिकार होकर कांग्रेस को वोट दे बैठे।
निचोड़ यह है कि कोई भी सरकार आज तक पूर्ण रूप से जनता को संतुष्ट नहीं कर पाई है और ना ही भविष्य में कर सकती परंतु हमें सिर्फ यह देखना है कि जो विचारधारा हमारे राष्ट्र व हिंदुत्व के अस्तित्व की रक्षा के लिए कार्य कर सकती है उसको ही राजनैतिक सत्ता पर काबिज करें। *मुस्लिम इस्लाम को बढ़ाने के लिए वोट देना अपनी जिम्मेदारी समझता है और अधिकतर हिंदू भाजपा को वोट देकर एहसान जताता है…. जिस दिन यह अंतर समझ जाओगे उस दिन आपको यह बताने की जरूरत नहीं पड़ेगी कि राजनीतिक रूप से किस को ताकतवर बनाना है।* मोदी को जो बनना था वो बन चुके हैं अब तो हिंदुओं को अपना खोया हुआ अस्तित्व पाना है जो किसी सैक्युलर दल से नहीं भाजपा से भी नहीं बल्कि केवल मोदी के चुनाव निशान कमल को वोट देने से २०२४ में पुनः प्रधानमंत्री बना कर मिल सकता है। 

बडी जीत के बाद अब कांग्रेस को अपना मुस्लिम तुष्टिकरण वाला घोषणापत्र लागू करने से कोई रोक नहीं सकता। 

◆ बजरंग दल पर प्रतिबंध
◆ गोहत्या को रेग्युलराइज कर देंगे
◆ धर्मांतरण वीरोधी कानून को निरस्त करेंगे।
◆ मुस्लिमो को 4% आरक्षण
◆ जाति आधारित जनगणना
◆ चर्च और मस्जिदों को मुफ्त बिजली देने का वादा
◆ मुस्लिम युवाओं को सरकारी ठेकों में विशेष अवसर देने का वादा
◆ गरीब मुस्लिम छात्रों को 20 लाख रुपये की सहायता
◆ मुस्लिमों के लिए स्थानीय स्कूल
◆ अल्पसंख्यकों के लिए अस्पताल
◆ अल्पसंख्यकों के लिए विशेष उर्दू डीएससी (डिस्ट्रिक्ट सिलेक्शन कमिटी)
◆ जिन संस्थाओं में धर्म के आधार पर भर्ती की जाती है उन्हें दंडित किया जाना भी शामिल है।
◆ अल्पसंख्यक महिलाओं को व्यवसाय शुरू करने के लिए 3 लाख रुपये का ब्याज मुक्त ऋण देने की पेशकश। हम फिर कह रह रहे हैं कर्नाटक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नहीं हारे बल्कि हिंदू परास्त हुआ! कर्नाटक में भाजपा को वोट न देकर हमने मोदी का अहंकार तोड़ दिया। ये हमने कोई पहली बार नहीं किया है, इसी तरह पहले भी हमने साथ न देकर बड़ों-बड़ों का अहंकार तोड़ा है..

बहुत पहले सिंध के हिन्दू राजा दाहिर का अहंकार तत्कालीन अफगानिस्तान और राजस्थान के हिन्दू राजाओं ने खत्म किया था। दाहिर ने सहायता के लिये पत्र लिखा, पर कोई भी नहीं आया। बहुत अहंकार था दाहिर को अपने पराक्रम का, मारा गया। अब ये अलग बात है कि उसके बाद सिंध में हिन्दुओं का निरंतर पतन ही होता रहा और आज अफगानिस्तान पूर्णतः इस्लामिक राष्ट्र है।

इसी तरह हमने मुहम्मद गोरी के आक्रमण के समय पृथ्वीराज चौहान का साथ न देकर उनके अहंकार को तोड़ा था। अब अलग बात है कि बाद में गोरी ने जयचंद को भी कुत्ते की मौत मारा।

मेवाड़ वालों को भी अपनी बहादुरी का बड़ा अहंकार था। जब खिलजी ने मेवाड़ घेर लिया तब पूरे राजपूताने से किसी ने भी साथ नहीं दिया, रावल रतन धोखे से मारे गये और पद्मावती को 16000 औरतों के साथ जौहर करना पड़ा। पद्मावती को भी अपनी सुंदरता पर बड़ा अहंकार था, तोड़ दिया।

राणा सांगा ने जब लोधी को कैद किया था, तब उनके अहंकार को तोड़ने के लिये डाकू बाबर को बुलाया गया। युद्ध में किसी ने राणा सांगा का साथ नहीं दिया, उनका सेनापति तीस हजार सैनिकों के साथ मारा गया, सांगा का अहंकार टूट गया। लेकिन लोधियों को भी मुगलों की गुलामी करनी पड़ी, मन्दिर तोड़े गए, स्त्रियां लूटी मुगलों ने..पर सांगा का अहंकार तो टूट ही गया न।

मराठे बड़े प्रतापी थे, मुगलों की वाट लगा दी थी उन्होंने। उनको भी बहुत अहंकार था। मुगल हार गये तो काफिरों को रोकने के लिए अफगानिस्तान से अब्दाली बुलाया गया, पानीपत के मैदान में सेनाएं सज गयीं। अब्दाली की सेना को तो रसद मिलती रही पर मराठों को किसी ने भी रसद नहीं भेजी..अहंकार जो तोड़ना था मराठों का। भूखे पेट मराठे लड़ते रहे, मरते रहे..हार गये। महाराष्ट्र का कोई ऐसा घर नहीं जिसका कोई बेटा शहीद न हुआ हो, लेकिन अहंकार तो टूट गया न।

न जाने कितनी बार हमने समय पर साथ न देकर अपनों के अहंकार को तोड़ा है, तो हम मोदी को भी सत्ता से हटा कर रहेंगे। भले ही हमें इसके लिये गोरियों, मुगलों, अब्दालियों या फिर इटली, पाकिस्तान की मदद लेनी पड़े और देश को उनके हाथों गिरवी रखना पड़े..हम मोदी का अहंकार तोड़ कर ही रहेंगे।

…… क्योंकि हमें ग़ुलामी में ही जीने की आदत पड़ गई है। दरवाजा हमेशा अंदर से खुलता है।

मुस्लिम वोट के ठोस ध्रुवीकरण और वोकाल्लिगा का डी के शिव कुमार के प्रति आकर्षण का नतीजा है… कर्नाटक में कांग्रेस सरकार*

– जेडीएस का वोट 2018 में 18 प्रतिशत था और 2023 में 13 प्रतिशत है.. यानी 5 प्रतिशत वोट घटा । ये 5 प्रतिशत जेडीएस का वोट, कांग्रेस में शिफ्ट हो गया और कांग्रेस जिसका वोट 2018 में 38 प्रतिशत था 2023 में बढ़कर 43 प्रतिशत हो गया और कांग्रेस को 135 से ज्यादा सीटों पर जीत मिल गई 

– बीजेपी का वोट 2018 में 36 प्रतिशत था और 2023 में 35 प्रतिशत है यानी बीजेपी का वोट सिर्फ एक प्रतिशत ही घटा है । लेकिन बीजेपी को सीटों का बड़ा नुकसान इसलिए हुआ क्योंकि जेडीएस से 5 प्रतिशत वोट टूटकर कांग्रेस पार्टी को चला गया ।

– ओल्ड मैसुरू जेडीएस का गढ़ है और यहां जेडीएस का मूल वोट बैंक मुस्लिम + वोकाल्लिगा था । दरअसल देवेगौड़ा वोकाल्लिगा जाति से आते हैं और उनकी पार्टी जेडीएस MV समीकरण यानी मुस्लिम + वोकाल्लिगा वोट समीकरण पर जीतती आ रही थी । 

– लेकिन अब तक जेडीएस को वोट देते आ रहे मुस्लिम समाज PFI के बैन के बाद जाग्रत हो उठा और उसने खुलकर कांग्रेस को अपना पूरा वोट शिफ्ट कर दिया । जिससे कांग्रेस पार्टी को जमकर पूरा मुस्लिम वोट मिल गया और कांग्रेस पार्टी को वोट बेस और बड़ा हो गया

– दूसरी तरफ लिंगायत और वोकालिग्गा की जातिगत लड़ाई ने हिंदू समाज को कमजोर किया । कर्नाटक में बासव राज बोमई लिंगायत हैं और वोकालिग्गा जाति के लोगों ने ये विचार किया कि अब कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष डी के शिवकुमार को ही सपोर्ट करेंगे जो कि वोकालिग्गा हैं । यानी वोकालिग्गा अपनी जाति का सीएम चाहते थे इसलिए अब तक जो वोकालिग्गा परंपरागत रूप से जेडीएस को वोट देते आए थे उन सभी ने डी के शिवकुमार के नाम पर कांग्रेस को वोट कर दिया और इस तरह कांग्रेस पार्टी के वोट बेस में मुस्लिम के साथ साथ वोकाल्लिग्गा वोट भी बढ गया और कांग्रेस के वोट बेस में बंपर इजाफा हो गया। 

-यानी मूल बात ये है कि मुस्लिम वोट एकजुट हुआ और हिंदू (वोकाल्लिग्गा) वोट का बड़ा चंक कांग्रेस में चला गया । यानी अगर देखा जाए तो साफ है कि बजरंग दल और बजरंग बली के मुद्दे पर हिंदू वोट बीजेपी के साथ खड़ा ही नहीं हुआ।

– बीजेपी के बढ़ते प्रभाव, हिंदू राष्ट्र की मांग ने मुस्लिम वोट को पूरे देश के अंदर और ज्यादा एग्रेसिव और ध्रुवीक्रत किया है ! 2022 में यूपी में मुस्लिम वोट 90 प्रतिशत तक सपा को गया था । इसकी वजह से बीजेपी को यूपी में कम से कम 20 सीटों का नुकसान हुआ । मेरा आज भी यही मानना है कि अगर यूपी में योगी नहीं होते तो यूपी में दोबारा चुनाव जीत पाना बीजेपी के लिए बहुत मुश्किल हो जाता । हिंदू समाज को हमें अभी और जगाना होगा ताकी वो एकजुट हो जबकि मुस्लिम समाज थोड़ा सा झटका लगने पर भी फौरन इकट्ठा हो जाता है । मूल बात ये है कि मुस्लिम एक राजनीतिक प्राणी होता है और हिंदू को इकट्ठा कर पाना आज भी तराजू पर मेढक तोलने जितना कठिन कार्य है ।

-कांग्रेस पार्टी का अपने घोषणापत्र में बजरंग दल को बैन करने का वादा एक सोची समझी रणनीति थी जिसके जरिए कांग्रेस ने जेडीएस के मुस्लिम वोट को अपनी तरफ और ज्यादा कॉसोलिडेट किया ।

– कुल मिलाकर, हिंदू वही ढाक के तीन पात… जाति के नाम पर बंटा हुआ रहा और सत्ता की मलाई अब मुस्लिमों के हाथ लगेगी और मुस्लिम अपने वोट की पूरी कीमत वसूलता है अब कर्नाटक और ज्यादा इस्लामीकरण के करीब जाएगा। 

   *जय हिन्द जय भारत* 🇮🇳🇮🇳