भारत का इतिहास जिसे छिपाया गया : एक ही चट्टान काट कर बना है ऐलोरा का विशाल कैलाश मंदिर, लोहागढ़ किला भरतपुर हिंदुस्तान के इस किले पर कभी भी मुगलों व अंग्रेजो का राज न हो सका, 9वीं सदी का इतिहास समेटे है आभानेरी मिहिर भोज की बावड़ी, विस्मयकारी है टिटलागढ़ का यह शिव मंदिर, जानें क्‍या रहस्य है, कबीर की हत्या का षड्यंत्र किसने किया!

#भारत_का_एकमात्र_अजेय_दुर्ग- लोहागढ़ किला,भरतपुर
हिंदुस्तान की शान यह किला एकमात्र ऐसा किला है जिस पर कभी भी मुगलों व अंग्रेजो का राज स्थापित न हो सका।
➡️इस किले की स्थापना हिन्दू ह्रदय सम्राट महाराजा सूरजमल ने की थी।मुगलों अफगानों अंग्रेजों व अन्य विदेशी ताकतों ने इसे कई बार जीतने की कोशिश की परन्तु लाख कोशिशों के बावजूद भी उन्हें हर बार मुंह की खानी पड़ी।

➡️महाराजा सूरजमल और उनके बेटे महाराजा जवाहर सिंह व महाराजा रणजीत सिंह और अन्य वीरो की गाथा समेटे हुए यह सुंदर किला आज भी शान से खड़ा हुआ है।

➡️महाराजा सूरजमल व महाराजा जवाहर सिंह ने यहां से मुगलों अफगानों को अनेकों बार हराया।

➡️जब भी विदेशी आक्रांता दिल्ली पर आक्रमण कड़ते थे तो वहां राज करने वाले मुगल दिल्ली निवासियों की सुरक्षा पर कोई ध्यान नहीं देते थे तब उन्हें भी शरण भरतपुर में ही मिलती थी।

➡️महाराजा रणजीत सिंह(महाराजा सूरजमल के पुत्र) ने यहां अंग्रेजो को 13 बार हराया था।

➡️यह किला आक्रांताओं के काल मे सबसे सुरक्षित जगह थी। इसके निर्माण के पश्चात इसकी दीवारों पर मिट्टी व अन्य चीजों की एक मोटी परत चढ़ाई गयी जिस कारण तोप के गोले मिट्टी में धंस जाते थे और दीवारों का कुछ नहीं बिगाड़ पाते थे।आज भी दीवारों में तोप के गोले धंसे हुए देखे जा सकते हैं।

➡️ इसके चारों ओर सुजान नदी बनाई गई जिसमें पानी भर दिया जाता था। उस पानी से होकर दीवारों पर चढ़ना मुश्क़िल ही नहीं बल्कि असम्भव था।

भारतभूमि की शान ये किला आज भी अच्छी स्तिथि में है मगर फिर भी सरकार को इस पर ध्यान देने की जरूरत है और इसके सौन्दर्यकरण व मरम्मत पर खर्च करने की जरूरत है ताकि धर्मभक्ति व देशभक्ति की गाथाएं समेटे स्वाभिमान का प्रतीक यह किला संरक्षित रह सके।

9वीं सदी का इतिहास समेटे है आभानेरी चांद बावड़ी,

9वीं शताब्दी में निर्मित इस बावड़ी का निर्माण राजा मिहिर भोज (जिन्हें कि चांद नाम से भी जाना जाता था) ने करवाया था.

ज्यादातर लोगों को घूमने-फिरने के साथ किसी जगह से जुड़ा इतिहास जानने का भी बड़ा चेतना होती है. यदि आप भी उन लोगों में से एक हैं, तो हम आपको राजस्थान की आभानेरी चांद बावड़ी के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका इतिहास 9वीं सदी से जुड़ा हुआ है. 9वीं शताब्दी में निर्मित इस बावड़ी का निर्माण राजा मिहिर भोज (जिन्हें कि चांद नाम से भी जाना जाता था) ने करवाया था, और उन्हीं के नाम पर इस बावड़ी का नाम चांद बावड़ी पड़ा। 

दुनिया की सबसे गहरी यह बावड़ी चारों ओर से लगभग 35 मीटर चौड़ी है तथा इस बावड़ी में ऊपर से नीचे तक पक्की सीढ़ियां बनी हुई हैं, जिससे पानी का स्तर चाहे कितना ही हो, आसानी से भरा जा सकता है. 13 मंजिला यह बावडी 100 फीट से भी ज्यादा गहरी है, जिसमें भूलभुलैया के रूप में 3500 सीढियां (अनुमानित) हैं. बावड़ी निर्माण के बारे में कहा जाता है कि इस बावड़ी का निर्माण भूत-प्रेतों द्वारा किया गया और इसे इतना गहरा इसलिए बनाया गया कि इसमें यदि कोई वस्तु गिर भी जाये, तो उसे वापस पाना असम्भव है.

बावड़ी के पास ही है ये कुंड घूमना न भूलें 

नगर सागर कुंड में दो जुड़वां सीढ़ीदार कुंए हैं, जो चौहान दरवाजे के बाहर स्थित हैं. इसका निर्माण बूंदी के लोगों के लिए सूखे के दौरान पानी के लिए कराया गया था. यह अपने चिनाई के काम के लिए प्रसिद्ध है.

कैसे पहुंचे : आप राजस्थान के अलवर से आभानेरी चांद बावली पहुंच सकते हैं. आपको बड़ी आसानी से अलवर के लिए ट्रेन या बस मिल जाएगी. फ्लाइट से आने के लिए आपको जयपुर एयरपोर्ट पहुंचना पड़ेगा. यहां से बस, ट्रैक्सी की मदद से यहां पहुंचा जा सकता है. 

खास जगह देखना न भूलें इन्हें 

बावड़ी वाटर हार्वेस्टिंग का खूबसूरत नमूना है.

यह धरोहर देश की सबसे बड़ी और गहरी बावड़ी में शुमार है.

यहां के राजा चांद ने 8वीं सदी में इसे बनवाया था.

घूमने के लिए सबसे बेस्ट टाइम : फरवरी से जुलाई  

बावड़ी के पास ही है ये कुंड घूमना न भूलें 

नगर सागर कुंड में दो जुड़वां सीढ़ीदार कुंए हैं, जो चौहान दरवाजे के बाहर स्थित हैं. इसका निर्माण बूंदी के लोगों के लिए सूखे के दौरान पानी के लिए कराया गया था. यह अपने चिनाई के काम के लिए प्रसिद्ध है.

कैसे पहुंचे : आप राजस्थान के अलवर से आभानेरी चांद बावली पहुंच सकते हैं. आपको बड़ी आसानी से अलवर के लिए ट्रेन या बस मिल जाएगी. फ्लाइट से आने के लिए आपको जयपुर एयरपोर्ट पहुंचना पड़ेगा. यहां से बस, ट्रैक्सी की मदद से यहां पहुंचा जा सकता है। (सभार अरविंद नौटियाल) 

कैलाश मंदिर, एलोरा – जो पृथ्वी पर फिर कभी नहीं बन सकता!

 पूरे मंदिर को ऊपर से नीचे तक, ठोस बेसाल्ट आधारशिला से काट दिया गया था।

 इस चमत्कार को बनाने के लिए करीब 4 लाख टन पत्थर खोदा गया था। हैरानी की बात यह है कि मंदिर के 100 किलोमीटर के दायरे तक कोई मलबा नहीं मिला है।

 ये केवल छेनी और हथौड़े से ही नहीं बनाए गए थे। लेकिन उन्नत प्राचीन भारतीय प्रौद्योगिकी का उपयोग किया गया था।

 नालंदा विश्वविद्यालय के जलने से बहुत सारा ज्ञान नष्ट हो गया

 #प्राचीन इतिहास

The Kailasha Mandir, Ellora – that can never be built again on Earth!

Entire Mandir was cut out from solid basalt bedrock, from top to bottom.

Nearly 4 lakh tons of stone was dug to create this marvel. Surprisingly no debris is found upto 100 kms radius of the Mandir.

These were not made only with chisels and hammers. But advanced Ancient Bharatiya Technology was used.

Lots of knowledge was lost in the burning of Nalanda University

#Ancient_history 

विस्मयकारी है टिटलागढ़ का यह शिव मंदिर, जानें क्‍या रहस्य है ?

 

रहस्यमय शिव मंदिर,🚩

टिटलागढ़, ओडिशाl

 

एक रहस्यमय मन्दिर जहां गर्मी में भी सर्दी का एहसास होता है गर्मी के मौसम में कई बार मन्दिर के अन्दर कंबल की जरूरत पड़ती है 

 

भारत में ऐसी कई रहस्यमय जगहे हैं, जहां पर ईश्वरीय शक्ति के होने का आभास होता हैl

 

लेकिन भगवान के जिस चमत्कार का साक्षात् अहसास ओडिशा के टिटलागढ़ में होता है, वह कहीं और नहीं होता.

 

टिटलागढ़: पूर्वी राज्य ओडिशा का सबसे गर्म इलाका है टिटलागढ़. खास तौर पर यहां का कुम्हड़ा पहाड़ तो कुछ ज्यादा ही गर्म रहता है.क्योंकि यहां सीधी तेज धूप पड़ती है और पथरीली चट्टानें हैं. 

 

जिसकी वजह से यहां पर गर्मी का एहसास कुछ ज्यादा ही होता है. लेकिन इसी भीषण गर्मी के बीच जब आप यहां स्थित शिव पार्वती के मंदिर में प्रवेश करते हैं तो आपको ईश्वर के चमत्कार का सीधे तौर पर अहसास हो जाता है.

 

यहां भगवान शिव और पार्वती का रहस्यमयी प्राचीन मंदिर अवस्थित है. जो अपनी रहस्यमयी ईश्वरीय चेतना के लिए प्रसिद्ध है. यह मंदिर विज्ञान के लिए भी एक अनसुलझी पहेली है. यह एक ऐसा मंदिर है जहां गर्मी में भी सर्दी का अहसास होता है.य मंदिर के बाहर पथरीला पहाड़ है.जहां लगातार गर्मी पड़ती रहती है. लेकिन शिव मंदिर के अंदर का तापमान हमेशा सुखद बना रहता है. 

 

इस मंदिर में किसी तरह का कूलर या एयर कंडीशनर भी नहीं लगा हुआ है. लेकिन फिर भी इस मंदिर का तापमान हमेशा कम रहता है.खास बात यह है कि जैसे जैसे बाहर का तापमान बढ़ता जाता है. वैसे वैसे मंदिर का तापमान कम होता चला जाता है. 

 

मई जून के महीने में जब बाहर का तापमान कई बार 55 डिग्री तक पहुंचने लगता है. लेकिन उन्हीं परिस्थितियों में टिटला गढ़ शिव मंदिर के अंदर ठंड भी बढ़ जाती हैl

 

गर्मी के मौसम में कई बार मंदिर के अंदर कंबल ओढ़ने की नौबत भी आ जाती है।

यह मंदिर कुम्हड़ा पहाड़ पर स्थित है. जिसके पत्थर बेहद गर्म हो जाते हैं. मंदिर के अंदर हमेशा सर्दी बनी रहती है. मंदिर के अंदर और बाहर चंद कदमों की दूरी पर माहौल पूरी तरह बदल जाता है।

हर हर महादेव ✍️ प्रेम नाथ द्विवेदी 

कबीर दास के अंतिम समय का सच:गड़रिया मेरठ वाला की पोस्ट*

 

शांतिदूतों के कुकर्मों को छिपाने के लिए देश के *प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद* ने इतिहास के साथ जबरदस्त छेड़छाड़ किया। 

उनकी इच्छानुसार पाठ्य पुस्तकों में उल्लेख मिलता है कि संत कबीर मरने के बाद फूल बन गये और हिन्दू और मुस्लिमो ने उन्हें बराबर बाँट लिया,,,

 

जबकि हकीकत यह है कि सिकंदर लोदी ने उन्हें हाथी के पैरो से कुचलवाकर मरवा दिया था, क्योंकि वे सामाजिक कुरीतियों का खंडन करते थे। और उन्होंने मुल्ला बनने से मना कर दिया था।

 

जब कबीर दास जी ने इस्लाम कबूल करने से मना कर दिया, तो सिकंदर लोदी के आदेश से जंजीरो में जकड़कर कबीर को मगहर लाया गया। 

 

वहाँ लाते ही जब शहंशाह के हुक्म के अनुसार कबीर को मदिरा पिये हुए मस्त हाथी के पैरों तले रौंदे जाने का आदेश हो गया। इतना सुनते ही कबीर की पत्नी लोई पछाड़ खाकर पति के पैरों पर गिर पड़ी। पुत्र कमाल भी पिता से लिपटकर रोने लगा। 

 

लेकिन कबीर तनिक भी विचलित नहीं हुए। आँखों में वही चमक बनी रही। चेहरे पर भय का कोई चिन्ह नहीं उभरा। 

 

एकदम शान्त-गम्भीर वाणी में शहंशाह को सम्बोधित हो कहने लगे –

 

मुझे तो मरना ही था; आज नहीं मरता तो कल मरता। 

लेकिन सुलतान कब-तक इस गफलत में भरमाए पड़े रह सकेंगे, कब तक फूले-फूले फिरेंगे कि वह नहीं मरेंगे?

 

कबीर को जिस समय हाथी के पैरों तले कुचलवाया जा रहा था, उस समय कबीर का एक शिष्य भी वहाँ मौजूद था। 

कबीर को हाथी के पैरों तले रौंदवाने के बाद भी सुलतान का गुस्सा शांत नहीं हुआ। 

उसने कबीर की पत्नी लोई का जबरन निकाह अपने एक निम्न श्रेणी के मुस्लिम दरबारी से कराया और कबीर के पुत्र कमाल को एक काजी की सेवा में लगा दिया।

 

शांतिदूतों के काले अतीत को छिपाकर उसे सेकुलरिज्म का जामा पहनाने का काम पहले नेहरू और मौलाना आजाद ने किया बाद में उनके इसी काम को रोमिला थापर और इरफ़ान हबीब जैसे टुच्चे इतिहासकारों ने आगे बढ़ाया।🤢

साभार: Mahesh Kumar Sinha

(सभी पोस्ट शोशल मीडिया से साभार)

(भारत का छिपाया गया इतिहास : किसी ने बड़े सलीके से इतिहास के नाम पर षड्यंत्र रचा नहीं तो आगरे का तेजोमहांलय और दिल्ली का लाल दुर्ग हिंषक यवन आक्रांताओं के नाम चेंपने का दुस्साहस कोई कर कैसे सकता था!! जिन भूखे नंगे लुटेरों की अपने मुल्क में झोपड़ी बनाने की वकत कभी नहीं रही वे यहां क्या खा कर महल और किले बनाते! ये सब वैसा ही जैसे उस काल के एक सामाजिक कवि रहे कबीर को भगवान बताने का षड्यंत्र रचा गया सच ये कि कबीर को इस्लामिक विचार के विपरीत आचरण हेतु मगहर में हाथी के पैरों तले कुचलवा दिया था।

इतिहास से सबक लेते हुए अपनी धर्म संस्कृति की रक्षा के लिये सदैव तत्पर रहें *कड़वी गोलियाँ सीधे निगली जाती हैं चबाई नहीं जाती*

*उसी तरह “अपमान, असफलता, धोखा” जैसी कड़वी बातों को सीधे गटकना चाहिये*

*उन्हें चबाते रहेंगे, यानी याद करते रहेंगे तो जीवन कड़वा ही होगा*

                   🙏*सुप्रभात*🙏)