जानिए कैसे मनाएं वैदिक विधि से रक्षाबंधन का पर्व आज के शुभ मुहूर्त

 

सृष्टि के आदि में असुरों पर विजय प्राप्ति के निमित्त इन्द्राणी ने इंद्र को रक्षा सूत्र बांधा था! लक्ष्मी ने बलि को! ऱक्षासूत्र प्रेतात्माओं से रक्षा हेतु बांधा जाता है। आज ऋषियों को तर्पण देने से पितरों के उत्थान के निमित्तकर्म शुरू हो जाते हैं सही मायनों में आज से पितृयान मार्ग अनुष्ठान शुरू हो जाते हैं। आज जो ऱक्षासूत्र बांधा जाता है उसका उन्मोचन पितृयानमार्ग की पूर्णता पर हरिप्रबोधनी एकादशी के दिन होता है। इस पर्व बामन भगवान के निमित बनाया जाता है यह बहुत पवित्र और शुद्ध पर्व है। ब्रा्राह्मण इस पर्व पर  जगदकल्याण की कामना करते हैं वर्त्तमान में इसे भाई बहिन के पवित्र रिश्ते और सुरक्षा के  पर्व के रूप में ख्याति मिली है

वैदिक रक्षा सूत्र बनाने की वैदिक विधि 
सर्वप्रथम इसके लिए निम्न 5 वस्तुओं की आवश्यकता होती है –
(1) #दूर्वा (घास),
(2) #अक्षत (चावल),
(3) #केसर,
(4) #चन्दन,
(5) #सरसों के दाने।
इन सभी 5 वस्तुओं को रेशम के कपड़े में लेकर उसे बांध दें या सिलाई कर दें, फिर उसे कलावा में पिरो दें, इस प्रकार रक्षाबंधन के लिए वैदिक राखी तैयार हो जाएगी ।

जानिए इन पांच वस्तुओं का महत्त्व –

(1) दूर्वा :- जिस प्रकार दूर्वा का एक अंकुर बो देने पर तेज़ी से फैलता है और हज़ारों की संख्या में उग जाता है, उसी प्रकार मेरे भाई का वंश और उसमे सदगुणों का विकास तेज़ी से हो। सदाचार, मन की पवित्रता तीव्रता से बदता जाए । दूर्वा गणेश जी को प्रिय है अर्थात हम जिसे राखी बाँध रहे हैं, उनके जीवन में विघ्नों का नाश हो जाए।

(2) अक्षत :- हमारी गुरुदेव के प्रति श्रद्धा कभी क्षत-विक्षत ना हो सदा अक्षत रहे।

(3) केसर :- केसर की प्रकृति तेज़ होती है अर्थात हम जिसे राखी बाँध रहे हैं, वह तेजस्वी हो। उनके जीवन में आध्यात्मिकता का तेज, भक्ति का तेज कभी कम ना हो।

(4) चन्दन :- चन्दन की प्रकृति शीतल होती है और यह सुगंध देता है । उसी प्रकार उनके जीवन में शीतलता बनी रहे, कभी मानसिक तनाव ना हो। साथ ही उनके जीवन में परोपकार, सदाचार और संयम की सुगंध फैलती रहे।

(5) सरसों के दाने :- सरसों की प्रकृति तीक्ष्ण होती है अर्थात इससे यह संकेत मिलता है कि समाज के दुर्गुणों को, कंटकों को समाप्त करने में हम तीक्ष्ण बनें।

इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई एक राखी को सर्वप्रथम भगवान -चित्र पर अर्पित करें। फिर बहनें अपने भाई को, माता अपने बच्चों को, दादी अपने पोते को शुभ संकल्प करके बांधे।

इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई वैदिक राखी को शास्त्रोक्त नियमानुसार बांधते हैं। हम सभी पुत्र-पौत्र एवं बंधुजनों सहित वर्ष भर सुख और स्वस्थ रहते हैं।

राखी बाँधते समय बहन यह मंत्र अपने भाई के लिए बोले –

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल: I
तेन त्वां अभिबन्धामि रक्षे मा चल मा चल II

शिष्य गुरु को रक्षासूत्र बाँधते समय –
‘अभिबन्धामि‘ के स्थान पर ‘रक्षबन्धामि’ कहे

**राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त**

सुबह 7:43 बजे से 9:18 बजे तक चर,
सुबह 9:18 बजे से लेकर 10:53 बजे तक लाभ,
सुबह 10:53 बजे से लेकर 12:28 बजे तक अमृत,
दोपहर 2:03 बजे से लेकर 3:38 बजे तक शुभ,
सायं 6:48 बजे से लेकर 8:13 बजे तक शुभ,
रात्रि 8:13 बजे से लेकर 9:38 बजे तक अमृत,
रात्रि 9:38 बजे से लेकर 11:03 बजे तक चर,

इन मुहूर्तों में राखी बांधी जा सकती है। अमृत मुहूर्त के समय राखी बाँधना बहुत ही फलदायी माना जाता है। इसलिए कोशिश करें कि इसी समय अपने भाई को राखी बाँधें और भाई भी अपनी बहनों से इसी समय राखी बँधवाएँ।

चाकलेट की जगह भारतीय मिठाई या गुड से मुहं मीठा कराएँ I

अपना देश…अपनी सभ्यता…अपनी संस्कृति..अपनी भाषा..अपना गौरव…वन्दे मातरम्।