सरल और स्पस्ट बात है! थोड़ी कड़वी अवश्य है, पर बड़े काम की है। और वैसे भी बच्चों को ही दवाई चीनी में लपेट कर दी जाती है, आप बच्चे थोड़े हैं, आप तो बड़े हैं, और बड़े तो कितनी भी कड़वी दवा हो सीधा ही गटक जाते हैं।
देखो, देह के तल पर जीने वाला, कमाना, खाना और पैखाना ही जिसके जीवन का लक्ष्य है, जीता तो नकली है ही, मरता भी नकली है। कोई कहे कि मरना तो मरना है, क्या मरने में भी कोई असली नकली होता है? हाँ!
अपने परिवार, पास पड़ोस वालों की दृष्टि में मर जाना, और चुपके से कहीं दूसरे घर में या किसी शूकर कूकर कीड़े मकोडे सांप छछूंदर बिच्छू बंदर पेड़ भेड़ या की योनि में जन्म लेना, यह नकली मरना नहीं है? हमने तो सोचा मर गया, पर मरा वरा कुछ नहीं, शरीर बदल कर कहीं और रहने लगा, यह नकली मरना ही तो है।
“जाता नहीं है कोई संसार से कहीं चलके।
मिलते हैं सब यहीं पे कपड़े बदल बदल के॥”
वैसे इसमें वह मरने वाला कुछ और करता भी कैसे? स्वयं पूरा जीवन कामनाओं आकांक्षाओं और विषय भोग में पशुओं की भांति बीत गया। धोखे का अभ्यास तो उसे हो जो जीवन को इससे आगे समझे उपर का विषय समझे आत्मकल्याण कैसे करें यह समझे। वह था कुछ और, पर कुछ और होकर जीता रहा। था अविनाशी आत्मा, पर अपने को मरणधर्मा देह मानकर ही उसने अपना सारा जीवन बिता दिया। जो जीते जी अपने आप को ही धोखा देता रहा, मरते समय औरों को धोखा न देता तो क्या करता?
ध्यान दें, नकली मरना मृत्यु कहलाता है, वास्तविक मरना तो मोक्ष कहलाता है। मृत्यु माने बार बार जन्मना, बार बार मरना। एक और बात जिनके मरने के बाद अंतिम संस्कार नहीं होते उनकी आत्मा यानी आपरेटिंग सिस्टम तो किसी पिंड में भी प्रवेश नहीं कर पाता अपितु आत्मा ऐसी ही भटकती रहती है और वो सैद जिन्न आदि बन कर डोलती रहती है जैसे आप सपने में कहीं से कहीं चले तो जाते हैं लेकिन कर कुछ नहीं पाते क्यों कि आत्मा के पास अपरेटस यानी काया नहीं होती है। कभी कभी ये जिन्न सैद परकाया प्रवेश कर जाते हैं और उस देह में दो आत्मायें यानी आपरेटिंग सिस्टम काम करने लगते हैं और धीरे-धीरे वह शरीर अपना नियंत्रण खो देता है। इसलिए मरने के उपरांत अंतिम संस्कार आवश्यक है ताकि आत्मा को गो लोक द्यो लोक या ब्रह्म लोक जाने का डायरेक्शन यानी दिशा या गति मिले। जिससे उसका सायुज्य भगवान श्रीहरि विष्णमो के चरणों में हो जाय तो मोक्ष हो जाय वही आत्मा का परमात्मा से मिलन है वही आत्मा की थाह है यानी अपना घर है। सदा सदा के लिए जन्मने मरने के वंधन से छुट्टी यानी मुक्ति। जैसे समुद्र से वाष्प बन कर उड़ चुका पानी जब वर्षात बन कर जगह जगह भटकता है चोपटली खेत खलिहान नदी नाले नहर बांध गागर बोतलों में बंद रहता है उसकी थाह नहीं है ठिकाना नहीं है क्योंकि ये सब पानी का वास्तविक घर नहीं है जब तक वापस समुद्र में नहीं पंहुच जाता तब तक वह भटकता अटकता रहता है क्योंकि पानी का वास्तविक ठिकाना समुद्र ही है वहां एक बूंद की पावर भी समुद्र बन जाती है। इसलिए मनुष्य को भी जीते जी केवल अच्छे कार्य यानी सद्कर्म करने चाहिए अपने उपर कोई ऋण नहीं रखना चाहिए कर्मणा गहना गति अर्थात्अ कर्मों की गति गहन है गहरी है एक एक पल एक एक कर्म का लेखा-जोखा समय की लेखनी रखती है। कर्म गति टारे नहीं टरे। अस्तु ज्ञान यही है कि अपनी मुक्ति का मार्ग इसी चेतन मनुष्य योनि में प्रशस्त करना चाहिए। यदि गलती से भूल से पशु योनी में चले गए तो वे भोग योनियां हैं जैसा प्रकृत्ति रख दे वैसा ही ढलना है वैसा ही चलना है न संस्कार न यज्ञ हवन-पूजन न तिलक चंदन अपना कोई चिंतन-मनन नहीं आत्म कल्याण तो सोच भी नहीं सकते। इसलिए मनुष्य योनि में ज्ञानीजन को मन में केवल भगवान विष्णु के चरणों का ध्यान करना चाहिए। मन की गति अथाह है। जैसा चिंतन वैसा सृजन निश्चित है। तन का मरना मृत्यु है, मन का मरना मोक्ष है। मन के रहते तन का मर जाना मौत है, तन के रहते मन का मर जाना मोक्ष। यदि तन रोगी है तो इकीस दिनों तक भोजन से पहले गीता के इस श्लोक का उच्चारण करें आरोग्यता प्राप्त होगी
इसीलिए अरे साधकों! जितना समय बीत गया सो तो बीत ही गया, पर अभी भी समय है, संभल जाओ। जो पशुओं की हत्या करता है वह पाषाण हृदय व्यक्ति अन्नंत काल तक शौचालय का पत्थर बनता है। जो मांस भक्षण करता है वे शोच के कीड़े बनते हैं। जीवन तो विषय भोग में चला ही गया है, कम से कम मत्यु तो वास्तविक हो जाय। जीते जी ही मन से मर जाओ। ताकि आत्मा पर “पुनर्जन्म का भार” तो नहीं होगा..!!*विधाता के न्यायालय में पैरवी बड़ी न्यारी है, शान्त रहिए, कर्म कीजिए, सबका निर्णय जारी है।।*✍️हरीश मैखुरी 🙏जय श्रीमन् नारायण जी की सरकार 🙏