ज्ञानवापी में स्वामी अविमुक्तेस्वरानन्द की भोग पूजा पर पाबंदी के निहितार्थ

पुज्यपाद श्रीअविमुक्तेश्वरानंदजी के पास ना कोई हथीयार है, ना कोई सुरक्षा बल है, ना वे सत्ताधारी है, ना उनकी कोई हाथीयारधारी फौज है फिर भी सनातन धर्म के लिये, काशी जी में ज्ञानवापी मे भगवान शिव के पूजन अर्चना के लिये, केवल गुरु आज्ञा शिरसावंदय मान कर प्रगट परब्रम्ह सांब सदाशिव की सेवा का नियम ग्रहण करनेवाले, सनातन वैदिक हिंदू धर्म की रक्षा, मान,मर्यादा के लिए शांती पूर्वक हाथ में पूजा और भोग ( नैवेद्य )का थाल लेकर पूजा हेतु निकलनेवाले एक दंडी सन्यासी को उनके वेद निर्देशीत उत्तरदायित्व रोकने के लिये प्रसाशन को हाथीयारधारी पुलिस कर्मीयों की जरुरत क्यों पड रही है? इतने कडे बंदोबस्त की आवश्यकता प्रसाशन को क्यों पड रही है? क्यों की जो पक्षपात हो रहा है वह सर्वविदित है न्यायालय को भी प्रत्यक्षं किंप्रमाणम् न्याय देने में इतनी समय क्यों? दूसरी ओर तो न्यायालय रात को भी खुल जाते हैं! स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानंदजी अकेले और दुसरी तरफ फोजफट्टे के साथ पूरा प्रशासन क्यों? जबकि स्वामी अविमुक्तेस्वरानन्द सत्य सनातन धर्म संस्कृति परम्परा के पथ पर अग्रसर ध्वजवाहक हैं!! 

        दूसरी ओर सरकार इस पचड़े से बचना चाहती है और राममंदिर की भांति बीच बचाव करते हुए शांतिपूर्ण समाधान निकालने के मूड में है शायद इसीलिए न्यायालय के आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करती हुई दिख रही है।