जहां मृत्यु शय्या पर लेटे हुए हैं अस्पताल

हरीश मैखुरी 

उत्तराखंड में चिकित्सालयों के हाल बहुत खराब हैं। इन्हें हम एक तरह से सरकारी खोके कह सकते हैं। प्रदेश के दूर दराज के इलाकों  की बात तो छोडि़ए  देहरादून का दून चिकित्सालय खुद मृत्यु शय्या पर लेटा है। डाक्टरों का भारी टोटा है, सुविधाओं और दवाओं का अभाव है। गंदगी का अंबार है। कर्मचारियों की भारी कमी और उनमें कमियां भी हैं। उत्तराखंड के निवासी यहां अब इलाज कराने नहीं के बराबर आते। जो आते भी हैं वे या तो सरकारी कागजात हासिल करने के लिए या मजबूरी में।  यहां अब पश्चिम उत्तर प्रदेश के गरीब मुस्लिम ही दिखते हैं। ये हाल वहां हैँ जहाँ मुख्यमंत्री राज्यपाल मुख्य सचिव और डीजी पुलिस गाहे बगाहे आते जाते हैं। सोचिए प्रदेश के अन्य अस्पतालों में क्या स्थिति होगी। और उपर से तुर्रा ये कि डॉक्टर दवा और सुविधाओं की कमी के बावजूद प्रदेश सरकार हर साल यूजर चार्जर्स 10%बढ़ा रही है।जबकि सुविधाओं और क्वालिटी में सुधार बिलकुल भी नहीं है।

दिल्ली की बेतहाशा भीड़ के बावजूद दिल्ली सरकार मुफ्त में  चिकित्सा व्यवस्था उपलब्ध करा रही है। वहीं उत्तराखंड में गिने चुने लोगों के लिए यहां  की सरकारें यूजर चार्जेज के नाम पर लूट मचाने के बावजूद कुछ खास नहीं कर पा रही है।  खुद प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने यह कहकर सबअचम्भित कर दिया कि उन्हें अपनी जिंदगी बचाने के लिए निजी चिकित्सालय का रूख करना पड़ा, उनके इस बयान से सियासी हलकों में चर्चा तो है मगर धरातल पर हो  कुछ नहीं रहा।

सोचिए  ऐसी स्थिति में आम आदमी के लिए तो जीवन मरण का प्रश्न है ही, सरकार के लिए भी शर्म बातहोनी चाहिए।