रूपकुंड झील के नर कंकालों के रहस्य से उठ गया पर्दा?

सुनील पंत 
 उत्तराखंड के चमोली जनपद के देवाल ब्लाक में स्थित रूपकुंड झील को रहस्यमय झील के रूप में जाना जाता है। दर्पण का आकार लिए प्रसिद्ध झील हिमालय पर्वत में लगभग 5029 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। इसके चारों ओर ग्लेशियर और बर्फ से ढके पहाड़ है। हर साल जब भी बर्फ पिघलती है तो यहां पर कई कंकाल देखे जाते हैं।
        यहाँ पर लगभग 500 से 600 कंकाल पड़े हैं। पहले  इन हड्डियों के बारे में कहा जाता था कि वे 19वीं सदी के उतरार्ध के हैं।इससे पहले विशेषज्ञों द्वारा यह माना जाता था कि उन लोगों की मौत महामारी भूस्खलन या बर्फानी तूफान से हुई थी। 1960 के दशक में एकत्र नमूनों से लिए गये कार्बन डेटिंग ने अस्पष्ट रूप से यह संकेत दिया कि वे लोग 12वीं सदी से 15वीं सदी तक के बीच के हैं।
       2004 में, भारतीय और यूरोपीय वैज्ञानिकों के एक दल ने उस स्थान का दौरा किया ताकि उन कंकालों के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त की जा सके। उस टीम ने अहम सुराग ढूंढ़ निकाले जिनमें गहने, खोपड़ी, हड्डियां और शरीर के संरक्षित ऊतक शामिल थे। लाशों के डीएनए परीक्षण से यह पता चला कि वहां लोगों के कई समूह थे जिनमें शामिल था छोटे कद के लोगों का एक समूह (सम्भवतः स्थानीय कुलियों) और लंबे लोगों का एक समूह जो महाराष्ट्र में कोकण से संबंधित थे। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय रेडियोकार्बन प्रवर्धक यूनिट में हड्डियों की रेडियोकार्बन डेटिंग के अनुसार इनकी अवधि 850 ई. में निर्धारित की गयी है जिसमें 30 वर्षों तक की गलती संभव है।
      खोपड़ियों के फ्रैक्चर के अध्ययन के बाद, हैदराबाद, पुणे और लंदन में वैज्ञानिकों ने यह निर्धारित किया कि लोग बीमारी से नहीं बल्कि अचानक से आये ओला आंधी से मरे थे। ये ओले, क्रिकेट के गेंदों जितने बड़े थे और खुले हिमालय में कोई आश्रय न मिलने के कारण सभी काल के गाल में समा गये।