मुख्यमंत्री पुष्करसिंह धामी द्वारा गुलामी के प्रतीकों के नाम बदला जाना पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को हजम नहीं हो रहा!

✍️हरीश मैखुरी

गुलामी के प्रतीकों के नाम बदलने की सुगबुगाहट  पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को हजम नहीं हो पा रही है। बता दें कि वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्करसिंह धामी ने गुलामी के कुछ प्रतीकों के नाम बदलने की बात कही है लेकिन हरीश रावत इसे पचा नहीं पा रहे और उन्होंने इसका कारण स्पष्ट रूप से विरोध किया है।

हरीश रावत ने मुख्यमंत्री धामी से आग्रह किया है कि ” लैंसडाउन का नाम बदलना, उत्तराखंड के लिए नुकसानदायक होगा। अब लैंसडाउन एक विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो रहा है मोस्ट सौट आफ़्टर डेस्टिनेशन है उत्तराखंड की इस समय। फिर गढ़वाल रेजिमेंटल सेंटर का घर है।”

हरीश रावत यहीं नहीं रूके वे आगे लिखते हैं कि “पहले ही अग्निवीर योजना के जरिए हमारी रेजिमेंटों की परंपरा को समाप्त करने का षड्यंत्र रचा जा चुका है। अब जिस नाम से दुनिया जानती है कि गढ़वाल रेजीमेंट, गढ़वाल के महावीरों का घर लैंसडाउन। हमें नाम की उन बुलंदियों तक पहुंचने में बहुत वक्त लगा है। फिर आज समय बदल गया है। जिनके हम गुलाम रहे उस देश का प्रधानमंत्री आज भारतीय मूल का एक हिंदू है, जिस पर हमको गर्व होना चाहिए। फिर किस-किस नाम को बदलेंगे! जॉर्ज एवरेस्ट, जिम कॉर्बेट, रानीखेत और नैनीताल के क्लब जो अंग्रेजों की परंपरा से जुड़े हुए हैं! रानीखेत और मसूरी का कैथोलिक चर्च!”

 गौर करने वाली बात ये भी है कि देवभूमि पर अंग्रेजी शासन काल में थोपे गये इसाई नामों को बदले पर भला किसी को क्यों आपत्ति होनी चाहिए! ये कार्य तो स्वतंत्रता के तत्काल पश्चात हो जाना चाहिए था। उत्तराखंड बनने पर तो हो ही जाना चाहिए था। देर से ही सही अब नाम बदले जा रहे तो इस पर भी पेट में मरोड़?  इस विरोध का उद्देश्य पार्टी हाईकमान को प्रसन्न करना तो नहीं? या गुलामी की मानसिकता का मोह छूट नहीं पा रहा? मंतव्य जो भी हो लेकिन गुलामी के प्रतीकों के नाम बदला जाना उत्तराखंड के लिए अहितकारी हो कैसे सकता है? यह बात समझ से परे है। 

लेकिन युवा मुख्यमंत्री पुष्करसिंह धामी जिस तरह समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए और गुलामी के प्रतीकों के नाम बदलने के लिए कृत संकल्प हैं उससे लगता नहीं है कि हरीश रावत की इस बात का धामी पर कोई असर होगा।

 विशेष रूप से तब जबकि ब्रिटेन ने इसाई इतिहास ही बदल कर अपने देश का प्रधानमंत्री भारतीय मूल के सनातन धर्म संस्कृति के ऋषि सुनक को बना दिया। ऐसे समय में भारत में भी बरतानिया गुलामी के प्रतीकों के नाम बदला जाना समय की मांग है।