देवशयनी एकादशी व्रत आज, खाटू श्याम हैं मनोकामना सिद्धि प्रदाता, भगवान शिव शंकर पर अति दुर्लभतम जानकारी, आज का पंचाग आपका राशि फल

🌷 *देवशयनी एकादशी व्रत* 🌷

*आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं* … *जो इस बार कल 10 जुलाई 2022, रविवार को है* ….. *क्योंकि इसी दिन सृष्टि के संचालक प्रभु श्री विष्णु 4 मास तक शयन के लिए पाताल लोक में निवास करते हैं* 🙏

👉 *चातुर्मास व्रत* 👇

जैसा कि नाम से संकेत मिलता है, चातुर्मास व्रत चार महीने की अवधि के लिए होता है। पर्व आमतौर पर *आषाढ़ मास में दक्षिण अयन… देव शयन एकादशी से शुरू होता है और कार्तिक माह में उत्तर अयन देव प्रबोधिनी एकादशी पर समाप्त होता है।* त्योहार जुलाई के महीने में शुरू होता है और नवंबर तक चलता है। इन महीनों को हिंदू पौराणिक कथाओं में सबसे पवित्र महीना माना जाता है। इस अवधि के दौरान अधिकांश धार्मिक व्रत या महत्व की प्रासंगिकता के व्रत देखे जाते हैं। चातुर्मास का आरंभ होता है *इस समय में श्री हरि विष्णु योगनिद्रा में लीन रहते हैं इसलिए किसी भी शुभ कार्य को करने की मनाही होती है।*

इसी समय मे सूर्य और चंद्रमा का तेज कम हो जाता है और सभी मांगलिक कार्यों के लिए सभी देवताओं का आह्वान करना होता है …परंतु सूर्य और चंद्रमा के तेज को कम होने के कारण शुभ शक्तियां हमें नहीं मिल पा रही है इसीलिए मांगलिक कार्यों का निषेध बताया गया है…. इसीलिए इसी समय के दौरान शुभ शक्तियों का वरदान पाने के लिए व्रत,तप,पूजा और साधना विशेष की जाती है🙏

👉 *देवशयनी एकादशी व्रत पूजा विधि* 👇

1. व्रत के दिन सुबह स्नान के बाद देवशयनी एकादशी व्रत और पूजा का संकल्प करें. इसके लिए आप हाथ में जल, अक्षत् और फूल लेकर संकल्प करें.

2. प्रात: से ही रवि योग है. ऐसे में आप प्रात: स्नान के बाद देवशयनी एकादशी व्रत की पूजा कर सकते हैं. इसके लिए भगवान विष्णु की शयन मुद्रा वाली तस्वीर या मूर्ति की स्थापना करें क्योंकि यह उनके शयन की एकादशी है.

3. अब आप भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें. भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, फल, चंदन, अक्षत्, पान का पत्ता, सुपारी, तुलसी के पत्ते, पंचामृत आदि अर्पित करें. इस दौरान ओम भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का उच्चारण करते रहें

4. फिर माता लक्ष्मी की विधिपूर्वक पूजा करें. उसके पश्चात विष्णु चालीसा, विष्णु सहस्रनाम और देवशयनी एकादशी व्रत कथा का पाठ करें. पूजा का समापन भगवान विष्णु की आरती से करें.

5. ​दिनभर फलाहार पर रहें. भगवत वंदना और भजन-कीर्तन में समय व्यतीत करें. संध्या आरती के बाद रात्रि जागरण करें.

6. अगली सुबह स्नान के बाद पूजन करें. किसी ब्राह्मण को अन्न, वस्त्र और दक्षिणा देकर संतुष्ट करें.

7. इसे पश्चात पारण समय में पारण करके व्रत को पूरा करें. इस प्रकार से देवशयनी एकादशी को करना चाहिए.

👉 *चातुर्मास व्रत का महत्व* 👇

चातुर्मास की अवधि में ही आषाढ़ के महीने में भगवान विष्णु ने वामन रूप में अवतार लिया था और राजा बलि से तीन पग में सारी सृष्टी दान में ले ली थी। उन्होंने राजा बलि को उसके पाताल लोक की रक्षा करने का वचन दिया था। फलस्वरूप श्री हरि अपने समस्त स्वरूपों से राजा बलि के राज्य की पहरेदारी करते हैं। इस अवस्था में कहा जाता है कि *भगवान विष्णु निद्रा में चले जाते हैं।* चार्तुमास को लेकर एक और भी मान्यता है और वह मान्यता यह है कि *चार्तुमास के इन चार महिनों में भगवान शिव धरती का कार्य भार संभालते हैं।* चार्तुमास में भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। *इन चार महिनों मे भगवान शिव पृथ्वीं का भ्रमण करते हैं।* इन चार महिनों में अगर कोई व्यक्ति भगवान शिव की पूजा करता है तो उसे भगवान शिव का विशेष आर्शीवाद प्राप्त होता है। देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु जब योग निद्रा में चले जाते हैं। इसके बाद भगवान विष्णु कार्तिक मास की एकादशी पर जाग्रत अवस्था में आते हैं सावन के महीने में भगवान शिव की उपासना होती है और उनकी कृपा सरलता से मिलती रहती है।
चातुर्मास के दौरान भक्तों की अनुसूची का पालन करें
चातुर्मास अवधि के दौरान भक्त लहसुन और प्याज का उपयोग करना छोड़ देते हैं। *भक्त इन चार महीनों के दौरान रामायण, गीता और भागवत पुराण के रूप में धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने व सुनने में समय बिताते हैं।*

जैसा कि इन चार महीनों को भगवान विष्णु के लिए विश्राम का समय माना जाता है, भक्त उनकी कहानियों को सुनने और जरूरतमंदों की सेवा करने के लिए समय बिताते हैं। भगवान शिव के भक्त भी चातुर्मास अवधि की प्रतीक्षा करते हैं क्योंकि श्रावण का महीना भी इसी अवधि में आता है। श्रावण के दौरान सोमवार को भक्तों द्वारा शुभ माना जाता है और वे इस अवधि के दौरान उपवास के लिए विशेष तैयारी करते हैं।

चातुर्मास के दौरान खाद्य पदार्थों से बचा जाना चाहिए
चूंकि उत्सव चार महीनों से अधिक समय तक जारी रहता है, इसलिए भक्तों को कठोर आहार कार्यक्रम का पालन करने की आवश्यकता होती है। आमतौर पर श्रावण माह के दौरान हरी पत्तेदार सब्जियों से परहेज किया जाता है। महीने की शुरुआत आषाढ शुक्ल एकादशी से होती है और श्रावण शुक्ल एकादशी तक चलती है। भाद्रपद माह श्रावण सुक्ल एकादशी से शुरू होता है और भाद्रपद सुकला एकादशी तक जारी रहता है। भाद्रपद मास में, भक्त दही और उसी से तैयार अन्य वस्तुओं का सेवन करने से बचते हैं। आश्विन माह के दौरान दूध से तैयार वस्तुओं से परहेज किया जाता है। आमतौर पर कार्तिक माह के दौरान बीजों के साथ दालों से बचा जाता है। संत आमतौर पर चातुर्मास की अवधि के दौरान सूक्ष्म प्रकार की अनजाने हिंसा करने से बचते हैं। ऐसा वे जीवन के किसी भी रूप को नुकसान पहुंचाने से बचने के लिए करते हैं

*क्योंकि बरसात के मौसम को कीड़ों के प्रजनन का समय माना जाता है। यह माना जाता है कि धार्मिक अवधि के दौरान किसी भी जीवन रूप को अनजाने मारने से संतों को अपने पुण्य का नुकसान हो सकता है* और वे तदनुसार अपने व्रतों का और संयम जीवन का पालन करते हैं।

👉 *चातुर्मास व्रत से मिलता है अधिक लाभ👇*

भगवान विष्णु ने एक बार देखा कि इस धार्मिक अवधि के दौरान उपवास करने वाले भक्तों को वर्ष के अन्य समय में उपवास की तुलना में अधिक लाभ होगा। उपवास का लाभ महीनों के अनुसार अलग-अलग होगा। *कार्तिक माह के दौरान उपवास करना सबसे शुभ माना जाता है* क्योंकि भगवान विष्णु अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं, इसलिए भक्ति के साथ उपवास करने वाले भगवान विष्णु के आशीर्वाद की उम्मीद कर सकते हैं।

👉 *चार्तुमास की कथा* 👇

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार *योगनिद्रादेवी* ने भगवान विष्णु की कठोर साधना से भगवान विष्णु को प्रसन्न कर लिया और बोली हे भगवन् ! आपने सभी को अपने अंदर स्थान दिया है। मुझे भी अपने अंगों में स्थान दिजिए। भगवान विष्णु के शरीर में कोई भी ऐसा स्थान नहीं था जहां वह योगनिद्रा को स्थान दे सके। उनके शरीर तो शंख, चक्र, शांर्गधनुष व असि बाहुओं में अधिष्ठित हैं, सिर पर मुकुट है, कानों में मकराकृत कुण्डल हैं, कन्धों पर पीताम्बर है, नाभि के नीचे के अंग वैनतेय (गरुड़) से सुशोभित है। *भगवान विष्णु के पास सिर्फ नेत्र ही बचे थे। इसलिए भगवान विष्णु ने योगनिद्रा को अपने नेत्रों में रहने का स्थान दे दिया* और कहा कि तुम चार मास तक मेरे नेत्रों में ही वास करोगी। उसी दिन से *भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तक निद्रा अवस्था में रहते हैं।* इसलिए इन चार मासों को चातुर्मास्य कहा जाता है। जिसमें सभी देवता प्रसुप्त अवस्था में रहते हैं इसलिए इस काल को देवताओं के सोने का काल भी कहा जाता है। इसी कारण इन चार महिनों में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता।

🙏 *ओम नमो नारायणाय* 🙏

*|| खाटू श्याम जी के विषय में ||*

खाटू श्याम बाबा घटोत्कच और नागकन्या मौरवी के पुत्र हैं। पांचों पांडवों में सर्वाधिक बलशाली भीम और उनकी पत्नी हिडिम्बा बर्बरीक के दादा दादी थे।
कहा जाता है कि जन्म के समय बर्बरीक के बाल बब्बर शेर के समान थे, अतः उनका नाम बर्बरीक रखा गया। बर्बरीक का नाम श्याम बाबा (Shyam Baba) कैसे पड़ा, आइये इसकी कहानी जानते हैं।
श्री खाटू श्याम बाबा जी
बर्बरीक बचपन में एक वीर और तेजस्वी बालक थे। बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण और अपनी माँ मौरवी से युद्धकला, कौशल सीखकर निपुणता प्राप्त कर ली थी। 
बर्बरीक ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी, जिसके आशीर्वादस्वरुप भगवान ने शिव ने बर्बरीक को 3 चमत्कारी बाण प्रदान किए। इसी कारणवश बर्बरीक का नाम तीन बाणधारी के रूप में भी प्रसिद्ध है। भगवान अग्निदेव ने बर्बरीक को एक दिव्य धनुष दिया था, जिससे वो तीनों लोकों पर विजय प्राप्त करने में समर्थ थे। 
जब कौरवों-पांडवों का युद्ध होने का सूचना बर्बरीक को मिली तो उन्होंने भी युद्ध में भाग लेने का निर्णय लिया। बर्बरीक ने अपनी माँ का आशीर्वाद लिया और युद्ध में हारते हुए पक्ष का साथ देने का वचन देकर निकल पड़े। इसी वचन के कारण हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा यह बात प्रसिद्ध हुई। 
जब बर्बरीक जा रहे थे तो उन्हें मार्ग में एक ब्राह्मण मिला। यह ब्राह्मण कोई और नहीं, भगवान श्री कृष्ण थे जोकि बर्बरीक की परीक्षा लेना चाहते थे। ब्राह्मण बने श्री कृष्ण ने बर्बरीक से प्रश्न किया कि वो मात्र 3 बाण लेकर लड़ने को जा रहा है ? मात्र 3 बाण से कोई युद्ध कैसे लड़ सकता है। 
बर्बरीक ने कहा कि उनका एक ही बाण शत्रु सेना को समाप्त करने में सक्षम है और इसके बाद भी वह तीर नष्ट न होकर वापस उनके तरकश में आ जायेगा। अतः अगर तीनों तीर के उपयोग से तो सम्पूर्ण जगत का विनाश किया जा सकता है। 
ब्राह्मण ने बर्बरीक (Barbarik) से एक पीपल के वृक्ष की ओर इशारा करके कहा कि वो एक बाण से पेड़ के सारे पत्तों को भेदकर दिखाए। बर्बरीक ने भगवान का ध्यान कर एक बाण छोड़ दिया। उस बाण ने पीपल के सारे पत्तों को छेद दिया और उसके बाद बाण ब्राह्मण बने कृष्ण के पैर के चारों तरफ घूमने लगा। 
असल में कृष्ण ने एक पत्ता अपने पैर के नीचे छिपा दिया था। बर्बरीक समझ गये कि तीर उसी पत्ते को भेदने के लिए ब्राह्मण के पैर के चक्कर लगा रहा है। बर्बरीक बोले – हे ब्राह्मण अपना पैर हटा लो, नहीं तो ये आपके पैर को वेध देगा। 
श्री कृष्ण बर्बरीक के पराक्रम से प्रसन्न हुए। उन्होंने पूंछा कि बर्बरीक किस पक्ष की तरफ से युद्ध करेंगे. बर्बरीक बोले कि उन्होंने लड़ने के लिए कोई पक्ष निर्धारित किया है, वो तो बस अपने वचन अनुसार हारे हुए पक्ष की ओर से लड़ेंगे। श्री कृष्ण ये सुनकर विचारमग्न हो गये क्योकि बर्बरीक के इस वचन के बारे में कौरव जानते थे। 
कौरवों ने योजना बनाई थी कि युद्ध के पहले दिन वो कम सेना के साथ युद्ध करेंगे। इससे कौरव युद्ध में हराने लगेंगे, जिसके कारण बर्बरीक कौरवों की तरफ से लड़ने आ जायेंगे। अगर बर्बरीक कौरवों की तरफ से लड़ेंगे तो उनके चमत्कारी बाण पांडवों का नाश कर देंगे। 
कौरवों की योजना विफल करने के लिए ब्राह्मण बने कृष्ण ने बर्बरीक से एक दान देने का वचन माँगा। बर्बरीक ने दान देने का वचन दे दिया। अब ब्राह्मण ने बर्बरीक से कहा कि उसे दान में बर्बरीक का सिर चाहिए.
इस अनोखे दान की मांग सुनकर बर्बरीक आश्चर्यचकित हुए और समझ गये कि यह ब्राह्मण कोई सामान्य व्यक्ति नहीं है।  बर्बरीक ने प्रार्थना कि वो दिए गये वचन अनुसार अपने शीश का दान अवश्य करेंगे, लेकिन पहले ब्राह्मणदेव अपने वास्तविक रूप में प्रकट हों। 
भगवान कृष्ण अपने असली रूप में प्रकट हुए। बर्बरीक बोले कि हे देव मैं अपना शीश देने के लिए बचनबद्ध हूँ लेकिन मेरी युद्ध अपनी आँखों से देखने की इच्छा है। श्री कृष्ण बर्बरीक ने बर्बरीक की वचनबद्धता से प्रसन्न होकर उसकी इच्छा पूरी करने का आशीर्वाद दिया। बर्बरीक ने अपना शीश काटकर कृष्ण को दे दिया। 
श्री कृष्ण ने बर्बरीक के सिर को 14 देवियों के द्वारा अमृत से सींचकर युद्धभूमि के पास एक पहाड़ी पर स्थित कर दिया, जहाँ से बर्बरीक युद्ध का दृश्य देख सकें। इसके पश्चात कृष्ण ने बर्बरीक के धड़ का शास्त्रोक्त विधि से अंतिम संस्कार कर दिया। 

महाभारत का महान युद्ध समाप्त हुआ और पांडव विजयी हुए। विजय के बाद पांडवों में यह बहस होने लगी कि इस विजय का श्रेय किस योद्धा को जाता है। श्री कृष्ण ने कहा – चूंकि बर्बरीक इस युद्ध के साक्षी रहे हैं अतः इस प्रश्न का उत्तर उन्ही से जानना चाहिए। 
तब परमवीर बर्बरीक ने कहा कि इस युद्ध की विजय का श्रेय एकमात्र श्री कृष्ण को जाता है, क्योकि यह सब कुछ श्री कृष्ण की उत्कृष्ट युद्धनीति के कारण ही सम्भव हुआ। विजय के पीछे सबकुछ श्री कृष्ण की ही माया थी। 
बर्बरीक के इस सत्य वचन से देवताओं ने बर्बरीक पर पुष्पों की वर्षा की और उनके गुणगान गाने लगे। श्री कृष्ण वीर बर्बरीक की महानता से अति प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा – हे वीर बर्बरीक आप महान है। मेरे आशीर्वाद स्वरुप आज से आप मेरे नाम श्याम से प्रसिद्ध होओगे। कलियुग में आप कृष्णअवतार रूप में पूजे जायेंगे और अपने भक्तों के मनोरथ पूर्ण करेंगे। 
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भगवान श्री कृष्ण का वचन सिद्ध हुआ और आज हम देखते भी हैं कि भगवान श्री खाटू श्याम बाबा जी अपने भक्तों पर निरंतर अपनी कृपा बनाये रखते हैं। बाबा श्याम अपने वचन अनुसार हारे का सहारा बनते हैं। इसीलिए जो सारी दुनिया से हारा-सताया गया होता है, वो अगर सच्चे मन से बाबा श्याम के नामों का जप, स्मरण करे तो उसका कल्याण अवश्य ही होता है। 
*!! जय श्री खाटू श्याम जी की !!*

1-अष्टाध्यायी पाणिनी
2-रामायण वाल्मीकि
3-महाभारत वेदव्यास
4-अर्थशास्त्र चाणक्य
5-महाभाष्य पतंजलि
6-सत्सहसारिका सूत्र नागार्जुन
7-बुद्धचरित अश्वघोष
8-सौंदरानन्द अश्वघोष
9-महाविभाषाशास्त्र वसुमित्र
10- स्वप्नवासवदत्ता भास
11-कामसूत्र वात्स्यायन
12-कुमारसंभवम् कालिदास
13-अभिज्ञानशकुंतलम् कालिदास
14-विक्रमोउर्वशियां कालिदास
15-मेघदूत कालिदास
16-रघुवंशम् कालिदास
17-मालविकाग्निमित्रम् कालिदास
18-नाट्यशास्त्र भरतमुनि
19-देवीचंद्रगुप्तम विशाखदत्त
20-मृच्छकटिकम् शूद्रक
21-सूर्य सिद्धान्त आर्यभट्ट
22-वृहतसिंता बरामिहिर
23-पंचतंत्र। विष्णु शर्मा
24-कथासरित्सागर सोमदेव
25-अभिधम्मकोश वसुबन्धु
26-मुद्राराक्षस विशाखदत्त
27-रावणवध। भटिट
28-किरातार्जुनीयम् भारवि
29-दशकुमारचरितम् दंडी
30-हर्षचरित वाणभट्ट
31-कादंबरी वाणभट्ट
32-वासवदत्ता सुबंधु
33-नागानंद हर्षवधन
34-रत्नावली हर्षवर्धन
35-प्रियदर्शिका हर्षवर्धन
36-मालतीमाधव भवभूति
37-पृथ्वीराज विजय जयानक
38-कर्पूरमंजरी राजशेखर
39-काव्यमीमांसा राजशेखर
40-नवसहसांक चरित पदम्गुप्त
41-शब्दानुशासन राजभोज
42-वृहतकथामंजरी क्षेमेन्द्र
43-नैषधचरितम श्रीहर्ष
44-विक्रमांकदेवचरित बिल्हण
45-कुमारपालचरित हेमचन्द्र
46-गीतगोविन्द जयदेव
47-पृथ्वीराजरासो चंदरवरदाई
48-राजतरंगिणी कल्हण
49-रासमाला सोमेश्वर
50-शिशुपाल वध माघ
51-गौडवाहो वाकपति
52-रामचरित सन्धयाकरनंदी
53-द्वयाश्रय काव्य हेमचन्द्र

वेद-ज्ञान:-

प्र.1- वेद किसे कहते है ?
उत्तर- ईश्वरीय ज्ञान की पुस्तक को वेद कहते है।

प्र.2- वेद-ज्ञान किसने दिया ?
उत्तर- ईश्वर ने दिया।

प्र.3- ईश्वर ने वेद-ज्ञान कब दिया ?
उत्तर- ईश्वर ने सृष्टि के आरंभ में वेद-ज्ञान दिया।

प्र.4- ईश्वर ने वेद ज्ञान क्यों दिया ?
उत्तर- मनुष्य-मात्र के कल्याण के लिए।

प्र.5- वेद कितने है ?
उत्तर- चार ।
1-ऋग्वेद
2-यजुर्वेद
3-सामवेद
4-अथर्ववेद

प्र.6- वेदों के ब्राह्मण ।
वेद ब्राह्मण
1 – ऋग्वेद – ऐतरेय
2 – यजुर्वेद – शतपथ
3 – सामवेद – तांड्य
4 – अथर्ववेद – गोपथ

प्र.7- वेदों के उपवेद कितने है।
उत्तर – चार।
वेद उपवेद
1- ऋग्वेद – आयुर्वेद
2- यजुर्वेद – धनुर्वेद
3 -सामवेद – गंधर्ववेद
4- अथर्ववेद – अर्थवेद

प्र 8- वेदों के अंग हैं ।
उत्तर – छः ।
1 – शिक्षा
2 – कल्प
3 – निरूक्त
4 – व्याकरण
5 – छंद
6 – ज्योतिष

प्र.9- वेदों का ज्ञान ईश्वर ने किन किन ऋषियो को दिया ?
उत्तर- चार ऋषियों को।
वेद ऋषि
1- ऋग्वेद – अग्नि
2 – यजुर्वेद – वायु
3 – सामवेद – आदित्य
4 – अथर्ववेद – अंगिरा

प्र.10- वेदों का ज्ञान ईश्वर ने ऋषियों को कैसे दिया ?
उत्तर- समाधि की अवस्था में।

प्र.11- वेदों में कैसे ज्ञान है ?
उत्तर- सब सत्य विद्याओं का ज्ञान-विज्ञान।

प्र.12- वेदो के विषय कौन-कौन से हैं ?
उत्तर- चार ।
ऋषि विषय
1- ऋग्वेद – ज्ञान
2- यजुर्वेद – कर्म
3- सामवे – उपासना
4- अथर्ववेद – विज्ञान

प्र.13- वेदों में।

ऋग्वेद में।
1- मंडल – 10
2 – अष्टक – 08
3 – सूक्त – 1028
4 – अनुवाक – 85
5 – ऋचाएं – 10589

यजुर्वेद में।
1- अध्याय – 40
2- मंत्र – 1975

सामवेद में।
1- आरचिक – 06
2 – अध्याय – 06
3- ऋचाएं – 1875

अथर्ववेद में।
1- कांड – 20
2- सूक्त – 731
3 – मंत्र – 5977

प्र.14- वेद पढ़ने का अधिकार किसको है ? उत्तर- मनुष्य-मात्र को वेद पढ़ने का अधिकार है।

प्र.15- क्या वेदों में मूर्तिपूजा का विधान है ?
उत्तर- बिलकुल है,।

प्र.16- क्या वेदों में अवतारवाद का प्रमाण है ?
उत्तर- नहीं।

(शेष भाग)

प्र.17- सबसे बड़ा वेद कौन-सा है ?
उत्तर- ऋग्वेद।

प्र.18- वेदों की उत्पत्ति कब हुई ?
उत्तर- वेदो की उत्पत्ति सृष्टि के आदि से परमात्मा द्वारा हुई । अर्थात 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 43 हजार वर्ष पूर्व ।

प्र.19- वेद-ज्ञान के सहायक दर्शन-शास्त्र ( उपअंग ) कितने हैं और उनके लेखकों का क्या नाम है ?
उत्तर-
1- न्याय दर्शन – गौतम मुनि।
2- वैशेषिक दर्शन – कणाद मुनि।
3- योगदर्शन – पतंजलि मुनि।
4- मीमांसा दर्शन – जैमिनी मुनि।
5- सांख्य दर्शन – कपिल मुनि।
6- वेदांत दर्शन – व्यास मुनि।

प्र.20- शास्त्रों के विषय क्या है ?
उत्तर- आत्मा, परमात्मा, प्रकृति, जगत की उत्पत्ति, मुक्ति अर्थात सब प्रकार का भौतिक व आध्यात्मिक ज्ञान-विज्ञान आदि।

प्र.21- प्रामाणिक उपनिषदे कितनी है ?
उत्तर- केवल ग्यारह।

प्र.22- उपनिषदों के नाम बतावे ?
उत्तर-
01-ईश ( ईशावास्य )
02-केन
03-कठ
04-प्रश्न
05-मुंडक
06-मांडू
07-ऐतरेय
08-तैत्तिरीय
09-छांदोग्य
10-वृहदारण्यक
11-श्वेताश्वतर ।

प्र.23- उपनिषदों के विषय कहाँ से लिए गए है ?
उत्तर- वेदों से।
प्र.24- चार वर्ण।
उत्तर-
1- ब्राह्मण
2- क्षत्रिय
3- वैश्य
4- शूद्र

प्र.25- चार युग।
1- सतयुग – 17,28000 वर्षों का नाम ( सतयुग ) रखा है।
2- त्रेतायुग- 12,96000 वर्षों का नाम ( त्रेतायुग ) रखा है।
3- द्वापरयुग- 8,64000 वर्षों का नाम है।
4- कलयुग- 4,32000 वर्षों का नाम है।
कलयुग के 5122 वर्षों का भोग हो चुका है अभी तक।
4,27024 वर्षों का भोग होना है।

पंच महायज्ञ
1- ब्रह्मयज्ञ
2- देवयज्ञ
3- पितृयज्ञ
4- बलिवैश्वदेवयज्ञ
5- अतिथियज्ञ

स्वर्ग – जहाँ सुख है।
नरक – जहाँ दुःख है।.

*#भगवान_शिव के “35” रहस्य!!!!!!!!

भगवान शिव अर्थात पार्वती के पति शंकर जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ आदि कहा जाता है।

*🔱1. आदिनाथ शिव : -* सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें ‘आदिदेव’ भी कहा जाता है। ‘आदि’ का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम ‘आदिश’ भी है।

*🔱2. शिव के अस्त्र-शस्त्र : -* शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था।

*🔱3. भगवान शिव का नाग : -* शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है।

*🔱4. शिव की अर्द्धांगिनी : -* शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं।

*🔱5. शिव के पुत्र : -* शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। सभी के जन्म की कथा रोचक है।

*🔱6. शिव के शिष्य : -* शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे।

*🔱7. शिव के गण : -* शिव के गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है।

*🔱8. शिव पंचायत : -* भगवान सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।

*🔱9. शिव के द्वारपाल : -* नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल।

*🔱10. शिव पार्षद : -* जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि शिव के पार्षद हैं।

*🔱11. सभी धर्मों का केंद्र शिव : -* शिव की वेशभूषा ऐसी है कि प्रत्येक धर्म के लोग उनमें अपने प्रतीक ढूंढ सकते हैं। मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में वि‍भक्त हो गई।

*🔱12. बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ अंतरराष्ट्रीय : -* ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रोफेसर उपासक का मानना है कि शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था। उन्होंने पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए बताया कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं- तणंकर, शणंकर और मेघंकर।

(शेष भाग)

*🔱13. देवता और असुर दोनों के प्रिय शिव : -* भगवान शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं। वे रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी। उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। शिव, सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं।

*🔱14. शिव चिह्न : -* वनवासी से लेकर सभी साधारण व्‍यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकें, उस पत्‍थर के ढेले, बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्द्ध चन्द्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं, हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।

*🔱15. शिव की गुफा : -* शिव ने भस्मासुर से बचने के लिए एक पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है। दूसरी ओर भगवान शिव ने जहां पार्वती को अमृत ज्ञान दिया था वह गुफा ‘अमरनाथ गुफा’ के नाम से प्रसिद्ध है।

*🔱16. शिव के पैरों के निशान : -* श्रीपद- श्रीलंका में रतन द्वीप पहाड़ की चोटी पर स्थित श्रीपद नामक मंदिर में शिव के पैरों के निशान हैं। ये पदचिह्न 5 फुट 7 इंच लंबे और 2 फुट 6 इंच चौड़े हैं। इस स्थान को सिवानोलीपदम कहते हैं। कुछ लोग इसे आदम पीक कहते हैं।

रुद्र पद- तमिलनाडु के नागपट्टीनम जिले के थिरुवेंगडू क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्‍वर का मंदिर में शिव के पदचिह्न हैं जिसे ‘रुद्र पदम’ कहा जाता है। इसके अलावा थिरुवन्नामलाई में भी एक स्थान पर शिव के पदचिह्न हैं।

तेजपुर- असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित रुद्रपद मंदिर में शिव के दाएं पैर का निशान है।

जागेश्वर- उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के पास शिव के पदचिह्न हैं। पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए उन्होंने अपना एक पैर यहां और दूसरा कैलाश में रखा था।

रांची- झारखंड के रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर ‘रांची हिल’ पर शिवजी के पैरों के निशान हैं। इस स्थान को ‘पहाड़ी बाबा मंदिर’ कहा जाता है।

*🔱17. शिव के अवतार : -* वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि हुए हैं। वेदों में रुद्रों का जिक्र है। रुद्र 11 बताए जाते हैं- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शंभू, चण्ड तथा भव।

*🔱18. शिव का विरोधाभासिक परिवार : -* शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, जबकि शिव के गले में वासुकि नाग है। स्वभाव से मयूर और नाग आपस में दुश्मन हैं। इधर गणपति का वाहन चूहा है, जबकि सांप मूषकभक्षी जीव है। पार्वती का वाहन शेर है, लेकिन शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। इस विरोधाभास या वैचारिक भिन्नता के बावजूद परिवार में एकता है।

*🔱19.* ति‍ब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर उनका निवास है। जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है।

*🔱20.शिव भक्त : -* ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवी-देवताओं सहित भगवान राम और कृष्ण भी शिव भक्त है। हरिवंश पुराण के अनुसार, कैलास पर्वत पर कृष्ण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। भगवान राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की थी।

*🔱21.शिव ध्यान : -* शिव की भक्ति हेतु शिव का ध्यान-पूजन किया जाता है। शिवलिंग को बिल्वपत्र चढ़ाकर शिवलिंग के समीप मंत्र जाप या ध्यान करने से मोक्ष का मार्ग पुष्ट होता है।

*🔱22.शिव मंत्र : -* दो ही शिव के मंत्र हैं पहला- ॐ नम: शिवाय। दूसरा महामृत्युंजय मंत्र- ॐ ह्रौं जू सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जू ह्रौं ॐ ॥ है।

*🔱23.शिव व्रत और त्योहार : -* सोमवार, प्रदोष और श्रावण मास में शिव व्रत रखे जाते हैं। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि शिव का प्रमुख पर्व त्योहार है।

(शेष भाग)

*🔱24. शिव प्रचारक : -* भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। इसके अलावा वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय ने भी शैवपंथ का प्रचार किया। इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय का आता है। दत्तात्रेय के बाद आदि शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गुरुगोरखनाथ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।

*🔱25.शिव महिमा : -* शिव ने कालकूट नामक विष पिया था जो अमृत मंथन के दौरान निकला था। शिव ने भस्मासुर जैसे कई असुरों को वरदान दिया था। शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। शिव ने गणेश और राजा दक्ष के सिर को जोड़ दिया था। ब्रह्मा द्वारा छल किए जाने पर शिव ने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था।

*🔱26.शैव परम्परा : -* दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव परंपरा से हैं। चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं। भारत की असुर, रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव शिव ही हैं। शैव धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है।

*🔱27.शिव के प्रमुख नाम : -* शिव के वैसे तो अनेक नाम हैं जिनमें 108 नामों का उल्लेख पुराणों में मिलता है लेकिन यहां प्रचलित नाम जानें- महेश, नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक, त्रिलोकेश, जटाशंकर, जगदीश, प्रलयंकर, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, हर, शिवशंभु, भूतनाथ और रुद्र।

*🔱28.अमरनाथ के अमृत वचन : -* शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। ‘विज्ञान भैरव तंत्र’ एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।

*🔱29.शिव ग्रंथ : -* वेद और उपनिषद सहित विज्ञान भैरव तंत्र, शिव पुराण और शिव संहिता में शिव की संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है।

*🔱30.शिवलिंग : -* वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है, उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। इसी कारण प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की पूजा-अर्चना है।

*🔱31.बारह ज्योतिर्लिंग : -* सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर। ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मान्यताएं प्रचलित है। ज्योतिर्लिंग यानी ‘व्यापक ब्रह्मात्मलिंग’ जिसका अर्थ है ‘व्यापक प्रकाश’। जो शिवलिंग के बारह खंड हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।

दूसरी मान्यता अनुसार शिव पुराण के अनुसार प्राचीनकाल में आकाश से ज्‍योति पिंड पृथ्‍वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। भारत में गिरे अनेकों पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्‍योतिर्लिंग में शामिल किया गया।

*🔱32.शिव का दर्शन : -* शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं, क्योंकि शिव का दर्शन कहता है कि यथार्थ में जियो, वर्तमान में जियो, अपनी चित्तवृत्तियों से लड़ो मत, उन्हें अजनबी बनकर देखो और कल्पना का भी यथार्थ के लिए उपयोग करो। आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

*🔱33.शिव और शंकर : -* शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं- शिव, शंकर, भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। अत: शिव और शंकर दो अलग अलग सत्ताएं है। हालांकि शंकर को भी शिवरूप माना गया है। माना जाता है कि महेष (नंदी) और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं। रुद्र देवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं।

(शेष भाग)

*🔱34. देवों के देव महादेव :* देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी। ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं। वे राम को भी वरदान देते हैं और रावण को भी।

*🔱35. शिव हर काल में : -* भगवान शिव ने हर काल में लोगों को दर्शन दिए हैं। राम के समय भी शिव थे। महाभारत काल में भी शिव थे और विक्रमादित्य के काल में भी शिव के दर्शन होने का उल्लेख मिलता है। भविष्य पुराण अनुसार राजा हर्षवर्धन को भी भगवान शिव ने दर्शन दिए थे,।।

।।शेयर अवश्य करें।।*अगर आप भी लेते है खाली पेट चाय की चुस्की तो हो जाए सावधान, हो सकता है यह गंभीर रोग*

यदि आपको भी लगता है कि सुबह -सुबह चाय की चुस्की आपकी नींद खोलने और रिफ्रेसमेंट सहायक है तो यह आपकि भारी भूल हो सकती है। क्योंकि खाली पेट चाय पीना आपके स्वास्थ के लिए हानिकारक होता है। चाय पीने से भले ही आप तुरंत फ्रेश महसूस करने लगते है । लेकिन सुबह की यह चाय आपके शरीर को दिनभर परेशान करती है ।इसलिए आप चाय पीने के आदी हो चुके है तो आप चाय के साथ ठोस पदार्थ का सेवन अवश्य करे यह आपके पेट में गैस नहीं बनने देता है ।

खाली पेट चाय पाचन तंत्र को नुकसान पहुंचाता है ।

 

*खाली पेट चाय का सेवन*

 अगर आप भी सुबह सवेरे उठकर बेड-टी पीने के शौकीन हैं तो आप पेट से जुड़ी कई समस्याओं को न्यौता दे रहे हैं।

खाली पेट चाय पीना एसिडिटी की समस्या को जन्म देता है। क्योंकि इसमें मौजूद टेनिन्स पेट के एसिड को बढ़ा देते हैं। इससे सीने में जलन होना, घबराहट और उल्टी की समस्या हो सकती है।

 

*खाली पेट चाय पीने से होती है थकान*

अगर आपको लगता है कि खाली पेट चाय का एक कप आपको ताज़गी दे सकता है तो आप गलत है।

चाय में दूध डालकर पीने से दूध में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट के गुण खत्म हो जाते हैं।खाली पेट दूध वाली चाय पीने से थकान होने लगती है साथ ही स्वभाव में भी चिड़चिड़ापन होता है।

 

*भूख को कम करता है,खाली पेट चाय पीना*

 खाली पेट चाय का सेवन आपकी भूख को कम कर सकता है। खाली पेट चाय का सेवन पेट में गैस्ट्रिक म्यूकोसा को बढ़ा देती है, जिससे भूख धीर-धीरे कम होने लगती है।

 

*पेट के अल्सर के खतरे को बढ़ाती है खाली पेट स्ट्रांग चाय*

 अगर आप खाली पेट चाय पीते हैं वो भी एकदम कड़क तो संभल जाइए। ज्यादा स्ट्रांग चाय पीने वालों को अल्सर होने का खतरा रहता है क्योंकि इससे पेट की अंदरूनी सतह पर ज़ख्म होने की संभावना बढ़ जाती है।

 

*खाली पेट चाय पीने से होती है समस्या*

चाय में कैफीन और थियोफाइलिन रसायन पाया जाता है जिसकी वजह से खाली पेट चाय पीने से आपको अपच की शिकायत हो सकती है।

 

*खाली पेट चाय से पुरूषों में बढ़ता है प्रोटेस्ट कैंसर का खतरा*

खाली पेट चाय का सेवन सिर्फ छोटी-मोटी समस्याओं को नहीं बल्कि कैंसर जैसी बड़ी बीमारी के खतरे को भी जन्म दे सकता है।

खाली पेट चाय पीने से पुरूषों में प्रोटेस्ट कैंसर का खतरा काफी हद तक बढ़ जाता है।

 

*खाली पेट चाय पीने से कम होता है पोषक तत्वों का अवशोष*

शरीर को स्वस्थ एवं चुस्त-दुरूस्त रखने के लिए न्यूट्रिशियन बेहद जरूरी है। खाली पेट चाय पीने से शरीर में न्यूट्रिशियनऔर दूसरे पोषक तत्त्वों का अवशोषण कम होता है 

*🌹SUKH SAGAR TRUST🌹*

🕉श्री हरिहरो विजयतेतराम🕉
🌄सुप्रभातम🌄
🗓आज का पञ्चाङ्ग🗓
🌻रविवार, १० जुलाई २०२२🌻

सूर्योदय: 🌄 ०५:३५
सूर्यास्त: 🌅 ०७:१३
चन्द्रोदय: 🌝 १५:५१
चन्द्रास्त: 🌜२६:२७
अयन 🌖 दक्षिणायने (उत्तरगोलीय)
ऋतु: ⛈️ वर्षा
शक सम्वत: 👉 १९४४ (शुभकृत)
विक्रम सम्वत: 👉 २०७९ (राक्षस)
मास 👉 आषाढ
पक्ष 👉 शुक्ल
तिथि 👉 एकादशी (१४:१३ से द्वादशी)
नक्षत्र 👉 विशाखा (०९:५५ से अनुराधा)
योग 👉 शुभ (२४:४५ से शुक्ल)
प्रथम करण 👉 विष्टि (१४:१३ तक)
द्वितीय करण 👉 बव (२४:४७ तक)
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॥ गोचर ग्रहा: ॥
🌖🌗🌖🌗
सूर्य 🌟 मिथुन
चंद्र 🌟 वृश्चिक
मंगल 🌟 मेष (उदित, पश्चिम, मार्गी)
बुध 🌟 मिथुन (अस्त, पूर्व, मार्गी)
गुरु 🌟 मीन (उदित, पूर्व, मार्गी)
शुक्र 🌟 वृष (उदित, पूर्व, वक्री)
शनि 🌟 कुम्भ (उदित, पूर्व, वक्री)
राहु 🌟 मेष
केतु 🌟 तुला
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शुभाशुभ मुहूर्त विचार
⏳⏲⏳⏲⏳⏲⏳
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अभिजित मुहूर्त ११:५४ से १२:५०
अमृत काल 👉 २२:२० से २३:४८
रवियोग 👉 ०५:२३ से ०९:५५
विजय मुहूर्त 👉 १४:४२ से १५:३८
गोधूलि मुहूर्त 👉 १९:०७ से १९:३१
सायाह्न सन्ध्या 👉 १९:२१ से २०:२१
निशिता मुहूर्त 👉 २४:०२ से २४:४२
राहुकाल 👉 १७:३६ से १९:२१
राहुवास 👉 उत्तर
यमगण्ड 👉 १२:२२ से १४:०७
होमाहुति 👉 शनि
दिशाशूल 👉 पश्चिम
अग्निवास 👉 आकाश
भद्रावास 👉 स्वर्ग (१४:१३ तक)
चन्द्रवास 👉 उत्तर
शिववास 👉 क्रीड़ा में (१४:१३ से कैलाश पर)
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☄चौघड़िया विचार☄
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॥ दिन का चौघड़िया ॥
१ – उद्वेग २ – चर
३ – लाभ ४ – अमृत
५ – काल ६ – शुभ
७ – रोग ८ – उद्वेग
॥रात्रि का चौघड़िया॥
१ – शुभ २ – अमृत
३ – चर ४ – रोग
५ – काल ६ – लाभ
७ – उद्वेग ८ – शुभ
नोट– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
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शुभ यात्रा दिशा
🚌🚈🚗⛵🛫
उत्तर-पश्चिम (पान का सेवन कर यात्रा करें)
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तिथि विशेष
🗓📆🗓📆
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देव (हरि) शयनी एकादशी (सभी के लिए), चातुर्मास विधान आरम्भ, विष्णु शयनोत्सव, व्यवसाय आरम्भ मुहूर्त प्रातः १०:२४ से दोपहर १२:३२ तक आदि।
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आज जन्मे शिशुओं का नामकरण
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आज ०९:५५ तक जन्मे शिशुओ का नाम
विशाखा नक्षत्र के चतुर्थ चरण अनुसार क्रमश (तो) नामाक्षर से तथा इसके बाद जन्मे शिशु का नाम अनुराधा नक्षत्र के प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ चरण अनुसार क्रमशः (ना, नी, नू, ने) नामाक्षर से रखना शास्त्रसम्मत है।
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उदय-लग्न मुहूर्त
मिथुन – २७:४१ से ०५:५६
कर्क – ०५:५६ से ०८:१८
सिंह – ०८:१८ से १०:३७
कन्या – १०:३७ से १२:५५
तुला – १२:५५ से १५:१६
वृश्चिक – १५:१६ से १७:३५
धनु – १७:३५ से १९:३९
मकर – १९:३९ से २१:२०
कुम्भ – २१:२० से २२:४६
मीन – २२:४६ से २४:०९
मेष – २४:०९ से २५:४३
वृषभ – २५:४३ से २७:३७
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पञ्चक रहित मुहूर्त
रज पञ्चक – ०५:२३ से ०५:५६
शुभ मुहूर्त – ०५:५६ से ०८:१८
चोर पञ्चक – ०८:१८ से ०९:५५
शुभ मुहूर्त – ०९:५५ से १०:३७
रोग पञ्चक – १०:३७ से १२:५५
शुभ मुहूर्त – १२:५५ से १४:१३
मृत्यु पञ्चक – १४:१३ से १५:१६
अग्नि पञ्चक – १५:१६ से १७:३५
शुभ मुहूर्त – १७:३५ से १९:३९
रज पञ्चक – १९:३९ से २१:२०
शुभ मुहूर्त – २१:२० से २२:४६
चोर पञ्चक – २२:४६ से २४:०९
रज पञ्चक – २४:०९ से २५:४३
शुभ मुहूर्त – २५:४३ से २७:३७
चोर पञ्चक – २७:३७ से २९:२३
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आज का राशिफल
🐐🐂💏💮🐅👩
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मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)
आज का दिन मिला जुला फल देगा आज आपको दिन भर किसी न किसी कारण से मानसिक दबाव से गुजरना पड़ेगा। कार्य व्यवसाय में उतार चढ़ाव लगा रहेगा धन प्राप्ति के लिये आज कुछ नापसंद कार्य भी करना पड़ेगा। मध्यान तक कार्यो को लेकर उदासीन बने रहेंगे सहायता मांगने पर भी नही मिलेगी। इसके बाद ही स्थिति में सुधार आने लगेगा। नौकरी वालो को आज अधिकांश कार्यो में निराश होना पड़ेगा अधिकारी वर्ग आपकी क्षमता को कम आंकेंगे। मित्र रिश्तेदारों से मनमुटाव हो सकता है। परिजन किसी अन्य की गलती का जिम्मेदार आपको ठहराएंगे। संध्या बाद परिस्थितियां एक दम उलट होने से राहत अनुभव करेंगे। सेहत सामान्य रहेगी।

वृष🐂 (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)
आज आप दिन के आरंभ में प्रत्येक कार्य को उत्साह से करेंगे व्यस्तता भी आज अन्य दिनों की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही रहेगी परन्तु आज आपकी मानसिकता कार्यो में शीघ्र परिणाम पाने की रहेगी मेहनत का आशाजनक परिणाम इंतजार के बाद ही पर मिलेगा जरूर। आपको स्वयं के कार्य के साथ ही किसी अन्य का कार्य भी करना पड़ेगा इसमे तालमेल बैठाने में परेशानी आएगी बाद में मान बड़ाई मिलने से प्रसन्न रहेंगे। अधूरे सरकारी कार्य किसी कमी के कारण आज भी लटके रहेंगे हिम्मत ना हारें आज नही तो कल सफलता मिल ही जाएगी। अधिकारियो से जिद बहस करने से बचे। परिजनों का सहयोग कार्य क्षेत्र पर भी मिलेगा। संध्या बाद स्वास्थ्य शिथिल रहेगा।

मिथुन👫 (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)
आज के दिन आप प्रत्येक कार्य मे अधिक सतर्कता बरते आपकी अविवेकी मानसिकता भविष्य में परेशानी में डाल सकती है। दिन में ज्यादातर समय काम कम होने से आलस्य प्रमाद फैलाएंगे मध्यान के समय थोड़ा बहुत काम मिलने से व्यस्त रहेंगे आज महत्त्वपूर्ण कार्य एवं व्यवसाय में आर्थिक फैसले जानकारों से सलाह के बाद ही ले संध्या बाद हानि हो सकती है। धन लाभ निश्चित ना होकर आकस्मिक होगा महिलाये खर्च करने से बचे निकट भविष्य में आर्थिक उलझनों का सामना करना पड़ेगा। विरोधियों के प्रति लचीला व्यवहार भी कुछ ना कुछ हानि कराएगा। गृहस्थ में दिन भर शांति रहेगी लेकिन संध्या बाद शोक का वातावरण बनेगा। स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही ना करें।

कर्क🦀 (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)
आज आपका स्वभाव मिलनसार रहेगा कैसी भी परिस्थिति मिले हंस कर निकाल देंगे लेकिन आपके मन मे कुछ अलग ही तिकड़म लगी रहेगी मन का भेद ना देने पर परिजनों से मामूली विवाद भी हो सकता है फिर भी आज आपकी किसी की भी परवाह किये बिना अपनी मस्ती में मस्त रहेंगे। दिन में कुछ समय के लिये आर्थिक कमी अनुभव होगी पर खर्च पर नियंत्रण रहने से ज्यादा खलेगी नही। सामाजिक कार्यो में कम रुचि लेंगे धार्मिक कार्यो में पूरा समय देंगे दान पुण्य करने के अवसर मिलेंगे। घर मे परिचितों के आवागमन से चहल-पहल रहेगी। संध्या के आस-पास आकस्मिक खर्च आएंगे। परिजन आपसे अकारण ही नाराज हो सकते है। शारीरिक कमजोरी अनुभव होगी।

सिंह🦁 (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)
आज के दिन का अधिकांश समय भी व्यर्थ के कार्यो में पड़कर नष्ट करेंगे। दिन का आरंभ पारिवारिक कलह से होगा इससे दिन भर मानसिक रूप से अशान्ति बनी रहेगी। महिलाये आज वाणी वर्तन पर विशेष ध्यान दें किसी भी बात का अध्ययन करने के बाद ही अपनी प्रतिक्रिया दें अन्यथा गलतफहमी में स्थिति गंभीर हो सकती है। व्यवसायी वर्ग आज आर्थिक कारणों से परेशान रहेंगे किसी से झगड़ा भी होने की सम्भवना है व्यवहारिक बने अन्यथा भविष्य के लाभ से हाथ धोना पड़ेगा। इधर उधर की बातों को छोड़ काम से काम रखें दिन भर की मेहनत धन लाभ के रूप में सन्ध्या के समय मिल सकती है। परिजनों के आगे आज मौन ही रहें। दवाओं पर खर्च करना पड़ेगा।

कन्या👩 (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)
आज का दिन आपको अवश्य धन लाभ कराएगा लेकिन आज आप फिजूल खर्ची पर नियंत्रण रखने में असफल रहेंगे पारिवारिक प्रसन्नता के लिए आवश्यकता से अधिक खर्च करेंगे धन लाभ समय पर होने से ज्यादा अखरेगा नही। काम-धंधे में आशानुकूल वृद्धि होगी फिर भी आज ज्यादा विस्तार ना करें संध्या बाद से कारोबारी मंदी आ सकती है निवेश भी देखभाल कर ही करें धन फंसने की सम्भवना है। सहकर्मी किसी बात को लेकर असंतोष जताएंगे फिर भी दिनचार्य सुचारू रूप से चलती रहेगी। संध्या बाद दिन भर के कार्य कलापो के आंकलन से संतोष में रहेंगे। बाहर घूमने पर्यटन आदि की योजना अंत समय मे टालने से परिजन नाराज होंगे।

तुला⚖️ (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)
आज आपका स्वभाव संतोषी रहेगा लेकिन मित्र परिजनों के उकसावे में आकर बेमन से कार्य करेंगे इसका परिणाम आरम्भ में निराशाजनक रहेगा बाद में कुछ न अंकुश शुभ ही होगा। व्यवसायियों को मध्यान बाद प्रसन्नता दायक समाचार मिलेंगे धन लाभ की संभावनाएं बढ़ेंगी। सामाजिक क्षेत्र पर आज किसी उच्च पदस्थ अधिकारी से मेल जोल होगा इसका परिणाम निकट भविष्य में अवश्य मिलेगा। संध्या बाद धन लाभ होने से आवश्यक कार्य पूर्ण कर सकेंगे। महिलाओ की मनोकामना पूर्ण होने में आज भी अड़चन आएंगी फिर भी परिस्थितियों को देखते हुए परेशान नही होंगी। लेकिन संताने अवश्य ही किसी जिद के कारण माहौल खराब कर सकती है। धार्मिक यात्रा के प्रसंग बनेंगे।

वृश्चिक🦂 (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)
आज का दिन आपके लिये विशेष लाभदायक बन रहा है इसका फायदा उठाये वैसे तो आज आप व्यवहारिक ही रहेंगे परन्तु अपने स्वार्थ के लिये कुछ अनैतिक कार्य भी कर सकते है जिससे बाद में धन व मान हानि हो सकती है। कार्य व्यवसाय में पुराने सौदों से लाभ होगा नए अनुबंद भी मिल सकते है दुविधा में ना पढ़ें संध्या से पहले सभी आर्थिक कार्य पूर्ण करने का प्रयास करें इसके बाद परेशानी होगी। नौकरी वाले लोग भी आज अतिरिक्त आय बनाने में सफल होंगे। बेरोजगारों को नई कार्य नियुक्ति मिल सकती है। आज आपसे ईर्ष्या करने वाले भी अधिक रहेंगे इनको अनदेखा करें। पारिवारिक वातावरण में संध्या पश्चात किसी परिजन के उद्दंड व्यवहार से अशांति फैलेगी। थकान बनेगी।

धनु🏹 (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)
आज का दिन भी आपको सावधानी से बिताने की सलाह है। किसी भी कार्य मे जोर-जबरदस्ती ना करें अन्यथा हाथ लगी पूंजी भी नष्ट हो सकती है। गृहणियां भी प्रत्येक कार्य देखभाल कर ही करें जल्दबाजी में बड़ा नुकसान होने की संभावना है। कार्य क्षेत्र पर किसी पुराने वैर के कारण लाभ आये सौदे हाथ से निकल सकते है। व्यवसायिक यात्रा में आज केवल आश्वासन से की कम चलाना पड़ेगा फिर भी प्रयासरत रहें संध्या से स्थिति आपके पक्ष में बनेगी। लेदेकर थोड़ा बहुत आर्थिक लाभ हो जाएगा लेकिन खर्च सोच समझ कर ही करें अन्यथा उधार लेने की नौबत आ सकती है। पारिवारिक में आज वैर विरोध की भावना अधिक रहेगी। सेहत अचानक बिगड़ सकती है।

मकर🐊 (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)
आज के दिन भी आपको शुभ फलों की प्राप्ति होगी परन्तु आज आप अन्य लोगो को स्वयं की अपेक्षा नगण्य मानेंगे जिससे घर के साथ ही कार्य क्षेत्र पर भी लोग आपसे केवल मतलब का व्यवहार रखेंगे। आर्थिक रूप से आज का दिन भी समृद्धिकारक बना रहेगा व्यवहार कुशलता बनाये रखें पूर्ण लाभ के अधिकारी बनेंगे। मेहनत का फल किसी भी रूप में अवश्य मिलेगा। नौकरी वाले जातक आज विजातीय आकर्षण में फंसे रहने के कारण कार्य पर ज्यादा ध्यान नही दे सकेंगे। पारिवारिक वातावरण में आज भी आनंद छाया रहेगा लेकीन स्त्री को छोड़ अन्य सभी से स्वार्थ के व्यवहार रहेंगे। सेहत में थोड़ी बहुत तकलीफ होगी। बुजुर्गो का आशीर्वाद मिलेगा।

कुंभ🍯 (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)
आज का दिन भी आपके लिये अनुकूल बना रहेगा दिन के आरंभ से ही शुभ संयोग बनेंगे आज आपके साथ अधिकांश घटनायें आकस्मिक घटेंगी। कार्य व्यवसाय में भी आज आकस्मिक काम आएगा तैयारी ना होने के कारण कुछ समय के लिये असहज रहेंगे लेकिन शीघ्र ही स्थिति को संभाल भी लेंगे। धन लाभ के साथ ही व्यवसाय में वृद्धि भी होगी लेकिन किसी की सहायता की आवश्यकता भी पड़ेगी। सहकर्मियों का व्यवहार मध्यान तक ठीक ठाक बना रहेगा इसके बाद किसी बात को लेकर मतभेद हो सकता है। आवश्यक कार्य मध्यान रहते कर ले इसके बाद कुछ ना कुछ विघ्न आते रहने से अधूरे रह सकते है। सेहत भी दिन भर ठीक रहेगी संध्या बाद आकस्मिक शारीरिक कष्ट होगा।

मीन🐳 (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)
आज का दिन आपके लिये कार्य व्यवसाय में नई संभावनाए जगायेगा। शारीरिक रूप से भी आज बेहतर अनुभव करेंगे कार्यो के प्रति गंभीरता दिखाएंगे लेकिन महिलाये आज अन्य दिन की अपेक्षा अधिक आलस्य में रहेंगी घर के कार्य भी अस्त-व्यस्त रहेंगे। व्यवसायी वर्ग को मध्यान तक ज्यादा परिश्रम करना पड़ेगा इसका फल संध्या बाद ही मिल सकेगा। नए कार्यो में निसंकोच होकर निवेश कर सकते है। नौकरी करने वाले लोग भी आज संध्या के समय मेहनत का उचित फल मिलने से पिछले दिनों की अपेक्षा बेहतर अनुभव करेंगे। धन लाभ मध्यान पश्चात हो हो सकेगा। पारिवारिक वातावरण आज स्थिर रहेगा। परिजनों को छोटी-मोटी गलती को अनदेखा करें।
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️🙏राधे राधे🙏