कुरूड़ नन्दादेवी मेले में मुख्यमंत्री ने वर्चुअल प्रतिभाग करते हुए मां नन्दा से प्रदेश के सुख समृद्धि की कामना की। इस वर्ष धूमधाम से मनाया जा रहा है यह ऐतिहासिक मेला

कुरूड़ नन्दादेवी मेले में मुख्यमंत्री ने किया वर्चुअल प्रतिभाग धूमधाम से मनाया जा रहा है यह ऐतिहासिक मेला
Chief Minister did virtual participation in Kurud Nanda Devi fair, this historic fair is being celebrated with great pomp

मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने कुरूड़ में आयोजित पर्यटन विकास मेले में वर्चुअल प्रतिभाग कर जनसभा को सबोधित करते हुए राजराजेश्वरी माता नंदा से सबके मंगल की कामना की। उन्होंने कहा कि महाशक्ति मैय्या श्री सिद्ध पीठ कुरुड़ की नंदा राज राजेश्वरी मां प्राचीन काल से जगत के कल्याण के लिए कुरुड़ में विद्यमान है।

नंदानगर घाट चमोली में महामृत्युंजय महादेव बैरासकुंड के बाम भाग में स्थित कुरुड़ में पार्वती-भगवती नंदा राज राजेश्वरी से सर्व कल्याण की कामना करता हूं।

       मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखण्ड देवभूमि हैं। नंदा राजजात यात्रा का विशेष महत्व है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने केदारनाथ की भूमि से कहा था कि यह दशक उत्तराखण्ड का दशक होगा। इस बार अभी तक चारधाम यात्रा में 30 लाख से अधिक रजिस्टर्ड श्रद्धालु आ चुके हैं। श्री बदरीनाथ में मास्टर प्लान से कार्य किये जा रहे हैं। श्री केदारनाथ में भी पुनर्निर्माण के तहत तृतीय चरण के कार्य गतिमान हैं। उन्होंने कहा कि 2025 तक उत्तराखण्ड को देश का अग्रणी राज्य बनाने के लिए सभी को अपना योगदान देना होगा। जो जिस क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं, पूरी कर्तव्यनिष्ठा के साथ करें। राज्य सरकार सरलीकरण, समाधान, निस्तारण एवं संतुष्टि के भाव से कार्य कर रही है।के 
 
       इस अवसर पर विधायक श्री भूपाल राम टम्टा , जिला अध्यक्ष भाजपा श्री रघुवीर बिष्ट, मंडल अध्यक्ष श्री खिलाप सिंह नेगी, ब्लाक प्रमुख श्रीमती भारती देवी, कर्नल एच० एस० रावत, मेला कमेटी के अध्यक्ष श्री सुखवीर सिंह रौतेला एवं अन्य गणमान्य उपस्थित थे।

 नंन्दा देवी की बड़ी जात यात्रा प्रत्येक 12 वर्षों में होती। नन्दादेवी को चढाए जाने वाले एक विशेष खाडू के बारे में बात कर रहे हैं ।। नंन्दा देवी की राज जात यात्रा हर 12 वर्ष में होती हैं । मां नंन्दा देवी का मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में हैं । जो खाडू नंन्दा देवी को चढ़ाया जाता हैं उसके पैदा होते ही 4 सींग निकले रहते हैं जिसको पहाड़ी भाषा में चौसींग्या खाडू बोलते हैं ।ये खाडू हर 12 साल में पैदा होता हैं । इस खाडू की बली नहीं देते हैं मान्यता हैं कि जब पूरी राज जात यात्रा संपूर्ण हो जाती हैं तो उस खाडू को नंन्दा देवी के कैलाश पर्वत की ओर छोड़ दिया जाता हैं । और वो खाडू खुद बा खुद कैलाश पर्वत की ओर जाता हैं । और कुछ दूर तक दिखाई देने के बाद उसका पता नहीं चलता की वह कहा गया । कई लोगों ने देखने की कोशिश की , कि खाडू कहां तक जाता हैं पर किसी को पता नी चला आज तक।। और अगर आप लोगों को भी कभी ये यात्रा करने का अवसर मिलें तो अवश्य जाना।
२२ अगस्त 2022 को नन्दा देवी सिद्धपीठ कुरुड़
से शुरू होने वाली नंदा देवी वार्षिक जात की तैयारियां जोरों पर चल रही थी । एक बेटी को उसके ससुराल विदा करने वाली जात है नंदा देवी की जात।
भगवती नंदा को कैलाश विदा करने के लिए उनके कपड़े तैयार किए जाते हैं। बन्याथ यात्रा के लिए चोलिया ( लाल रंग के कपड़े) तैयार की जाती हैं। जिन्हे स्थानीय दर्जियो ( मथकोट, नारंगी, कुमजुग आदि गांव के दर्जी) द्वारा जात से कुछ दिन पहले बनाई जाती हैं। पुजारियों अपने वस्त्र भी ( सफेद कुर्ता सलवार और एक सफेद टोपी) यात्रा से पहले बनवाते हैं। इसी क्रम में पुजारियों द्वारा जात के लिए भोजपत्र तथा रिंगाल से बनी छतोली बनाने के लिए कई स्थानीय निर्माता आगे आते हैं। भेंटी, पालक, सुतोल, वादुक आदि गांव के कलाकारों द्वारा छतोलिया निर्मित की जाती हैं। भगवती के आभूषणों को तैयार किया जाता है। भगवती के छत्र,नथ, गलोबंद आदि को सुनार को बुलाकर स्वच्छ बनाए जाते हैं। भगवती और लाटू के निशानों को भी सुसज्जित किया जाता है। मंदिर में रंग रोगन का कार्य भी शुरू हो जाता है। माताएं खाजा बुखणे बनाने शुरू करते हैं। बेटियों में खासा उत्साह देखने को मिलता है। जात होने से कुछ दिन पहले ध्याण अपने मायके आती हैं। एक तरह से देखा जाए तो यह यात्रा बहन और बेटियों की भावनाओं से परिपूर्ण है। जिसमें कि उत्साह भी है, यादें भी है, रुदन भी है, और खुशी भी है और आस्था भी है। ध्याणे अपने मायके आती हैं । कुरुड़ मैं नंदा भगवती का मूल मंदिर है। माताएं बहने इंतजार करती हैं कि कब कुरुड़ की नंदा भगवती आएगी और हम अपने भेंट माता को चढ़ाएंगे। इसके साथ ही वह अपने ऊपर लगे हुए मसाण, छाया, बयाल आदि की पूजा भी करवाती हैं। विश्वास माना जाता है कि नंदा की जात के साथ छाया बयाल पूजने तथा श्रृंगार के सामान देवी की डोली पर बांधने से उनकी छाया बयाल को मां भगवती उनसे दूर ले जाकर कैलाश में छोड़ देती है। 

आज नंदा देवी राजजात मेले का दूसरा दिन है कुरूड़ मन्दिर में आज बहुत भीड़ है कल नंदा देवी की दोनों डोलिया नम आंखों से कैलाश विदा होंगी।
#ल्यावा_मेरा_मैत्यु_वा_झाले_की_काख्हेड़ि
#ल्यावा_मेरा_मैत्यु_वा_बाड़े_की_मुन्गेरी
#मील_जोण_मैत्यु_वा_अपणा_कैलासे
#कना_केनी_जोलु_मी_तै_उंचा_कैलास
#ह्येरी_जांदु_फ्येरी_मी_मैतो_कु_मूलुके
#ह्येरी_जांदु_फ्येरी_मी_उकाल_पन्द्येर्यु
#ह्येरी_जांदु_फ्येरी_मी_बूढ़ी_लाटी_माता
#कना_केनी_रोलु_मी_हिंवाला_कैलाश

#तै_उंचा_कैलास_मा_सका_नि_सुण्‌येंदी
#तै_उंचा_कैलास_मा_ऋतु_नि_बोड़दी
#माता_जी_की_लाड़ी_मी_बुबा_की_कुलाड़ी

जब मां नंदा देवी की डोली किसी गांव से जाने लगती है तो
इस प्रकार के मार्मिक जागर कुरुड़ के पुजारियों द्वारा लगाए जाते हैं जिसको सुनकर हर एक मां रोने लग पड़ती हैं उनकी आंखों से आंसुओं की धारा निकलने लगती है उस समय नंदा भगवती को देवी की तरह नहीं बल्कि एक बेटी की तरह समझा जाता है उसी तरह विदा किया जाता है नम आंखों से।