डाॅ. हरीश मैखुरी
विश्व विख्यात पर्यावरणविद् और गांधीवादी नेता पद्मश्री चंडी प्रसाद भट्ट को राष्ट्रीय एकता एवं सद्भाव के लिए प्रतिष्ठित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार के लिए चुना गया है। भट्ट को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की इंदिरा गांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार समिति ओर से पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। अब तक यह पुरस्कार स्वामी रंगनाथ नंदा, अरुणा आसफ अली, एसएम सुब्बालक्ष्मी, राजीव गांधी (मरणोपरांत), एपीजे अब्दुल कलाम, प्रो सतीश धवन, डा शंकर दयाल शर्मा, महाश्वेता देवी, मोहन धारिया, एआर रहमान जैसे लोगों को दिया गया है। श्री भट्ट को यह पुरुस्कार वर्ष 2017 व 2018 के लिये प्रदान किया जाएगा। इस की पुष्टि करते हुए सीपी भट्ट ट्रस्ट के सचिव ओम प्रकाश भट्ट ने कहा कि यह पुरस्कार उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बलिदान दिवस 31 अक्टूबर को आयोजित कार्यक्रम में प्रदान किया जाएगा। पुरस्कार स्वरुप उन्हें प्रशस्ति पत्र और दस लाख रुपए नकद प्रदान किये जाएंगे। इस पुरस्कार की शुरूआत वर्ष 1985 में की गई थी।
पद्म श्री चंडी प्रसाद भट्ट किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं वर्ष 1971 – 72 से उन्होंने पेड़ों को बचाने और वृक्षारोपण के लिए जिस आंदोलन की शुरुआत की 1974 के बाद वही आंदोलन चिपको आंदोलन के नाम से पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में विश्व विख्यात हुआ। इससे पहले संभवतया दुनियां पर्यावरण के संरक्षण में पेड़ों की भूमिका से एक तरह से अनभिज्ञ थी और तब समझा जाता था कि धरती का वातावरण और वर्षा अपने आप होती रहती है संभवतया चंडी प्रसाद भट्ट पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने दुनियां ? को यह बताने की कोशिश की कि पेड़ों की भूमिका ही पर्यावरण का संरक्षण करती है। दुनिया के अधिकांश प्राणियों के फेफड़े एक तरह से पेड़ों पर लटके हुए हैं पेड़ जिस दिन ऑक्सीजन देना बंद कर देंगे उसी दिन धरती के लगभग सभी प्राणियों की सांसे बंद हो जाएंगी, यही प्रकृति का नियम है। पेड़ न केवल हमें ऑक्सीजन देते हैं बल्कि हमारे पर्यावरण को स्वच्छ संरक्षित और ऑटो क्लाइमेट बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। दशोली ग्राम स्वराज्य मंडल संस्था के माध्यम से चंडी प्रसाद भट्ट ने शुरुआती दिनों में गोपेश्वर महाविद्यालय के छात्रों के साथ मंडल के जंगलों को बचाने के लिए काम किया उसके बाद जोशीमठ क्षेत्र में रैणी गांव की जंगलों को बचाने की मुहिम तेज की जहां गौरा देवी और जोशीमठ के गोविंद सिंह जी पेड़ों को बचाने के लिए पहले ही संघर्ष कर रहे थे। चंडी प्रसाद भट्ट ने बेमरू कलगोठ डुमक लांजी द्वींग तिरोसी ह्यूणा पाडली गैर, टंगसा गोपेश्वर पाडुली और बछेर में न केवल वृक्षारोपण के विशाल कार्य किए बल्कि कई गांवों में निशुल्क वितरण के लिए पौधोंककी नर्सरी तैयार की। आज चंडी प्रसाद भट्ट विश्व भर में पर्यावरण संरक्षण और वृक्षारोपण के लिए एक तरह से विश्व गुरु बन गए हैं। पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाएं उन्हें व्याख्यान देने के लिए बुलाती हैं, उनके अनुभवों का लाभ लेती हैं और रैमन मैगसैसे, गांधी शांति प्रतिष्ठान का पुरस्कार भारत सरकार के पद्मश्री और पद्म भूषण पुरस्कार और अब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा इंदिरा गांधी शांति पुरस्कार दिए जाने से ना केवल चंडी प्रसाद भट्ट का बल्कि जनपद चमोली उत्तराखंड और पूरे भारत का तो मान बड़ाई है इससे पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाले अन्य लोगों को भी प्रेरणा मिलेगी।
चंडी प्रसाद भट्ट की सादगी भी बेमिसाल है वे अधिकांशत जमीन पर बैठकर खाना खाते हैं जमीन पर ही सो जाते हैं ब्रह्म मुहूर्त में सुबह उठना उनकी दिनचर्या का अभिन्न अंग है 86 साल की उम्र में भी वे तरोताजा और ऊर्जा से परिपूर्ण है पुरस्कारों में मिली सभी सारी राशि को वे ट्रस्ट को दान कर देते हैं ताकि भविष्य में इस क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के लिए को सम्मानित किया जा सके।