बिगब्रेकिंग : शास्त्रों के प्रमाण पर विज्ञान की सहमति ‘पृथ्वी न केवल जीवित है पिंड है अपितु इसके पास अपनी बुद्धि, विवेक और अपार सृजन शक्ति भी है’

♥एक नए वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि पृथ्वी एक ‘जीवित पिंड’ है। रिसर्च के बाद एस्ट्रोबायोलॉजिस्ट ने पाया है कि जिस धरती पर हमलोग रहते हैं, वो न सिर्फ जीवित है बल्कि उसके पास अपनी बुद्धि भी है। वैज्ञानिकों ने इसे ‘प्लानटेरी इंटेलिजेंस’ नाम दिया है। जिसमें किसी भी ग्रह के पास सामूहिक ज्ञान से लेकर जानने-समझने की क्षमता की बात भी की गई है। इस रिसर्च को ‘इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एस्ट्रोबायोलॉजी’ में प्रकाशित किया गया है। बता दें कि वेदों में ही पृथ्वी को जीवित मानते हुए इसे ‘भूदेवी’ कहा गया है। अर्थववेद में लिखा है कि पृथ्वी सिर्फ एक वस्तु नहीं, बल्कि जीवित प्राणी है। वैज्ञानिकों ने पाया कि पृथ्वी न केवल जीवित है पिंड है अपितु इसके पास अपनी बुद्धि, विवेक, प्राण और अपरिमित सृजन शक्ति भी है। 

इस रिसर्च पेपर में वैज्ञानिकों ने कहा है कि ऐसे कई प्रमाण मिले हैं जो बताते हैं कि पृथ्वी पर फंगी का अंडरग्राउंड नेटवर्क मौजूद है। ये आपस में लगातार ‘बातचीत’ करते रहते हैं। इससे रेखांकित किया गया है कि धरती के पास अपनी ‘अदृश्य बुद्धिमत्ता’ मौजूद है। इस पेपर को तैयार करने वाले ‘यूनिवर्सिटी ऑफ रोचस्टर’ के एडम फ्रैंक ने बताया कि हम सामुदायिक रूप से ग्रह के इंट्रेस्ट्स में उन्हें प्रतिक्रिया नहीं दे सकते। उनका इशारा उन मानवीय गतिविधियों की तरफ था, जिससे पृथ्वी पर असर पड़ रहा है।

धरती में ये बदलाव मानवीय गतिविधियों की वजह से पर्यावरण प्रदूषण और संसाधनों के दोहन में आ रहे हैं। रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी की बुद्धि और ज्ञान को समझ कर हमें इसका भान होगा कि हम इसके साथ कैसा व्यवहार करें और इसके संरक्षण करने के साथ-साथ संसाधनों का उपयोग किस तरह से करें। उनका मानना है कि इससे मानवों को एलियंस की खोज में भी मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि सच्ची ‘प्लानटोरी इंटेलिजेंस’ तभी देखने को मिलेगा, जब तकनीक के उच्च-स्तर पर पहुँची सभ्यता एक-दूसरे की हत्या नहीं करेगी।

रिसर्च के लेखकों का मानना है कि इस अध्ययन से क्लाइमेट चेंज से निपटने के तौर-तरीकों के साथ-साथ दूसरे ग्रहों पर जीवन की संभावनाएँ तलाशने में भी मदद मिलेगी। ऐसे ग्रह, जहाँ ‘जीवन’ और ‘बुद्धिमत्ता’ का विकास हो सके। ‘ग्रहीय बुद्धिमत्ता’ के कॉन्सेप्ट पर विचार करें तो पृथ्वी के पास तर्क-वितर्क की क्षमता के साथ-साथ फंगस के माध्यम से सूचनाओं के आदान-प्रदान की योग्यता भी है। ये ऐसा ही है, जैसे पेड़-पौधे फोटोसिंथेसिस के माध्यम से खुद को  जीवित रखते हैं।……

पृथ्वी अपने केन्द्र पर घूमती है तो दिन और रात होते हैं, अपने अक्ष पर घूमती है तो ऋतु चक्र का सृजन होता है और अपनी परिधि पर घूमती है तो मौसमी परिवर्तन एवं वर्षों का निर्माण होता है यदि पृथ्वी की गतिविधि स्थिर हो जाये तो धरती से दिन रात का होना मौसम परिवर्तन और बारिश होने की प्रक्रिया समाप्त हो जायेगी। इससे पौधों में कोंपलें निकलने की प्रक्रिया समाप्त हो जायेगी। यहां चींटी से लेकर हाथी तक हर जीव की अपनी भूमिका है। यदि चींटियों का संसार नहीं होगा तो धरती से प्राकृतिक रूप से उगने वाले पेड़ पौधे समाप्त होंगे अपितु जब चींटियां पेड़ पौधों की फंगल चाट कर साफ करती हैं तभी पेड़ पौधे स्वस्थ रह कर हमें आक्स्जिन देते हैं। तभी आक्स्जिन लेने वाले प्राणी जीवित रहते हैं। इसे सरल भाषा में यूं समझें यदि चींटियां मर जायेंगी तो मनुष्य भी जीवित नहीं रहेगा। जब हम अज्ञानतावश चींटियों के घरोंदों में नमक तेजाब कीट नाशक आदि डाल कर चींटियों को मारते हैं तो एक तरह से हम अपनी ही मृत्यु का वरण कर रहे होते हैं। इसी तरह की अन्योन्याश्रितता हमारी अन्य सभी वनस्पतियों और प्राणियों के साथ है। गाय की श्वांस और तुलसी औजोन परत संरक्षण की एकमात्र श्रोत हैं इसीलिए हर घर में गाय को पालना और तुलसी लगाना अनिवार्य था। आज मनुष्य इन दोनों कार्यों से विरत हो रहे हैं। इसलिए जब लोग गो हत्या करते हैं या तुलसी का पौधा नहीं लगाते हैं तो समझ लो हम न केवल धरती की क्षति करते हैं अपितु अपने ही सर्वनाश का कार्य करते हैं। यदि ओजोन परत पतली हुई या उसमें छेद हुआ तो हमारी धरती की समस्त जल राशि और आक्स्जिन तत्काल ब्रह्मांड में उड़ कर समाप्त हो जायेगी तब हमें न जल मिलेगा न आक्स्जिन। वैज्ञानिकों के एक दल को धरती पर जलराशि कम होने और जल राशि के पृथ्वी से बाहर उडने के संकेत मिल रहे हैं। इस समाचार ने संसार के सभी संवेदनशील मनुष्यों को चिंतित कर दिया है। इस दृष्टि से देखें तो अनियंत्रित जनसंख्या वेद रहित अवैज्ञानिक जीवन पद्धति और पृथ्वी के साथ बड़ी मशीनी छेड़छाड़ से हम अपने ही जीवन को संकट में डाल रहे हैं। 

 एक एक कर हमारे शास्त्रों और ज्योतिषीय गणनाओं का प्रमाण विज्ञान मान रहा है। अपनी पृथ्वी को बचाना हम सभी मनुष्यों का सामुहिक और अनिवार्य दायित्व है। इसके लिए कुछ व्यवहारिक सुझाव अपने नीति नियंताओं के संज्ञान हेतु रख रहे हैं। गायत्री पीठ शांतिकुंज हरिद्वार ने पाया कि यज्ञ हवन से पृथ्वी पर आक्स्जिन की मात्रा में वृद्धि होती है और वातावरण शुद्ध होता है। पद्म विभूषण से सम्मानित पर्यावरणविद चंडीप्रसाद भट्ट ने चालीस वर्षों के अपने अध्ययन में पाया कि जंगलों में भी फलदायी वृक्षारोपण से धरती की जीवनी शक्ति बढ़ती है। वन विभाग के निदेशक IFS सनातन सोनकर ने धराधाम पर निरंतर हरियाली विकसित करने की दिशा में नवग्रह वाटिका और पंचवृक्षों आम पंयां बड़ पीपल नीम रोपण का परामर्श दिया है। अगस्त्य ऋषि ने पीपल और रूद्राक्ष के वृक्षों को धरती पर क्रमशः भगवान विष्णु और शिव का स्वरूप बताते हुए इन वृक्षों को अवध्य यानी इन पर हथियार चलाने को महापातक और अक्षम्य बताया है। शास्त्रों ने सभी बच्चों गो ब्राह्मण और स्त्री प्रजाति को अबध्य बताते हुए इन्हें कष्ट पंहुचाने वाले का समूल वंश नष्ट होने के प्रमाण दिये हैं। भगवान धन्वंतरि ने कहा है कि यह पृथ्वी अमृत कलशों से भरी पड़ी है आवश्यकता उन्हें पहचानने की है।वेदों में पृथ्वी की सुरक्षा के लिए सूर्य, इंद्र व वरूण की अराधना करने को कहा है। मनुष्य की दीर्घायु हेतु सोम लताओं के रस का सेवन और जौ के उत्पादन में वृद्धि करने को कहा गया है जबकि मद व मांस भक्षण को तिरोहित किया है। इस का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि जब से उरुग्वे देश में गो पालन बढाया यहां औसतन प्रति व्यक्ति 4 चार गौ माता हैं अब यह एक कृषि संपन्न देश बन गया और अब वहां प्राकृतिक आपदा भी नहीं आती है। ✍️हरीश मैखुरी