बद्रीनाथ – नीलकंठ पर्वत और चरण पादुका की महिमा

सौजन्य संग्रह – *बिमल गुसाईं*

*जय बद्रीनारायण*
श्री बद्रीनाथ मंदिर से चरण पादुका की दूरी 2.5 KM
श्री बद्रीनाथ मंदिर से नीलकंठ पर्वत की दूरी 10 KM है
चरण पादुका और नीलकण्ठ पर्वत के लिए आप बद्रीनाथ मन्दिर बाएं ओर में स्थित तीन नम्बर गेट मार्ग से या फिर आप बामणी गाँव को जाने वाले मार्ग में 300 मीटर की दूरी तक चल कर दाएं हाथ की ओर के लिए चरण पादुका के लिए रास्ता जाता है।
रास्ते में आपको हनुमान मंदिर, ऋषि गंगा नदी और गुप्त गंगा दिखेंगी
चरण पादुका :-
यहाँ पर भगवान बद्रीविशाल जी के चरणों के निशान( पदचिन्ह ) दिखाई देता है।
नीलकण्ठ पर्वत :-
नीलकंठ, नाम इसके स्वरूप के आधार पर पड़ा है। दरअसल ऊंचे शिखर का एक हिस्सा ऐसा है, जिस पर बर्फ नहीं ठहरती। पर्वत के शेष भाग पर फैली बर्फ के मध्य वह हिस्सा कुछ ऐसा नजर आता है, जैसे भगवान शिव के कंठ पर नीला रंग हो। देवताओं और दानवों के बीच मंथन से समुद्र के अंदर से विष निकला था। जिससे चारों तरफ हा-हाकार मच गया था।
सुर-असुर सभी परेशान हो गए कि अब क्या करें इससे मुक्ति कैसे पाएं।
तब विश्व को इस विष से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान शिव ने यह विष पी लिया था। शिव ने अपनी यौगिक शक्तियों के आधार पर उस विष को अपने कंठ में ही संरक्षित कर रोक लिया था। इसके फलस्वरूप उनका कंठ नीला पड़ गया। तब से भगवान शंकर को नीलकंठ भी कहा जाता है। ऐसी ही छवि के कारण इस शिखर का नाम भी नीलकंठ पड़ गया।
चरण पादुका से नीलकण्ठ पर्वत के मध्य में आज कल सुन्दर
प्रकृतिक सौन्दर्य दृश्य देखने को मिल रहा है
यहाँ पर दुलभ प्रजाति के फूल खिले हुए हैं।इनमें से एक ऐसा पौधा जी की सांप(नाग)की तरह दिखाई देता है।। और चारों ओर बादल, सुंदर पहाड़ ,झरने, बर्फ के ग्लेशियर और ऋषि गंगा व उसके सहायक नदी एवं उनके झरने ऐसा लगता है कि स्वयं प्रकति भी बद्रीविशाल और बाबा भोलेनाथ की भक्ति में लीन है। रंग बिरंगे फुल खिलने से पूरी वादी(बदरीपुरी) स्वर्ग की अनुभूति करती है।
ऐसा हो भी क्यों नहीं
*जिस भूमि में बद्रीनारायण रहते हैं*
*उस भूमि को बैकुण्ठ कहते हैं*
*आभार श्री बद्रीनाथ धाम*