शहरों के लिए हवाई यात्रा और गांवों के लिए पैदल जात्रा

✍️हरीश मैखुरी

  उत्तराखंड की विडम्बना देखिए शहर जहां बसें गाड़ी घोड़ा बस रिक्शा समतल आसान पैदल सब है, हवाई यात्रा की व्यवस्था भी वहीं तक है। और  दूसरी ओर पहाड़ी क्षेत्र जहां पैदल रास्ते भी ठीक-ठाक नहीं, सिर और पीठ पर बोझा ढोत हुए हर कदम पर मौत का खतरा भी वहीं है। ये स्थिति सतर वर्ष के स्वतंत्र भारत और इक्कीस वर्ष के उतराखंड राज में भी बनी ही हुई है। भूलभूत सुविधाओं के अभाव में उत्तराखंड के १६०० गांव पूरी तरह बंजर पड़ चुके जबकि ७ हजार गांवों में केवल असक्त बुजुर्ग कुछ असक्त परिवार ही बचे रह गये पहाड़ के ६०% गांवों के लिए पैदल जात्रा आज भी नियति बना हुआ है। कुछ गांवों में सड़क तब पंहुंची जब लोग गांव छोड़ चुके थे। इस प्रकार पहाड़ वासियों के भाग में बाघ आग भूस्खलन हिंसक जगली जानवर और जी तोड़ मेहनत बची है इन सब विंदुओं पर सरकारों का ध्यान आवश्यक है। पहाड़ के खाली होने का खतरा न केवल क्षेत्रीय असंतुलन तक सीमित है अपितु यह सामरिक दृष्टि से भी देश हित में नहीं है।

    सुधीजन आज के दो समाचारों से इस स्थिति का उदाहरण स्वरूप विश्लेषण खुद भी कर सकते हैं। 👉

        प्रदेश में देहरादून-पिथौरागढ़ के बीच हवाई सेवा एक सितंबर से शुरू हो जाएगी। साथ ही गौचर व चिन्यालीसौड़ हवाई पट्टी का भी विस्तार करने की तैयारी है। केंद्र सरकार कुमाऊं में अंतरराट्रीय एयरपोर्ट खोलने पर भी विचार कर रही है। देहरादून और पिथौरागढ़ के बीच अब प्रदेश सरकार अपने वायुयान से हवाई सेवा शुरू करना चाहती है। इसके लिए अब केंद्र सरकार की अनुमति मांगने की तैयारी चल रही है। उदेश्य है कि हवाई सेवा फिर से सुचारू की जा सके। देहरादून-पिथौरागढ के बीच वर्ष 2018 में क्षेत्रीय संपर्क योजना के अंतर्गत फिक्स विंग हवाई सेवा शुरू की गई। इसका दाईत्व हैरीटेज एविएशन को दिया गया। कुछ समय तक सुचारू संचालन करने के बाद यह सेवा हिचकोले खाने लगी। पहले इस हवाई सेवा को प्रतिदिन इस मार्ग पर उड़ान भरनी थी। इसमें आने वाली तकनीकी दिक्कतों को देखते हुए इसका संचालन पहले सप्ताह में छह दिन और फिर तीन दिन किया गया। जो समय काटा गया उसका कारण विमान की तकनीकी मरम्मत करना बताया गया।  वास्तव में देहरादून-पिथौरागढ़ मार्ग पर देहरादून-नैनीसैनी (पिथौरागढ़) के बीच न्यूनतम किराया 1570 तथा पिथौरागढ़-पंतनगर के बीच न्यूनतम किराया 1410 रुपये निर्धारित था। किराया कम होने के चलते यात्री भी भरपूर आने लगे। इस बीच विमान में तकनीकी दिक्कतें आने लगी। जैसे तैसे कर यह सेवा मार्च 2020 तक चली। इसके बाद से ही इसका संचालन शुरू नहीं हो पाया है। 

थराली विकासखंड के ग्राम पैनगढ़ के ग्रामीण जान हथेली पर रखकर एक मात्र संपर्क मार्ग हरमनी आने को हैं मजबूर* 

विकासखंड थराली के ग्राम पैनगढ के ग्रामीण भारी बरसात के कारण जान हथेली पर रखकर अपने गांव से  एक मात्र संपर्क मार्ग एनएच 109 पर स्थित हरमनी पैदल आने को मजबूर हैं। वर्ष 2013-14 में लगाये गये रोप वे के बन्द पडे होने  तथा  लो.नि.वि. थराली की लापरवही के कारण ग्रामीण जान जोखिम में डालकर पैदल संपर्क मार्ग हरमनी आ जा रहे हैं।भारी बरसात के कारण चट्टानों से बडे बडे पत्थर गिर रहे हैं तथा कभी भी कोई अनहोनी हो सकती है। उक्त संबंध में कई बार अधिशासी अभियंता लोनिवि थराली को अवगत कराया गया किंतु अभी तक उनके द्वारा रोपवे संचालित नहीं किया गया। ग्रामीणों के पैदल मार्ग से आने जाने से कभी भी कोई बड़ी अनहोनी हो सकती है।
यह केवल एक गांव की कहानी नहीं है अपितु उत्तराखंड के पर्वतीय जनपदों के गांव गांव की वास्तविक स्थिति है। आंकड़ों का अध्ययन करें तो पता चलता है कि सबसे अधिक पलायन मोटर सड़कों के अभाव में स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए हुआ। अच्छे विद्यालय और चिकित्सालय आज भी पहाड़ की सबसे बड़ी समस्या हैं।