पंचेश्वर बांध पर पर्यावरणविदों की चुप्पी का राज

भाष्कर उप्रेती Dam
पंचेश्वर बाँध पर अभी तक आदरणीय सुन्दरलाल बहुगुणा, चंडीप्रसाद भट्ट, अनिल प्रकाश जोशी, सुरेश भाई आदि पर्यावरणविदों ने कुछ नहीं कहा है. वह शायद फेसबुक में नहीं हैं और या शायद अख़बार वालों को इस संबंध में उनके बयान लेने की फुर्सत नहीं रही होगी. यह भी हो सकता है कि वह इस परियोजना का अध्ययन करने में जुटे हों. मगर, उनका इस संबंध में बोलना अपेक्षित माना ही जाएगा. खासकर बहुगुणा जी का जिन्होंने टिहरी बाँध विरोधी अभियान का नेतृत्व किया. डॉ. रवि चोपड़ा बहुत पहले से इस पंचेश्वर बाँध परियोजना के बारे में लोगों को आगाह करते रहे हैं. नदी बचाओ आंदोलन में शामिल रही राधा बहन और विद्युत्सु परियोजना के खिलाफ लंबे समय तक हिरासत में रहीं सुशीला भंडारी का भी इस वक़्त बोलना लाजिमी होगा.
बड़े बांधों पर जिस भी व्यक्ति और संस्था को कुछ जानकारी है, वह ऐसे वक़्त में जरूर साझा करनी चाहिए, जब एक बड़ी विपदा पहाड़वासियों को डरा रही है. ऐसा भी नहीं है कि पर्यावरणविदों और वैज्ञानिकों की राय का सरकार बहुत सम्मान करती है. मोदी सरकार हरित विकास प्राधिकरण के मानकों में ढील देकर पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वाली 450 से अधिक परियोजनाओं को हरी झंडी दे चुकी है. लेकिन, किसी विषय के जानकार जब बोलते हैं तो लोग सही दिशा में अपनी रणनीति बना पाते हैं.
नैनीताल के शैले हाल में 22 अगस्त को आयोजित गिर्दा स्मृति समारोह में प्रो. शेखर पाठक ने बताया कि वह बाँध के विभिन्न पहलुओं का वैज्ञानिकों, भूगर्भविदों, वनस्पतिविदों आदि के माध्यम से अध्ययन करवा रहे हैं. और नवंबर माह में एक पुख्ता डॉक्यूमेंट लोगों के हाथ में होगा. उन्होंने बताया कि देश के कई जनपक्षधर बुद्धिजीवी और उत्तराखंड के कई प्रवासी वैज्ञानिक यह दस्तावेज तैयार कर रहे हैं.
उन्होंने यह भी कहा था कि बाँध का विरोध दूर से, नगरों से और मीडिया के माध्यम से नहीं हो पायेगा, जितना लोगों को गांवों में जाकर वस्तुस्थिति बताने से. सरकार द्वारा जानबूझकर मानसून के दौरान जनसुनवाई बैठकें करने से डूब क्षेत्र के अधिकांश गांवों को इस तरह की योजना की जानकारी ही नहीं हो सकी है. उसके सही-गलत होने की बात सोच पाना तो दूर की बात रही.