उत्तराखण्ड में खनन कारोबारियों के पीछे रिमोट किसका?

हरीश मैखुरी

उत्तराखण्ड सरकार में शराब लाॅबी के बाद दूसरी सबसे बड़ी खनन लाॅबी का ही दखल चलता है, जो सरकारें शराब और खनन लाॅबी के विरुद्ध कदम उठाने का साहस करती है उस सरकार को खतरे का सामना करना पड़ता है। खनन लाॅबी उत्तराखण्ड में इतनी जबरदस्त है कि जब बागेश्वर जनपद के डीएम मंगेश घिल्डियाल ने खनन लाॅबी पर शिंकजा कसना शुरु किया तो उन्हें ईमानदारी के तोहफे के रुप में 3 महीने में ही वहां से हटाकर रुद्रप्रयाग का डीएम बना दिया। यही हाल उस सरकार के मुखिया का भी हो सकता है जो खनन लाॅबी पर ज्यादा हाथ आजमाने की कोशिश करता है।

दरअसल उत्तराखण्ड में सरकार की आय का एक बड़ा हिस्सा खनन और शराब के राजस्व पर निर्भर है खनन से आय है तो इससे कमाने वाले भी जुड़ गए, ये धंधेबाज खुद तो परदे के पीछे रहते हैं लेकिन इनकी कारस्तानियों ने पूरा पहाड़ खोखला कर दिया, बिना यह जाने कि उत्तराखण्ड प्रदेश के इस पर्वतीय प्रदेश की परिस्थिति असीमित मात्रा में खनन की इजाजत नहीं देती। नदियों के किनारे जहां बेतरतीब ढंग से जेसीबी और पोकलैंड मशीनों द्वारा गहरा खनन कर नदियों के मार्ग को तितर-बितर कर खनन क्षेत्र में बाढ़ का खतरा बन जाता है वहीं पहाड़ी क्षेत्रों में खड़िया खनन, तांबा खनन और वन संपदा खनन ने पहाड़ों को अंदर ही अंदर खोखला कर दिया है।

यह जानकर आश्चर्य होता है कि इस खनन लाॅबी में उत्तराखण्ड के लोग सिर्फ आइस बग की तरह जुड़े हैं, जबकि इसके नीचे पूरा तंत्र उत्तर प्रदेश के खनन माफिया के हाथ में है, यानि खनन के माध्यम से लूट-खसोट का बड़ा हिस्सा उत्तराखण्ड से बाहर चला जाता है। खनन लाॅबी उत्तराखण्ड की सरकारों को अपने रिमोट से आॅपरेट करने में सक्षम दिख रही है, लेकिन खनन के सारे विपरीत प्रभाव उत्तराखण्ड को झेलने पड़ते हैं।