किसानों पर सरकारें कब रही मेहरबान?

 

किसान हिंसक नही हुआ ,किसानो के प्रति अभी तक की सभी सरकारें हिंसक होती रही है

जब कोई कहता या लिखता है की हिंसक हुआ किसान आन्दोलन 6 किसान की मौत ,इसका मतलब वो सरकार की भाषा लिख रहा है या पुलिस की विज्ञप्ति दोहरा रहा है.कहा तो यह भी जाया जाना चाहिए की हिंसक हुई पुलिस या सरकार ,6 किसानो की हत्या . बार बार किसानो के हिंसक होने की बात की जा रही है ,लेकिन कोई यह नही कह रहा की पिछले 27 साल में तीन लाख 46 हजार किसान आत्महत्या किये उसके लिए कौन जिम्मेदार है ।

कोई यह नही कह रहा की पिछले चालीस सालो में किसानो के उतपादन की कीमत 19 गुनी और सरकारी बाबुओ की दो सौ गुना ,करपोरेट के कर्मचारीयो की हजार गुण बढ़ी ,उस असमानता के लिए कौन जिम्मेदार है. कोई यह क्यों नही कहता की खेती घाटे का सौदा क्यों हो गया ,किसानो कोई कर्ज की माफी नहीं मांग के रहा है , वो तो अपनी फसल का उचित दाम मांग रहा है . वह कर्जदार इसलिए हुआ क्योंकि जब वह अपना उत्पादन लेकर मंडी में आया तो उसे लागत मुल्य भी नहीं मिला,जो उसने बेंक से कर्ज लिया उसे पटाने लाईक भी पैसा उसके पास नही था तो उसके उपर कर्ज का चक्कर पहले के महाजन से भी खतरनाक हो गया ।

जब किसान महाजन से कर्ज लेता था तब कोई आत्महत्या नही करते थे किसान 

एक आंकलन यह कहता है की यदि दूसरे कर्मचारियों के बढ़ते वेतन से तुलना की जाये तो आज अनाज का समर्थन मुल्य साढ़े सात हजार रूपये प्रति क्विंटल होना चाहिए था . किसान का ज्यादा उत्पादन हो जाये तो भी मरना है क्योकि उसे उसका सही दाम नही मिलता और उत्पादन कम हो तो मरना ही है. राज्य सरकार ऋण माफ करने की पहल ही नहीं करती , केंद्र सरकार इसमें कुछ सहायता को तैयार नहीं है ,जबकी यही केंद्र सरकार कई लाख करोड़ रूपये उधोगपतियों के एक झटके में माफ कर देती है। किसानों के प्रति मध्यम वर्ग की सवेदना का हाल यह है कि एक बार रायपुर के बूढापारा धरना स्थल पर अपनी सब्जियां फेंक रहा था ,तब बहुत से कार वाले उनसे सब्जियां फ्री में मांग रहे थे ,उन्हें किसानो के दर्द की नही अपने लाभ की चिंता थी ।

आज सत्तर से अस्सी फीसदी किसान अपने बच्चों को खेती नही करना चाहते ,यह भी तथ्य है की अस्सी से नब्बे फिसदी किसान ऋण के चुंगल में फंसा है . किसान की हर समस्या के लिये सरकार को ही निर्णय लेना होगा ,चाहे ऋण माफी का हो या न्यूनतम समर्थन मूल्य का. इसिलिए इस समस्या के लिये सौ फिसदी सरकार ही जिम्मेदार है कोई और नहीं. यही लोग मिडिया ओपीनियन बनाते और उसपर झूमते है और बड़े बेशर्मी से किसानों के आन्दोलन को हिंसक कहके बदनाम करते हैं .छत्तीसगढ़ की एक चर्चित पत्रकार ने तो अपनी रिपोर्ट में किसानों को शैतान तक कह दिया ।

कुछ भाजपाई लोग यह तर्क दे रहे है कि क्या पिछले तीन साल में ही किसान कर्जदार हो गया ,पहले क्यों आन्दोलन नही किया, यह तर्क वो हर विरोध पर देते है कि पहले क्यों नही अब क्यों ? यह कहना उनका इस तर्क पर निर्भर है की एक चुनी हुई सरकार के खिलाफ कोई कैसे जा सकता है. यह भी आजकल बार बार सुनाई देता है . इन मूढों को कौन समझाये कि अभी तक सारी सरकारें चुन कर ही आती रहीं है और इन लोगों ने भी अंग्रेजो के अलावा हर सरकार का विरोध किया है और करना भी चाहिए था.यह लोग भूल गए है की उनकी पार्टी भी आपातकाल की पैदाइश है या यह कहिये कि चुनी हुई सरकार के विरोध से ही बनी हैं .आप यह मान लिजिये की यदि आज किसानो की नही सुनी गई और किसान मजदूर एक साथ अन्याय के खिलाफ संगठित हो गया तो यह सब ताश के पत्ते की तरह ढह जाएँगे ।
तो आईये किसानों के साथ खड़े हों मजदूरों के दर्द को समझे ,इस लड़ाई को अंजाम तक पहुचाये।