दो अक्टूबर की काली रात का रामपुर तिराहा गोलीकांड कभी नहीं भूलेगा उत्तराखंड

✍️डाॅ हरीश मैखुरी

2 अक्टूबर 1994 का काला दिन, उत्तराखंड कभी नहीं भूलेगा। पृथक राज्य की मांग को लेकर उत्तराखंड से दिल्ली कूच एक अक्टूबर की काली रात मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे में राज्य आंदोलनकारियों पर हुई बर्बरता व अमानवीयता को शर्मसार करने वाली घटना को आज 27 वर्ष पूरे हो रहे हैं। इस दिन को याद कर हर किसी का रक्त उबल जाता है।
एक अक्तूबर 1994 की रात उत्तराखंड के इतिहास में खून से लिखी गई थी। उत्तराखंड को अलग राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर दिल्ली जा रहे उत्तराखंड के बेकसूर लोगों पर यूपी पुलिस ने मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर लाठीचार्ज करने के साथ फायरिंग की गयी थी। फायरिंग में सात उत्तराखंडियों की मौत होने के साथ ही 27 लोग घायल हो गए थे। यहीं नहीं अपने प्राणों को बचाने गन्ने के खेतों और जंगलों की ओर गईं महिलाओं की इज्जत से खिलवाड़ किया गया था।
बता दें कि पृथक उत्तराखंड राज्य की मांग हेतु राज्य आंदोलनकारी 300 से अधिक वाहनों में बैठ कर दिल्ली में दो अक्तूबर को प्रस्तावित रैली में भाग लेने जा रहे थे। गुरुकुल नारसन में आंदोलनकारियों के बैरियर तोड़कर आगे बढ़ जाने के बाद यूपी पुलिस ने रामपुर तिराहे पर उन्हें रोकने की योजना बनाई थी। पूरे ऐरिया को सील कर आंदोलनकारियों की बसों को रोक लिया था। आंदोलनकारियों ने सड़कों पर बैठकर नारेबाजी शुरू कर दी थी। आंदोलनकारी दिल्ली जाने हेतु पर अड़े थे कि रात बारह – एक बजे के करीब पुलिस ने आंदोलनकारियों पर लाठीचार्ज कर दिया, इसी बीच फायरिंग भी शुरू हो गई। करीब दो बजे तक पुलिस का दमन चक्र चलता रहा। 400 आंदोलनकारियों को पकड़कर सिविल लाइंस थाने ले जाया गया था। सुबह हुई तो महिलाओं की अस्मत लूटे जाने की बात सामने आई।

 उस समय दिल्ली जंतर-मंतर पर भी दिल्ली में रहने वाले उत्तराखंड के लोग पृथक राज्य के लिए आन्दोलन कर रहे थे, सभी जिला मुख्यालयों और यहां तक कि तहसील और ब्लाक मुख्यालयों पर भी हर दिन स्वत:स्फूर्त रूप से भी आन्दोलन कर रहे थे। किसान, दुकानदार, सरकारी कर्मचारी वकील मीडिया कर्मी सभी आन्दोलन कर रहे थे। खटीमा मसूरी रामपुर तिराहे आदि जगह के गोलीकांड और चमोली रुद्रप्रयाग आदि में करीब 54 आन्दोलनकारियों की जानें गयी, सैकड़ों आन्दोलनकारियों पर मुकदमे चले। समाचार पत्र आन्दोलन की घटनाओं से पट गये। उससे जिस तरह का माहौल बना था उससे उम्मीद जगी थी कि बेकसूरों पर फायरिंग और महिलाओं की अस्मत लूटने वालों को एक दिन सजा जरूर मिलेगी। सत्ता में आने के बाद सत्ताधारी दलों ने कड़े तेवर भी दिखाए, परंतु वक्त के साथ उनके तेवर और केस भी ढीले पड़ते चले गए आज 27 साल बाद भी यह लड़ाई बेनतीजा रही और पीड़ितों को इंसाफ की उम्मीद थी, जो अब जवाब देनी लगी है।

इस मामले में सीबीआई की ओर से पुलिस के विरुद्ध सात अलग-अलग मुकदमे दर्ज कराए गए थे, जिनमें फायरिंग के अतिरिक्त रेप, फर्जी बरामदगी, लाश को गायब करने जैसे संगीन आरोप थे। फायरिंग मामले में तो आरोपी अधिकारियों को यूपी सरकार ने मुकदमे चलाने की अनुमति न देकर राहत दे दी थी। मुजफ्फरनगर की कोर्ट में बाकी मामलों में कमजोर पैरोकारी इंसाफ की उम्मीदों पर पानी फेरने का सबब बन गई।
रामपुर तिराहे पर हुए रेप प्रकरण में सीबीआई बनाम मिलाप सिंह मामले में आरोप तय किए जा चुके हैं। फिलहाल इस मामले में गवाही चल रही है, जबकि रेप के दूसरे मामले में सीबीआई बनाम राधा मोहन द्विवेदी में हाईकोर्ट से स्टे चल रहा है। उत्तराखंड राज्य सरकारों की कमजोर इच्छा शक्ति के कारण हत्यारे और बलात्कारी खुले घूम रहे हैं। उत्तरप्रदेश के तत्कालीन क्रूर मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव प्रकृतिक न्याय के चलते उत्तराखंडियों का श्राप भोग रहे हैं।

आज हम उत्तराखंड राज्य आंदोलन पर दृष्टि डालते हैं तो देखते हैं कि गैरसैंण स्थाई राजधानी का विषय लटका पड़ा है। उत्तराखंड के 65 प्रतिशत गांव मोटरमार्गों से वंचित हैं। उत्तराखंड राज्य के लिए अपनी जान बलिदान जवानी अपने रोजगार अपनी नौकरी सब कुछ दांव पर लगाने वाले आन्दोलनकारियों को लम्बे संघर्ष के उपरांत चिन्हित तो किया गया लेकिन उनमें फूट डालने के उद्देश्य से उन्हें श्रेणियों में बांटा गया उनकी तीन चार श्रेणी बना दी गयी। जबकि चंदा वसूलने वाले और उत्तराखंड राज्य आन्दोलन का विरोध करने वाले सत्ता में बैठ गये। यही नहीं राज्य आन्दोलन के समय सीपीएम जैसे बामपंथी और कुछ सैक्युलर दल आन्दोलन से दूरी बनाने के साथ राज्य आन्दोलनकारियों का मनोबल भी तोड़ रहे थे। वो सिलसिला आज तक जारी है आज उत्तराखंड राज्य बनाने वाले आन्दोलनकारी बूढ़े हो चुके हैं और छोटी-छोटी मांग के लिए सरकार में बैठे लोगों के चक्कर लगा रहे हैं। उत्तराखण्ड में सबसे अधिक रोजगार बढ़ाने वाला क्षेत्र देवभूमि का धार्मिक पर्यटन और तीर्थाटन विकसित करने वाले देवस्थानम बोर्ड अब जाकर बना मगर उसका स्ट्रक्चर अभी बनना है।
रामपुर तिराहा गोलीकांड की बरसी पर उत्तराखंड राज्य निर्माण के लिए अपना सर्वस्व अर्पित करने वाले अमर शहीदों को भावभीनी श्रद्धांजलि। आपका संघर्ष हमें सदैव प्रेरणा देता रहेगा। शत्-शत् नमन।