आज का पंचाग आपका राशि फल, सोलह संस्कार पशुतुल्य जीवन से मनुष्य और मनुष्य से देवता बनाने की वैज्ञानिक विधि है लेकिन तेजी से विलुप्त हो रही है यह अद्वतीय अद्भुत वैज्ञानिक परम्परा, राम मंदिर को लेकर पहली FIR अयोध्या में 30 नवम्बर 1858 को सिखों के विरूद्ध हुई

🕉श्री हरिहरौ विजयतेतराम🌄सुप्रभातम🌄 प्रथम केदारेश्वर मदमहेश्वर 

🌻रविवार, २६ नवम्बर २०२३🌻

सूर्योदय: 🌄 ०६:५९

सूर्यास्त: 🌅 ०५:२९

चन्द्रोदय: 🌝 १६:२२

चन्द्रास्त: 🌜३०:४१

अयन 🌖 दक्षिणायणे (दक्षिणगोलीय)

ऋतु: 🗻 हेमन्त

शक सम्वत: 👉 १९४५ (शोभकृत)

विक्रम सम्वत: 👉 २०८० (नल)

मास 👉 कार्तिक

पक्ष 👉 शुक्ल

तिथि 👉 चतुर्दशी (१५:५३ से पूर्णिमा)

नक्षत्र 👉 भरणी (१४:०५ से कृत्तिका)

योग 👉 परिघ (२५:३७ से शिव)

प्रथम करण 👉 वणिज (१५:५३ तक)

द्वितीय करण 👉 विष्टि (२७:१६ तक)

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॥ गोचर ग्रहा: ॥

🌖🌗🌖🌗

सूर्य 🌟 वृश्चिक

चंद्र 🌟 वृष (१९:५५ से)

मंगल 🌟 वृश्चिक (अस्त, पश्चिम, मार्गी)

बुध 🌟 धनु (अस्त, पूर्व, वक्री)

गुरु 🌟 मेष (उदित, पश्चिम, वक्री)

शुक्र 🌟 कन्या (उदित, पश्चिम, मार्गी)

शनि 🌟 कुम्भ (उदित, पूर्व, मार्गी)

राहु 🌟 मीन

केतु 🌟 कन्या

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शुभाशुभ मुहूर्त विचार

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अभिजित मुहूर्त 👉 ११:४३ से १२:२५

अमृत काल 👉 ०९:२७ से ११:००

रवियोग 👉 ०६:५१ से १४:०५

विजय मुहूर्त 👉 १३:४८ से १४:३०

गोधूलि मुहूर्त 👉 १७:१४ से १७:४२

सायाह्न सन्ध्या 👉 १७:१७ से १८:३९

निशिता मुहूर्त 👉 २३:३७ से २४:३१

राहुकाल 👉 १५:५९ से १७:१७

राहुवास 👉 उत्तर

यमगण्ड 👉 १२:०४ से १३:२२

दुर्मुहूर्त 👉 १५:५४ से १६:३५

होमाहुति 👉 चन्द्र

दिशाशूल 👉 पश्चिम

अग्निवास 👉 पृथ्वी (१५:५३ तक)

भद्रावास 👉 स्वर्ग (१५:५३ से २७:१६)

चन्द्रवास 👉 पूर्व (दक्षिण १९:५६ से)

शिववास 👉 भोजन में (१५:५३ से श्मशान में)

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☄चौघड़िया विचार☄

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॥ दिन का चौघड़िया ॥

१ – उद्वेग २ – चर

३ – लाभ ४ – अमृत

५ – काल ६ – शुभ

७ – रोग ८ – उद्वेग

॥रात्रि का चौघड़िया॥

१ – शुभ २ – अमृत

३ – चर ४ – रोग

५ – काल ६ – लाभ

७ – उद्वेग ८ – शुभ

नोट– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।

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शुभ यात्रा दिशा

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पूर्व-दक्षिण (पान का सेवन कर यात्रा करें)

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तिथि विशेष

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श्रीसत्यनारायण (पूर्णिमा) व्रत, बुध धनु मे २९:५५ से आदि।

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आज जन्मे शिशुओं का नामकरण

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आज १४:०५ तक जन्मे शिशुओ का नाम भरणी नक्षत्र के तृतीय एवं चतुर्थ चरण अनुसार क्रमशः (ले, लो) नामक्षर से तथा इसके बाद जन्मे शिशुओ का नाम कृतिका नक्षत्र के प्रथम एवं द्वितीय चरण अनुसार क्रमशः (अ, ई) नामाक्षर से रखना शास्त्रसम्मत है।

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उदय-लग्न मुहूर्त

वृश्चिक – ३०:१० से ०८:२९

धनु – ०८:२९ से १०:३३

मकर – १०:३३ से १२:१४

कुम्भ – १२:१४ से १३:४०

मीन – १३:४० से १५:०३

मेष – १५:०३ से १६:३७

वृषभ – १६:३७ से १८:३२

मिथुन – १८:३२ से २०:४७

कर्क – २०:४७ से २३:०९

सिंह – २३:०९ से २५:२७

कन्या – २५:२७ से २७:४५

तुला – २७:४५ से ३०:०६

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पञ्चक रहित मुहूर्त

शुभ मुहूर्त – ०६:५१ से ०८:२९

रोग पञ्चक – ०८:२९ से १०:३३

शुभ मुहूर्त – १०:३३ से १२:१४

मृत्यु पञ्चक – १२:१४ से १३:४०

अग्नि पञ्चक – १३:४० से १४:०५

शुभ मुहूर्त – १४:०५ से १५:०३

मृत्यु पञ्चक – १५:०३ से १५:५३

अग्नि पञ्चक – १५:५३ से १६:३७

शुभ मुहूर्त – १६:३७ से १८:३२

रज पञ्चक – १८:३२ से २०:४७

शुभ मुहूर्त – २०:४७ से २३:०९

चोर पञ्चक – २३:०९ से २५:२७

शुभ मुहूर्त – २५:२७ से २७:४५

रोग पञ्चक – २७:४५ से ३०:०६

शुभ मुहूर्त – ३०:०६ से ३०:५२

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आज का राशिफल

🐐🐂💏💮🐅👩

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मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)

आज के दिन आप किसी भी कार्य को लेकर ज्यादा गंभीर नही रहेंगे घर एवं बाहर मसखरी के मूड में रहेंगे परिजनों की गंभीर बातों को भी नजरअंदाज करने पर फटकार सुन्नी पड़ेगी। घर की अपेक्षा आज बाहर का वातावरण आपके अनुकूल रहेगा लोग आपके साथ समय बिताना पसंद करेंगे मित्रो के साथ भी मनोरंजन के अवसर मिलेंगे। कार्य व्यवसाय को लेकर आज ज्यादा झंझट में नही पड़ेंगे फिर भी आशा से अधिक मुनाफा होगा अधीनस्थों के ऊपर नजर रखें अन्यथा कार्य हानि हो सकती है। आज घर एवं कार्य क्षेत्र की सुरक्षा भी सुनिश्चित करें चोरी चकारी का भय है। परिजन आपकी बात सहर्ष स्वीकार करेंगे इसके पीछे व्यक्तिगत स्वार्थ छिपा होगा सेहत आज उत्तम बनी रहेगी।

वृष🐂 (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)

आज का दिन आपको हानिकारक रहेगा। आज स्वयं लिए निर्णय गलत ही रहेंगे इस लिये आज कोई भी बड़ा कार्य अथवा निवेश करने से बचें। कार्य क्षेत्र पर अनिर्णय अथवा गलतफहमी के कारण बड़ा नुकसान हो सकता है। परिवार के सदस्यों के हाथ किसी भी प्रकार के उपकरण अथवा वाहन ना दें दुर्घटना होने की संभावना है। कार्य क्षेत्र पर भी आज आपको वादे से मुकरने अथवा समय से पूर्ण ना करने पर वैर विरोध का सामना करना पड़ेगा। धन संबंधित मामलों में असफल होने पर मन में नकारात्मक भाव आएंगे गुस्से में आकर कुछ अनैतिक कार्य भी कर सकते है आज धैर्य का अधिक परिचय देना पड़ेगा। स्वास्थ्य भी नरम रहेगा।

मिथुन👫 (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)

आज का दिन मध्यम फलदायी रहेगा। आज दिन के आरंभिक भाग को छोड़ अन्य समय किसी ना किसी कारण से दौड़ धूप लगी ही रहेगी आराम आज चाहते हुए भी नही कर सकेंगे। आध्यात्म में भी रुचि लेंगे पूजा पाठ तंत्र मंत्र के लिये समय निकालेंगे। कार्य व्यवसाय पर आज मध्यान बाद ही लाभ की संभावनाए बनेंगी धन लाभ के लिये मानसिक परिश्रम ज्यादा करना पड़ेगा लेकिन परिणाम आशाजनक ही रहेंगे। नौकरी वालो की अधिकारी वर्ग से आज अच्छी जमेगी काम निकालना आसान रहेगा। परिजन अनैतिक मांग पर अडेंगे जिन्हें पूरी करना आज संभव नही होगा। सेहत थकान को छोड़ सामान्य रहेगी।

 

कर्क🦀 (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)

आज के दिन भी परिस्थितियां आपके पक्ष में ही रहेंगी ठाठ-बाट वाला जीवन व्यतीत करेगे। काम-धंधे में आश्चर्यजनक वृद्धि होगी प्रतिस्पर्धी भी हावी रहेंगे फिर भी विजय आपकी ही होगी। व्यवसाय में आज कुछ महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने पड़ेंगे इसका शुभ परिणाम आने वाले समय मे मिलेगा। जन सम्पर्क में वृद्धि आएगी अधिकारी वर्ग से नजदीकी का लाभ भी अवश्य मिलेगा। सरकार विरोधी गतिविधियों से दूर रहे अन्यथा फल उल्टा हो सकता है। धन की आमद प्रयास करने पर नही स्वतः ही होगी। परिजन आपसे नई अपेक्षाएं रखेंगे इनकी पूर्ति करने में आपको परेशानी नही आएगी। आरोग्य बना रहेगा।

सिंह🦁 (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)

आज का दिन आप शांति से एकांत में बिताना पसंद करेंगे मध्यान तक आपकी कामना पूर्ण भी होगी लेकिन इसके बाद कार्य बोझ बढ़ने से चैन से बैठ भी नही पाएंगे। कार्य व्यवसाय में आज आशाजनक प्रगति नही होगी फिर भी खर्च चलाने लायक धन मिल ही जायेगा। व्यवसाय विस्तार अथवा निवेश आज करने के लिये दिन उपयुक्त है शीघ्र ही इसका लाभदायक परिणाम देखने को मिलेगा। नौकरी वाले लोग आज अनचाहे काम से परेशान होंगे लेकिन बाद में इसी कार्य मे रुचि बढ़ने लगेगी अधिकारी वर्ग आज आपके काम मे कुछ ना कुछ कमी ही निकलेंगे हतोत्साहित ना हो। परिवार में सुख के साधनों पर खर्च करना पड़ेगा। स्वास्थ्य थोड़ा बहुत नरम रहेगा।

 

कन्या👩 (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)

आज के दिन आपको आशा के विपरीत फल मिलेंगे। अपनी अथवा परिजन की सेहत को लेकर अस्पताल के चक्कर लग सकते है। मानसिक रूप से चिड़चिड़ापन रहेगा भावुकता भी अधिक रहेगी आज आप स्वयं किसी को कुछ भी कहे परन्तु किसी अन्य की हास्य में कही बातो का भी बुरा मान लेंगे। कार्य व्यवसाय पर सुव्यवस्था रहने पर भी धन लाभ अनिश्चित रहेगा दोपहर बाद ही थोडी बहुत आमाद होगी। सहकर्मी अथवा अन्य किसी परिचित को आर्थिक अथवा अन्य सहायता देनी पड़ेगी। परिजनो से आत्मीयता रहने पर भी घर मे उदासी ज्यादा रहेगी। मनोरंजन विपरीत लिंगीय आकर्षण भी आज अधिक रहेगा।

तुला⚖️ (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)

आज का दिन आपके मन के अनुरूप रहेगा। आज आप दिनचार्य को शानदार रूप से बिताना चाहेंगे। कार्य क्षेत्र से मनोरंजन के लिये समय निकालने की योजना मन मे लगी रहेगी लेकिन संध्या बाद ही इसके लिये समय मिलेगा। आज आप रोजगार के क्षेत्र में जो भी निर्णय लेंगे आरम्भ में वे गलत होते प्रतीत होंगे लेकिन धीरे धीरे इनसे ही धन लाभ के मार्ग बनेंगे धैर्य रखें एक बार जो निर्णय ले लिया उससे पीछे ना हटे हानि हो सकती है। अन्य लोगो से देखा देखी के कारण आप बजट से अधिक खर्च करेंगे बाद में पछतायेंगे भी। मौज शौक की प्रवृति बड़े बुजुर्गों से नाराजगी बढ़ाएगी। पेट अथवा मूत्राशय संबंधित समस्या हो सकती है। संताने आपके पक्ष में रहेंगी।

 

वृश्चिक🦂 (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)

आज का दिन आपके लिये समृद्धिकारक रहेगा पारिवारिक एवं सार्वजनिक क्षेत्र पर आज विरोध करने वाले भी कम रहेंगे काम-काज के सिलसिले से यात्रा करनी पड़ेगा इसका सकारात्मक परिणाम मिलेगा। धन लाभ आज सहज ही हो जाएगा पुरानी उधारी चुकता होगी। कार्य क्षेत्र का वातावरण आपके सुआचरण एवं व्यवहारिकता से महकेगा। परोपकारी भावना रहने से आप किसी को भी किसी कार्य के लिये मना नही करेंगे। नौकरी वाले जातक कार्य क्षेत्र बदलने का विचार करेंगे इसमे सफल भी रहेंगे प्रयास करने पर पहले से बेहतर जगह पदोन्नति हो सकती है। घरेलू माहौल सुख सुविधा बढ़ने पर प्रसन्न रहेगा।

 

धनु🏹 (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)

आज दिन आपके पक्ष में तो नही फिर भी कल की अपेक्षा शांति से व्यतीत होगा। आज आप अपनी बुद्धिक्षमता प्रखर होने पर भी लाभ नही दिला सकेगी। ज्यादा झंझट वाले कार्यो से दूर रहें अन्यथा हाथ कुछ नही लगेगा उल्टे मानसिक परेशानियां बढ़ेंगी। कार्य व्यवसाय में आज अन्य लोगो के ऊपर ज्यादा आश्रित रहने के कारण केवल आश्वाशन ही मिलेंगे धन लाभ भी होगा परन्तु खर्चो के आगे नाकाफी रहेगा। कार्य क्षेत्र पर सहकर्मियों से अहम को लेकर मतभेद रहेगा पारिवारिक स्थिति स्थिर रहेगी लेकिन महिलाये स्वयं को अधिक बुद्धिमान प्रदर्शित करेंगी जिससे कुछ समय के लिये टकराव की स्थिति बन सकती है। स्वास्थ्य मध्यम रहेगा।

मकर🐊 (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)

आज परिस्थितियां एकदम उलट बन रही है कल तक जो आपकी हाँ में हाँ मिला रहे थे वही लोग आज आपका साथ देने से पीछे हटेंगे आपका स्वभाव भी आज कुछ तीखा रहेगा किसी के सामान्य प्रश्न का उत्तर उल्टा ही देंगे कार्य क्षेत्र पर लेन देन को लेकर विवाद होगा आज आप कहेंगे कुछ करेंगे कुछ इस वजह से लोग आपके ऊपर जल्दी से विश्वास नही करेंगे। कारोबारियों को हाथ आये अनुबंध निरस्त होने की ग्लानि रहेगी इसका कारण भी आपका रूखा व्यवहार हो सकता है। धन लाभ की केवल सम्भावनाये ही रहेंगी प्राप्ती नगण्य होगी। खर्च चलाने के लिये उधार लेने की नौबत आ सकती है। परिवार में भी लोग आपसे असंतुष्ट रहेंगे। सेहत अचानक बिगड़ेंगी।

कुंभ🍯 (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)

आज का दिन आपके लिये मिला जुला रहेगा। सेहत आज शिथिल रहने के कारण कार्यो के प्रति ज्यादा गंभीर नही रहेंगे। लेकिन किसी पुराने जानकार से लाभदायक सौदे हाथ लगेंगे। कार्य क्षेत्र पर आज आपको परीक्षा के दौर से भी गुजरना पड़ेगा लोग आपको परखने के लिये विभिन्न प्रयोग कर सकते है। प्रलोभन में ना पढ़ें अन्यथा धन के साथ सम्मान हानि भी होगी। आर्थिक स्थिति मजबूत रहने से धन की ज्यादा परवाह नही करेंगे। आज आपका ध्यान नए संबंध विकसित करने पर भी रहेगा विपरीत लिंगीय से जल्दी आकर्षित हो जाएंगे। परिवार के सदस्य आपसे मन ही मन द्वेष रखेंगे परन्तु निजस्वार्थ के कारण उजागर नही होने देंगे।

मीन🐳 (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)

आज के दिन आप को अपने सभी कार्यो से संतोष रहेगा लेकिन अन्य लोगो की कार्य प्रणाली से असंतुष्ट रहेंगे। व्यवसायीजन एवं नौकरी वाले लोग आसानी से सफलता मिलने पर अतिआत्मविश्वास की भावना से ग्रस्त रहेंगे आज आपकी सफलता के पीछे किसी अन्य का हाथ रहेगा जिसको आप अनदेखा करेंगे। सहकर्मियों का प्रति हीं भावना रहेगी आपको भी इसका प्रतिउत्तर इसी प्रकार किसी ना किसी रूप में मिलेगा। परिजन आपकी हाँ में हाँ तो मिलाएंगे परन्तु आपके विचारों के एकदम विपरीत चलेंगे। धन को लेकर आज निश्चिन्त रहेंगे व्यवसाय वृद्धि एवं धन की आमद एकसाथ होगी। गृहस्थ में नोकझोंक लगी रहेगी सेहत आज उत्तम रहेगी।

〰️〰️〰️〰️〰️🙏राधे राधे🙏

सोलह संस्कार पशुतुल्य जीवन से मनुष्य और मनुष्य से देवता बनाने की अद्वतीय और अद्भुत वैज्ञानिक विधि है। लेकिन तेजी से विलुप्त हो रही है यह अद्वतीय अद्भुत वैज्ञानिक परम्परा।सनातन धर्म के सोलह संस्कार लुप्त हो ता जा रहा है चिंताजनक स्थिति अपनी धर्म संस्कार लुप्त एवं पतन हो ते जा रहे हैं सभी को अनिवार्य रूप से विचार मनन योग्य है अखिल विश्व सनातन धर्म एवं धर्म संघ अध्यक्ष एवं राष्ट्रीय हिन्दू महासभा भारत के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष धर्माचार्य प्रकोष्ठ भागवत प्रवक्ता श्री कृष्णाश्रय पोराणिक शाखा धुलेट जिला धार

हिन्दू धर्म में सोलह संस्कारों (षोडश संस्कार) का उल्लेख किया जाता है जो मानव को उसके गर्भाधान संस्कार से लेकर अन्त्येष्टि क्रिया तक किए जाते हैं। इनमें से विवाह, यज्ञोपवीत इत्यादि संस्कार बड़े धूमधाम से मनाये जाते हैं। वर्तमान समय में सनातन धर्म या हिन्दू धर्म के अनुयायी में गर्भाधन से मृत्यु तक 16 संस्कार होते हैं।

प्राचीन काल में प्रत्येक कार्य संस्कार से आरम्भ होता था। उस समय संस्कारों की संख्या भी लगभग चालीस थी। जैसे-जैसे समय बदलता गया तथा व्यस्तता बढती गई तो कुछ संस्कार स्वत: विलुप्त हो गये।

इस प्रकार समयानुसार संशोधित होकर संस्कारों की संख्या निर्धारित होती गई। गौतम स्मृति में चालीस प्रकार के संस्कारों का उल्लेख है।

महर्षि अंगिरा ने इनका अंतर्भाव पच्चीस संस्कारों में किया। व्यास स्मृति में सोलह संस्कारों का वर्णन हुआ है। हमारे धर्मशास्त्रों में भी मुख्य रूप से सोलह संस्कारों की व्याख्या की गई है।

इनमें पहला गर्भाधान संस्कार और मृत्यु के उपरांत अंत्येष्टि अंतिम संस्कार है। गर्भाधान के बाद पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण ये सभी संस्कार नवजात का दैवी जगत् से संबंध स्थापना के लिये किये जाते हैं।

नामकरण के बाद चूड़ाकर्म और यज्ञोपवीत संस्कार होता है। इसके बाद विवाह संस्कार होता है। यह गृहस्थ जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार है। हिन्दू धर्म में स्त्री और पुरुष दोनों के लिये यह सबसे बडा संस्कार है, जो जन्म-जन्मान्तर का होता है

विभिन्न धर्मग्रंथों में संस्कारों के क्रम में थोडा-बहुत अन्तर है, लेकिन प्रचलित संस्कारों के क्रम में गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म, विद्यारंभ, कर्णवेध, यज्ञोपवीत, वेदारम्भ, केशान्त, समावर्तन, विवाह तथा अन्त्येष्टि ही मान्य है।

गर्भाधान से विद्यारंभ तक के संस्कारों को गर्भ संस्कार भी कहते हैं। इनमें पहले तीन (गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन) को अन्तर्गर्भ संस्कार तथा इसके बाद के छह संस्कारों को बहिर्गर्भ संस्कार कहते हैं। गर्भ संस्कार को दोष मार्जन अथवा शोधक संस्कार भी कहा जाता है।

दोष मार्जन संस्कार का तात्पर्य यह है कि शिशु के पूर्व जन्मों से आये धर्म एवं कर्म से सम्बन्धित दोषों तथा गर्भ में आई विकृतियों के मार्जन के लिये संस्कार किये जाते हैं। बाद वाले छह संस्कारों को गुणाधान संस्कार कहा जाता है।

पहला संस्कार : गर्भाधान संस्कार : –
हमारे शास्त्रों में मान्य सोलह संस्कारों में गर्भाधान पहला है। गृहस्थ जीवन में प्रवेश के उपरान्त प्रथम क‌र्त्तव्य के रूप में इस संस्कार को मान्यता दी गई है। गार्हस्थ्य जीवन का प्रमुख उद्देश्य श्रेष्ठ सन्तानोत्पत्ति है। उत्तम संतति की इच्छा रखनेवाले माता-पिता को गर्भाधान से पूर्व अपने तन और मन की पवित्रता के लिये यह संस्कार करना चाहिए। वैदिक काल में यह संस्कार अति महत्वपूर्ण समझा जाता था।

दूसरा संस्कार : पुंसवन संस्कार: –
गर्भस्थ शिशु के मानसिक विकास की दृष्टि से यह संस्कार उपयोगी समझा जाता है। गर्भाधान के दूसरे या तीसरे महीने में इस संस्कार को करने का विधान है। हमारे मनीषियों ने सन्तानोत्कर्ष के उद्देश्य से किये जाने वाले इस संस्कार को अनिवार्य माना है। गर्भस्थ शिशु से सम्बन्धित इस संस्कार को शुभ नक्षत्र में सम्पन्न किया जाता है। पुंसवन संस्कार का प्रयोजन स्वस्थ एवं उत्तम संतति को जन्म देना है। विशेष तिथि एवं ग्रहों की गणना के आधार पर ही गर्भधान करना उचित माना गया है।

तीसरा संस्कार : सीमन्तोन्नयन संस्कार : –
सीमन्तोन्नयन को सीमन्तकरण अथवा सीमन्त संस्कार भी कहते हैं। सीमन्तोन्नयन का अभिप्राय है सौभाग्य संपन्न होना। गर्भपात रोकने के साथ-साथ गर्भस्थ शिशु एवं उसकी माता की रक्षा करना भी इस संस्कार का मुख्य उद्देश्य है। इस संस्कार के माध्यम से गर्भिणी स्त्री का मन प्रसन्न रखने के लिये सौभाग्यवती स्त्रियां गर्भवती की मांग भरती हैं। यह संस्कार गर्भ धारण के छठे अथवा आठवें महीने में होता है।

चतुर्थ संस्कार : जातकर्म संस्कार : –
नवजात शिशु के नालच्छेदन से पूर्व इस संस्कार को करने का विधान है। इस दैवी जगत् से प्रत्यक्ष सम्पर्क में आनेवाले बालक को मेधा, बल एवं दीर्घायु के लिये स्वर्ण खण्ड से मधु एवं घृत वैदिक मंत्रों के उच्चारण के साथ चटाया जाता है। यह संस्कार विशेष मन्त्रों एवं विधि से किया जाता है। दो बूंद घी तथा छह बूंद शहद का सम्मिश्रण अभिमंत्रित कर चटाने के बाद पिता यज्ञ करता है तथा नौ मन्त्रों का विशेष रूप से उच्चारण के बाद बालक के बुद्धिमान, बलवान, स्वस्थ एवं दीर्घजीवी होने की प्रार्थना करता है। इसके बाद माता बालक को स्तनपान कराती है।

पंचम संस्कार : नामकरण संस्कार : –
एचएचजन्म के ग्यारहवें दिन यह संस्कार होता है। हमारे धर्माचार्यो ने जन्म के दस दिन

तक अशौच (सूतक) माना है। इसलिये यह संस्कार ग्यारहवें दिन करने का विधान है। महर्षि याज्ञवल्क्य का भी यही मत है, लेकिन अनेक कर्मकाण्डी विद्वान इस संस्कार को शुभ नक्षत्र अथवा शुभ दिन में करना उचित मानते हैं।

नामकरण संस्कार का सनातन धर्म में अधिक महत्व है। हमारे मनीषियों ने नाम का प्रभाव इसलिये भी अधिक बताया है क्योंकि यह व्यक्तित्व के विकास में सहायक होता है। तभी तो यह कहा गया है राम से बड़ा राम का नाम हमारे धर्म विज्ञानियों ने बहुत शोध कर नामकरण संस्कार का आविष्कार किया। ज्योतिष विज्ञान तो नाम के आधार पर ही भविष्य की रूपरेखा तैयार करता है।

छठवाँ संस्कार : निष्क्रमण संस्कार: –
दैवी जगत् से शिशु की प्रगाढ़ता बढ़े तथा ब्रह्माजी की सृष्टि से वह अच्छी तरह परिचित होकर दीर्घकाल तक धर्म और मर्यादा की रक्षा करते हुए इस लोक का भोग करे यही इस संस्कार का मुख्य उद्दे निष्क्रमण का अभिप्राय है बाहर निकलना। इस संस्कार में शिशु को सूर्य तथा चन्द्रमा की ज्योति दिखाने का विधान है।

भगवान भास्कर के तेज तथा चन्द्रमा की शीतलता से शिशु को अवगत कराना ही इसका उद्देश्य है। इसके पीछे मनीषियों की शिशु को तेजस्वी तथा विनम्र बनाने की परिकल्पना होगी। उस दिन देवी-देवताओं के दर्शन तथा उनसे शिशु के दीर्घ एवं यशस्वी जीवन के लिये आशीर्वाद ग्रहण किया जाता है। जन्म के चौथे महीने इस संस्कार को करने का विधान है।

तीन माह तक शिशु का शरीर बाहरी वातावरण यथा तेज धूप, तेज हवा आदि के अनुकूल नहीं होता है इसलिये प्राय: तीन मास तक उसे बहुत सावधानी से घर में रखना चाहिए। इसके बाद धीरे-धीरे उसे बाहरी वातावरण के संपर्क में आने देना चाहिए। इस संस्कार का तात्पर्य यही है कि शिशु समाज के सम्पर्क में आकर सामाजिक परिस्थितियों से अवगत हो।

सातवां संस्कार, : अन्नप्राशन संस्कार : –
इस संस्कार का उद्देश्य शिशु के शारीरिक व मानसिक विकास पर ध्यान केन्द्रित करना है। अन्नप्राशन का स्पष्ट अर्थ है कि शिशु जो अब तक पेय पदार्थो विशेषकर दूध पर आधारित था अब अन्न जिसे शास्त्रों में प्राण कहा गया है उसको ग्रहण कर शारीरिक व मानसिक रूप से अपने को बलवान व प्रबुद्ध बनाए। तन और मन को सुदृढ़ बनाने में अन्न का सर्वाधिक योगदान है। शुद्ध, सात्विक एवं पौष्टिक आहार से ही तन स्वस्थ रहता है और स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन का निवास होता है। आहार शुद्ध होने पर ही अन्त:करण शुद्ध होता है तथा मन, बुद्धि, आत्मा सबका पोषण होता है। इसलिये इस संस्कार का हमारे जीवन में विशेष महत्व है।

हमारे धर्माचार्यो ने अन्नप्राशन के लिये जन्म से छठे महीने को उपयुक्त माना है। छठे मास में शुभ नक्षत्र एवं शुभ दिन देखकर यह संस्कार करना चाहिए। खीर और मिठाई से शिशु के अन्नग्रहण को शुभ माना गया है। अमृत: क्षीरभोजनम् हमारे शास्त्रों में खीर को अमृत के समान उत्तम माना गया है।

आठवां संस्कार : चूड़ाकर्म संस्कार : –
चूड़ाकर्म को मुंडन संस्कार भी कहा जाता है। हमारे आचार्यो ने बालक के पहले, तीसरे या पांचवें वर्ष में इस संस्कार को करने का विधान बताया है। इस संस्कार के पीछे शुाचिता और बौद्धिक विकास की परिकल्पना हमारे मनीषियों के मन में होगी।

मुंडन संस्कार का अभिप्राय है कि जन्म के समय उत्पन्न अपवित्र बालों को हटाकर बालक को प्रखर बनाना है। नौ माह तक गर्भ में रहने के कारण कई दूषित किटाणु उसके बालों में रहते हैं। मुंडन संस्कार से इन दोषों का सफाया होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस संस्कार को शुभ मुहूर्त में करने का विधान है। वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ यह संस्कार सम्पन्न होता है।

नोवाँ संस्कार : विद्यारंभ संस्कार : –
विद्यारम्भ संस्कार के क्रम के बारे में हमारे आचार्यो में मतभिन्नता है। कुछ आचार्यो का मत है कि अन्नप्राशन के बाद विद्यारम्भ संस्कार होना चाहिये तो कुछ चूड़ाकर्म के बाद इस संस्कार को उपयुक्त मानते हैं। मेरी राय में अन्नप्राशन के बाद ही शिशु बोलना शुरू करता है। इसलिये अन्नप्राशन के बाद ही विद्यारम्भ संस्कार उपयुक्त लगता है।

विद्यारम्भ का अभिप्राय बालक को शिक्षा के प्रारम्भिक स्तर से परिचित कराना है। प्राचीन काल में जब गुरुकुल की परम्परा थी तो बालक को वेदाध्ययन के लिये भेजने से पहले घर में अक्षर बोध कराया जाता था। माँ-बाप तथा गुरुजन पहले उसे मौखिक रूप से श्लोक, पौराणिक कथायें आदि का अभ्यास करा दिया करते थे ताकि गुरुकुल में कठिनाई न हो। हमारा शास्त्र विद्यानुरागी है।

शास्त्र की उक्ति है सा विद्या या विमुक्तये अर्थात् विद्या वही है जो मुक्ति दिला सके। विद्या अथवा ज्ञान ही मनुष्य की आत्मिक उन्नति का साधन है। शुभ मुहूर्त में ही विद्यारम्भ संस्कार करना चाहिये।

दसवाँ संस्कार : कर्णवेध संस्कार : –
हमारे मनीषियों ने सभी संस्कारों को वैज्ञानिक कसौटी पर कसने के बाद ही प्रारम्भ किया है। कर्णवेध संस्कार का आधार बिल्कुल वैज्ञानिक है। बालक की शारीरिक व्याधि से रक्षा ही इस संस्कार का मूल उद्देश्य है। प्रकृति प्रदत्त इस शरीर के सारे अंग महत्वपूर्ण हैं। कान हमारे श्रवण द्वार हैं। कर्ण वेधन से व्याधियां दूर होती हैं तथा श्रवण शक्ति भी बढ़ती है। इसके साथ ही कानों में आभूषण हमारे सौन्दर्य बोध का परिचायक भी है।

यज्ञोपवीत के पूर्व इस संस्कार को करने का विधान है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुक्ल पक्ष के शुभ मुहूर्त में इस संस्कार का सम्पादन श्रेयस्कर है।

ग्यारहवाँ संस्कार : यज्ञोपवीत संस्कार : –
यज्ञोपवीत अथवा उपनयन बौद्धिक विकास के लिये सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार है। धार्मिक और आधात्मिक उन्नति का इस संस्कार में पूर्णरूपेण समावेश है। हमारे मनीषियों ने इस संस्कार के माध्यम से वेदमाता गायत्री को आत्मसात करने का प्रावधान दिया है। आधुनिक युग में भी गायत्री मंत्र पर विशेष शोध हो चुका है। गायत्री सर्वाधिक शक्तिशाली मंत्र है।

यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं अर्थात् यज्ञोपवीत जिसे जनेऊ भी कहा जाता है अत्यन्त पवित्र है। प्रजापति ने स्वाभाविक रूप से इसका निर्माण किया है। यह आयु को बढ़ानेवाला, बल और तेज प्रदान करनेवाला है। इस संस्कार के बारे में हमारे धर्मशास्त्रों में विशेष उल्लेख है। यज्ञोपवीत धारण का वैज्ञानिक महत्व भी है। प्राचीन काल में जब गुरुकुल की परम्परा थी उस समय प्राय: आठ वर्ष की उम्र में यज्ञोपवीत संस्कार सम्पन्न हो जाता था।

इसके बाद बालक विशेष अध्ययन के लिये गुरुकुल जाता था। यज्ञोपवीत से ही बालक को ब्रह्मचर्य की दीक्षा दी जाती थी जिसका पालन गृहस्थाश्रम में आने से पूर्व तक किया जाता था। इस संस्कार का उद्देश्य संयमित जीवन के साथ आत्मिक विकास में रत रहने के लिये बालक को प्रेरित करना है।

बारहवाँ संस्कार : वेदारंभ संस्कार : –
ज्ञानार्जन से सम्बन्धित है यह संस्कार। वेद का अर्थ होता है ज्ञान और वेदारम्भ के माध्यम से बालक अब ज्ञान को अपने अन्दर समाविष्ट करना शुरू करे यही अभिप्राय है इस संस्कार का।

शास्त्रों में ज्ञान से बढ़कर दूसरा कोई प्रकाश नहीं समझा गया है। स्पष्ट है कि प्राचीन काल में यह संस्कार मनुष्य के जीवन में विशेष महत्व रखता था। यज्ञोपवीत के बाद बालकों को वेदों का अध्ययन एवं विशिष्ट ज्ञान से परिचित होने के लिये योग्य आचार्यो के पास गुरुकुलों में भेजा जाता था। वेदारम्भ से पहले आचार्य अपने शिष्यों को ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने एवं संयमित जीवन जीने की प्रतिज्ञा कराते थे तथा उसकी परीक्षा लेने के बाद ही वेदाध्ययन कराते थे।

असंयमित जीवन जीने वाले वेदाध्ययन के अधिकारी नहीं माने जाते थे। हमारे चारों वेद ज्ञान के अक्षुण्ण भंडार हैं। इस संस्कार को जन्म से 5वे या 7 वे वर्ष में किया जाता है। अधिक प्रामाणिक 5 वाँ वर्ष माना जाता है। यह संस्कार प्रायः वसन्त पंचमी को किया जाता है।

तेरहवाँ संस्कार : केशांत संस्कार : –
गुरुकुल में वेदाध्ययन पूर्ण कर लेने पर आचार्य के समक्ष यह संस्कार सम्पन्न किया जाता था। वस्तुत: यह संस्कार गुरुकुल से विदाई लेने तथा गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने का उपक्रम है। वेद-पुराणों एवं विभिन्न विषयों में पारंगत होने के बाद ब्रह्मचारी के समावर्तन संस्कार के पूर्व बालों की सफाई की जाती थी तथा उसे स्नान कराकर स्नातक की उपाधि दी जाती थी। केशान्त संस्कार शुभ मुहूर्त में किया जाता था।

चौदहवाँ संस्कार : समावर्तन संस्कार : –
गुरुकुल से विदाई लेने से पूर्व शिष्य का समावर्तन संस्कार होता था। इस संस्कार से पूर्व ब्रह्मचारी का केशान्त संस्कार होता था और फिर उसे स्नान कराया जाता था। यह स्नान समावर्तन संस्कार के तहत होता था। इसमें सुगन्धित पदार्थो एवं औषधादि युक्त जल से भरे हुए वेदी के उत्तर भाग में आठ घड़ों के जल से स्नान करने का विधान है।

यह स्नान विशेष मन्त्रोच्चारण के साथ होता था। इसके बाद ब्रह्मचारी मेखला व दण्ड को छोड़ देता था जिसे यज्ञोपवीत के समय धारण कराया जाता था। इस संस्कार के बाद उसे विद्या स्नातक की उपाधि आचार्य देते थे। इस उपाधि से वह सगर्व गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने का अधिकारी समझा जाता था। सुन्दर वस्त्र व आभूषण धारण करता था तथा आचार्यो एवं गुरुजनों से आशीर्वाद ग्रहण कर अपने घर के लिये विदा होता था।

पंद्रहवाँ संस्कार : विवाह संस्कार : –
प्राचीन काल से ही स्त्री और पुरुष दोनों के लिये यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार है। यज्ञोपवीत से समावर्तन संस्कार तक ब्रह्मचर्य व्रत के पालन का हमारे शास्त्रों में विधान है। वेदाध्ययन के बाद जब युवक में सामाजिक परम्परा निर्वाह करने की क्षमता व परिपक्वता आ जाती थी तो उसे गृर्हस्थ्य धर्म में प्रवेश कराया जाता था। लगभग पच्चीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य का व्रत का पालन करने के बाद युवक परिणय सूत्र में बंधता था।

हमारे शास्त्रों में आठ प्रकार के विवाहों का उल्लेख है- ब्राह्म, दैव, आर्ष, प्रजापत्य, आसुर, गन्धर्व, राक्षस एवं पैशाच। वैदिक काल में ये सभी प्रथाएं प्रचलित थीं। समय के अनुसार इनका स्वरूप बदलता गया। वैदिक काल से पूर्व जब हमारा समाज संगठित नहीं था तो उस समय उच्छृंखल यौनाचार था। हमारे मनीषियों ने इस उच्छृंखलता को समाप्त करने के लिये विवाह संस्कार की स्थापना करके समाज को संगठित एवं नियमबद्ध करने का प्रयास किया। आज उन्हीं के प्रयासों का परिणाम है कि हमारा समाज सभ्य और सुसंस्कृत है।

अंतिम और सोलहवाँ संस्कार : अन्त्येष्टि संस्कार : –
अन्त्येष्टि को अंतिम अथवा अग्नि परिग्रह संस्कार भी कहा जाता है। आत्मा में अग्नि का आधान करना ही अग्नि परिग्रह है। धर्म शास्त्रों की मान्यता है कि मृत शरीर की विधिवत् क्रिया करने से जीव की अतृप्त वासनायें शान्त हो जाती हैं। हमारे शास्त्रों में बहुत ही सहज ढंग से इहलोक और परलोक की परिकल्पना की गयी है।

जब तक जीव शरीर धारण कर इहलोक में निवास करता है तो वह विभिन्न कर्मो से बंधा रहता है। प्राण छूटने पर वह इस लोक को छोड़ देता है। उसके बाद की परिकल्पना में विभिन्न लोकों के अलावा मोक्ष या निर्वाण है।

मनुष्य अपने कर्मो के अनुसार फल भोगता है। इसी परिकल्पना के तहत मृत देह की विधिवत क्रिया होती है। सनातन धर्म एवं धर्म संघ अध्यक्ष भागवत कथा कार धुले ट जिला धार हर-हर महादेव सनातन धर्म की

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