जिसे गांव समझता था पागल उसी ने आस-पास के 15 गांवों के 500 लोगों को दे रहा रोजगार, पहाड़ के युवाओं में आ रही अपने रोजगार के प्रति जागरूकता

जिसे पूरा गांव समझता था पागल ,लोंगों की ना सुनकर स्टार्ट किया बिज़नेस,500 लोगों को दिया रोजगार..…

देहरादून के हरीओम नौटियाल से, जिसे कभी गांववाले पागल समझते थे आज वही आस-पास के 15 गांवों के 500 लोगों को रोजगार दे रहा है।

हरीओम ने शहर में IT की नौकरी छोड़कर गांव में डेरी बिज़नेस शुरू किया था और आज वह इस काम से करोड़ों का लाभ कमा रहे हैं। हरीओम कहते हैं कि वह शहरों की सीमित जीवन से मैं खुश नहीं थे और गांव में मेरे पास सबकुछ था। साथ ही उनके माता-पिता चाहते थे कि ज्यादातर लोगों की तरह वह जिम्मेदारियों के बोझ तले बस नौकरी न करते रह जाए।

हरीओम स्वयं भी अपना कुछ काम करना चाहते थे इसलिए साल 2013 में जब उन्होंने वापस गांव लौटने का फैसला किया। लेकिन यह राह आसान नहीं थी एक तो उन्हें खेती के बारे में कोई जानकारी नहीं थी ऊपर से गांववाले भी ताने दिया करते थे। ऐसे में पशुओं के प्रति उनके प्यार स्नेह ने उन्हें आगे बढ़ने की राह दिखाई। उन्होंने अपने घर की दो गायों और माँ की मदद से काम करना शुरू किया। करीबन 3 साल तक काम सिखने के बाद उन्होंने इसे आगे बढ़ाने का निर्णय किया।

उन्होंने कुछ सब्सिडी वाले लोन लिए और डेरी फार्म को और बड़ा करने की तैयारी  कर दी। उन्होंने प्रोसेसिंग प्लांट भी लगाया ताकि खुद ही दूध से बेहतरीन उप्ताद तैयार कर सके। सरकारी योजनाओं का फायदा उठाने के लिए उन्होंने अलग-अलग प्रोजेक्ट में खुद को रजिस्टर किया और जिसके जरिए उन्हें अपने ऑर्गनिक प्रोडक्ट्स बेचने के लिए प्लेटफार्म मिला। धीरे-धीरे मेहनत का फल मिलने लगा और काम में मुनाफा होने लगा।

हरीओम के लिए यह एक स्टार्टप था, इसके बाद उन्होंने अपने साथ गांववालों को भी बिज़नेस में सम्मलित करना शुरू किया। कोविड के समय उन्होंने अपनी डेरी ‘धन्य धेनु’ के प्रोडक्ट की होम डिलीवरी शुरू कर दी। गांववालों के साथ और तकनीक की मदद से उन्होंने गांव में बनने वाले हर एक प्रोडक्ट के लिए मार्केट तैयार किया। आज वह दूध, दही, आइसक्रीम, मिठाई, आचार, पापड़ जैस प्रोडक्ट आस-पास के शहरों में बेचकर से न सिर्फ करोड़ों का लाभ कमा रहे हैं। अपितु हेल्प संकुल के माध्यम से महिलाओं और युवाओं को आगे बढ़ने में सहयोग भी कर रहे हैं।

हरीओम मानते हैं कि शहर में नौकरी ढूढ़ने से अच्छा  है गांव में रहकर रोजगार करना और रोजगार देने वाला बनना । 😊 (साभार गोरव) 

दिल्ली से नौकरी छोड़ कर रवि रावत जी ने देहरादून मे e rickshaw लेकर सुरू किया अपना स्वरोजगार बहुत-बहुत बधाई रवि भाई