ज्योतिष पीठ में स्वर्ण ज्योति महामहोत्सव और पैनखंडा के सेलंग गांव में पौराणिक विश्वकर्मा जागर मेला

 रिपोर्ट – राकेश डोभाल जोशीमठ।
            जोशीमठ।ज्योतिर्मठ में ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपनान्द सरस्वती जी महाराज के ज्योतिष पीठ पर विराजमान 50 वर्ष होने के पूर्व में ज्योतिष पीठ में ज्योतिर्मठ स्वर्ण ज्योति महामहोत्सव मनाया जा रहा है जिसका मुख्य उद्देश्य ज्योतिर्मठ की ज्योति को पूरे देश सहित विश्व मे ले जाना है, यह कार्यक्रम पूरे देश मे 2 सालों तक चलेगा, जिसके लिए उनके शिष्य स्वामी 1008 अभिमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज जोशीमठ पहुँचे है, यहाँ पर ज्योतिर्मठ के 2501 वर्ष होने के साथ ही ज्योतिर्मठ में ज्योतिर्मठ स्वर्णज्योति महामहोत्सव का महा पर्व मनाया जा रहा है, साथ ही पूरे देश के राज्यों के राजधानी में दो साल तक लगातार कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे,यह देश के 50 जगह मनाया जा रहा है,जो हर 15 दिन में इसका कार्यक्रम किये जायेगे । जिसका शुभारम्भ शुक्रवार प्रातः से ही काशी के विद्वानों द्वारा वेदोक्त मंत्रोचार के साथ चारों वेदों के परायण पाठ कर किया गया। वंही काशी के तर्ज पर विद्वानों द्वारा उत्तराखंड के प्रथम प्रयाग विष्णु प्रयाग पर अलकनन्दा नदी के तट पर पूजा अर्चना के बाद मां गंगा मैया की भव्य आरती की गई। शनिवार को इस अवसर
शनिवार को ज्योतिर्मठ जोशीमठ में शिक्षा स्वास्थ्य एवं समाज में उत्कृष्ट कार्य करने वाले शिक्षक, छात्र छात्राओं एवं समाजसेवी लोगों का माल्यार्पण कर उन्हें सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया गया।

भगवान विश्वकर्मा की स्मृति में पौराणिक विश्वकर्मा जागर मेले की शुरुआत।

जोशीमठ। पैनखंडा के सेलंग गांव में 27 दिसंबर से 03 दिवसीय विश्वकर्मा मेला 61 वर्षों के पश्चात आयोजित किया जा रहा है। मेले में सभी देवी-देवता विश्वकर्मा से भेंट करते हैं और लगातार 36 घंटों तक अखंड जागर गायन होता है। जागर गायन में मल्ली टंगणी के जागर गायन के विषेशज्ञ ही पैनखंडा में इस मेले हेतु बुलाये जाते है। मेले से पूर्व मंदिर के जिस स्थान पर लगातर तीन दिनों तक भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है उस स्थान पर भगवान विष्णु, नव ग्रहों और अनेक देवी देवताओं के चित्र दीवारों पर उकेरे जाते है। उसके पश्चात दीवारों पर उकेरे गए चित्रों पर शक्ति चढ़ाई जाती है। उसके बाद भगवान विश्वकर्मा जागर वाले स्थान पर स्थापित किये जाते हैं उसके बाद प्रथम दिन जागरियों का स्वागत पूरे रीति नीति और धार्मिक परंपरा अनुसार किया जाता है। जागर गायन से पूर्व पंचपूजा गांव के कुल पुरोहित द्वारा सम्पन्न की जाती है इसके साथ कि औपचारिक रूप से मेले का शुभारभ होता है। मेले में द्वितीय दिन दूसरे गांव से आने वाले सभी देवी देवताओं का स्वागत होता है। तथा अंतिम और तृतीय दिवस पर कंस वध, विश्वकर्मा के पस्वा का भोग में खड्ग उतारना और अंत मे भगवान कृष्ण अपने वाहन गरूड़ (गरूड़-बाव) का आना दर्शनीय होता है। मान्यता है कि जो इन गरूड़-बाव को पकड़ता है और घर में इनकी पूजा करता है उनकी गोद भरती है अर्थात निःसंतानों को संतान की प्राप्ति होती है। सम्पूर्ण मेले का कार्यक्रम पूर्व में लिखी गयी लिखित बही के आधार पर होता है। दिन के चार पहरों में देव पस्वाओं का अवतरण और उनका खड्ग लेना, उनका ढोल दमाऊ की ताल पर नृत्य करना अपने आप मे दर्शनीय होता है।