उत्तराखण्ड के स्वामी रामकृष्ण परमहंस थे कालीमठ के व्रती बाबा

उत्तराखण्ड के स्वामी रामकृष्ण परमहंस थे कालीमठ के : व्रती बाबा

प्रत्येक गांव अथवा कस्बे में कभी कभी ऐसे व्यक्ति होते हैं, जिनके सुकृत्यों के कारण चिरवियोग के बाद भी लोग उनको लम्बे समय तक याद किया करते हैं। उनकी अमिट छाप जनमानस के पटल पर अंकित हो जाती है। ऐसी ही एक आध्यात्मिक विभूति थे- व्रती बाबा।
उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग जिले में सरस्वती नदी के सुरम्य तट पर कालीमठ नाम का छोटा-सा बाजार है, जो माता काली का पौराणिक सिद्धपीठ है। वहाँ पर अनेक मन्दिरों के अतिरिक्त अब महाकाली जी का एक अद्भुत मन्दिर है। उसी बाजार के एक कोने में भैरवनाथ मन्दिर के नीचे एक पहाड़ी शैली के मकान के छोटे से कक्ष में रहते थे- व्रती बाबा। कालीमठ आने वाले श्रद्धालु विना व्रती बाबा के दर्शन किये नहीं जाते थे। माननीय सतपाल महाराज जी भी जब संसद सदस्य के उम्मीदवार थे, तो बाबा जी के पास गये और कहने लगे- ‘चुनावी दंगल में हूं।” मैं किसी यजमान के शतचण्डी अनुष्ठान में पाठार्थी के रूप में उस समय वहीं पर था। महाराज जी का आश्रम भी वहीं पर है।
20 वीं सदी के प्रथम दशक में भगवान् केदारनाथ व मध्यमहेश्वर की शीतकालीन निवास स्थली ऊखीमठ से सटे गांव में जन्मे श्री माया राम जमलोकी के नाम से जाने जाने वाले व्यक्ति माया- मोह से दूर होकर अपनी युवावस्था में ही व्रती बाबा बन गये थे। बताते हैं कि श्री जमलोकी जी की इकलौती पुत्री बहुत चिकित्सा करने पर भी उनको छोड़कर चल बसी। संसार की सारी ममताएं पुत्री की ममता के आगे बौनी हो गयीं। वे जगदम्बा की ममता पाने के लिए अपना घरबार छोड़कर अपने नजदीकी सिद्धपीठ कालीमठ से 4-5 किमी दूर पर्वत की चोटी पर स्थित कालीशिला नामक शक्तिपीठ पर साधना करने चले गये और उन्होंने चालीस दिनों तक निराहार रहकर माता काली की साधना की। तब से वे हमेशा के लिए माता काली के हो गये और फिर उन्होने कभी अपने घर का मुंह नहीं देखा। बाद में वे कालीमठ आये तो लगभग 50 वर्षों से भी अधिक समय तक वहां से कहीं नहीं गये। 96 वें वर्ष की उम्र में वहीं उन्होंने यह असार संसार त्याग दिया।
आप दिन भर अधिक से अधिक एक दो बार पूरे कालीमठ बाजार की फेरी लगाते थे। जिसको भी वे अभिवादन करते तो उन्हीं के दिये गये छायाचित्र की तरह उसके आगे खड़े होकर ‘जय जगदम्बे’ कहते। इसीप्रकार जो कोई उनको भी अभिवादन करता तो भी यही मां की जय उच्चरित करते थे। स्थानीय होने के कारण लोग उनको भाई, चाचा, ताऊ, दादा आदि रिश्ते से पुकारते थे। कोई भक्त उनसे माता काली की पूजा कराना चाहता था, तो वे तब भी मन्दिर में जाते थे। माता काली के आगे देव्यपराधक्षमापन्न स्तोत्र को गाते समय वे अत्यन्त भावविभोर हो जाते थे।
बाबा जी का नित्य एक ही पहनावा होता था- धोती, कुर्ता, खड़ाऊँ और गांधी आश्रम की हाफ जैकेट। वे प्रातःकाल 4 बजे उठते और माता महाकाली मन्दिर के आगे अपने ही चढ़ाये लगभग 1 कुन्तल के घंटे को बजाते, जो कालीमठ क्षेत्र के लोगों को जगाने में अलार्म का काम करता था। यह घण्टा अभी भी लगातार माता की सेवाएं दे रहा है। मैंने भी इस घण्टे से प्रेरित होकर अपने गांव के मन्दिर में 51 किलो का घण्टा चढ़वाया। जो भी श्रद्धालु बाबा जी के पास आता तो वे उसको पिठाईं(रोली), अखण्ड धूनी की बभूत, माता काली के मन्दिर में चढ़े फूल और लैंची दाना अवश्य देते थे। देश विदेश के माता काली के भक्तों को लिफाफे में वे यही प्रसाद भेजते थे। डाकवान का थैला गुप्तकाशी से आते समय बाबा जी के पत्रों से भरा रहता था। बाजार के बच्चे कुछ मीठा पाने की इच्छा से उनके निकट जाते तो उनको भी लैंची दाने सदैव मिल जाते।
बाबा जी संस्कृत व ज्यौतिष के प्रकाण्ड विद्वान् थे। विद्यापीठ संस्कृत विद्यालय की स्थापना में भी उनका योगदान था। एक बार कालीमठ में भी उन्होंने कन्याओं के लिए एक कुमारी विद्यालय खोला था। साधुओं के लिए सदाव्रत में वे कच्चा अन्न देते थे।
ऊखीमठ ब्लॉक के कई गांवों के लोग प्रायः जन्मपत्रियां उन्हीं से बनवाते थे। लगभग 1970 से बाद के पंचांग मैंने यह कहकर उनसे ले लिये कि दादा जी, आप वृद्ध हो गये हैं, पंचांग मेरे काम आयेंगे। मैं ग्रहों पर अनुसंधान करूंगा कि कैसे किसी आदमी के जन्म समय का जीवन पर प्रभाव पड़ता है, क्योंकि वे जिसकी भी जन्मपत्री बनानी होती, उसका जन्म समय पंचांग में उस दिन के आगे लिख देते थे। कईयों की जन्मपत्रियां बनानी बाकी थीं। लोगों को पता चलने पर कि पंचांग मेरे पास हैं, वे मुझे तंग करने लगे कि फलानी तारीख व समय व्रती बाबा जी ने पंचाग पर लिखी हैं, उसके आधार पर जन्मपत्री बनाओ। मैंने परेशान होकर वो पंचांग उनको वापस कर दिये। मेरा आश्रय स्थल भी कालीमठ में बाबा जी की कुटिया ही थी।
कालीमठ के अवकाश प्राप्त अध्यापक श्री कुंवर सिंह राणा जी वगैरह ने बाबा जी के मणिद्वीप निवास करने पर उनकी एक मूर्ति भी लगवायी थी। बता दें, पूज्य बाबा जी इन्हीं के मकान में रहते थे। श्री राणा जी बहुत सज्जन व्यक्ति व मेरे मित्र हैं, दुकान में मेरे रहते वे अकेले चाय नहीं पी सकते।
श्री मनोज दरमोड़ा जी कहते हैं कि उनके कमरे में एक अखण्ड दीप रहता था, और जब तेज प्रकाश की आवश्यकता होती थी तो उनके मुख से ज्यों ही निकलता था “” जाग जा माई”” तो यह सुनते ही दीपक की लौ में यकायक वृद्धि हो जाती थी और कुटिया अलौकिक प्रकाश से प्रकाशित हो उठती थी ….
बड़े दुःख की बात है कि व्रती बाबा जी की मूर्ति 2013 के जल प्रलय में वह बह गयी है, लेकिन हमारे मन वाली बाबा जी की मूर्ति का प्रकृति भी कुछ नहीं बिगाड़ सकती।
व्रती बाबा जी माता कालीमठ वाली के भक्तों में दीर्घकाल तक अविस्मरणीय रहेंगे। मैं आपको भावभीनी शब्दांजलि अर्पित करता हूं।

बाबा जी की यह तसवीर आज ही कुछ समय पहले उत्तराखण्ड शिक्षा जगत् के देदीप्यमान नक्षत्र, प्रधानाचार्य राजकीय डिग्री कॉलेज रुद्रप्रयाग आदरणीय प्रोफेसर श्री Vishwanath Khali जी की वाल पर दिखी तो श्रद्धेय बाबा जी का स्मरण हो आया। एतदर्थ खाली जी का ब्रेकिंग उत्तराखंड डाट काम न्यूज संस्थान की ओर से आभार ✍️हरीश मैखुरी