राष्ट्र की दृढ़ता से सुरक्षा और देश की जनता के लिए हृदय की गहराईयों से विनम्रता ही प्रधानमंत्री मोदी का अद्वतीय गुण है

मोदी जी के तीन कदम **** केंद्र सरकार और सर्वोच्च न्यायालय के आपसी संबंधों की पृष्ठभूमि में मंत्री रिजिजु , अध्यादेश और पुनर्विचार याचिका संबंधित तीन कदम उठाकर मोदी जी ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि राजनीति के खेल के वो बेजोड़ खिलाड़ी हैं; समय की मांग के अनुसार देश हित में अपने कदम पीछे खींच सकते हैं, सत्य निष्ठा के लिए हिमालय की तरह अडिग, दृढ़ निश्चयी रौद्र रूप और दूसरों के सम्मान की रक्षा के लिए विनम्र, झुकने तक को तत्पर।

*** संदर्भ

सर्वोच्च न्यायालय और अपनी सरकार के बीच किसी भी तरह की कटुता ना उपजने देने की दृष्टि से उन्होंने कानून मंत्री रिजिजू का मंत्रालय बदला, दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल के पर काटने के लिए अध्यादेश लाए और सर्वोच्च न्यायालय की प्रतिष्ठा को अक्षुण्ण रखने के लिए पुनर्विचार याचिका।

*** यह तो 

वस्तुस्थिति है परंतु इसे लेकर पूरे देश में तरह-तरह की भ्रांति, संदेह और असमंजस का माहौल है। उसे देखते हुए सारी घटना पर पुनर्विचार और स्पष्टीकरण आवश्यक है। 

*** पहले अध्यादेश 

प्रश्न है : जब अध्यादेश के माध्यम से मुख्यमंत्री केजरीवाल की निरंकुशता पर लगाम लगाकर लेफ्टिनेंट गवर्नर के अधिकारों की वापसी कर दी गई, तो फिर न्यायालय में पुनर्विचार याचिका क्यों ? यह तो गरदन काट कर बालों में कंघी करने जैसी बात हुई। 

मोदी विरोधियों ने इसे मोदी जी की कमजोरी बताया। कुछ ने कहा मोदी ने पराजय स्वीकार कर ली और विपक्ष ने फैसला सुना दिया कि मोदी डर गए हैं।

यह नैरेटिव समस्या का विकृत रूप है। वास्तविकता के लिए सारी घटना को दो भागों में बांट कर यह समझना पड़ेगा कि अध्यादेश, सर्वोच्च न्यायालय के 11 मई के फैसले से उपजी, उस तानाशाही पर तुरंत शिकंजा कसने के लिए है, जिसके चलते केजरीवाल ने प्रशासन में भय और आतंक का वातावरण पैदा कर तीन वरिष्ठ अधिकारियों को दंडित किया तथा अपने और अन्य मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के सबूतों को मिटाने की कथित कार्यवाही की। उपरोक्त मे पहले अध्यादेश और याचिका मे एक महत्वपूर्ण बात और भी है……….. दोनों ये यह नहीं दर्शाया गया कि….. माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश 11 मई मे ही अंकित है कि केंद्र सरकार चाहेतो इस संबंध मे अलग से कानून बना सकेगी….. यानि सुप्रीम कोर्ट ने यहाँ कार्य पालिका के अधिकारों का अतिलंघन नहीं करते उहे उसका सम्मान करते हुए जजमेंट पारित किया… और अध्यादेश तथा याचिका मे लेख नहीं है कि ये सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार की गई कार्यवाही है.

किंतु अति उत्साही केजरीवाल, उनके मंत्रियों ने ये बात न प्रेस को बताई न. विपक्षी नेताओं को जो उनकी धूर्तता का परिचायक है। 

दूसरा भाग यह स्पष्ट करता है कि केंद्र और केजरीवाल के बीच की इस उठापटक में सर्वोच्च न्यायालय तो कहीं है ही नहीं, फिर उसका अपमान, अवमानना या निरादर कैसे ?

*** याचिका

अनेक कानून पारखिर्यों का मानना है कि 11 मई के फैसले में एक कमी यह रह गई थी कि उसमें उन वरिष्ठ अधिकारियों को कोई संरक्षण नहीं दिया गया जो मुख्यमंत्री या अन्य किसी मंत्री के भ्रष्टाचार की जांच कर रहे थे।

पुनर्विचार याचिका के माध्यम से केंद्र ने सर्वोच्च न्यायालय से उपरोक्त कमी को ही दूर करने का ही अनुरोध किया है। 

हां, अगर यह अनुरोध ठुकरा जाता है, जैसा केजरीवाल दावा कर रहे हैं, तो केंद्र के पास और भी कई विकल्प हैं।

*** मंत्री 

रिजिजू का मंत्रालय बदलकर मोदी जी ने एक तीर से कई चमगादड़ मारे थे। देश को अराजकता की तरफ जाने से रोका, विदेशी विरोधियों के मंसूबे ध्वस्त किए, विपक्ष के सपने तोड़े और सर्वोच्च न्यायालय की तरफ शांति की प्रतीक ओलीव लीफ बढ़ाई थी।

*** विनम्रता

स्वभाव में विनम्रता और व्यवहार में लचीलेपन के कारण मोदी जी आज दुनिया के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता हैं। यह लचीलापन ना अमरीका के राष्ट्रपति बाइडेन में है,ना रूस के पुतिन में और ना ही युक्रेन के जेलेंस्की में, जो दूसरे के दिये से अपने घर को फूकने में लगे हैं। (साभार)