श्री कृष्ण जन्म की कथा भगवान श्रीकृष्ण को क्यों आना पड़ा धरा धाम पर? जब लाल बहादुर शास्त्री ने लाहोर पर आक्रमण का आदेश दिया

Story of Shri Krishna’s birth Why did Lord Shri Krishna have to come to Dhara Dham?

 

When Lal Bahadur Shastri ordered an attack on Lahore

✍️श्री कृष्ण जन्म की कथा भगवान श्रीकृष्ण को क्यों आना पड़ा धरा धाम पर?

✍️जब लाल बहादुर शास्त्री ने लाहोर पर आक्रमण का आदेश दिया

घास फूस खाने वाले हिंदू में क्या औकात है जो हमारा मुकाबला करेंगें, वह भी शास्त्री, वह बहुत कमजोर प्रधानमंत्री है – जुल्फिकार अली भुट्टो।

राष्ट्रपति अयूब खान ने पूछा क्या भारत अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार करके हमला कर सकता है?
सारे कमांडर ठहाके लगाने लगे। अमेरिका हमारे साथ है, वह अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार किये तो दिल्ली भी हाथ से चला जायेगा।

इस विचार से पाकिस्तान ने 1965 में लाइन ऑफ कंट्रोल को पार करके ऑपरेशन जिब्राल्टर शुरू किया।
अखनूर सेक्टर में पैटन टैंकों ने भारी तबाही मचा रखी थी। हमारे पास हथियार भी नहीं थे।
पाकिस्तान को शुरुआती बढ़त मिल गई।
सेना अध्यक्ष जनरल चौधरी, वेस्टर्न कमांडर जनरल हरबख़्स सिंह को आदेश दिया कि अखनूर में अमृतसर से सेना भेजें।
हरबख़्स सिंह ने इनकार कर दिया! यह बहुत बड़ी घटना थी।
जनरल हरबख्श सिंह इस बात पर अड़ गये की आप प्रधानमंत्री से बात करिये।

जनरल चौधरी आधी रात को प्रधानमंत्री शास्त्री से मिलने गये।
उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री जी हम कश्मीर खो देंगें।
प्रधानमंत्री ने पूछा क्या करना चाहिये?
जनरल चौधरी ने कहा वेस्टर्न कमांडर हरबख़्स सिंह चाहते हैं हम अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार करें।
लेकिन इससे व्यापक युद्ध छिड़ सकता है। अमेरिका पाकिस्तान का साथ देगा।
हमें अखनूर में और सेना भेजनी चाहिये।
शास्त्री जी ने कहा – भारत कश्मीर को बचाने के लिये सब कुछ करेगा। जनरल हरबख्श सिंह की राय ठीक है।
आप अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार करके लाहौर पर आक्रमण करिये।
यह लिखित आदेश शास्त्री जी ने प्रोटोकॉल तोड़कर बिना मंत्रिमंडल की बैठक के दिया।
सुबह 6 बजे हरबख्श सिंह के नेतृत्व में भारतीय सेना ने लाहौर पर आक्रमण कर दिया।
सारी दुनिया आश्चर्यचकित हो गई।
पाकिस्तान ने घुटने टेक दिये।
‘In the line of duty’ हरबख्श सिंह ने अपनी किताब में विस्तार से लिखा है। पद्मविभूषण, पद्मश्री, वीरचक्र से हरबख्श सिंह को सम्मानित किया गया।

घास फूस खाने वाले, छोटेकद के शात्री जी ने अपने निर्णय से बता दिया कि वीरता किसे कहते हैं।।

𝕝𝕝 🕉 𝕝𝕝
श्री हरिहरो
विजयतेतराम

*🌹।।सुप्रभातम्।।🌹*

🗓 आज का पञ्चाङ्ग 🗓
*◕◕◕◕◕◕◕◕⊰⧱⊱◕◕◕◕◕◕◕◕*

*शुक्रवार, १९ अगस्त २०२२*

सूर्योदय: 🌄 ०६:०३
सूर्यास्त: 🌅 ०६:३५
चन्द्रोदय: 🌝 २३:३३
चन्द्रास्त: 🌜१२:५७
अयन🌖दक्षिणायने(उत्तरगोलीय
ऋतु: ⛈️ वर्षा
शक सम्वत:👉१९४४ (शुभकृत)
विक्रम सम्वत:👉२०७९ (नल)
मास 👉 भाद्रपद
पक्ष 👉 कृष्ण
तिथि👉अष्टमी(२२:५९से नवमी)
नक्षत्र👉कृत्तिका(२५:५३ से
रोहिणी
योग👉ध्रुव(२१:००से व्याघात
प्रथम करण 👉 बालव
(१०:०५ तक)
द्वितीय करण 👉 कौलव
(२२:५९ तक)
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
॥ गोचर ग्रहा: ॥
🌖🌗🌖🌗
सूर्य 🌟 सिंह
चंद्र 🌟 वृष (०६:०६ से)
मंगल🌟वृष(उदित,पश्चिम,मार्गी)
बुध🌟सिंह(उदित,पश्चिम,मार्गी)
गुरु🌟मीन (उदित, पूर्व, वक्री)
शुक्र 🌟 कर्क (उदित, पूर्व)
शनि🌟मकर(उदित,पूर्व,वक्री)
राहु 🌟 मेष
केतु 🌟 तुला
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
शुभाशुभ मुहूर्त विचार
⏳⏲⏳⏲⏳⏲⏳
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
अभिजित मुहूर्त 👉 ११:५४ से १२:४७
अमृत काल 👉 २३:१६ से २५:०१
विजय मुहूर्त 👉 १४:३२ से १५:२४
गोधूलि मुहूर्त 👉 १८:४१ से १९:०५
सायाह्न सन्ध्या 👉 १८:५४ से २०:००
निशिता मुहूर्त 👉 २३:५९ से २४:४२
राहुकाल 👉 १०:४२ से १२:२०
राहुवास 👉 दक्षिण-पूर्व
यमगण्ड 👉 १५:३७ से १७:१६
होमाहुति 👉 गुरु (२५:५३ से राहु)
दिशा शूल 👉 पश्चिम
नक्षत्र शूल 👉 पश्चिम (२५:५३ से)
अग्निवास 👉 पाताल (२२:५९ से पृथ्वी)
चन्द्र वास 👉 पूर्व (दक्षिण ०६:०७ से)
शिववास 👉 गौरी के साथ (२२:५९ से सभा में)
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
☄चौघड़िया विचार☄
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
॥ दिन का चौघड़िया ॥
१ – चर २ – लाभ
३ – अमृत ४ – काल
५ – शुभ ६ – रोग
७ – उद्वेग ८ – चर
॥रात्रि का चौघड़िया॥
१ – रोग २ – काल
३ – लाभ ४ – उद्वेग
५ – शुभ ६ – अमृत
७ – चर ८ – रोग
नोट– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
शुभ यात्रा दिशा
🚌🚈🚗⛵🛫
दक्षिण-पूर्व (दहीलस्सी अथवा राई का सेवन कर यात्रा करें)
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
तिथि विशेष
🗓📆🗓📆
〰️〰️〰️〰️
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत (वैष्णव), मासिक दुर्गाष्टमी, विवाहादि मुहूर्त (हिमाचल-पंजाब -कश्मीर-हरियाणा) आदि प्रांतो के लिये वृष – कर्क ल. रात्रि ०१:५३ से प्रातः ०५:५२ तक, देवप्रतिष्ठा मुहूर्त प्रातः ०६:०६ से १०:५३ तक आदि।
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
आज जन्मे शिशुओं का नामकरण
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
आज २५:५३ तक जन्मे शिशुओ का नाम
कृतिका नक्षत्र के द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ चरण अनुसार क्रमश (ई, उ, ए) नामाक्षर से तथा इसके बाद जन्मे शिशु का नाम रोहिणी नक्षत्र के प्रथम चरण अनुसार क्रमशः (ओ) नामाक्षर से रखना शास्त्रसम्मत है।
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
उदय-लग्न मुहूर्त
सिंह – २९:४१ से ०८:००
कन्या – ०८:०० से १०:१७
तुला – १०:१७ से १२:३८
वृश्चिक – १२:३८ से १४:५८
धनु – १४:५८ से १७:०१
मकर – १७:०१ से १८:४२
कुम्भ – १८:४२ से २०:०८
मीन – २०:०८ से २१:३२
मेष – २१:३२ से २३:०५
वृषभ – २३:०५ से २५:००
मिथुन – २५:०० से २७:१५
कर्क – २७:१५ से २९:३७
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
पञ्चक रहित मुहूर्त
मृत्यु पञ्चक – ०५:४६ से ०८:००
अग्नि पञ्चक – ०८:०० से १०:१७
शुभ मुहूर्त – १०:१७ से १२:३८
रज पञ्चक – १२:३८ से १४:५८
शुभ मुहूर्त – १४:५८ से १७:०१
चोर पञ्चक – १७:०१ से १८:४२
शुभ मुहूर्त – १८:४२ से २०:०८
रोग पञ्चक – २०:०८ से २१:३२
चोर पञ्चक – २१:३२ से २२:५९
शुभ मुहूर्त – २२:५९ से २३:०५
रोग पञ्चक – २३:०५ से २५:००
शुभ मुहूर्त – २५:०० से २५:५३
मृत्यु पञ्चक – २५:५३ से २७:१५
अग्नि पञ्चक – २७:१५ से २९:३७
शुभ मुहूर्त – २९:३७ से २९:४७
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
आज का राशिफल
🐐🐂💏💮🐅👩
〰️〰️〰️〰️〰️〰️
मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)
आज दिन के आरम्भ में परिस्थितियां आपको लाभ से दूर रखने वाली रहेंगी आलस्य में पड़कर काम से दूर भागेंगे लेकिन धयान रखें प्रातः काल से मध्यान के बीच की गई मेहनत बाद में अवश्य संतोष प्रदान करेगी अन्यथा पश्चाताप रहेगा। कार्य व्यवसाय भी दिन के पूर्वार्ध में ही लाभ के अवसर प्रदान करेगा दोपहर बाद बाजार में उदासीनता आने से धन लाभ के लिये तरसना पड़ेगा। नौकरी वाले जातक आज संतोषजनक कार्य करने के बाद भी अधिकारियों से विशेष प्रयोजन सिद्ध ना कर पाने पर नाराज रहेंगे। परिवार में पूजा पाठ के आयोजन होने से वातावरण मंगलमय रहेगा लेकिन सदस्यों में कुछ ना कुछ मतभेद लगे रहेंगे। स्वास्थ्य संबंधित समस्या आज कम ही रहेंगी।

वृष🐂 (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)
आज का दिन मिला-जुला फल देगा दिन के आरंभ में जिस कार्य को करने से डरेंगे दोपहर के बाद उसी में मन लगने लगेगा लाभ के अवसर भी मध्यान बाद से मिलने लगेंगे लेकिन स्वभाव में चंचलता आने से समय पर निर्णय लेने में परेशानी आएगी जिसके परिणाम स्वरूप सीमित लाभ से ही संतोष करना पड़ेगा। आज परिस्थितियां अनुकूल बन रही है मेहनत करने से पीछे ना हटे किसी भी कार्य से तुरंत लाभ नही होगा लेकिन निकट भविष्य में धन के साथ सम्मान भी मिलेगा। धर का वातावरण आज अन्य दिनों की तुलना में आनदमय रहेगा अपनी बचकानी हरकतों से परिजनो का मनोरंजन करेंगे।

मिथुन👫 (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)
आज दिन के पूर्वार्ध को छोड़ शेष भाग कुछ ना कुछ हानि ही देकर जाएगा अतिमहत्त्वपूर्ण कार्य समय रहते पूर्ण कर लें इसके बाद बनते कामो में विघ्न आने लगेंगे। कार्य क्षेत्र पर आज संघर्ष के बाद भी अनुकूल लाभ ना मिलने से मन अनैतिक कार्यो की ओर अग्रसर होगा। आर्थिक मामले अंत समय मे उलझने के कारण व्यवसाय पर असर देखने को मिलेगा फिर भी आज खर्च निकलने लायक धन कही ना कही से मिल ही जायेगा। आज किसी जानने वाले कि बातो पर भी आंख बंद कर भरोषा ना करें। परिवार में कोई अप्रिय घटना घटने से मनव्यथित होगा। सेहत सम्बंधित नई समस्या बनेगी। यात्रा स्थगित करें।

कर्क🦀 (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)
आज का दिन सामाजिक कार्यो में योगदान देने से सम्मान बढ़ायेगा। आज आप कार्यो में जल्दबाजी दिखाएंगे जिससे कोई भी कार्य पूर्ण तो जल्दी हो जाएगा लेकिन इससे संबंधित लाभ के लिये प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। सार्वजिक क्षेत्र पर दान पुण्य के अवसर मिलेंगे लेकिन इससे स्वभाव में अहंकार भी आएगा। कार्य व्यवसाय में आज उन्नति होगी भविष्य के लिये बचत के साथ नई योजनाओं पर भी काम कर सकेंगे। आज आपको कोई लालच देकर ठग सकता है प्रलोभन से बचे अन्यथा आज होने वाला लाभ आते ही व्यर्थ में खर्च हो जाएगा। गृहस्थी चलाने में थोड़ी कठिनाई आएगी फिर भी आपसी तालमेल से विजय पा लेंगे। स्वास्थ्य में छोटे मोटे कष्ट लगे रहेंगे।

सिंह🦁 (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)
आज आपको सरकारी क्षेत्र से शुभ समाचार की प्राप्ति होगी सार्वजनिक क्षेत्र पर भी मान बढेगा आज लापरवाहि से बचें अन्यथा परिणाम विपरीत भी हो सकते है। कार्य व्यवसाय की स्थिति पहके से बेहतर बनेगी फिर भी आज धन को लेकर अनिश्चितता के दौर से गुजरना पड़ेगा। अपने कार्य नियत समय से थोड़े विलम्ब से करेंगे सहयोग की आज कमी नही रहेगी लेकिन धन लाभ समय पर ना होने के कारण थोड़ी असुविधा बनेगी प्रतिस्पर्धा कम रहने का लाभ नही मिल सकेगा। गृहस्थ में छोटी मोटी नोकझोंक के बाद भी आत्मीयता बनी रहेगी। बुजुर्गो की सेहत संबंधित समस्या अनदेखी के कारण गंभीर हो सकती है।

कन्या👩 (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)
आज दिन के आरंभिक भाग में पूजा पाठ में सम्मिलित होने का असर दिन भर मानसिक रूप से शांत रखेंगा लेकिन इसके बाद दैनिक कार्यो की भागदौड़ में शरीर की भी सुध नही रहेगी खान पान में लापरवाही के कारण पुराना रोग फिर से उभरने की संभावना है। कार्य-व्यवसाय में लाभ की संभावना बनेगी लेकिन अंत समय मे कुछ ना कुछ बाधा आने से धन की प्राप्ति आगे के लिये टलेगी। नौकरशाहो के लिये दिन लाभदायक रहेगा अतिरिक्त आय बनाने के अवसर मिलेंगे लेकिन कम से संतोष करे अन्यथा मान भंग होने की स्थिति बन सकती है। परिवार में मांगलिक कार्यक्रम की रूपरेखा बनेगी वातावरण शांत रहेगा। धार्मिक क्षेत्र की यात्रा होगी दान पुण्य पर खर्च करेंगे।

तुला⚖️ (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)
आज दिन के आरंभिक भाग में आप किसी महात्त्वपूर्ण कार्य को लेकर उत्साहित रहेंगे लेकिन सेहत में धीरे धीरे नरमी आने से मन का उत्साह भी उदासीनता में बदल जायेगा। काम-धंधा अपेक्षा के अनुसार नही चलने से अतिरिक्त मानसिक बेचैनी रहेगी। अक्समात यात्रा के योग भी बनेंगे यथा सम्भव टालने का प्रयास करें। व्यवसायी वर्ग तुरंत लाभ पाने की कामना से निवेश ना करें अन्यथा निराश होना पड़ेगा धन की आमद आज निश्चित नही रहेगी फिर भी काम चलाने लायक हो ही जाएगी। परिवार में मौसमी बीमारियों का प्रकोप रहने से अव्यवस्था रहेगीं दवाओं पर खर्च करना पड़ेगा।

वृश्चिक🦂 (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)
आज भी दिन के पूर्वार्ध में सेहत संबंधित शिकायत रहेगी। सर में भारीपन अनुभव करेंगे लेकिन मध्यान तक स्वास्थ्य में सुधार आने लगेगा धार्मिक कार्यो में रुचि लेंगे पूजा पाठ एवं अन्य धार्मिक कार्यो में मन लगेगा एकाग्रता भी बढ़ेगी। कार्य व्यवसाय से आज आशा कम ही रहेगी धनलाभ भी आशा के अनुरूप कम ही होगा। आज किसी नए कार्य को आरंभ करेंगे अथवा कार्य क्षेत्र पर नए प्रयोग करेंगे इनसे तुरंत लाभ की आशा ना रखें लेकिन निकट भविष्य में धीरे धीरे अवश्य फलदायक बनेंगे। महिलाये आज किसी ना किसी कारण से बेचैन ही रहेंगी लेकिन कार्यो में बाधा नही आने देंगी। लघु यात्रा में खर्च होगा फिर भी आनंद प्रदान करेगी।

धनु🏹 (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)
आज दिन के पहले भाग में आप किसी कार्य को लेकर दुविधा में रहेंगे इसके कारण भाग दौड़ भी करनी पड़ेगी परन्तु लाभ होते होते हाथ से निकल जायेगा। भाग्य का साथ आज अन्य दिनों की अपेक्षा कम ही रहेगा। घर का शांत वातावरण आपसी तालमेल की कमी के कारण खराब रहेगा आज घर किसी भी सदस्य को काम के लिये कहना कलह कराएगा। महिलाये धर्य धारण करने का प्रयास करेंगी लेकिन बचते बचते भी कलह होने की संभावना है। व्यवसायिक क्षेत्र पर लाभ के कम ही अवसर मिलेंगे फिर भी आवश्यकता अनुसार धन कही ना कही से मिल ही जायेगा नौकरी पेशाओ से गलत काम होने पर अधिकारी रुष्ट होंगे। स्वास्थ्य में भी थोड़ा बहुत विकार लगा रहेगा।

मकर🐊 (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)
आज आप दिन के पूर्वार्ध में उदासीनता से ग्रस्त रहेंगे सर पर दायित्व के कारण कार्य करने का मन करेगा लेकिन कही से कोई सहायता ना मिलने से मन मे नकारत्मक विचार आएंगे अनैतिक कार्यो की ओर मन आकर्षित होगा लेकिन थोड़ा धैर्य रखें मध्यान से स्थिति पक्ष में होने लगेगी आप जिस कार्य की योजना बनाएंगे उससे संबंधित सुविधाएं कही ना कही से स्वतः ही मिल जाएगी। आज जल्दबाजी से बचें अन्यथा निर्णय गलत ही सिद्ध होगा धैर्य से कार्य करने पर आशा जनक लाभ पा सकते है। धन की आमद दोपहर के बाद ही होगी लेकिन व्यवधानों के बाद ही। पारिवारिक सुख में वृद्धि होगी। सेहत कुछ नरम रहेगी फिर भी इस ओर ध्यान नही देंगे।

कुंभ🍯 (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)
आज दिन के आरम्भ में स्वभाव में नरमी रखने की आवश्यकता है। बेतुकी बाते कर के परिवार का वातावरण खराब करेंगे परिजन भी उकसाने वाला व्यवहार करेंगे लेकिन मौन रहकर दोपहर तक का समय बिताये इसके बाद स्थिति अपने आप शांत बनने लगेगी। कार्य क्षेत्र पर भी मध्यान तक नरम व्यवहार रखें इसके बाद स्वतः ही अपनी गलतियों का आभास होगा जिससे विवेक जाग्रत होने पर दिन का बाकी भाग शान्ति से बीतेगा। धन लाभ की कामना पूर्ति के लिये आज परिश्रम अधिक करना पड़ेगा इसकी तुलना में सहयोग की कमी रहेगी। उधारी के व्यवहार स्वयं ही बढ़ाएंगे समय पर उगाही ना होने पर गुस्सा आयेगा। घर और सेहत की स्थिति आज सामान्य रहेगी।

मीन🐳 (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)
आज के दिन धैर्य धारण करने का लाभ आपको अवश्य ही किसी ना किसी रूप में मिल जाएगा। दिन के आरम्भ से ही कार्य पूर्ण करने में जल्दबाजी करेंगे व्यवसायी वर्ग भी ले देकर सौदे निपटाने के चक्कर में रहेंगे मध्यान तक का इंतजार करें लाभ में वृद्धि हो सकती है। धन की आमद आज निश्चित होगी लेकिन इंतजार करने के बाद ही। दोपहर बाद आपके प्रति लोगो के विचार बदलने लगेंगे कल तक जो आपसे नाराज चल रहे थे वे भी समर्थन करेंगे। पारिवारिक वातावरण में भी दोपहर बाद ही सुधार आएगा परिजन इच्छा पूर्ति होने पर प्रसन्न रहेंगे लेकिन स्त्री वर्ग को आज संतुष्ट रखना मुमकिन नही होगा। स्वास्थ्य में सुधार रहेगा।
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰

*श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत कथा!!!!!!*

स्कन्दपुराण के मतानुसार जो भी व्यक्ति जानकर भी कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को नहीं करता, वह मनुष्य जंगल में सर्प और व्याघ्र होता है। ब्रह्मपुराण का कथन है कि कलियुग में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी में अट्ठाइसवें युग में देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण उत्पन्न हुए थे। 

यदि दिन या रात में कलामात्र भी रोहिणी न हो तो विशेषकर चंद्रमा से मिली हुई रात्रि में इस व्रत को करें। भविष्यपुराण का वचन है- श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को जो मनुष्य नहीं करता, वह क्रूर राक्षस होता है। केवल अष्टमी तिथि में ही उपवास करना कहा गया है।

 यदि वही तिथि रोहिणी नक्षत्र से युक्त हो तो ‘जयंती’ नाम से संबोधित की जाएगी। वह्निपुराण का वचन है कि कृष्णपक्ष की जन्माष्टमी में यदि एक कला भी रोहिणी नक्षत्र हो तो उसको जयंती नाम से ही संबोधित किया जाएगा। अतः उसमें प्रयत्न से उपवास करना चाहिए।

इंद्र ने कहा है- हे ब्रह्मपुत्र, हे मुनियों में श्रेष्ठ, सभी शास्त्रों के ज्ञाता, हे देव, व्रतों में उत्तम उस व्रत को बताएँ, जिस व्रत से मनुष्यों को मुक्ति, लाभ प्राप्त हो तथा हे ब्रह्मन्‌! उस व्रत से प्राणियों को भोग व मोक्ष भी प्राप्त हो जाए। इंद्र की बातों को सुनकर नारदजी ने कहा- त्रेतायुग के अन्त में और द्वापर युग के प्रारंभ समय में निन्दितकर्म को करने वाला कंस नाम का एक अत्यंत पापी दैत्य हुआ। उस दुष्ट व नीच कर्मी दुराचारी कंस की देवकी नाम की एक सुंदर बहन थी। देवकी के गर्भ से उत्पन्न आठवाँ पुत्र कंस का वध करेगा।

नारदजी की बातें सुनकर इंद्र ने कहा- हे महामते! उस दुराचारी कंस की कथा का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए। क्या यह संभव है कि देवकी के गर्भ से उत्पन्न आठवाँ पुत्र अपने मामा कंस की हत्या करेगा। इंद्र की सन्देहभरी बातों को सुनकर नारदजी ने कहा-हे अदितिपुत्र इंद्र! एक समय की बात है। 

उस दुष्ट कंस ने एक ज्योतिषी से पूछा कि ब्राह्मणों में श्रेष्ठ ज्योतिर्विद! मेरी मृत्यु किस प्रकार और किसके द्वारा होगी। ज्योतिषी बोले-हे दानवों में श्रेष्ठ कंस! वसुदेव की धर्मपत्नी देवकी जो वाक्‌पटु है और आपकी बहन भी है। उसी के गर्भ से उत्पन्न उसका आठवां पुत्र जो कि शत्रुओं को भी पराजित कर इस संसार में ‘कृष्ण’ के नाम से विख्यात होगा, वही एक समय सूर्योदयकाल में आपका वध करेगा।

ज्योतिषी की बातें सुनकर कंस ने कहा- हे दैवज, बुद्धिमानों में अग्रण्य अब आप यह बताएं कि देवकी का आठवां पुत्र किस मास में किस दिन मेरा वध करेगा। ज्योतिषी बोले- हे महाराज! माघ मास की शुक्ल पक्ष की तिथि को सोलह कलाओं से पूर्ण श्रीकृष्ण से आपका युद्ध होगा। उसी युद्ध में वे आपका वध करेंगे।

 इसलिए हे महाराज! आप अपनी रक्षा यत्नपूर्वक करें। इतना बताने के पश्चात नारदजी ने इंद्र से कहा- ज्योतिषी द्वारा बताए गए समय पर हीकंस की मृत्युकृष्ण के हाथ निःसंदेह होगी। तब इंद्र ने कहा- हे मुनि! उस दुराचारी कंस की कथा का वर्णनकीजिए और बताइए कि कृष्ण का जन्म कैसे होगा तथा कंस की मृत्यु कृष्ण द्वारा किस प्रकार होगी।

इंद्र की बातों को सुनकर नारदजी ने पुनः कहना प्रारंभ किया- उस दुराचारी कंस ने अपने एक द्वारपाल से कहा- मेरी इस प्राणों से प्रिय बहन की पूर्ण सुरक्षा करना। 

द्वारपाल ने कहा- ऐसा ही होगा। कंस के जाने के पश्चात उसकी छोटी बहन दुःखित होते हुए जल लेने के बहाने घड़ा लेकर तालाब पर गई। उस तालाब के किनारे एक घनघोर वृक्ष के नीचे बैठकर देवकी रोने लगी। उसी समय एक सुंदर स्त्री जिसका नाम यशोदा था, उसने आकर देवकी से प्रिय वाणी में कहा- हे कान्ते! इस प्रकार तुम क्यों विलाप कर रही हो। अपने रोने का कारण मुझसे बताओ।

 तब दुःखित देवकी ने यशोदा से कहा- हे बहन! नीच कर्मों में आसक्त दुराचारी मेरा ज्येष्ठ भ्राता कंस है। उस दुष्ट भ्राता ने मेरे कई पुत्रों का वध कर दिया। इस समय मेरे गर्भ में आठवाँ पुत्र है। वह इसका भी वध कर डालेगा। इस बात में किसी प्रकार का संशय या संदेह नहीं है, क्योंकि मेरे ज्येष्ठ भ्राता को यह भय है कि मेरे अष्टम पुत्र से उसकी मृत्यु अवश्य होगी।

देवकी की बातें सुनकर यशोदा ने कहा- हे बहन! विलाप मत करो। मैं भी गर्भवती हूँ। यदि मुझे कन्या हुई तो तुम अपने पुत्र के बदले उस कन्या को ले लेना। इस प्रकार तुम्हारा पुत्र कंस के हाथों मारा नहीं जाएगा।

तदनन्तर कंस ने अपने द्वारपाल से पूछा- देवकी कहाँ है? इस समय वह दिखाई नहीं दे रही है। तब द्वारपाल ने कंस से नम्रवाणी में कहा- हे महाराज! आपकी बहन जल लेने तालाब पर गई हुई हैं। 

यह सुनते ही कंस क्रोधित हो उठा और उसने द्वारपाल को उसी स्थान पर जाने को कहा जहां वह गई हुई है। द्वारपाल की दृष्टि तालाब के पास देवकी पर पड़ी। तब उसने कहा कि आप किस कारण से यहां आई हैं। उसकी बातें सुनकर देवकी ने कहा कि मेरे गृह में जल नहीं था, जिसे लेने मैं जलाशय पर आई हूँ। इसके पश्चात देवकी अपने गृह की ओर चली गई।

कंस ने पुनः द्वारपाल से कहा कि इस गृह में मेरी बहन की तुम पूर्णतः रक्षा करो। अब कंस को इतना भय लगने लगा कि गृह के भीतर दरवाजों में विशाल ताले बंद करवा दिए और दरवाजे के बाहर दैत्यों और राक्षसों को पहरेदारी के लिए नियुक्त कर दिया। कंस हर प्रकार से अपने प्राणों को बचाने के प्रयास कर रहा था। 

एक समय सिंह राशि के सूर्य में आकाश मंडल में जलाधारी मेघों ने अपना प्रभुत्व स्थापित किया। भादौ मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को घनघोर अर्द्धरात्रि थी। उस समय चंद्रमा भी वृष राशि में था, रोहिणी नक्षत्र बुधवार के दिन सौभाग्ययोग से संयुक्त चंद्रमा के आधी रात में उदय होने पर आधी रात के उत्तर एक घड़ी जब हो जाए तो श्रुति-स्मृति पुराणोक्त फल निःसंदेह प्राप्त होता है।

इस प्रकार बताते हुए नारदजी ने इंद्र से कहा- ऐसे विजय नामक शुभ मुहूर्त में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ और श्रीकृष्ण के प्रभाव से ही उसी क्षण बन्दीगृह के दरवाजे स्वयं खुल गए। द्वार पर पहरा देने वाले पहरेदार राक्षस सभी मूर्च्छित हो गए। देवकी ने उसी क्षण अपने पति वसुदेव से कहा- हे स्वामी! आप निद्रा का त्याग करें और मेरे इस अष्टम पुत्र को गोकुल में ले जाएँ, वहाँ इस पुत्र को नंद गोप की धर्मपत्नी यशोदा को दे दें। 

उस समय यमुनाजी पूर्णरूपसे बाढ़ग्रस्त थीं, किन्तु जब वसुदेवजी बालक कृष्ण को सूप में लेकर यमुनाजी को पार करने के लिए उतरे उसी क्षण बालक के चरणों का स्पर्श होते ही यमुनाजी अपने पूर्व स्थिर रूप में आ गईं। किसी प्रकार वसुदेवजी गोकुल पहुँचे और नंद के गृह में प्रवेश कर उन्होंने अपना पुत्र तत्काल उन्हें दे दिया और उसके बदले में उनकी कन्या ले ली। वे तत्क्षण वहां से वापस आकर कंस के बंदी गृह में पहुँच गए।

प्रातःकाल जब सभी राक्षस पहरेदार निद्रा से जागे तो कंस ने द्वारपाल से पूछा कि अब देवकी के गर्भ से क्या हुआ? इस बात का पता लगाकर मुझे बताओ। द्वारपालों ने महाराज की आज्ञा को मानते हुए कारागार में जाकर देखा तो वहाँ देवकी की गोद में एक कन्या थी। जिसे देखकर द्वारपालों ने कंस को सूचित किया, किन्तु कंस को तो उस कन्या से भय होने लगा।

 अतः वह स्वयं कारागार में गया और उसने देवकी की गोद से कन्या को झपट लिया और उसे एक पत्थर की चट्टान पर पटक दिया किन्तु वह कन्या विष्णु की माया से आकाश की ओर चली गई और अंतरिक्ष में जाकर विद्युत के रूप में परिणित हो गई।

उसने कंस से कहा कि हे दुष्ट! तुझे मारने वाला गोकुल में नंद के गृह में उत्पन्न हो चुका है और उसी से तेरी मृत्यु सुनिश्चित है। मेरा नाम तो वैष्णवी है, मैं संसार के कर्ता भगवान विष्णु की माया से उत्पन्न हुई हूँ, इतना कहकर वह स्वर्ग की ओर चली गई। उस आकाशवाणी को सुनकर कंस क्रोधित हो उठा। उसने नंदजी के गृह में पूतना राक्षसी को कृष्ण का वध करने के लिए भेजा किन्तु जब वह राक्षसी कृष्ण को स्तनपान कराने लगी तो कृष्ण ने उसके स्तन से उसके प्राणों को खींच लिया और वह राक्षसी कृष्ण-कृष्ण कहते हुए मृत्यु को प्राप्त हुई।

जब कंस को पूतना की मृत्यु का समाचार प्राप्त हुआ तो उसने कृष्ण का वध करने के लिए क्रमशः केशी नामक दैत्य को अश्व के रूप में उसके पश्चात अरिष्ठ नामक दैत्य को बैल के रूप में भेजा, किन्तु ये दोनों भी कृष्ण के हाथों मृत्यु को प्राप्त हुए। इसके पश्चात कंस ने काल्याख्य नामक दैत्य को कौवे के रूप में भेजा, किन्तु वह भी कृष्ण के हाथों मारा गया।

 अपने बलवान राक्षसों की मृत्यु के आघात से कंस अत्यधिक भयभीत हो गया। उसने द्वारपालों को आज्ञा दी कि नंद को तत्काल मेरे समक्ष उपस्थित करो। द्वारपाल नंद को लेकर जब उपस्थित हुए तब कंस ने नंदजी से कहा कि यदि तुम्हें अपने प्राणों को बचाना है तो पारिजात के पुष्प ले लाओ। यदि तुम नहीं ला पाए तो तुम्हारा वध निश्चित है।

कंस की बातों को सुनकर नंद ने ‘ऐसा हीहोगा’ कहा और अपने गृह की ओर चले गए। घर आकर उन्होंने संपूर्ण वृत्तांत अपनी पत्नी यशोदा को सुनाया, जिसे श्रीकृष्ण भी सुन रहे थे। एक दिन श्रीकृष्ण अपने मित्रों के साथ यमुना नदी के किनारे गेंद खेल रहे थे और अचानक स्वयं ने ही गेंद को यमुना में फेंक दिया। यमुना में गेंद फेंकने का मुख्य उद्देश्य यही था कि वे किसी प्रकार पारिजात पुष्पों को ले आएँ। अतः वे कदम्ब के वृक्ष पर चढ़कर यमुना में कूद पड़े।

कृष्ण के यमुना में कूदने का समाचार श्रीधर नामक गोपाल ने यशोदा को सुनाया। यह सुनकर यशोदा भागती हुई यमुना नदी के किनारे आ पहुँचीं और उसने यमुना नदी की प्रार्थना करते हुए कहा- हे यमुना! यदि मैं बालक को देखूँगी तो भाद्रपद मास की रोहिणी युक्त अष्टमी का व्रत अवश्य करूंगी क्योंकि दया, दान, सज्जन प्राणी, ब्राह्मण कुल में जन्म, रोहिणियुक्त अष्टमी, गंगाजल, एकादशी, गया श्राद्ध और रोहिणी व्रत ये सभी दुर्लभ हैं।

हजारों अश्वमेध यज्ञ, सहस्रों राजसूय यज्ञ, दान तीर्थ और व्रत करने से जो फल प्राप्त होता है, वह सब कृष्णाष्टमी के व्रत को करने से प्राप्त हो जाता है। यह बात नारद ऋषि ने इंद्र से कही। इंद्र ने कहा- हे मुनियों में श्रेष्ठ नारद! यमुना नदी में कूदने के बाद उस बालरूपी कृष्ण ने पाताल में जाकर क्या किया? यह संपूर्ण वृत्तांत भी बताएँ। नारद ने कहा- हे इंद्र! पाताल में उस बालक से नागराज की पत्नी ने कहा कि तुम यहाँ क्या कर रहे हो, कहाँ से आए हो और यहाँ आने का क्या प्रयोजन है?

नागपत्नी बोलीं- हे कृष्ण! क्या तूने द्यूतक्रीड़ा की है, जिसमें अपना समस्त धन हार गया है। यदि यह बात ठीक है तो कंकड़, मुकुट और मणियों का हार लेकर अपने गृह में चले जाओ क्योंकि इस समय मेरे स्वामी शयन कर रहे हैं। यदि वे उठ गए तो वे तुम्हारा भक्षण कर जाएँगे।

 नागपत्नी की बातें सुनकर कृष्ण ने कहा- ‘हे कान्ते! मैं किस प्रयोजन से यहाँ आया हूँ, वह वृत्तांत मैं तुम्हें बताता हूँ। समझ लो मैं कालियानाग के मस्तक को कंस के साथ द्यूत में हार चुका हूं और वही लेने मैं यहाँ आया हूँ। बालक कृष्ण की इस बात को सुनकर नागपत्नी अत्यंत क्रोधित हो उठीं और अपने सोए हुए पति को उठाते हुए उसने कहा- हे स्वामी! आपके घर यह शत्रु आया है। अतः आप इसका हनन कीजिए।

अपनी स्वामिनी की बातों को सुनकर कालियानाग निन्द्रावस्था से जाग पड़ा और बालक कृष्ण से युद्ध करने लगा। इस युद्ध में कृष्ण को मूर्च्छा आ गई, उसी मूर्छा को दूर करने के लिए उन्होंने गरुड़ का स्मरण किया। स्मरण होते ही गरुड़ वहाँ आ गए। श्रीकृष्ण अब गरुड़ पर चढ़कर कालियानाग से युद्ध करने लगे और उन्होंने कालियनाग को युद्ध में पराजित कर दिया।

अब कलियानाग ने भलीभांति जान लिया था कि मैं जिनसे युद्ध कर रहा हूँ, वे भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ही हैं। अतः उन्होंने कृष्ण के चरणों में साष्टांग प्रणाम किया और पारिजात से उत्पन्न बहुत से पुष्पों को मुकुट में रखकर कृष्ण को भेंट किया। जब कृष्ण चलने को हुए तब कालियानाग की पत्नी ने कहा हे स्वामी! मैं कृष्ण को नहीं जान पाई।

 

 हे जनार्दन मंत्र रहित, क्रिया रहित, भक्तिभाव रहित मेरी रक्षा कीजिए। हे प्रभु! मेरे स्वामी मुझे वापस दे दें। तब श्रीकृष्ण ने कहा- हे सर्पिणी! दैत्यों में जो सबसे बलवान है, उस कंस के सामने मैं तेरे पति को ले जाकर छोड़ दूँगा अन्यथा तुम अपने गृह को चली जाओ। अब श्रीकृष्ण कालियानाग के फन पर नृत्य करते हुए यमुना के ऊपर आ गए।

 

तदनन्तर कालिया की फुंकार से तीनों लोक कम्पायमान हो गए। अब कृष्ण कंस की मथुरा नगरी को चल दिए। वहां कमलपुष्पों को देखकर यमुनाके मध्य जलाशय में वह कालिया सर्प भी चला गया।

इधर कंस भी विस्मित हो गया तथा कृष्ण प्रसन्नचित्त होकर गोकुल लौट आए। उनके गोकुल आने पर उनकी माता यशोदा ने विभिन्न प्रकार के उत्सव किए।

अब इंद्र ने नारदजी से पूछा- हे महामुने! संसार के प्राणी बालक श्रीकृष्ण के आने पर अत्यधिक आनंदित हुए। आखिर श्रीकृष्ण ने क्या-क्या चरित्र किया? वह सभी आप मुझे बताने की कृपा करें। नारद ने इंद्र से कहा- मन को हरने वाला मथुरा नगर यमुना नदी के दक्षिण भाग में स्थित है। वहां कंस का महाबलशायी भाई चाणूर रहता था। उस चाणूर से श्रीकृष्ण के मल्लयुद्ध की घोषणा की गई। हे इंद्र!

कृष्ण एवं चाणूर का मल्लयुद्ध अत्यंत आश्चर्यजनक था। चाणूर की अपेक्षा कृष्ण बालरूप में थे। भेरी शंख और मृदंग के शब्दों के साथ कंस और केशी इस युद्ध को मथुरा की जनसभा के मध्य में देख रहे थे। श्रीकृष्ण ने अपने पैरों को चाणूर के गले में फँसाकर उसका वध कर दिया। 

चाणूर की मृत्यु के पश्चात उनका मल्लयुद्ध केशी के साथ हुआ। अंत में केशी भी युद्ध में कृष्ण के द्वारा मारा गया। केशी के मृत्युपरांत मल्लयुद्ध देख रहे सभी प्राणी श्रीकृष्ण की जय-जयकार करने लगे। बालक कृष्ण द्वारा चाणूर और केशी का वध होना कंस के लिए अत्यंत हृदय विदारक था। अतः उसने सैनिकों को बुलाकर उन्हें आज्ञा दी कि तुम सभी अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित होकर कृष्ण से युद्ध करो।

हे इंद्र! उसी क्षण श्रीकृष्ण ने गरुड़, बलराम तथा सुदर्शन चक्र का ध्यान किया, जिसके परिणामस्वरूप बलदेवजी सुदर्शन चक्र लेकर गरुड़ पर आरूढ़ होकर आए। उन्हें आता देख बालक कृष्ण ने सुदर्शन चक्र को उनसे लेकर स्वयं गरुड़ की पीठ पर बैठकर न जाने कितने ही राक्षसों और दैत्यों का वध कर दिया, कितनों के शरीर अंग-भंग कर दिए। 

इस युद्ध में श्रीकृष्ण और बलदेव ने असंख्य दैत्यों का वध किया। बलरामजी ने अपने आयुध शस्त्र हल से और कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को विशाल दैत्यों के समूह का सर्वनाश किया।

जब अन्त में केवल दुराचारी कंस ही बच गया तो कृष्ण ने कहा- हे दुष्ट, अधर्मी, दुराचारी अब मैं इस महायुद्ध स्थल पर तुझसे युद्ध कर तथा तेरा वध कर इस संसार को तुझसे मुक्त कराऊँगा। 

यह कहते हुए श्रीकृष्ण ने उसके केशों को पकड़ लिया और कंस को घुमाकर पृथ्वी पर पटक दिया, जिससे वह मृत्यु को प्राप्त हुआ। कंस के मरने पर देवताओं ने शंखघोष व पुष्पवृष्टि की। वहां उपस्थित समुदाय श्रीकृष्ण की जय-जयकार कर रहा था। कंस की मृत्यु पर नंद, देवकी, वसुदेव, यशोदा और इस संसार के सभी प्राणियों ने हर्ष पर्व मनाया।

इस कथा को सुनने के पश्चात इंद्र ने नारदजी से कहा- हे ऋषि इस कृष्ण जन्माष्टमी का पूर्ण विधान बताएं एवं इसके करने से क्या पुण्य प्राप्त होता है, इसके करने की क्या विधि है?

नारदजी ने कहा- हे इंद्र! भाद्रपद मास की कृष्णजन्माष्टमी को इस व्रत को करना चाहिए। उस दिन ब्रह्मचर्य आदि नियमों का पालन करते हुए श्रीकृष्ण का स्थापन करना चाहिए। सर्वप्रथम श्रीकृष्ण की मूर्ति स्वर्ण कलश के ऊपर स्थापित कर चंदन, धूप, पुष्प, कमलपुष्प आदि से श्रीकृष्ण प्रतिमा को वस्त्र से वेष्टित कर विधिपूर्वक अर्चन करें। गुरुचि, छोटी पीतल और सौंठ को श्रीकृष्ण के आगे अलग-अलग रखें। इसके पश्चात भगवान विष्णु के दस रूपों को देवकी सहित स्थापित करें।

*हरि के सान्निध्य में भगवान विष्णु के दस अवतारों, गोपिका, यशोदा, वसुदेव, नंद, बलदेव, देवकी, गायों, वत्स, कालिया, यमुना नदी, गोपगण और गोपपुत्रों का पूजन करें। इसके पश्चात आठवें वर्ष की समाप्ति पर इस महत्वपूर्ण व्रत का उद्यापन कर्म भी करें।*

यथाशक्ति विधान द्वारा श्रीकृष्ण की स्वर्ण प्रतिमा बनाएँ। इसके पश्चात ‘मत्स्य कूर्म’ इस मंत्र द्वारा अर्चनादि करें। आचार्य ब्रह्मा तथा आठ ऋत्विजों का वैदिक रीति से वरण करें। प्रतिदिन ब्राह्मण को दक्षिणा और भोजन देकर प्रसन्न करें।

उपवास की पूर्व रात्रि को हल्का भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें। उपवास के दिन प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएँ। पश्चात सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्‌पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर मुख बैठें। इसके बाद जल, फल, कुश और गंध लेकर संकल्प करें-

*ममाखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये*

*श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये॥*

 

अब मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए ‘सूतिकागृह’ नियत करें। तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। मूर्ति में बालक श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किए हों अथवा ऐसे भाव हो। इसके बाद विधि-विधान से पूजन करें। पूजन में देवकी, वसुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी इन सबका नाम क्रमशः निर्दिष्ट करना चाहिए।

फिर निम्न मंत्र से पुष्पांजलि अर्पण करें- 

*’प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः।*

*वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः।*

*सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तु ते।*’

अंत में प्रसाद वितरण कर भजन-कीर्तन करते हुए रात्रि जागरण करें।