वर्ष 1857 की क्रांति के साथ जुड़े थे लिवासपुर आदि गांवों के लोग, अंग्रेजों ने उदमीराम को गांव राई स्थित विश्राम गृह में पीपल के पेड़ से बांधकर उनके शरीर में लोहे की कील ठोक दी थी

गांव लिवासपुर जो कि सोनीपत के पास है, लीवान के आसपास के सभी गाँवो के लोगों ने सन् 1857 की क्रांति के साथ जुड़ गए थे । देश का ध्यान इस एरिया पर आया।

जब देश में अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठ रही थी तो लिवासपुर के नंबरदार चौधरी उदमीराम भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े थे। उन्होंने हरियाणा में सबसे पहले अंग्रेजों को लगान देने से मना कर दिया था। नंबरदार उदमीराम को जब पता चला कि अंग्रेज़ी सेना बहालगढ़ में ज़बरदस्ती लगान वसूलने आ रहे हैं तो उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर संघर्ष किया ।तीन को मौत की नींद सुला दिया था।
उसके बाद अंग्रेजों का गांव वालों पर बहुत जुल्म ढाया। अंग्रेजो ने उदमीराम को गांव राई स्थित विश्राम गृह में पीपल के पेड़ से बांधकर उनके शरीर में लोहे की कील ठोक दी थी। करीब 35 दिन तड़पकर उनकी मौत हो गई थी। इतना ही नहीं उदमीराम के 22 साथियों को अंग्रेजों ने एक पत्थर के कोल्हू से कुचलकर मार दिया था।जो आज भी जीटी रोड हाईवे पर चौधरी देवी लाल जी पार्क में स्थित है ।

लिवासपुर ,लीवान,के आसपास ग्रामीणों ने भी आजादी के आंदोलन में अपना कर्त्तव्य निभाया था। नमन है इस माटी को । (साभार)