उत्तराखंड के अल्मोड़ा पिथौरागढ़ बागेश्वर एवं चमोली जनपदों में कुछ गांव के लोगों ने आज भी समेट रखी है तांबे के वर्तन बनाने की कला, सरकार इसे व्यावसायिक स्वरूप देने के लिए स्टार्टप में आच्छादित करे

#उत्तराखंड के #अल्मोड़ा #पिथौरागढ़ #बागेश्वर चमोली रूद्रप्रयाग व पौड़ी जनपदों में कुछ गांव के लोगों ने तांबे के वर्तन बनाने की कला, आज भी समेट कर रखी है, सरकार इसे व्यावसायिक स्वरूप देने के लिए #स्टार्टप में आच्छादित करे।

#तांबे की इन कारीगरी को परम्परागत रूप से अधिकतर #टम्टा लोग कर रहे हैं, ये लोग बहुत हुनरमंद और निष्ठावान लोग होते हैं। तांबे की इस कारीगरी में कुछ अन्य रूचिवान लोग भी लगे हैं, ये कारीगर बागेश्वर तहसील के अन्तर्गत मल्ली व तल्ली खरही के बीस गाँवों में परम्परागत तांबे के बर्तन बनते हैं। अल्मोड़ा को ताम्र नगरी के नाम से भी जाना जाता है, यहां तांबे के बर्तनों का कारोबार करीब 400 साल पुराना है।सर्वेक्षणों के अनुसार पिथौरागढ़ जनपद के गंगोलीहाट, थल, बेरीनाग आदि में ९४ परीवार पूरी तरह तांबे के बर्तन इत्यादि को बनाकर इस कला को जीवित रखे हुए हैं। अल्मोड़ा जनपद में ही परम्परागत रुप से पांच सौ परिवार इस शिल्प को जीवित रखकर परोक्ष, अपरोक्ष रुप से जीविका यापन कर रहें हैं। नैनीताल,अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ जनपदों के हजारों कारीगर आज भी इस व्यवसाय को अपनाये हुए हैं। अनुमान है कि अल्मोड़ा जनपद में ही लगभग एक करोड़ से अधिक के तांबे का क्रय विक्रय प्रतिवर्ष है। इस उद्योग से अभी तक पुरुष कारीगर ही जुड़े हैं। इसमें स्थानीय महिलाओं को भी #प्रशिक्षण देने के लिए सरकार योजना बनाये। सामान्यतः भाड़े के मजदूरों से काम नहीं लिया जाता, परिवार के सदस्य ही काम निबटाते हैं। तांबे का #कारोबार एक अच्छा उद्योग इसलिए भी बन सकता है कि अब लोग #आरओ_फिल्टर की हानियां और तांबे की #गागर के जल पीने का लाभ जानने लगे हैं। ताम्बे के वर्तनों का उपयोग #रोग_निरोधक होता हैं।

तांबे के बर्तन बनाने के लिए सबसे पहले कच्चे माल को गलाया जाता है, फिर उसकी ढलाई की जाती है। तदुपरांत छिलाई और पिटाई की जाती है, #परम्परागत रूप से और कुछ हाथ की सहायक यंत्रों द्वारा अब इन्हें तैयार किया जाता है। इस तरह तांबे के बर्तन बनते हैं। उत्तराखंड में तांबे के बर्तन बनाने वाले कुछ गांव: अल्मोड़ा, बागेश्वर, खर्कटम्टा और चमोली जिले में मैखुरा गांव का चौंडी नाम तोक में भी टमटा लोग तांबे के वर्तन बनाते थे जो अब सिमट गया है। रूद्रप्रयाग और पौड़ी में भी तांबे की खाने थी जो अब वीरान पड़ी हैं। उत्तराखंड के पूर्व सांसद #प्रदीप_टम्टा और वर्तमान सांसद #अजय_टम्टा इन व्यवसायियों के क्षेत्र से हैं और इन कारोबारियों का दर्द समझते भी हैं लेकिन इनके लिए न कोई योजना बना पाये न इस विषय को संसद में उठा पाये यहां तक कि #प्रधानमंत्री #नरेन्द्र_मोदी जी के संज्ञान में आये या वर्तमान #मुख्यमंत्री #पुष्करसिंह_धामी इस पर गंभीरता से कार्य करें तो उत्तराखंड का तांबा कारोबार सोना उगलने लगेगा। थराली विधायक भूपाल राम टम्टा जी इस विषय को उत्तराखंड #विधानसभा में उठायें। और राज्य में लगने वाले सभी बड़े मेलों में संबंधित जनपदों के डीएम और समाज कल्याण विभाग द्वारा उत्तराखंड के तांबे के बने वर्तन प्रदर्शित किए जांय। जिससे इनका प्रमोशन और बिक्री हो सके।

तांबे के बर्तनों की विशेषता ये है कि तांबे के बर्तन शुद्ध धातु के बने होते हैं। तांबे के बर्तन #टिकाऊ होते हैं, यहां के तांबे के बर्तनों की मांग कई राज्यों और विदेशों में है। ✍️हरीश मैखुरी
Breakinguttarakhand.com