पैराशुट नेताओं की चरागाह बनती बीजेपी

__दिनेश मानसेरा 

उत्तराखण्ड बीजेपी में सांसद, विधायक का टिकट मिलना इतना आसान काम हो गया है?
ये सवाल उत्तराखण्ड बीजेपी में अंदरूनी तौर पर चर्चा में है,हाल ही में कुछ ऐसे “टपके” लोग बीजेपी में नेता बन गए है और अब वो सांसद ,विधायक के लिए अपने दावे को बेहद मजबूत मानकर राजनीति के कुर्ते पायजामे पहन कर फ्लेक्सी भी लगाते देखे जारहे है,कुछ एक ने तो विभिन्न शहरों में अपने जनसम्पर्क कार्यालय भी खोल लिए है और वहां कंप्यूटर लगा कर स्टॉफ भी बैठा दिया है,ये नेता उन नेताओं का ब्लड प्रेशर,शुगर भी बढ़ा रहे जोकि सालो से पार्टी में दरी बिछाकर समर्पित रूप से कार्यकर्ता बने है,
प्रदेश सरकार में मंत्री और प्रदेश अध्यक्ष भी बने,तीर्थ सिंह रावत जैसे संगठन के नेता को अपने वजूद के लिए संघर्ष इस लिए करना पड़ रहा है क्योंकि डेढ़ साल पहले शौर्य डोभाल नाम के व्यक्ति को बीजीपी में प्रदेश कार्यसमिति में हाई कमान द्वारा शामिल करवाया जाता है और वो अब पौड़ी संसदीय सीट पर अपना दावा ठोकने लगता है,शौर्य डोभाल का परिचय इतना मात्र है कि वो प्रधान मंत्री के सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के पुत्र है और कभीकभार पौड़ी में देव पूजन के लिए आते जाते रहे,पब्लिक टच जीरो रहा लेकिन अब बीजेपी में अपने आप को ताकतवर नेता कहलवाने में कोई गुरेज नहीं करते क्योंकि उनकी ऊपर पहुंच है।
पिछले दिनों थल सेना अध्यक्ष विपिन चंद्र रावत ने भी अपना पहाड़ प्रेम जाहिर किया उनकी नज़र भी रिटायरमेंट के बाद पौड़ी सीट पर है,वो वर्तमान सांसद ,रिटायर मेजर जनरल खंडूरी के आगे चुनाव न लड़ने पर ,अपना फौजी दावा कर सकते है,यानी उनके लिए भी बीजेपी में आना आसान होगा बीजेपी को उनके कद का अधिकारी या नेता भी पार्टी में चाहिए ,यानि जो नेता पार्टी में सालो से अपनी मेहनत कर रहे है उनके लिए कोई स्कोप नही है,इस बात को अब सच मान लिया जाएगा।
पौड़ी ही नही टिहरी सीट पर भी टपके नेताओ की नज़र है हालांकि ये सीट टिहरी राज घराने के लिए एक तरह से आरक्षित रहती आयी है पर देहरादून जिले के वोटर संख्या को देखते हुए,डोभाल ,जनरल यहां भी चुनाव लड़ने को तैयार है,पैसा और पहुंच बीजेपी में हावी है?अब ये बात कार्यकर्ता भी समझने लगे है और वो भी इन लोगो के पीछे खड़े होने लगे है।
हालांकि अभी बीजेपी में आये बहुगुणा परिवार को नज़रंदाज़ किया जा रहा है जोकि कई सालों से गढ़वाल की राजनीति के केंद्र में रहे है,उत्तराखण्ड में कांग्रेस को कमजोर कर बीजेपी को मजबूत करने में विजय बहुगुणा की अहम भूमिका रही जिसका परितोष उन्हें अब तक नही मिला है।
हरिद्धार से रमेश पोखरियाल सांसद है,उन्हें इस बार टिकट मिलेगा या नही?उन्हें खुद इस बात का डर है।अल्मोड़ा सांसद अजय टम्टा को भी कांग्रेस से बीजेपी में आये दलित नेताओ ने डराया हुआ है,राज्यमंत्री रेखा आर्य भी संसद में जाना चाहती है,जबकिं बीजेपी में उनकी आयु दो साल से कुछ ज्यादा ही है,
नैनीताल में भगत सिंह कोशियारी भी अब शायद ही चुनाव लड़े,उनकी जगह कौन लेगा?ये बात पूर्व सांसद बलराज पासी से जब पूछी जाती है तो वो कहते है राजनीति का दूसरा नाम संघर्ष है वोखुद भी लगे है दावा कर रहे है लेकिन तय हाई कमान करता है हम तो सेवक है।
टपके नेताओ की लिस्ट यहीं थम नहीं जाती,त्रिवेन्द्र सरकार के सलाहकार, विशेषकार्याधिकारी ,पूर्व मुख्यमंत्रियों के ओएसडी,उनके सहायक तक अपने आपको एमएलए का चुनाव लड़ने के लिए बिसात बिछाते देखे जा रहे है,जो अधिकारी शासन से रिटायर होता है वो कुर्ता पायजामा पहनकर पार्टी कार्यालय जाकर प्रदेश अध्यक्ष को गुलदस्ता दे आता है और लौट के कहता है मैंने दावा कर दिया है कभी कभी हैरानी होती है क्या इतना आसान है सब कुछ?
यानि कुल मिलाकर कर उत्तराखण्ड की बीजेपी में अंदुरुनी तौर पर हर जमीनी नेता टपके नेताओ से भयभीत है और परेशान है सिर्फ इस लिए की कब कौन किस सीट पर चुनाव लड़ने दिल्ली दरबार से चला आये कुछ पता नही..