सीबीआई जांच संबन्धित आदेश पर राजनैतिक दल अपने-अपने पक्ष में दोनों न्यायालयों के आदेशों की समीक्षा अपने राजनैतिक लाभ हेतु कर रहे हैं

एडवोकेट हरीश पुजारी

पिछले दिनों उत्तराखण्ड हाईकोर्ट के एक फैसले से राजनैतिक क्षेत्र में भूचाल सा आ गया है और फिर सुप्रीम कोर्ट के कल के एक अंतरिम आदेश के बाद राजनैतिक दल अपने-अपने पक्ष में दोनों न्यायालयों के आदेशों की समीक्षा अपने राजनैतिक लाभ के लिए कर रहे हैं और उनकी यह बयानबाजी गैर जिम्मेदाराना ही नहीं बल्कि हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की गलत समीक्षा भी है जिससे आम जनता में भ्रम एवं संशय उत्पन्न हो रहा है।
सरल कानूनी भाषा में कहें तो नैनीताल हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के विरुद्ध याचिकादाता उमेश कुमार शर्मा आदि द्वारा लगाए गए आरोपों की राज्य हित में जांच की जानी आवश्यक है और इसके लिए पुलिस अधीक्षक सीबीआई देहरादून को आदेशित किया जाता है कि वे एफआईआर दर्ज कर मुकदमे की विवेचना करें और सच्चाई उजागर करें।
प्रभावित पक्ष हाई कोर्ट के इस निर्णय के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट गया और सुप्रीम कोर्ट के माननीय जजों के द्वारा हाईकोर्ट के फैसले पर अंतरिम रोक लगाई गई और दूसरे पक्ष को अपना जवाब व शपथ पत्र पेश करने के लिए एक माह का समय दिया गया।
अब प्रक्रिया के अनुसार दोनों पक्षों जवाब प्रतिजवाब व शपथ पत्र प्रस्तुत करने के बाद सुप्रीम कोर्ट इस मामले की अंतिम सुनवाई के लिए एक तिथि मुकर्रर करेगा और निर्णय देगा कि हाईकोर्ट का फैसला सही है या गलत।
परंतु राजनैतिक दलों के नेता राजनैतिक स्वार्थों के चलते यह बयानबाजी कर रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट के माननीय जज हाईकोर्ट के फैसले को पढ़कर भौंचक्के रह गए, इतने सख्त आदेश को पढ़कर हैरान हो गये परन्तु सुप्रीम कोर्ट के पारित आदेश में ऐसा कुछ भी नहीं है। अवलोकनार्थ आदेश की प्रति संलग्न की जा रही है।
एक राजनीतिक दल के नेता यहां तक कह रहे हैं कि बिना आरोपी को सुनवाई का मौका दिए बगैर प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज हो ही नहीं सकती है। इस सन्दर्भ में कानून स्पष्ट और साफ है रिपोर्ट दर्ज करने करते वक्त आरोपी को सुनवाई का मौका नहीं दिया जाता है। हां, न्यायालय में मुकदमा चलने पर आरोपी को सुनवाई/सफाई का पूरा मौका दिया जाना आवश्यक है ताकि वह न्यायालय के सम्मुख स्वयं को निर्दोश सिद्ध कर सके।
इस मामले में हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द नहीं किया गया है बल्कि सुनवाई के लिए प्रभावित पक्ष की विशेष अनुमति याचिका पर दोनों पक्षों को विस्तार से सुनने के लिए सुनवाई की तारीख लगाने का आदेश दिया है।

हरीश पुजारी,
पूर्व शासकीय अधिवक्ता
उत्तराखण्ड हाईकोर्ट, नैनीताल
9412110015