कर्णप्रयाग चिकित्सालय के सर्जन डॉ राजीव शर्मा के जाने से चरमरा सकती है स्वास्थ्य सेवायें

डॉ हरीश मैखुरी

चमोली जनपद के राजकीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कर्णप्रयाग में 1992 से कार्यरत वरिष्ठ सर्जन और बहुत ही सज्जन डॉक्टर राजीव शर्मा ने उत्तराखंड को अलविदा कह दिया, ज्ञात रहे उत्तर प्रदेश काडर के उत्तराखंड से करीब 27 डॉक्टरों को उत्तर प्रदेश के लिए कार्य मुक्त किया जाना है, इसी में डॉ राजीव शर्मा भी हैं। राजीव शर्मा न केवल कर्णप्रयाग सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के लंबे अरसे तक लोकप्रिय रहने वाले डॉक्टर रहे बल्कि वे लोगों के दिल में भी बसते थे। हुए कर्णप्रयाग जैसे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में उनके रहते जिलेभर से मरीज रेफर होकर आते थे। यहां तक कि जिला चिकित्सालय गोपेश्वर से भी यहां मरीज आते थे वे यहां पर सीमित साधनों में ही कैंसर अल्सर गॉलब्लैडर किडनी स्टोन यूट्रस रसौली और पेट की सभी सर्जरी करते थे। उनके द्वारा की गई लगभग सभी सर्जरी सफल रहती। रात दिन काम करना उनकी फितरत में था वे निजी रूप से भी मरीजों की सहायता करते रहे हैं । अनेक गरीबों का न केवल नि:शुल्क इलाज बल्कि बाहर से दवाइयां भी देते थे। चमोली जनपद के घाट विकासखंड का रामणि गांव उन्होंने स्वास्थ्य सेवाओं के लिए गोद ले रखा था, जब भी समय निकलता डॉक्टर शर्मा इस गांव जाते और वहां मरीजों को नि:शुल्क इलाज और अपनी दवाइयां देकर आते। यहां 27 वर्षों में उन्होंने 52 हजार से अधिक सफल आपरेशन किए। इसी लिए इसलिए कर्णप्रयाग और चमोली जनपद के एक तिहाई क्षेत्र के लोगों की लाइफ लाइन कहे जाते । कर्णप्रयाग जैसे छोटे बाजार में दर्जनभर से ज्यादा मेडिकल स्टोर अनेक होटल और रेस्टोरेंट केवल डा0 शर्मा के रहते चलते। डॉ शर्मा के जाने से चमोली जनपद में स्वास्थ्य सेवाओं को एक तरह से ग्रहण लग सकता है। इसे चमोली जनपद के जनप्रतिनिधियों की उदासीनता भी कह सकते हैं, वे चाहते तो डाॅ शर्मा को रोकने के लिए अहं भूमिका निभा सकते हैं। सरकार भी दूरस्थ क्षेत्रों में कार्यरत लोकप्रिय डॉक्टरों को अपने विकल्पों पर फिर से पुनर्विचार करने की रणनीति पर काम कर सकती है। शर्मा के जाने से जो सूनापन आएगा उसकी भरपाई शायद ही हो पाए। डाॅ शर्मा खुद को पहाड़ी मानते थे, उन्होंने अपने फेसबुक अकाउंट पर इस संदर्भ में एक मार्मिक पत्र भी लिखा जिसको हम यहां ज्यों का त्यों दे रहे हैं 

देवभूमि ।
अलविदा CHC कर्णप्रयाग ।
कहते हैं पहाड़ का पानी और जवानी पहाड़ के काम नहीं आते।1992 की शुरुआत में कर्णप्रयाग आते ही जैसे मैं पहाड़ का ही हो गया और नियति ने मेरी जवानी पहाड़ के नाम ही लिखकर यहाँ भेजा था,जो मैने खुशी – खुशी आप सबके प्यार, दुलार व कभी-कभी तकरार से यहीं बिता दी।इसका मुझे संतोष व गर्व है।शायद ये पूर्व जन्म का रिश्ता ही रहा होगा तभी तो जहाँ आज के आधुनिक व साधन सुलभ समय में भी कोई पोस्ट ग्रेजुएट स्पेशलिस्ट यहाँ आने से कतराते हैं, किस अदृश्य शक्ति ने आज से सत्ताइस अट्ठाइस साल पहले मुझे यहाँ रुकने को प्रेरित किया ।निश्चय ही यह आपका असीम प्रेम व विश्वास था।परिवर्तन शाश्वत नियम है और मैं इसे सहर्ष शिरोधार्य करता हूँ ।इस कर्मयात्रा में मुझसे कुछ भूल चूक व त्रुटियाँ भी अवश्य हुयी होंगी जिन्हें आपके अपार प्रेम ने सदा ही भुला दिया। वो,जिन्होंने मेरी सराहना की, वो भी,जिन्होंने आलोचना की,मेरे मार्गदर्शक बने।यहाँ बिताया समय मेरे जीवन की अमूल्य थाती है।नव-पथ पर सहर्ष, सोत्साह बढ़ने को सज्ज हूँ, यही जीवन है।
मेरे समस्त साथी,कर्मचारी,माननीय जनप्रतिनिधि गण, व उच्च अधिकारियों ने सदा मुझे दुलार दिया व मुझमें विश्वास किया,मीडिया ने भी समय समय पर सुदूर पर्वतों में सेवा को प्रचारित व प्रोत्साहित किया ।मैं उनका ॠणी रहूंगा, ये सब मेरी प्रेरणा बने ।मेरी पत्नी, जो आरम्भ से ही मेरे पांव न उखाड़ कर, पहाड़ के अपेक्षाकृत कठिनतर जीवन पर मेरी सहगामिनी बनी व मुझसे अधिक कार्य किया,का भी हृदय से आभारी हूँ ।मेरे पूज्य पिताजी व माँ ,परिवार व गांव के बुजुर्गों ने कभी मुझे पहाड़ छोड़कर अपने नज़दीक रहने को विवश नहीं किया ।सुदूर ग्रामीण व पर्वतीय क्षेत्रों में चिकित्सा सेवाओं को पहुंचाने के सरकारों के अथक प्रयासों मात्र से सफलता नहीं मिलने वाली। हम चिकित्सकों को अपने जीवन का एक अच्छा भाग इन वंचित क्षेत्रों की सेवा में अर्पित करने को मन से(बल से नहीं) तैयार रहना होगा, तभी हम संपूर्ण भारत को सही मायनों में स्वस्थ-समृद्ध कर पायेंगे ।
कर्णप्रयाग ! तुम सदा, सादर- स्मरण रहोगे।