हमारे देश में भाषाई विविधताएं ही यहां की सुंदरता हैं लेकिन गढ़वाली कुमायुनी जौनसारी सहित अनेक भाषाएं विलुप्ति के द्वार पर – सुरेखा डंगवाल

मातृ भाषाओं का संरक्षण निजी संस्कारों का संरक्षण है

अंतर्राष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस के आयोजन अवसर पर दून विश्वविद्यालय के रंगमंच विभाग की पहल पर एक भाषा विमर्श व संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में मुख्य अतिथि प्रोफेसर सुरेखा डंगवाल ने अपने वक्तव्य में कहा कि भाषाई स्तर पर हमारे देश में जिस तरह की विविधताएं हैं वही यहां की सुंदरता है। विश्व की बहुत सी भाषाएं आज विलुप्ति के कगार पर हैं गढ़वाली कुमायुनी, जौनसारी आदि इसी संकट में है इन्हें बचाने में रंगमंच का बड़ा योगदान हो सकता है। मुख्य वक्ता प्रोफेसर हर्ष डोभाल ने अपने वक्तव्य में कहा कि भाषाएं बचेंगी तो समाज बचेगा। यूनेस्को के एक अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि हर दिन लगभग पांच सौ भाषाएं समाप्त हो रही हैं हमारी भाषाओं पर भी यही संकट है। कार्यक्रम में डा राजेश शर्मा, डा अजीत पवार ने भी अपने महत्त्वपूर्ण विचार प्रकट किए। कार्यक्रम का सांयोजन व संचालन विभाग के डा. राकेश भट्ट ने किया