भारत की बड़ी जनसंख्या भी कोरोना युद्ध में बड़ी चुनौती, सम्राट अशोक के समय में हुई थी 23 विश्वविद्यालयों की स्थापना, दुबई से यूसुफ ने भेजे सीएम केयर फंड में पांच करोड़, जयन्ती और जन्मदिन में अंतर, प्रधानमंत्री के आवाह्न पर स्टील प्लांट मेडिकल में यूज़ होने वाली ऑक्सीजन में बदले, बुजुर्ग ने कहा हमने अपनी आयु पूरी कर ली मेरा बेड जवान को देदो

*विश्व के देशों की जनसंख्या देखें :*
*अमेरिका :33.1 करोड़*
*रशिया : 14.6 करोड़*
*जर्मनी : 8.5 करोड़*
*टर्की : 8.4 करोड़*
*यू के : 6.8 करोड़*
*फ्रान्स : 6.5 करोड़*
*इटली : 6.1 करोड़*
*स्पेन : 4.7 करोड़*
*पोलंड : 3.8 करोड़*
*रोमानिया : 1.9 करोड़*
*नेदरलॅंड : 1.7 करोड़*
*ग्रीस : 1.7 करोड़*
*बेल्जियम : 1.2 करोड़*
*झेक रिपब्लिक : 1.1 करोड़*
*पोर्तुर्गाल : 1.1 करोड़*
*स्वीडन : 1 करोड़*
*हंगेरी : 1 करोड़*
*स्विट्झरलेंड : 0.9 करोड़*
*बलगेरिया : 0.7 करोड़*
*डेन्मार्क : 0.6 करोड़*
*——————–*
*कुल : 105.3 करोड़*
*==============*
*युरोप के शेष 44 छोटे छोटे देशों की जनसंख्या : 6 करोड़*

*105.3 करोड़ + यूरोप के छोटे देशों की 6 करोड़ + ब्राझील की जनसंख्या 21.2 करोड़ + अर्जेंटिना की 4.45 करोड़ = 136.95 करोड़!*

*अकेले भारता की जनसंख्या 138 करोड़ है!!*

*अब विचार करें कोव्हीड 19 पर नियंन्त्रण का जितना काम संपूर्ण युरोप, अमेरिका, ब्राझील और अर्जेंटिना कर रहा है उतना काम अकेले भारत कर रहा है ! *कमियाँ निकालना बहुत आसान है करना बहुत कठिन होता है।*
*कृपया विचार करें और यह वस्तुस्थित विश्व के सम्मुख रखें!*

 
#दुबई में रहने वाले भारत के #केरल मूलनिवासी #यूसुफ_अली_लूलू मार्किट के फाउंडर ने उत्तर प्रदेश Cm Care Fund में 5 #करोड़ रुपए दान दिये हैं। यूसुफ अली अब तक ( एक साल में) करीब 50 #करोड़  की मदद भिजवा चुके हैं…
PM केयर्स फ़ंड- 25 Cr.
UP CM रिलीफ़ फ़ंड- 5 cr
केरल CM रिलीफ़ फंड- 10 Cr.
उड़ीसा CM रिलीफ़ फ़ंड- 5 Cr.
#अभिवादन उन देशभक्तों का जो बाहर रहकर भी देश से जुड़े हैं 🇮🇳
जयन्ती भारतीय परम्परा है जन्मदिन नहीं 
जयंति और जन्मदिन में अंतर नहीं समझ में आता तो “प्राकट्य” लिखो ।
जयंत का अर्थ ही जिसके जय का अंत न हो । भगवती जगदंबा दुर्गा को जयंती कहा गया है ।
जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवा धात्री….
भारत के स्वतंत्रता की स्वर्ण जयंती या रजत जयंती या हीरक जयंती भी इसीलिये मनाई जाती है क्योकि हम इसे शुभ घटना मानते हैं ।
हमारा सनातन आदि और अंत पर नहीं बल्कि अनादि और अनंत पर आधारित है । 
फिर से समझिए , आदि और अंत और जन्मदिन, एक अब्राहमिक व्यवस्था  हैं, अनादि , अनंत और जयंती सनातनी व्यवस्था है ।
अनादि की व्याख्या 
“अनादि” क्या है ?
कुछ दिन पहले “ अनादि “ शब्द पर मैने आप लोगों की राय माँगी थी । मैं पहले भी कई बार लिख चुका हूँ कि सनातन आर्य वैदिक धर्म में “ अनादि” का क्या अर्थ होता है और एक बार पुन: लिख रहा हूँ जिससे की आपकी दृष्टि स्पष्ट हो जाय । आप में से जिसे न मानना हो “ अनादि” की मेरी व्याख्या को वह स्वतंत्र है अपनी व्याख्या के लिए । 
मुझे यह भी पता है कि आधे लोग इसे भी एक साधारण फेसबुकिया पोस्ट के जैसे लेंगे और ध्यान से नहीं पढ़ेंगे । परन्तु जिसे भी “ अनादि” की यह व्याख्या समझ में आ गई उसे न केवल कथा समझने में सहजता होगी , बल्कि वह सनातन का एक सच्चा योद्धा बन सकेगा ।
ध्यान से समझिए । मान लीजिए आप किसी वैज्ञानिक के पास जाए । और उससे पूछे कि यह ब्रह्मांड क्या है ? तो वह आपको बिग बैंग थ्योरी बता देगा । 
आप पूछिए कि उस बिग बैंग के पहले क्या था ? तो ब्लैक होल इत्यादि का उत्तर मिल जाएगा । आप पूछिए उसके पहले तो बहुत से वैज्ञानिक कह देंगे एक वैक्यूम था । आप पूछिए कि वैक्यूम कहाँ से आया , और वैक्यूम कैसे बना ? आधे घंटे केवल उसके पहले , उसके पहले करते रहिए आई आई टी वाले मूर्ख किताबी कीड़े  भाग खड़े होगे ।
आसमानी किताब वालों से यह प्रश्न करेंगे तो गरदन कट भी कट सकती है। 
बौद्धो से पूछेंगे तो वे मौन रहकर उत्तर दे देंगे ।  व्याकरण और सांख्य दर्शन वाले कह देंगे कि यह अज्ञात है । हमारा धर्म “अनादि” पर आधारित है बाकी सबका ( अब्राहमिक पंथों  ) प्रारंभ और अंत पर आधारित है ।
हमारे शास्त्र कहते है कि “ आदि” अनुभव का विषय ही नहीं है । आप बैठ करके सोचने लगिए , ब्रह्मांड के पहले कौन सा ब्रह्मांड  था , उसके पहले ……उसके पहले तो कोई अर्थ नही निकलेगा ।
जहाँ पर “मै” है वही पर सृष्टि की उत्पत्ति होती है । अर्थात इदम रूप सृष्टि का “ अहम् “है । और जहाँ से अहम का उदय और और जहाँ पर अहम का विलय है वह “राम” है , वही परमात्मा है और वही “ अनादि” है । 
इसी सिद्धांत के आधार पर हम केवल इतिहास की दृष्टि से अपने धर्म को नही देखते । इतिहास, सूकर मुखी होता है और केवल ज़मीन में गड़ी वस्तुओं को नाक से उधेड़ता है । 
हमारी दृष्टि पौराणिक है । रामकथा या भागवत को आप केवल ऐतिहासिक दृष्टि से न देखे । 
राम का जन्म अयोध्या में त्रेता युग में हुआ पर आप रामनवमी को 12 बजे की प्रतीक्षा करते हैं, अपने आँखों से देखने की । राम और सीता सदैव अभिन्न थे । जनकपुर में विवाह के पहले भी वह एक ही थे पर आप अपने जीवन में अपनी आँखों से राम सीता का विवाह देखते हैं ।  आप अपनी आँखों से रावण वध देखते हैं ।  
इसीलिए कथा में आप देखेंगे कि शिव यह कथा पार्वती को भी सुना रहे हैं और स्वंयम भी सती के साथ दण्डकारण्य में सुन रहे हैं । राम, सर्वत्र हैं । राम कथा सर्वव्यापी है ।✍🏻राज शेखर तिवारी
कुछ वर्ष पूर्व कर्नाटक के रहने वाले ‘करण आचार्य’ ने “क्रोधित हनुमान” की एक पेंटिंग बनाई थी, जिसकी प्रशंसा प्रधानमंत्री ‘श्री नरेन्द्र मोदी जी’ ने भी की थी और उनके द्वारा प्रशंसा किये जाने के बाद अचानक यह पेंटिंग देश भर में सुर्खियों में आ गया था। 
OLA-UBER समेत निजी वाहन वाले हनुमान जी की इस तस्वीर को अपने-अपने कारों के ऊपर लगाने लग गये तो ओला-उबर का प्रयोग करने वाले लोग ऐसे कार ड्राइवरों को प्रोत्साहित करने हेतु उन्हें बिल से अधिक पैसे पेमेंट करने लगे। इन बातों से हिन्दू द्वेषी मीडिया व अन्य जमात वालों के सीने पर सांस लोटने लगे। “द वायर” आदि जमातों ने बजरंगबली को निशाने पर लेते हुए कई लेख लिखें। अगर आप पढ़ने-लिखने में रुचि रखते हैं तो आपको यह भी याद होगा कि काफी पहले ‘हंस’ पत्रिका के संपादक ‘राजेन्द्र यादव’ में यही हरकत की थी और हनुमान जी को “मानव-सभ्यता का पहला आतंकवादी” बताया था।
आपने कभी सोचा है कि बजरंगबली से इन जमातों के चिढ़ने की वजह क्या है? क्यों बजरंग बली की उस मनभावन पेंटिंग को ये ‘ब्रेकिंग इंडिया फोर्सेस’ “मिलिटेंट हनुमान” कहने लगें?
आख़िर हनुमान जी से इनके चिढ़ने की वजह क्या है? वजह है कि :-
💐 “बजरंग बली” के उज्ज्वल चरित्र और कृतित्व से सम्पूर्ण भारतवर्ष न जाने कितने सदियों से प्रेरणा लेता आया है। 
💐 हनुमान प्रतीक हैं उस स्वाभिमान” के जिन्होंने ‘बाली’ जैसे महापराक्रमी परंतु अधम शासक के साथ रहने की बजाए ‘बाली’ के अनाचार से संतप्त ‘सुग्रीव’ के साथ रहना स्वीकार किया था ताकि दुनिया के सामने यह आदर्श स्थापित हो कि सत्य और न्याय के साथ खड़ा होना ही धर्म है। 
💐 हनुमान प्रतीक हैं उस “स्वामी-भक्ति” और “राज-भक्ति” के जिन्हें उस समय के सबसे शक्तिशाली साम्राज्य के प्रतिनिधि प्रभु श्रीराम का सानिध्य प्राप्त था परंतु उन्होंने अपने स्वामी सुग्रीव का साथ नहीं छोड़ा और उनके प्रति उनकी राजभक्ति असंदिग्ध रही।
💐 हनुमान प्रतीक हैं उस सेतु के जो उत्तर और दक्षिण भारत को जोड़ती है। जिसने किष्किंधा और अयोध्या को जोड़ा। पेंटिंग बनाने वाले “करण आचार्य” दक्षिण से थे और पेंटिंग वायरल होने लगी दिल्ली में तो इनके पेट में मरोड़ उठने लगी कि अरे ये कैसे हो गया? हमने उत्तर भारत और दक्षिण भारत में कनफ्लिक्ट पैदा करने के लिए जो वर्षों- बर्ष मेहनत की है वो इतनी आसानी से कैसे जाया हो रही है?
💐 हनुमान प्रतीक हैं उस “अनुशासन और प्रोटोकॉल” के जिसका अनुपालन उन्होंने अपने जीवन में हर क्षण किया जबकि ‘हनुमान’ विरोधियों को अनुशासनहीन समाज पसंद है।
💐 हनुमान प्रतीक हैं उस पौरुष के जिसका स्वामी ‘बाली’ जब अधम होकर एक स्त्री पर कुदृष्टि डालने लगा तो उन्होंने उसे सहन नहीं किया और बाली का साथ छोड़ने में एक पल भी नहीं लगाया। 
💐 हनुमान प्रतीक हैं स्त्री रक्षण के प्रति उस कर्तव्य के जो किसी और की स्त्री के सम्मान की रक्षा के लिए भी निडर-बेखौफ होकर उस समय के सबसे शक्तिशाली शासक को चुनौती देने उसके राज्य में घुस जाते हैं।
💐 हनुमान प्रतीक हैं उस  ‘चातुर्य और निडरता’ के जिनकी वाणी के ओज ने श्री राम को भी मंत्रमुग्ध कर दिया था।
अगर हम रामायण का कथानक देखें तो पता चलता है कि हनुमान, जामवंत, सुग्रीव, नल-नील, अंगद और तमाम दूसरे वानर वीर ये सब वो लोग हैं जो वनवासी-गिरिवासी और वंचित समाज के प्रतिनिधि हैं। ये उनलोगों के रूप में चिन्हित हैं जिनकी भाषा संस्कृत नहीं थी, जो किसी कथित उच्च वर्ग से नहीं थे, जो शहरी सभ्यता के नहीं थे परंतु इनके प्रतिनिधि के रूप में “हनुमान क्या उच्च वर्ण और क्या निम्न वर्ण, क्या नगरवासी और क्या वनवासी, सब हिन्दुओं के घरों में आराध्य रूप में पूजित हैं। 
इनको “हनुमान जी” से पीड़ा इसलिये है क्योंकि इन्हें बर्दाश्त नहीं हो रहा कि कैसे वनवासी वर्ग का एक प्रतिनिधि हर हिन्दू घर में पूजित है। इन्हें ये पच नहीं रहा कि कैसे कोई ऐसा पात्र हो सकता है जिसके प्रति हिंदुओं के वंचित समाज से लेकर भारत का प्रधानमंत्री तक में एक समान भावना है। “हनुमान” से इनकी वेदना इसलिए है क्योंकि उनके होते वर्ग-संघर्ष, जाति-संघर्ष, आर्य-द्रविड़ विवाद, उत्तर-दक्षिण संघर्ष पैदा करने के इनके तमाम षडयंत्र विफल हो जा रहे हैं।
हनुमान से इनको तकलीफ़ इसलिए भी है क्योंकि “मारुति” इन्द्रिय संयम के जीवंत प्रतीक हैं यानि बजरंगबली “यौन-उच्छृंखलता” के इनके नारों की राह के रोड़े भी हैं। हनुमान धर्म के नाम पर कहीं भी सॉफ्ट नहीं हैं, ये इनकी पीड़ा है। 
एक अकेले हनुमान के कारण “ब्रेकिंग इंडिया फोर्सेस” के तमाम मंसूबें नाकाम हैं तो इनको हनुमान से तकलीफ़ क्यों न हो?
आज हर हिन्दू घर में हनुमान कई रूपों में मौजूद हैं, कहीं वो तस्वीर रूप में, कहीं मूर्ति-रूप में, कहीं, महावीरी-ध्वज रूप में, कहीं हनुमान-चालीसा, बजरंग-बाण या सुंदर-काण्ड रूप में उपस्थित हैं।
“हनुमान जयंती” का दिन बड़ा शुभ है….आइये दुनिया को बताते हैं कि जिस हनुमान जी से “भारत-तोड़ो बिग्रेड” को चिढ़ है वो हमारे, आपके सबके घर में तस्वीर रूप, मूर्ति-रूप, महावीरी-ध्वज रूप, हनुमान-चालीसा, बजरंग-बाण या सुंदर-काण्ड रूप में उपस्थित हैं।
✍🏻अभिजीत सिंह
रामायण में हनुमानजी को 9 भाषाओं का विद्वान् कहा गया है। पता नहीं उस समय भारत में इतनी भाषा थी या कुल भाषा में केवल 9 जानते थे। रावण भारत की स्थानीय भाषायें नहीं जानता था। अतः वह सीता जी से शुद्ध संस्कृत में बात करता था। सुन्दर काण्ड में हनुमानजी चिन्ता करते हैं कि सीता जी से संस्कृत में बात करने पर उनको रावण का आदमी समझेंगी। अतः उन्होंने अयोध्या मिथिला के बीच की भाषा का प्रयोग किया  (उस समय की मैथिली या भोजपुरी)।
बल क्या होता है ? 
केवल शरीर के बल को बल , संस्कृत भाषा में नही कहा जाता है ।
आप लोग कमेंट में “ जय बजरंग बली “ लिखते है । हनुमान जी को बली कहने के पीछे का रहस्य समझिए ।
इंद्रियों को संस्कृत भाषा में “ अक्ष” भी कहते है । अर्थात् , हनुमान जी का समक्ष पहली शक्ति कौन सी आई ? अक्षकुमार के रूप में आई ।
हनुमान ने इंद्रियों की शक्ति वाले अक्ष का नाश कर दिया ।
मेघनाद में इन्द्रिय बल के साथ साथ “ काम का बल” भी था । अब आप लोग यह भली भाँति जानते हैं की काम का बल भी बहुत भयानक होता है । होता नकारात्मक है पर होता भयंकर है । आप लौकिक जीवन में भी देखेगे की कोई सींक जैसा दिखने वाले ने भी बलात्कार का प्रयास किया । और वह ऐसा “ काम के बल” के कारण कर पाता है ।
हनुमान अर्थात जिसने अपने मान का हनन कर दिया हो ।
हनुमान जी , जैसा की आपको पता ही है ब्रह्मचारी थे अत: उन पर काम के बल का कोई प्रभाव तो पड़ना नहीं था और वह रावण , “जो की इंद्रिय और काम के साथ साथ , अहंकार का रूप था “ के पास पहुँच कर उसका अहंकार डिगाना चाहते थे अत: मोहपाश में बधे ।
अत: वह जो काम को अपने वश में रख सके , इंद्रिय को अपने वश में रख सके और अपने मन बुद्धि चित्त अहंकार को प्रभू के चरणों में डाल दे , वास्तव में “ बली” वही बली है । हाँ , शरीर का बल भी आवश्यक है ।
आशा है , जो लोग नए जुड़े हुए हैं उन्हें “ बल” शब्द का सनातनी अर्थ समझ में आ गया होगा ।
समर्थ गुरू रामदास ने हर गाँव में हनुमान जी को स्थापित किया था और लोगों से कसरत करने को कहा था ।
आत्मबल और शरीर बल दोनो की आवश्यकता आज और भी अधिक है ।
आज हमें समर्थ गुरू रामदास के आदेश को पुन: फैलाना है । सभी लोग अपने लोकल हनुमान मंदिर या और किसी मंदिर में न केवल संगठित हों बल्कि कसरत इत्यादि करके बलशाली बनें । 
सभी लोग जनजागरण में जुट जाएँ ।औरों को जगाएँ ।
राम-रावण युद्ध हो चुका था और आततायी रावण का बध करके आपके राम, वापस अयोध्या आ चुके थे और राजतिलक हो चुका था और भगवान सबको उपहार दे रहे थे और आभार प्रकट कर रहे थे ।
पर जब हनुमान जी की बारी आई तब भगवान राम ने कहा हनुमान जी, आपको न मैं कुछ दूँगा और न ही भविष्य में आपकी कोई भी सहायता करूँगा । 
अब चूँकि आपलोग अब्राहमिक फेथ और अंग्रेज़ों के थैंक्यू में इतना रम गए हो कि सनातन धर्म का गूढ़ तत्व समझ में ही नही आता ।
इसका अभिप्राय यह था कि कि भगवान उसको कुछ देते जिसके पास कोई कमी हो या कुछ आवश्यकता हो । और भविष्य में सहायता न करने का अभिप्राय यह था कि हे हनुमान जी मेरे उपर संकंट आया तो आपने मेरी सहायता करी पर आपके उपर ऐसा संकट कभी आए ही नहीं जिसके कारण मुझे आपको सहायता देने की आवश्यकता पड़े ।
यह तो थी भगवत कृपा ।
अब भक्ति का रूप देखिए ।
जब हनुमान जी की राम से माँगने की बारी आई तो हनुमान जी ने केवल राम की भक्ति माँग ली । बोला कि हे राम, मैं सदैव आपके बारे में सोचता रहूँ ऐसा आशीर्वाद दे दीजिए ।
अब आप ध्यान से पढ़िए । यदि आपकी राम भक्ति मे मन लगता है तो यह “फल” है , साधना नहीं । 
यदि राम से आप मुक्ति या कैवल्य माँग रहे हैं तो हनुमान जी को नहीं समझा आपने । केवल और केवल राम भक्ति में लीन हो जाईए । 
हनुमत भक्ति के इस अद्भुत स्वरूप को बाकी और रामभक्तों तक पहुँचाया जाय ।
जय हनुमान जी ।
✍🏻राज शेखर तिवारी की पोस्टों से संग्रहित 
हनुमान की जन्म तिथि-
पंचांग में हनुमान जयन्ती की कई तिथियों दी गई हैं पर उनका स्रोत मैंने कहीं नहीं देखा है। पंचांग निर्माताओं के अपने अपने आधार होंगे।  पराशर संहिता, पटल 6 में यह तिथि दी गई है-
तस्मिन् केसरिणो भार्या कपिसाध्वी वरांगना।
अंजना पुत्रमिच्छन्ति महाबलपराक्रमम्।।29।।
वैशाखे मासि कृष्णायां दशमी मन्द संयुता।
पूर्व प्रोष्ठपदा युक्ता कथा वैधृति संयुता।।36।।
तस्यां मध्याह्न वेलायां जनयामास वै सुतम्।
महाबलं महासत्त्वं विष्णुभक्ति परायणम्।।37।।
इसके अनुसार हनुमान जी का जन्म वैशाख मास कृष्ण दशमी तिथि शनिवार (मन्द = शनि) युक्त पूर्व प्रोष्ठपदा (पूर्व भाद्रपद) वैधृति योग में मध्याह्न काल में हुआ।
बाल समय रवि भक्षि लियो तब तीनहु लोक भयो अन्धियारो।
= यदि इसका अर्थ है कि हनुमान जी के जन्म दिन सूर्य ग्रहण हुआ था तो उनका जन्म अमावस्या को ही हो सकता है। दिन के समय ही सूर्य ग्रहण उस स्थान पर दृश्य होगा।
युग सहस्त्र योजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।। 
= सूर्य युग सहस्त्र या 2000 योजन पर नहीं है। तुलसीदास जी ने सूर्य सिद्धांत पढ़ा था जिसमें सूर्य का व्यास 6500 योजन (13,92,000 किमी) दिया है।
इन दोनों को मिला कर अर्थ-
सूर्य की दैनिक गति हमको पूर्व क्षितिज से पश्चिमी क्षितिज तक दीखती है। इसमें सूर्योदय को बाल्यकाल, मध्याह्न में युवा तथा सायंकाल को वृद्धावस्था कहते हैं। सूर्य के अंश रूप गायत्री की इसी प्रकार प्रार्थना होती है।
पूर्व तथा पश्चिमी क्षितिज पृथ्वी सतह पर दृश्य आकाश के दो हनु हैं। इन दो हनु के बीच सूर्य की दैनिक गति का पूरा जीवन समाहित है। 
जब हमको सूर्य उदय होते दीखता है तब वह वास्तव में क्षितिज से नीचे होता है, पर वायुमंडल में किरण के आवर्तन से मुड़ने के कारण पहले ही दीखने लगता है। इसको सूर्य सिद्धांत में वलन कहा गया है। सूर्य का व्यास सूर्य सिद्धांत में 6500 योजन है जहाँ योजन का मान प्रायः 214 किमी है। जब व्यास का 2000 योजन क्षितिज के नीचे रहता है तभी पूरा सूर्य बिम्ब दीखने लगता है। यही युग (युग्म) सहस्त्र योजन पर भानु है जिसको क्षितिज रूपी हनु निगल जाता है।
हनुमान् के कई अर्थ हैं-(१) पराशर संहिता के अनुसार उनके मनुष्य रूप में ९ अवतार हुये थे।
(२) आध्यात्मिक अर्थ तैत्तिरीय उपनिषद् में दिया है-दोनों हनु के बीच का भाग ज्ञान और कर्म की ५-५ इन्द्रियों का मिलन विन्दु है। जो इन १० इन्द्रियों का उभयात्मक मन द्वारा समन्वय करता है, वह हनुमान् है।
(३) ब्रह्म रूप में गायत्री मन्त्र के ३ पादों के अनुसार ३ रूप हैं-स्रष्टा रूप में यथापूर्वं अकल्पयत् = पहले जैसी सृष्टि करने वाला वृषाकपि है। मूल तत्त्व के समुद्र से से विन्दु रूपों (द्रप्सः -ब्रह्माण्ड, तारा, ग्रह, -सभी विन्दु हैं) में वर्षा करता है वह वृषा है। पहले जैसा करता है अतः कपि है। अतः मनुष्य का अनुकरण कार्ने वाले पशु को भी कपि कहते हैं। तेज का स्रोत विष्णु है, उसका अनुभव शिव है और तेज के स्तर में अन्तर के कारण गति मारुति = हनुमान् है। वर्गीकृत ज्ञान ब्रह्मा है या वेद आधारित है। चेतना विष्णु है, गुरु शिव है। उसकी शिक्षा के कारण जो उन्नति होती है वह मनोजव हनुमान् है।
(४) हनु = ज्ञान-कर्म की सीमा। ब्रह्माण्ड की सीमा पर ४९वां मरुत् है। ब्रह्माण्ड केन्द्र से सीमा तक गति क्षेत्रों का वर्गीकरण मरुतों के रूप में है। अन्तिम मरुत् की सीमा हनुमान् है। इसी प्रकार सूर्य (विष्णु) के रथ या चक्र की सीमा हनुमान् है। ब्रह्माण्ड विष्णु के परम-पद के रूप में महाविष्णु है। दोनों हनुमान् द्वारा सीमा बद्ध हैं, अतः मनुष्य (कपि) रूप में भी हनुमान् के हृदय में प्रभु राम का वास है।
(५) २ प्रकार की सीमाओं को हरि कहते हैं-पिण्ड या मूर्त्ति की सीमा ऋक् है,उसकी महिमा साम है-ऋक्-सामे वै हरी (शतपथ ब्राह्मण ४/४/३/६)। पृथ्वी सतह पर हमारी सीमा क्षितिज है। उसमें २ प्रकार के हरि हैं-वास्तविक भूखण्ड जहां तक दृष्टि जाती है, ऋक् है। वह रेखा जहां राशिचक्र से मिलती है वह साम हरि है। इन दोनों का योजन शतपथ ब्राह्मण के काण्ड ४ अध्याय ४ के तीसरे ब्राह्मण में बता या है अतः इसको हारियोजन ग्रह कहते हैं। हारियोजन से होराइजन हुआ है।
(६) हारियोजन या पूर्व क्षितिज रेखा पर जब सूर्य आता है, उसे बाल सूर्य कहते हैं। मध्याह्न का युवक और सायं का वृद्ध है। इसी प्रकार गायत्री के रूप हैं। जब सूर्य का उदय दीखता है, उस समय वास्तव में उसका कुछ भाग क्षितिज रेखा के नीचे रहता है और वायुमण्डल में प्रकाश के वलन के कारण दीखने लगता है। सूर्य सिद्धान्त में सूर्य का व्यास ६५०० योजन कहा है, यह भ-योजन = २७ भू-योजन = प्रायः २१४ किमी. है। इसे सूर्य व्यास १३,९२,००० किमी. से तुलना कर देख सकते हैं। वलन के कारण जब पूरा सूर्य बिम्ब उदित दीखता है तो इसका २००० योजन भाग (प्रायः ४,२८,००० किमी.) हारियोजन द्वारा ग्रस्त रहता है। इसी को कहा है-बाल समय रवि भक्षि लियो …)। इसके कारण ३ लोकों पृथ्वी का क्षितिज, सौरमण्डल की सीमा तथा ब्रह्माण्ड की सीमा पर अन्धकार रहता है। यहां युग सहस्र का अर्थ युग्म-सहस्र = २००० योजन है जिसकी इकाई २१४ कि.मी. है।
तैत्तिरीय उपनिषद् शीक्षा वल्ली, अनुवाक् ३-अथाध्यात्मम्। अधरा हनुः पूर्वरूपं, उत्तरा हनुरुत्तर रूपम्। वाक् सन्धिः, जिह्वा सन्धानम्। इत्यध्यात्मम्।
अथ हारियोजनं गृह्णाति । छन्दांसि वै हारियोजनश्चन्दांस्येवैतत्संतर्पयति तस्माद्धारियोजनं गृह्णाति (शतपथ ब्राह्मण, ४/४/३/२) एवा ते हारियोजना सुवृक्ति ऋक् १/६१/१६, अथर्व २०/३५/१६) 
तद् यत् कम्पायमानो रेतो वर्षति तस्माद् वृषाकपिः, तद् वृषाकपेः वृषाकपित्वम्। (गोपथ ब्राह्मण उत्तर ६/१२)आदित्यो वै वृषाकपिः। ( गोपथ ब्राह्मण उत्तर ६/१०)स्तोको वै द्रप्सः। (गोपथ ब्राह्मण उत्तर २/१२)
✍🏻अरुण उपाध्याय
                   

*मैं बहुत सोचता हूं पर उत्तर नहीं मिलता*
*आप भी इन प्रश्नों पर गौर करना कि*…….

*1* जिस सम्राट के नाम के साथ संसार भर के इतिहासकार “महान” शब्द लगाते हैं…

*2* जिस सम्राट का राज चिन्ह अशोक चक्र भारत देश अपने झंडे में लगता है…..

*3*.जिस सम्राट का राज चिन्ह चारमुखी शेर को भारत देश राष्ट्रीय प्रतीक मानकर सरकार
चलाता है और सत्यमेव जयते को अपनाया गया…

*4*. जिस देश में सेना का सबसे बड़ा युद्ध सम्मान सम्राट अशोक के नाम पर अशोक चक्र दिया जाता है…

*5*. जिस सम्राट से पहले या बाद में कभी कोई ऐसा राजा या सम्राट नहीं हुआ, जिसने अखंड भारत (आज का नेपाल, बांग्लादेश, पूरा भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान) जितने बड़े भूभाग पर एक-छत्र राज किया हो…

*6* सम्राट अशोक के ही समय में 23 विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई जिसमें तक्षशिला, नालन्दा, विक्रमशिला, कंधार आदि विश्वविद्यालय प्रमुख थे। इन्हीं विश्वविद्यालयों में विदेश से कई छात्र शिक्षा पाने भारत आया करते थे…

*7*. जिस सम्राट के शासन काल को विश्व के बुद्धिजीवी और इतिहासकार भारतीय इतिहास का सबसे स्वर्णिम काल मानते हैं…

*8*.जिस सम्राट के शासन काल में भारत विश्व गुरु था, सोने की चिड़िया था, जनता खुशहाल और भेदभाव रहित थी…

*9*. जिस सम्राट के शासन काल में जी टी रोड जैसे कई हाईवे बने, पूरे रोड पर पेड़ लगाये गए, सराये बनायीं गईं, इंसान तो इंसान जानवरों के लिए भी प्रथम बार हॉस्पिटल खोले गए, जानवरों को मारना बंद करा दिया गया…

*_ऐसे महान सम्राट अशोक_*

जिनकी जयंती उनके अपने देश भारत में क्यों नहीं मनायी जाती, न ही कोई छुट्टी घोषित की गई है? अफ़सोस जिन लोगों को ये जयंती मनानी चाहिए, वो लोग अपना इतिहास ही भुला बैठे हैं और जो जानते हैं वो ना जाने क्यों मनाना नहीं चाहते।

*14 अप्रैल*
*जन्म वर्ष 302 ई पू*
*राजतिलक 268 ई पू*
*मृत्यु 232 ई पू*
*पिता का नाम बिन्दुसार*
*माता का नाम सुभद्राणी*

*1*. जो जीता वही चंद्रगुप्त ना होकर जो जीता वही सिकन्दर “कैसे” हो गया…? (जबकि ये बात सभी जानते हैं कि…
सिकन्दर की सेना ने चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रभाव को देखते हुए ही लड़ने से मना कर दिया था.. बहुत ही बुरी तरह से मनोबल टूट गया था… जिस कारण, सिकंदर ने मित्रता के तौर पर अपने सेनापति सेल्यूकस की बेटी की शादी चन्द्रगुप्त से की थी।)

*2*. महाराणा प्रताप ”महान” ना होकर … अकबर ”महान” कैसे हो गया? जब महाराणा प्रताप ने अकेले अपने दम पर उस अकबर की लाखों की सेना को घुटनों पर ला दिया था) 

*3*. सवाई जय सिंह को “महान वास्तुप्रिय” राजा ना कहकर शाहजहाँ को यह उपाधि किस आधार पर मिली?

*4*. जो स्थान महान मराठा क्षत्रीय वीर शिवाजी को मिलना चाहिये वो क्रूर औरंगज़ेब को क्यों और कैसे मिल गया?

*5*. स्वामी विवेकानंद और आचार्य चाणक्य की जगह विदेशियों को हिंदुस्तान पर क्यों थोंप दिया गया?

*6*. यहाँ तक कि भारत का राष्ट्रीय गान भी संस्कृत के वन्दे मातरम की जगह जन-गण-मन हो गया, कब, कैसे और क्यों हो गया?

*7*. और तो और हमारे आराध्य भगवान् राम, कृष्ण तो इतिहास से कहाँ और कब गायब हो गये पता ही नहीं चला … आखिर कैसे?

*8*. एक बानगी …. हमारे आराध्य भगवान राम की जन्मभूमि पावन अयोध्या … भी कब और कैसे विवादित बना दी गयी… हमें पता तक नहीं चला…

*9* गुरुकुल प्रथा समाप्त कर मदरसे कब और क्यूँ कर शुरू हो गए …

*10* ब्राह्मणों, पंडितों का तिरस्कार कर मौलवी कब प्रमुख हो गए और हिन्दु मंदिरों का चढ़ावा उनको खैरात में बांट दिया गया, क्यों और किस के कहने पर?

महाराष्ट्र के नागपुर निवासी RSS के बुजुर्ग प्रचारक नारायण भाऊराव दाभाडकर ने एक की जान बचाने के लिए अपना ICU बेड छोड़ कर स्वयं मृत्यु का व्रण इस लिए कर लिया, ताकि नयी पौध बची रहे। इस बुजुर्ग ने कहा हमने अपनी आयु पूरी कर ली मेरी जगह जवान का उपचार करो । यह मामला वहां के इंदिरा गांधी राजकीय चिकित्सालय का है। जहां वे कोरोना के उपचार हेतु भर्ती थे। तभी वहां एक महिला गंंभी स्थिति में अपने पति को लेकर पंहुुुची लेकिन वहां बेड खाली नहीं था। बीमार बुजुर्ग अपने प्राणों की परवाह किए बिना अपना बेड उन्हे देने का आग्रह किया। चिकित्सालय प्रशासन ने उनके स्वेच्छा से बेड छोड़ने की सहमति छोड़ लिखित लेकर। उनका बेड वहां आये जवान कोरोना पॉजिटिव को आवंटित कर दिया। तीन दिन बाद RSS के बुजुर्ग प्रचारक नारायण भाऊराव दाभाडकर नेे   शरीर छोड़ दिया। लेकिन वे मानवीय संवेदनाओं की मिशाल बन गये।