सरकारी विद्यालय को खड़ा कर दिया प्राईवेट के बरक्स और रूक गया पलायन

 

डाॅ. हरीश मैखुरी

यदि इच्छा शक्ति हो तो हम पत्थरों में भी  जान डाल सकते हैं, यह सिर्फ एक कहावत नहीं बल्कि सतत प्रयासों का एक प्रतिफल अवश्य मिलता है। अब हमारे सरकारी प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षक और अभिभावक भी  सचेत हो रहे हैं। चमोली जिले के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में शुमार लांजी द्वींग तिरोसी क्षेत्र आज भी संसाधनों के अभाव में भारी पलायन करने के लिए मजबूर था। लांजी प्राथमिक विदयालय की तस्वीर अध्यापकों की मेहनत से बदल रही है, लांजी सडक से लगभग 06 किमी दूर पैदल चढ़ने के बाद पहुंचते हैं । यहां के अध्यापक – अभिभावकों का सामुहिक प्रयास रंग लाया, अब विद्यालय में शिक्षकों के निजि प्रयासों से कम्प्यूटर आधारित शिक्षण किया जाता है। बच्चों को खूबसूरत स्कूल ड्रेस  बनवाई गई है। अध्यापकों के ऐसे प्रयास के चलते अब गांव वालों ने सिर्फ अपने बच्चों को पढ़ाने की खातिर गांव छोड़कर छोटे छोटे कस्बों और शहरों में जाने वाली इच्छा त्याग कर अपने बच्चों को गांव में ही पढ़ाना शुरू कर दिया है। इसी का प्रतिफल है कि गांव में सुंदर ड्रेसअप कंप्यूटर सीखते बच्चे और हिंदी के साथ अंग्रेजी संस्कृत भाषा में भी दक्षता हासिल करते बच्चे दिखने लगे हैं। गांव के प्रधान ने बताया कि  जब गांव में अच्छा प्राथमिक विद्यालय हो गया  और उसकी स्थिति सुधर गई तो, जो लोग पहले  सिर्फ बच्चों को पढ़ाने के लिए  पीपलकोटी, गोपेश्वर चमोली जैसे शहरों का रुख कर रहे थे,  वे अब  गांव में ही रुक गए हैं। अध्यापक विनय डिमरी ने बताया कि शिक्षक तो केवल प्रयास कर सकता है,  सहयोग गांव वाले ही कर सकते हैं, इसी से हमारे गांव की दशा और दिशा सुधरेगी।  शिक्षा विभाग को इस विद्यालय के शिक्षकों द्वारा किए गए प्रयोग का अनुसरण करने की नीति पर विचार करके अन्य स्कूलों में भी ऐसे प्रयास जमीनी स्तर पर शुरू करने होंगे।