सावधान! आरटीआई में बड़ा खुलासा, दून में बिक रहा जहरीला मांस, बिना जांच के ही कट रहे हैं बकरे और मुर्गे, अपनी मृत्यु और अपनों की मृत्यु डरावनी लगती है। बाकी तो मौत को enjoy ही करता है व्यक्ति

बड़ा खुलासा: हो जाओं सावधान! आरटीआई में बड़ा खुलासा, दून में बिक रहा जहरीला मांस, बिना जांच के ही कट रहे हैं बकरे और मुर्गे, बेपरवाह है नगर निगम, उड़ रही नियमों की धज्जियां। 

देहरादून। सावधान, यदि आप मांसाहारी हैं तो जान लीजिए जिस चिकन या मीट को आप खा रहे हैं, वह विषाक्त या रोगग्रस्त हो सकता है। देहरादून में नियमों को ताक पर रखकर मांस बेचा जा रहा है। स्लाटर हाउस में कट रहे बकरे और मुर्गाे के स्वास्थ्य की जांच नहीं हो रही है। नगर निगम को यह भी नहीं पता कि यह बकरे और मुर्गे कहां से आ रहे हैं और कहां काटे जा रहे हैं।

आरटीआई एक्टिविस्ट एडवोकेट विकेश नेगी ने नगर निगम से देहरादून में बिक रहे मांस को लेकर सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत नौ बिंदुओं पर सूचना मांगी थी। इसके अधिकांश जवाब नगर निगम के पास नहीं हैं। नगर निगम के लोकसूचना अधिकारी रवींद्र दयाल ने सूचना में बताया है कि देहरादून में महज एक ही स्लाटर हाउस भंडारी बाग में है। सूचना में यह नहीं बताया गया है कि इसमें प्रतिदिन कितने बकरे कटते हैं।

सूचना के अन्तर्गत मांगी गयी जानकारी कि एक सितम्बर से अब तक स्लाटर हाउस में कितने बकरे कटे? इसका जवाब मिला कि सूचना धारित नहंी है। यानी निगम के पास रिकार्ड ही नहीं है कि स्लाटर हाउस में कितने बकरे कट रहे हैं। यह सूचना भी धारित नहीं है कि जिन बकरों को काटा जा रहा है तो क्या उनका मेडिकल होता है? न ही डाक्टरों द्वारा बकरों को प्रमाणपत्र की बात है। शहर में मीट की दुकानों की भी निगम के पास कोई जानकारी नहंी है।

एडवोकेट विकेश नेगी के अनुसार सूचना के तहत जिस स्लाटर हाउस का जिक्र है, वह स्लाटर हाउस 2019 में ही बंद हो गया था। उन्होंने कहा कि निगम अपने ही नियमों की धज्जियां उड़ा रहा है। उनका कहना है कि पांच मार्च 2016 के गजट में नगर निगम देहरादून ने पशुवध गृहों के निरीक्षण और विनियमन के लिए नगर निगम देहरादून पशुवध शाला उपविधि 2015 में उल्लेख किया था कि किसी भी पशु का तब तक वध नहंी किया जाएगा जब तक उसे सक्षम निरीक्षण अधिकारी द्वारा वध के लिए उपयुक्त न पाया गया हो। यह भी नियम बनाया गया कि नगर निगम वधशाला में पशु के स्वास्थ्य की जांच सक्षम अधिकारी द्वारा की जाएगी कि इसका मांस मनुष्य के खाने के लिए उपयुक्त है। पशु बीमार या विकलांग तो नहीं है। अधिक उम्र का तो नहीं है या अग्रिम गर्भावस्था में नहीं है। शिशु पशु को दुग्धपान तो नहीं करा रहा है।

एडवोकेट विकेश सिंह नेगी का कहना है कि काटने से पहले जानवरों का मेडिकल तक नहीं कराया जाता है। जब उन्होंने ने नगर निगम से जानवरों को काटने से पहले मेडिकल और खून जांच की रिपोर्ट मांगी तो नगर निगम ने ऐसी किसी रिपोर्ट देने से इंकार कर दिया। नगर निगम के अनुसार उनके पास ऐसी कोई रिपोर्ट उपलब्ध नहीं है। विकेश नेगी का कहना है कि नगर निगम की लापरवाही के कारण आम जनमानस बीमारी से ग्रस्त पशुओं का मांस खाने को भी मजबूर हैं। पशुचिकित्सकों का कहना है कि इंसान की तरह ही पशुओं में भी तमाम तरह की गंभीर बीमारियां पाई जाती है। बीमार पशुंओं को खाने से व्यक्ति न केवल बीमार पड़ सकता है बल्कि उसकी जान भी जा सकती है।

एडवोकेट विकेश सिंह नेगी के अनुसार नगर निगम लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है। शहर में बिक रहा मांस जहरीला हो सकता है या इससे मनुष्यों में संक्रामक रोग भी फैल सकता है। उन्होंने कहा कि निगम को नियमों के तहत ही मीट की दुकानों पर मांस बेचने की व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए।

एडवोकेट विकेश सिंह नेगी के अनुसार गजट नोटिफिकेशन के अुनसार 30 जनवरी महात्मा गांधी शहीद दिवस, महावीर जंयती, महाशिव रात्रि, बुद्व पुर्णिमा, भद्र शुक्ल पंचमी, अंतत चर्तुदर्शी जनमाष्टमी, महावीर जंयती व 2 अक्टूबर को भी दुकाने खुली रहती हैं जबकि सरकारी नियम के अनुसार इस दिन दुकाने बंद होनी चाहिए। 

नियम के अनुसार खुले स्थानों, सार्वजनिक स्थानों पर और सड़क के अगल-बगल फुटपाथ पर खुले में किसी भी तरह का मांस मछली नहीं बिक सकती लेकिन समग्र उत्तराखंड में कसाईयों द्वारा इस तरह की दुकानें धड़ल्ले से चल रही हैं। कसाईयों ने मंदिर जाने के मार्ग भी नहीं छोड़े हैं। देहरादून शहर जहां सभी नियम कानूनों के पुरोधा रहते हैं वहां भी ऐतिहासिक गौतम कुंड जाने वाले चंद्रबनी रोड़, माता मंदिर रोड़, चारों सिद्धों के मोटर रोड़ और यहां तक कि देवभूमि की अस्थायी राजधानी देहरादून द्वार आईएसबीटी, अंहिसा के पुजारी महात्मा गांधी रोड़ पर कसाई खाने और खुलेआम मांस परोसने वाले अस्वास्थ्यकर होटलों के लिए कोई निमय कानून लागू नहीं होता वे कानून को ठेंगे पर रखते हैं। होटलों पर लटके कटे हुए पशु और मुर्गे देवभूमि की साख पर बट्टा तो लगाते ही हैं खुलेआम लोगों के स्वास्थ्य और शाकाहारी लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ भी है, इन पर कार्यवाही क्यों नहीं होती इसको समझने की आवश्यकता है। ✍️संपादक 
यदि आप में मनुष्यता है आपकी संवेदना जीवित है या आप मनुष्य बनना चाहते हैं तो पूरा पढ़ने का कष्ट करें।
ll अहिंसा परमो धर्म: ll
*◆ अपनी मृत्यु और अपनों की मृत्यु डरावनी लगती है। बाकी तो मौत को enjoy ही करता है व्यक्ति ……*
मौत के स्वाद का 
चटखारे लेता मनुष्य …
थोड़ा कड़वा लिखा है पर मन का लिखा है …
मौत से प्यार नहीं , मौत तो हमारा स्वाद है।
बकरे का, 
गाय का,
भैंस का,
ऊँट का,
सुअर,
हिरण का,
पाए का, 
तीतर का, 
मुर्गे का, 
हलाल का, 
बिना हलाल का, 
झटके का,
ताजा बकरे का, 
भुना हुआ,
छोटी मछली, 
बड़ी मछली, 
हल्की आंच पर सिका हुआ। 
और न जाने कितने बल्कि अनगिनत स्वाद हैं मौत के।
क्योंकि मौत किसी और की, और स्वाद हमारा….
स्वाद से कारोबार बन गई मौत। 
मुर्गी पालन, मछली पालन, बकरी पालन, पोल्ट्री फार्म्स।
नाम “पालन” और उद्देश्य “हत्या”। स्लाटर हाउस तक खोल दिये। वो भी ऑफिशियल। गली गली में खुले नान वेज रेस्टॉरेंट, मौत का व्यापार नहीं तो और क्या हैं ? मौत से प्यार और उसका व्यापार इसलिए क्योंकि मौत हमारी नही है।
 जो हमारी तरह बोल नही सकते, 
अभिव्यक्त नही कर सकते, अपनी सुरक्षा स्वयं करने में समर्थ नहीं हैं, 
उनकी असहायता को हमने अपना बल कैसे मान लिया ?
 कैसे मान लिया कि उनमें भावनाएं नहीं होतीं ?
 या उनकी आहें नहीं निकलतीं ?
डाइनिंग टेबल पर हड्डियां नोचते बाप बच्चों को सीख देते है, बेटा कभी किसी का दिल नही दुखाना ! किसी की आहें मत लेना ! किसी की आंख में तुम्हारी वजह से आंसू नहीं आना चाहिए ! 
बच्चों में झुठे संस्कार डालते बाप को, अपने हाथ मे वो हडडी दिखाई नही देती, जो इससे पहले एक शरीर थी, जिसके अंदर इससे पहले एक आत्मा थी, उसकी भी एक मां थी …??
जिसे काटा गया होगा ? 
जो कराहा होगा ? 
जो तड़पा होगा ? 
जिसकी आहें निकली होंगी ? 
जिसने बद्दुआ भी दी होगी ?
जिसकी अन्तरात्मा में से चीत्कार निकली होगी?
 कैसे मान लिया कि जब जब  धरती पर अत्याचार बढ़ेंगे तो
भगवान सिर्फ तुम मनुष्यों की रक्षा के लिए अवतार लेंगे  ..?
क्या मूक जानवर उस परमपिता परमेश्वर की संतान नहीं हैं ..? 
क्या उस ईश्वर को उनकी रक्षा की चिंता नहीं है  ..?
आज कोरोना वायरस उन जानवरों के लिए, ईश्वर के अवतार से कम नहीं है। 
जब से इस वायरस का कहर बरपा है, 
जानवर स्वच्छंद घूम रहे है ।
पक्षी चहचहा रहे हैं। 
उन्हें पहली बार इस धरती पर अपना भी कुछ अधिकार सा नज़र आया है। पेड़ पौधे ऐसे लहलहा रहे हैं, जैसे उन्हें नई जिंदगी मिली हो। धरती को भी जैसे सांस लेना आसान हो गया हो।
सृष्टि के निर्माता द्वारा रचित करोङो करोड़ योनियों में से एक कोरोना ने हमें हमारी औकात बता दी। घर में घुस के मारा है और मार रहा है। और उसका हम सब, कुछ नही बिगाड़ सकते। अब घंटियां बजा रहे हो, प्रार्थना कर रहे हो, प्रेयर कर रहे हो और भीख मांग रहे हो उससे, कि वो हमें बचा ले।
धर्म की आड़ में उस परमपिता के नाम पर अपने स्वाद के लिए कभी ईद पर बकरे काटते हो, कभी दुर्गा माँ या भैरव बाबा के सामने बकरे की बली चढ़ाते हो।
कहीं तुम अपने स्वाद के लिए मछली का भोग लगाते हो । 
कभी सोचा …!!!
क्या ईश्वर का स्वाद होता है ? ….क्या है उनका भोजन ?
किसे ठग रहे हो ?
भगवान को ? 
अल्लाह को ?  
जीसस को?
या खुद को ?
मंगलवार को नानवेज नही खाता …!!!
आज शनिवार है इसलिए नहीं …!!!
अभी रोज़े चल रहे हैं ….!!!
नवरात्रि में तो सवाल ही नही उठता ….!!!
झूठ पर झूठ….
…झूठ पर झूठ
..झूठ पर झूठ …!!
फिर कुतर्क सुनो…..फल सब्जियों में भी तो जान होती है …?
 …..तो सुनो फल सब्जियाँ संसर्ग नहीं करतीं, ना ही वो किसी प्राण को जन्म देती हैं । 
इसी लिए उनका भोजन उचित है। 
ईश्वर ने बुद्धि सिर्फ तुम्हे दी । ताकि तमाम योनियों में भटकने के बाद मानव योनि में तुम जन्म मृत्यु के चक्र से निकलने का रास्ता ढूँढ सको। लेकिन तुमने इस मानव योनि को पाते ही स्वयं को भगवान समझ लिया।
तुम्ही कहते थे, की हम जो प्रकति को देंगे, वही प्रकृति हमे लौटायेगी। मौते दीं हैं हमने प्रकृति को, तो मौतें ही लौट रही हैं।
बढो …!!!
आलिंगन करो मौत का ….!!!
यह संकेत है ईश्वर का। 
प्रकृति के साथ रहो।
प्रकृति के होकर रहो।
वर्ना … ईश्वर अपनी ही बनाई कई योनियों को धरती से हमेशा के लिए विलुप्त कर चुके हैं। और आगे भी ऐसा करने में उन्हें एक क्षण भी नही लगेगा। 
इसलिये स्वाद के लिए प्राणी हत्या बंद कीजिए इंसान शाकाहार के लिए बना है मांसाहार के लिए नही🙏
* शोध अध्ययनों की जानकारी के अनुसार शाकाहारी मनुष्य का जीवन मांसाहारियों से अधिक स्वस्थ और दीर्घायु होता है यही नहीं वे अपेक्षाकृत अधिक संतुष्टि के साथ ही शुचिता पूर्ण जीवन भी जीते हैं। इसलिए भी शाकाहार अपना कर स्वस्थ रहे प्रसन्न रहें और जीव हत्या के पाप से बचे.*
शायद जगाने में सफल रहा हूँ। एक प्रयास शेयर का तो अवश्य कीजिये।