आज का पंचाग आपका राशि फल, राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन में संस्कृत का योगदान, चारधाम यात्रा का टूटा रिकार्ड 47 लाख श्रद्धालु पंहुचे, थाईलैंडथाईलैंड फिल्मों के सुपरस्टार आटिचार्ट और उनकी मां साकरिक ने वाराणसी के नमो घाट पर त्रिपिंडी श्राद्ध करते हुए गंगा में किया तर्पण, लेबनान का कैसे हुआ इस्लामीकरण, जब कमला नेहरू को हुआ क्षय रोग तब सुभाष चंद्र बोस ने की स्विट्जरलैंड में उपचार की व्यवस्था

*समस्याएं इतनी शक्तिशाली नहीं हो सकती जितना हम इन्हें मान लेते हैं, कभी सुना है कि* *“ अंधेरों ने सुबह ही ना होने दी हो ”*

*भलाई करते रहिए बहते पानी की तरह,*

*बुराई खुद ही किनारे लग जाएगी कचरे की तरह…*

*आप का दिन शुभ, जीवन सुखी और, समय अनुकूल हो।*

चारधाम यात्रा में इस बार बना नया रिकॉर्ड

यात्रा में इस बार श्रद्धालुओं की संख्या का नया रिकॉर्ड बना

चारधाम यात्रा में इस साल अभी तक 46.48 लाख श्रद्धालुओं ने किए दर्शन

अभी यात्रा को पूरा होने में दो महीने के करीब का है समय

पिछले साल के 46.27 लाख श्रद्धालुओं ने किए थे दर्शन। 

*🚩🔱❄«ॐ»«ॐ»«ॐ»❄🔱🚩*

🌞🛕🛕 *जय रामजी की*🛕🛕🌞

        🌺 *जय श्री राधेकृष्णा*🌺

       🔔 *बम महाँकाल बाबा*🔔

     🏹 *जय माँ जगदम्ब भवानी*🏹

       *🐀🐘जय श्री गणेश🐘🐀*

※══❖═══▩ஜ ۩۞۩ ஜ▩═══❖══※

दिनांक:-07-अक्टूबर-2023

वार:-शनिवार 

तिथि :-08अष्टमी:-08:08

पक्ष:-कृष्णपक्ष

माह:-आश्विन 

नक्षत्र:-पुनर्वसु:-23:57

योग:-शिव:-30:03

करण:-कोलव:-08:08

चन्द्रमा:-मिथुन17:18/कर्क 

सुर्योदय:-06:31

सुर्यास्त:-18:08

दिशा शुल…..पूर्व

निवारण उपाय:-उङद का सेवन

ऋतु :-शरद ऋतु 

गुलिक काल:-06:22से 07:50

राहू काल:-09:18से10:46

अभीजित….11:51से12:38

विक्रम सम्वंत ………2080

शक सम्वंत …………1945

युगाब्द ………………5125

सम्वंत सर नाम:-पिंगल

      🌞चोघङिया दिन🌞

शुभ:-07:50से09:18तक

चंचल:-12:15से13:43तक

लाभ:-13:43से15:11तक

अमृत:-15:11से16:40तक

      🌗चोघङिया रात🌓

लाभ:-18:08से19:40तक

शुभ:-21:11से22:43तक

अमृत:-22:43से00:15तक

चंचल:-00:15से01:47तक

लाभ:-04:50से06:22तक

🌸आज के विशेष योग🌸

वर्ष का199वाँ दिन, नवमी श्राद्ध सौभाग्वती श्राद्ध, बुध हस्त पर 14:34, दग्धयोग 08:08 से 30:31,

  🌺👉वास्तु टिपस 👈🌺

पितृ पक्ष के दौरान पितरों के निमित्त तर्पण, पिंडदान जरुर करवाएं।

     सुविचार

सोच का ही फर्क होता है वरना समस्याएं आपको कमजोर नहीं बल्कि मजबुत बनाने आती है।👍

   *💊💉आरोग्य उपाय🌱🌿*

*लौंग से घरेलु उपचार -*

♟. सर्दी-जुकाम की समस्या के वक्त मुंह में साबुत लौंग रखने से जुकाम के साथ ही गले में होने वाले दर्द से भी काफी आराम मिलता है।

♟. लोगों को मुंह से बदबू आने की शिकायत रहती है। ऐसे लोगों के लिए लौंगे बहुत ही फायदेमंद है। 40 से 45 दिनों तक रोज सुबह मुंह में साबुत लौंग का सेवन करने से इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है।

      *🐑🐂 राशिफल🐊🐬*

🐏 *राशि फलादेश मेष :-*

*(चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, आ)*

अच्छे लोगों का साथ लाभदायक रहेगा। पूजा-पाठ में मन लगेगा। कोर्ट-कचहरी व सरकारी कार्यालयों में रुके काम मनोनुकूल रहेंगे। लाभ के अवसर हाथ आएंगे। जीवनसाथी के स्वास्थ्य की चिंता रह सकती है। लेन-देन में जल्दबाजी बिलकुल न करें।

🐂 *राशि फलादेश वृष :-*

*(ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)*

किसी दुष्ट व्यक्ति से हानि की आशंका है, सावधान रहें। वाहन व मशीनरी के प्रयोग में लापरवाही न करें। शारीरिक हानि की आशंका है। क्रोध व उत्तेजना पर नियंत्रण रखें। व्यापार-व्यवसाय ठीक चलेगा। आय बनी रहेगी। धैर्य रखें ।

👫 *राशि फलादेश मिथुन :-*

*(का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, ह)*

शारीरिक कष्ट की आशंका है। विवाद से बचें। कानूनी अड़चन दूर होकर स्‍थिति अनुकूल होगी। जीवनसाथी से सहयोग प्राप्त होगा। शत्रुभय रहेगा। धनहानि हो सकती है। भावना पर नियंत्रण रखें। लाभ के अवसर हाथ आएंगे। निवेश शुभ रहेगा। 

🦀 *राशि फलादेश कर्क :-*

*(ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)*

शत्रुओं का पराभव होगा। संपत्ति की खरीद-फरोख्त लाभदायक रहेगी। बेरोजगारी दूर करने के प्रयास सफल रहेंगे। नौकरी में चैन रहेगा। किसी पुरानी बीमारी से परेशानी हो सकती है। नए मित्र बनेंगे। विवेक का प्रयोग करें। लाभ में वृद्धि होगी। 

🦁 *राशि फलादेश सिंह :-*

*(मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)*

स्वास्थ्य का पाया कमजोर रह सकता है। अज्ञात भय रहेगा। कोई बुरी खबर प्राप्त हो सकती है। किसी आनंदोत्सव में भाग लेने का अवसर प्राप्त हो सकता है। व्यापार-व्यवसाय अच्‍छा चलेगा। स्वादिष्ट व्यंजनों का आनंद प्राप्त होगा। धनार्जन होगा। 

👩🏻‍🦰 *राशि फलादेश कन्या :-*

*(ढो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)*

शारीरिक कष्ट से कार्यों में बाधा उत्पन्न हो सकती है। दु:खद समाचार मिलने की आशंका है, धैर्य रखें। विवाद को बढ़ावा न दें। दौड़धूप अधिक रहेगी। लाभ के अवसर हाथ से निकल सकते हैं। आय में निश्चितता रहेगी। जोखिम न लें।

⚖ *राशि फलादेश तुला :-*

*(रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)*

विवाद से बचें। शत्रु पस्त होंगे। थोड़े प्रयास से रुके कार्य बनेंगे। जोखिम उठाने का साहस कर पाएंगे। समाजसेवा करने की प्रेरणा प्राप्त होगी। मान-सम्मान मिलेगा। आय के नए स्रोत प्राप्त होंगे। धन प्राप्ति सुगम होगी। 

🦂 *राशि फलादेश वृश्चिक :-*

*(तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)*

थकान व कमजोरी रह सकती है। लेन-देन में जल्दबाजी न करें। घर में मेहमानों का आगमन हो सकता है। व्यय होगा। शुभ समाचार प्राप्त होगा। घर-बाहर प्रसन्नता का माहौल बनेगा। धन प्राप्ति सुगम होगी। संतान पक्ष की चिंता रहेगी। 

🏹 *राशि फलादेश धनु :-*

*(ये, यो, भा, भी, भू, धा, फा, ढा, भे)*

किसी अनहोनी की आशंका रहेगी। थकान व कमजोरी रह सकती है। अप्रत्याशित लाभ की संभावना है। व्यावसायिक यात्रा लंबी हो सकती है। लाभ होगा। बेरोजगारी दूर करने के प्रयास सफल रहेंगे। भाग्य की अनुकूलता बनी रहेगी। 

🐊 *राशि फलादेश मकर :-*

*(भो, जा, जी, खी, खू, खे, खो, गा, गी)*

स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखें। कोई अप्रत्याशित खर्च सामने आ सकता है। आर्थिक स्थिति बिगड़ सकती है। किसी व्यक्ति से कहासुनी हो सकती है। अपेक्षित कार्यों में विलंब होगा। चिंता तथा तनाव रहेंगे। आय बनी रहेगी। 

🏺 *राशि फलादेश कुंभ :-*

*(गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)*

प्रेम-प्रसंग में जल्दबाजी न करें। तनाव रह सकता है। बकाया वसूली के प्रयास सफल रहेंगे। व्यावसायिक यात्रा सफल रहेगी। नए काम मिल सकते हैं। आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी। नौकरी में प्रभाव बढ़ेगा। उत्साह व प्रसन्नता रहेंगे। 

🐡 *राशि फलादेश मीन :-*

*(दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)*

किसी भी तरह की झंझट में न पड़ें। हल्की हंसी-मजाक करने से बचें। नई योजना बनेगी। तत्काल लाभ नहीं मिलेगा। कार्यप्रणाली में सुधार होगा। आय के नए स्रोत प्राप्त होने के योग हैं। मित्रों व रिश्तेदारों की सहायता कर पाएंगे। धनार्जन होगा।

      *🎊🎉🎁 आज जिनका जन्मदिवस या विवाह वर्षगांठ हैं उन सभी मित्रो को कोटिशः शुभकामनायें🎁🎊🎉*

※══❖═══▩ஜ ۩۞۩ ஜ▩═══❖══※

     *🚩जयतु जयतु हिन्दुराष्ट्रम🚩*

  _*👸🏻बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ👧🏻*_

थाईलैंड फिल्मों के सुपरस्टार आटिचार्ट और उनकी मां साकरिक ने वाराणसी के नमो घाट पर त्रिपिंडी श्राद्ध करते हुए गंगा में तर्पण किया. वे थाईलैंड के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ वाराणसी पहुंचे हैं. इस दौरान आटिचार्ट ने कहा कि वे अपने जीवन में हिंदू रीति रिवाजों का पालन करते हैं. अल तरफ दुनिया प्रभु के चरणों में ख़ुद को समर्पित कर रही है दूसरी तरफ हमारे देश के कुछ नवबौद्ध हैं जो………

‘वन्दे मातरम्’ संस्कृत है स्वाधीनता आंदोलन में वन्देमातरम का योगदान सब को ज्ञात है।

लोग जागरुक नहीं हैं कि संस्कृत को अपनी भाषा में सम्मिलित बताएं। अन्यथा

यह कहना षड्यंत्र प्रतीत होगा कि केवल दो हजार लोग संस्कृत भाषी है।

भारतीय भाषाओं पर कार्य करनेवाले विद्वान जानते हैं कि संस्कृत सभी भाषाओं में व्याप्त है।
भाषा सर्वेक्षण का आधार ग्रियर्सन छाप है तो अंग्रेजी राज के प्रविधि को बदलना होगा।

भाषाएं एकमेक मणिप्रवाल न्याय या जलवीचि सम गूंथी हुई है।
अर्थ की दृष्टि से शब्दानुशासन एक समान है। संस्कृत के धातु का प्रयोग सभी भाषाएं करती हैं।
संस्कृत ही धातु का निर्णायक है। यूज, पुट, लुक इत्यादि धातु अंग्रेजी कर रही है।

इव (एक्टिव) इत (ed) प्रत्यय कथित/काल्ड अंग्रेजी प्रयोग कर रही है।

किसी संस्कृतज्ञ ने हिसाब ले लिया तो फिर अंग्रेजी कितनी संस्कृत है? यह प्रश्न उठेगा।

जीतने के लिए खेल का नियम बदल दिया जाता है।
भाषा के सर्वेक्षण का पैमाना बदलना होगा। 😄🍂
✍🏻प्रमोद दुबे

😄🍂
लुक / look अँग्रेजी नहीं, संस्कृत धातु है‌।
लुक धातु का सीधा प्रयोग लोक भाषाओं में होता है- लउकल, लुकाइल। लुकारी- मशाल प्रकाशबोधक, लवका- बिजली, चमक प्रकाशबोधक। लउकना, लौकना = दिखना| अवलोकन।

लुक धातु से लोक, लोचन लोचन, रोशन आदि शब्द बनते हैं। लुच = लुक। रोचन वैरोचनी रौशनी।

आप असहमत हो सकते हैं या सहमत लेकिन–

शब्द सिद्धि के घेरे में जो शब्द आ जाता है वह सब संस्कृत हो जाता है।

गं धातु से गमन और go शब्द भी बनता है गीता में अध्याय- 6 देखिए “वायु गो महान” मिलेगा।

गं से ही गली, गलियारा, गैलरी की शब्द सिद्धि होगी। क्रीणाति से कीनना और खरीद दोनों शब्द बनता है।

वैश्वीकरण और बहुभाषिक युग- जमाना है। आप जानते हैं लोकल और ग्लोबल का खेल।

स्थ धातु से स्थान शब्द बनता है और स्टे और स्टेशन भी।

उर्दू तो भारतोत्पन्न भाषा है हमारा दावा फारसी और अँग्रेजी पर भी है अन्य भाषाओं पर भी।

दावा ठोकिए वरना अँग्रेजी आपके भाषिक अस्तित्व को निगलने को तैयार है।
जुगाड़ अँग्रेजी हो गया है जोगार टेक्नोलाजी।
तौहीन > तव हिनत्व से हमें बचना चाहिए।😀

मित, सीमित शब्द ‘थोड़े’ के सन्दर्भ प्रयुक्त होता है

‘सीमित’ इंग्लिश सूट पहन ‘लिमिट’ हो जाता है,
और,
अमित हो जाता है अनलिमिट

t का उच्चारण ‘ट’ और ‘त’ में समान है

जब संस्कृत में बहु वचन बोलते हैं
तो कुछ यूँ –

यूयं पठत > तुम सब पढ़ो
यूयं रटत > तुम सब रटो
यूयं लिखत > तुम सब लिखो

अब अंग्रेज यूयं में से यू तो ले ही गए you कह के
और;
अहं सीधा-सीधा i am है
✍🏻 सोमदत्त

का हो !
दो शब्द जो हेलो, हाय, हालचाल पूछना, सम्बन्धकारक आभाषण की प्रस्तावना और अभिवादन भी हैं , इसका संस्कृत वर्जन है किम् भो!
अब कहाँ शुद्ध स्वदेशी अपनी माटी की सुवास लिये अपनत्व की स्निग्धता युक्त सरस वाक् के दो टूक “का हो!” और कहाँ ये कृत्रिम विजातीय विदेशी गाली सा ‘भो’ .. किम्भो .. किं भो ।

एक ज्योतिषी हुये आर्य्यभट, कुछ लोगों का कहना है कि ये केरळ के थे, किन्तु इनकी पढ़ाई लिखाई कुसुमपुर में हुई थी। कुसुमपुर पूरब का ही कोई स्थल था और कुछ के अनुसार यह पटना था। एक बात तय जान पड़ती है कि यह पूर्वांचल में ही था । जहाँ परस्पर वार्तालाप ही ” का हो ” से ही आरम्भ होती होगी। “का हो” का प्रभाव उनकी आर्यभटीय में साफ देखा जा सकता है। आर्यभटीय आर्या छन्द में रचा गया ज्योतिष का तत्कालीन उत्कृष्ट ग्रन्थ है, यह ग्रन्थ चार पादों में विभाजित है। गीतिकापाद में आर्य्यभट ने पाँचवीं गीतिका इस प्रकार कही-
काहो मनवो ढ, मनुयुगाः श्ख, गतास्ते च, मनुयुगाः छ्ना च।
कल्पादेर्युगपादा ग च, गुरु दिवसाच्च, भारतात् पूर्वम्॥

अर्थ- काहो मनवो ढ १४ मनुयुग श्ख ७२ गतास्ते च ६ मनुयुग छूना ७२ च। कल्पादेर्युगपादा ग च गुरुदिवसाच्च भारतात्पूर्वम् ।

काहो मनवो ढ, मनुयुगा श्ख। (आर्यभटीय १/५)

= क= ब्रह्मा के अहः (दिन) में मनु, ढ =१४ हैं, मनु में युग = श्ख =७०+२ = ७२ हैं। कल्प के प्रारम्भ से लेकर , (कलियुग)
भारत (महाभारत) के पूर्व ६ मनु गत होकर , ७वें मनु के २७ युग तथा ३ युगपाद व्यतीत हुये, उस दिन बृहस्पतिवार था।

#काहो माने Hello ! how are you!?
Hi dude! What is going on!?
और

काहो…!?

अब एक और अफवाह फैलाई जा रही है , ग्राहम बेल के विषय में, “हैलो” को उसकी पत्नी का नाम कहकर प्रचारित करने में लग गये!

ग्राह्म बेल की महिला मित्र जो उसकी पत्नी बनी ,उसका नाम “मेबेल हब्बार्ड” था ।
ग्राहम बेल की माता और पत्नी दोनों ही बधिर थीं । (यह भी विशेष बात है , आविष्कार की प्रेरणा ?).

“सख्यौ हला “
संस्कृत नाटकों में स्त्रियाँ अपनी सखी को “हला” कहकर पुकारती हैं ।
प्राचीन काल मे अपभ्रंश को ‘म्लेच्छ’ उच्चारण कहते थे ।
शतपथब्राह्मण में ‘ ते असुरा आत्त वचसो हे अलवो हे अलव इति ।‘
असुर लोग हे अलव ! , हे अलव ! कहते थे । महाभाष्य में भी ‘’ ते असुरा हेलयो हेलय इति कुर्वन्तः । असुर लोग हेलयो हेलय करते हैं।
‘ म्लेच्छ अव्यक्ते शब्दे ‘ जिससे शब्द का उच्चारण शुद्ध न हो वह ‘ म्लेच्छ ‘ है ।
– शतपथब्राह्मण और महाभाष्य का हेअलवो और हेअलयो ही टेलीफोन का “ हेलो “ हो गया है ।
हल्ला भी यही है ।
✍🏻 अत्रि विक्रमार्क

#पितृव्य

हिन्दी में ‘काका’ के लिए चाचा शब्द रूढ़ हो गया है। लेकिन महाभारत धारावाहिक जैसे पीरियड फिल्म और सीरियल चाचा या चचा बोलकर किसी चरित्र का संबोधन नही करवा सकते हैं।

इसलिए वे ‘काकाश्री’ जैसे शब्द गढ़कर मध्य मार्ग अपना लेते हैं।

आज यदि किसी को ‘काका’ का तत्सम शब्द #पितृव्य लिखने बोलने या व्यवहार के लिए कहा जाए तो वह नाक-भौं सिकोड़ने लगेगा। आउटडेटेड कहेगा। हम अपने शब्दों का व्यवहार नहीं करेंगे तो स्वाभाविक है कि अगली पीढ़ी की अवचेतन बुद्धि से वह शब्द विलुप्त होने लगेगा।

सबसे पहले मैंने पितृव्य शब्द को पुस्तक #हिन्दी_साहित्य_की_भूमिका में आचार्य द्विवेदी जी द्वारा प्रयुक्त देखा था, इस पुस्तक को उन्होंने अपने पितृव्य को समर्पित किया है।

हम अपने शब्दों को भूलेंगे तो निश्चय ही हमें परभाषाजीवी बनना ही पड़ेगा।

हम प्रसन्न हो सकते हैं कि हमारी भाषा में बहुत विदेशी शब्दों को खूब स्थान दिया गया है!
✍🏻गजेंद्र कुमार पाटीदार

परस्पर सुसंस्कृत संबोधनों की जगह भद्दे संबोधनों का लज्जास्पद चलन
यदि हम महाभारत तथा अन्य इतिहास ग्रंथों और श्रेष्ठ साहित्य एवं धर्मशास्त्र को पढ़ने लगें तो हमें इन दिनों हमारे घरों में पति और पत्नी के लिये प्रयुक्त भद्दे संबोधनों पर गहरी लज्जा अवश्य होगी।
अपनी प्रिया पत्नी के लिये हमारे समस्त वांग्मय में कितने सुन्दर संबोधन भरे पड़े हैं। मैं इन दिनों महाभारत पर बोल रही हूं और फिर से वह सब सामने आ रहा है। दुष्यंत और शकुन्तला का ही संवाद ही लें जो आदिपर्व में वर्णित है – दुष्यंत शकुन्तला को देवि, विशाल लोचने, कल्याणी, सुभगे आदि संबोधनों से ही संबोधित करते हैं। इसी प्रकार अन्यत्र भी वरारोहे, शुचिस्मिते, आर्ये आदि सुन्दर संबोधन हैं। पत्नी को कांता, कमललोचने, सहधर्मचारिणी, प्रिया, प्रियतमा, सुन्दरी आदि संबोधन संस्कृत साहित्य में भरे पड़े हैं।
परन्तु इन सुन्दर और श्रेष्ठ शब्दों के प्रयोग में वर्तमान शिक्षित हिन्दू ईसाइयों और म्लेच्छों के दबाव में शर्माते हैं और उसकी जगह इन भद्दे संबोधनों और शब्दों का प्रयोग करते हैं – ये मेरी वाइफ हैं, श्रीमती हैं, बीबी हैं, मिसेज हैं आदि-आदि। इन घटिया शब्दों का प्रयोग करने में किसी भी संस्कारी हिन्दू को लज्जा होनी चाहिये, परन्तु नहीं होती।
-प्रो. कुसुमलता केडिया
(जम्बू टॉक्स पर ‘अथ श्री महाभारत कथा के चौथे व्याख्यान का एक अंश’)
✍🏻कुसुमलता केडिया

अमरकोश, कुछ प्रचलित शब्द :
अमरसिंह विरचित अमरकोश या नामलिङ्गानुशासन शब्दों के अर्थ, पर्याय व लिङ्ग बताने वाला कोश है। यह पारम्परिक संस्कृत पाठशालाओं के पाठ्यक्रम का अनिवार्य अङ्ग है।

१. चपेट
(न अइयो चपेटे में!)

पाणौ चपेट प्रतल प्रहस्ता विस्तृताङ्गुलौ।

अन्य नाम प्रतल एवं प्रहस्त।

२. पनहा
साड़ी, धोती का पनहा जाँचते हैं न? वह परिणाह या विशालता है।

परिणाहा विशालता।

३. फाल
महिलायें साड़ी पर फाल लगवाती हैं। उसके लिये कहा है –
फालं तु कार्पासं बादरं च तत्।
वस्तुत: कपास का कपड़ा।
तीन नाम – फाल, कार्पास एवं बादर।
भोजपुरी में प्रचलित बाडर बादर से है, न कि border से।

४. बेना (भोजपुरी)
हाथ का पंखा बेना कहलाता है। – वृन्तक < ताल(ळ)वृन्तक
अन्य नाम व्यजन भी।

व्यजनं तालवृन्तकम् ।

५. अध्यापक या उपाध्याय
वेद पढ़ाने वाला अध्यापक या उपाध्याय।

उपाध्यायोऽध्यापक।

६. दीक्षित

स सोमवति दीक्षित: ।
सोम यज्ञ का यजमान दीक्षित कहलाता है।

७. आचार्य
मन्त्रव्याख्याकृदाचार्य:।

वेद की व्याख्या करने वाला आचार्य कहलाता है।

८. पहुना, पाहुन (भोजपुरी, मैथिली आदि)
संस्कृत में प्राघुणक।

प्राघूर्णिक: प्राघुणकश्च। – अभ्यागत हेतु।
✍🏻 सनातन कालयात्री श्री गिरिजेश राव

लेबनान का संपूर्ण इस्लामीकरण कैसे हुआ?*

70 के दशक में लेबनान अरब का एक ऐसा मुल्क था जिसे अरब का स्वर्ग कहा जाता था और इसकी राजधानी बेरुत को अरब का पेरिस। अरब में व्याप्त पिस्लामिक जहालत के बावजूद लेबनान एक प्रगतिशील, सहिष्णु और बहु सांस्कृतिक सोसाइटी थी… ठीक वैसे ही जैसे भारत है।

लेबनान में दुनिया के बेहतरीन विश्वविद्यालय थे1 जहां पूरे अरब से बच्चे पढने आते थे और फिर वहीं रह जाते थे। काम करते थे। मेहनत करते थे। लेबनान की बैंकिंग दुनिया की श्रेष्ठ बैंकिंग व्यवस्थाओं में शुमार थी। तेल न होने के बावजूद लेबनान एक शानदार अर्थव्यवस्था थी।

60 के दशक में वहाँ इस्लामिक ताकतों ने सिर उठाना शुरू किया… 70 में जब जॉर्डन में अशांति हुई तो लेबनान ने फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए दरवाज़े खोल दिए… आइये स्वागत है… 1980 आते आते लेबनान की ठीक वही हालत थी जो आज सीरिया की है।

लेबनान की ईसाई आबादी को जिहादी मुसलमानों ने ठीक उसी तरह मारा जैसे सीरिया के ISIS ने मारा। पूरे के पूरे शहर में पूरी ईसाई आबादी को क़त्ल कर दिया गया। कोई बचाने नहीं आया। ब्रिगेट गेब्रियल उसी लेबनान की एक उत्तरजीविता हैं जिन्होंने वो कत्लेआम अपनी आखों से देखा है। ब्रिगेट किसी तरह भाग के पहले इजराइल पहुंची और फिर वहाँ से अमेरिका। आजकल वो पूरी दुनिया में इस्लामिक साम्राज्य वाद और इस्लामिक आतंकवाद से लोगों को सचेत करती हैं।

उनके बहुत से वीडियो यूट्यूब पे हैं। देखिए, सुनिए, समझिए, दुनिया के साथ शेयर कीजिये। उनकी आपबीती पे पोस्ट लिखिये…

उनकी एक सभा में एक लड़की ने उनसे पूछ लिया… सभी मुसलमान तो जिहादी नहीं? ज़्यादातर अमनपसंद और विधि पालक नागरिक हैं। जिहाद तो एक मानसिकता है। आखिर एक मानसिकता का मुकाबला गोली बन्दूक से कैसे किया जा सकता है?

ब्रिगेट ने उत्तर दिया… 40 के दशक में जर्मनी की अधिकाँश प्रजा भी अमनपसंद थी। इसके बावजूद मुट्ठी भर उन्मादियों नें 6 करोड़ लोग दुनिया भर में मारे।

रूस की जनता भी अमन पसंद थी। इसके बावजूद वहाँ के चंद उन्मादियों ने 2 करोड़ लोग मारे।

चीन की जनता भी अमन पसंद बोले तो अमनपसंद, विधि पालक थी। चीन के उन्मादियों ने 7 करोड़ लोगों को मारा।

जापान तो बेहद सभ्य सुशिक्षित सुसंस्कृत मुल्क है न। वहाँ की अमनपसंद जनता तो पूरी दुनिया में अपने संस्कारों के लिए जानी जाती है। वहाँ उन्मादियों के एक छोटे से समूह ने सवा करोड़ लोगों का क़त्ल किया।

अमेरिका के 23 लाख चुस्लिम आबादी भी तो अमनपसंद ही है पर सिर्फ 19 लोगों के एक उन्मादी जिहादी समूह ने अकेले 9 /11 में 3000 से ज्यादा अमेरिकियों का क़त्ल किया।

किसी समाज का एक छोटा सा हिस्सा भी उन्मादी जिहादी हो जाए तो फिर शेष अमनपसंद समाज का कोई महत्त्व नहीं रहता। वो अप्रासंगिक हो जाते हैं।

आज दुनिया भर में अमनपसंद मुसलमान अप्रासंगिक हो चुके है। कमान उन्मादियों के हाथ में है। लेबनान की कहानी ज़्यादा पुरानी नहीं। सिर्फ 25-30 साल पुरानी है।

लेबनान और सीरिया से बहुत कुछ सीखने की जरुरत है। और कोई सीखे न सीखे हिंदुस्तान को तो रोहंगिया को बसाने गले लगाने से पहले सीख ही लेना चाहिए।

*टीवी चैनेल पर कांग्रेस पार्टी के नेताओ के द्वारा अक्सर ये आरोप लगते हुए सुना जाता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी पत्नी को छोड़ दिया… लेकिन आज आपको कांग्रेस पार्टी के सबसे बड़े नेता नेहरु का वो सच्चाई बतायेंगे जिसे जान कर आप इस नेता से नफरत करने लगेंगे… जानिए नेहरु ने अपनी पत्नी कमला के साथ क्या किया… जवाहर लाल नेहरु ने अपनी पत्नी के साथ जो किया वो इतना भयावह था की जान कर आप नेहरु से नफरत करने लगेंगे।

जवाहर लाल नेहरु की पत्नी कमला नेहरु को टीबी हो गया था… उस जमाने में टीबी का दहशत ठीक ऐसा ही था जैसा आज एड्स का है… क्योकि तब टीबी का इलाज नही था और इन्सान तिल तिल तडप तडप कर पूरी तरह गलकर हड्डी का ढांचा बनकर मरता था… और कोई भी टीबी मरीज में पास भी नही जाता था क्योकि टीबी सांस से फैलती थी… लोग पहाड़ी इलाके में बने टीबी सेनिटोरियम में भर्ती कर देते थे…

नेहरु में अपनी पत्नी को युगोस्लाविया [आज चेक रिपब्लिक] के प्राग शहर में दुसरे इन्सान के साथ सेनिटोरियम में भर्ती कर दिया… कमला नेहरु पुरे दस सालो तक अकेले टीबी सेनिटोरियम में पल पल मौत का इंतजार करती रही… लेकिन नेहरु दिल्ली में एडविना बेंटन के साथ इश्क करते थे… सबसे शर्मनाक बात तो ये है की इस दौरान नेहरु कई बार ब्रिटेन गये लेकिन एक बार भी वो प्राग जाकर अपनी धर्मपत्नी का हालचाल नही लिया…

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को जब पता चला तब वो प्राग गये… और डाक्टरों से और अच्छे इलाज के बारे में बातचीत की… प्राग के डाक्टरों ने बोला की स्विट्जरलैंड के बुसान शहर में एक आधुनिक टीबी होस्पिटल है जहाँ इनका अच्छा इलाज हो सकता है…

तुरंत ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने उस जमाने में 70 हजार रूपये इकट्ठे किये और उन्हें विमान से स्विटजरलैंड के बुसान शहर में होस्पिटल में भर्ती किये…

लेकिन कमला नेहरु असल में मन से बेहद टूट चुकी थी… उन्हें इस बात का दुःख था की उनका पति उनके पास पिछले दस सालो से हाल चाल लेने तक नही आया और गैर लोग उनकी देखभाल कर रहे है… दो महीनों तक बुसान में भर्ती रहने के बाद 28 फरवरी 1936 को बुसान में ही कमला नेहरु की मौत हो गयी…

 

उनके मौत के दस दिन पहले ही नेताजी सुभाषचन्द्र ने नेहरु को तार भेजकर तुरंत बुसान आने को कहा था… लेकिन नेहरु नही आया… फिर नेहरु को उनकी पत्नी के मौत का खबर भेजा गया… फिर भी नेहरु अपनी पत्नी के अंतिम संस्कार में भी नही आया…

अंत में स्विटजरलैंड के बुसान शहर में ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने नेहरु की पत्नी कमला नेहरु का अंतिम संस्कार करवाया… जिस व्यक्ति ने अपनी पत्नी के साथ ऐसा व्यवहार किया उसे हम चाचा नेहरू कहते हैं…