आज का पंचाग, भारत के इन सिद्ध मंदिरों के दर्शन अवश्य करने चाहिए, क्या “सिन्ध” का नाम “हिन्द” है?

फोटो – नन्दा देवी नौटी–सौजन्य भुवन नौटियाल

📖 *नीतिदर्शन……………..*✍🏿
*परस्परमविश्वासो विद्वेषो दोषदर्शनम्।*
*स्वार्थः परार्थनाशश्च सर्वमेतद् विघातकम्।।*
📝 *भावार्थ* 👉🏿 जीवनमें जो विघातकारी कर्म गिनाये गए हैं, उनपर सदा ध्यान देनेकी आवश्यकता है। वे कर्म ये हैं– *आपसमें विश्वास नहीं करना, द्वेष करना, दोष देखना, स्वार्थ साधनेमें आगे रहना* और *परार्थका विनाश करना।*
💐👏🏿 *सुदिनम्* 👏🏿💐

 🌹………..|| *पञ्चाङ्गदर्शन* ||……….🌹
*श्रीशुभ वैक्रमीय सम्वत् २०७७ || शक-सम्वत् १९४२ || सौम्यायन् || प्रमादी नाम संवत्सर|| वसन्त ऋतु || फाल्गुन शुक्लपक्ष || तिथि द्वितीया || सौम्यवासर || चैत्र सौर २ प्रविष्ठ || तदनुसार १५ मार्च २०२१ ई० || नक्षत्र रेवती || मीनस्थ चन्द्रमा ||*
💐👏🏾 *सुदिनम्* 👏🏾💐

✍…..

*जिंदगी परिवर्तनों से ही बनी है,*
*किसी भी परिवर्तन से घबराएं नहीं बल्कि उसे स्वीकार करे!*
*कुछ परिवर्तन आपको सफलता दिलाएंगे तो कुछ सफल होने के गुण सिखाएंगें!!*
*💐🙏सुप्रभात🙏🌹*

*🚩जय सत्य सनातन🚩*

*🚩आज की हिंदी तिथि*

🌥️ *🚩युगाब्द-५१२२*
🌥️ *🚩विक्रम संवत-२०७७*
⛅ *🚩तिथि – द्वितीया शाम 06:49 तक तत्पश्चात तृतीया

⛅ *दिनांक 15 मार्च 2021*

⛅ *दिन – सोमवार*
⛅ *विक्रम संवत – 2077*
⛅ *शक संवत – 1942*
⛅ *अयन – उत्तरायण*
⛅ *ऋतु – वसंत*
⛅ *मास – फाल्गुन*
⛅ *पक्ष – शुक्ल*
⛅ *नक्षत्र – रेवती 16 मार्च प्रातः 04:44 तक तत्पश्चात अश्विनी*
⛅ *योग – शुक्ल सुबह 07:47 तक तत्पश्चात ब्रह्म*
⛅ *राहुकाल – सुबह 08:17 से सुबह 09:47 तक*
⛅ *सूर्योदय – 06:48*
⛅ *सूर्यास्त – 18:46*
⛅ *दिशाशूल – पूर्व दिशा में*
⛅ *व्रत पर्व विवरण -*
💥 *विशेष – द्वितीया को बृहती (छोटा बैंगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*

🌷 *ह्रदय के लिए हितकर पेय* 🌷
☕ *रात को भिगोये हुए ४ बादाम सुबह छिलका उतारकर १० तुलसी पत्तों और ४ काली मिर्च के साथ अच्छी तरह पीस लें | फिर आधा कप पानी में इनका घोल बना के पीने से विभिन्न प्रकार के ह्रदयरोगों में लाभ होता है | इससे मस्तिष्क को पोषण मिलता है व् रक्त की वृद्धि भी होती हैं |*

🌷 *दाँतों की मजबूती के लिए* 🌷
🐄 *देशी गाय का गौमूत्र ३-४ बार कपड़े से छान कर कोई मुंह में भरे और अच्छी तरह कुल्ला करें फिर थूक दे … फिर भरे …ऐसा ४-५ बार करें ….फिर साफ पानी से मुंह धो लें |*
😁 *उस आदमी को कभी dentist के पास नहीं जाना पड़ेगा | बुढ़ापे में भी दांत मजबूत रहेंगे | चौखट नहीं लगवानी पड़ेगी |*

🌷 *लक्ष्मीप्राप्ति व घर में सुख-शांति हेतु* 🌷
🌿 *तुलसी-गमले की प्रतिदिन एक प्रदक्षिणा करने से लक्ष्मीप्राप्ति में सहायता मिलती है |*
🌿 *तुलसी के थोड़े पत्ते पानी में डाल के उसे सामने रखकर भगवद्गीता का पाठ करे | फिर घर के सभी लोग मिल के भगवन्नाम – कीर्तन करके हास्य – प्रयोग करे और वह पवित्र जल सब लोग ग्रहण करे | यह प्रयोग करने से घर के झगड़े मिटते है, शराबी की शराब छुटती है और घर में सुख शांति का वास होता है |*फोटो- श्रीयंत्र नौटी–सौजन्य भुवन नौटियाल

🙏🚩🇮🇳🔱🏹🐚🕉️

आज सोमवार है तो आइए जानते है
*”ॐ जय शिव ओंकारा”*
यह वह प्रसिद्ध आरती है जो देश भर में शिव-भक्त नियमित गाते हैं..

लेकिन, बहुत कम लोग का ही ध्यान इस तथ्य पर जाता है कि… इस आरती के पदों में ब्रम्हा-विष्णु-महेश तीनो की स्तुति है..

एकानन (एकमुखी, विष्णु), चतुरानन (चतुर्मुखी, ब्रम्हा) और पंचानन (पंचमुखी, शिव) राजे..

हंसासन(ब्रम्हा) गरुड़ासन(विष्णु ) वृषवाहन (शिव) साजे..

दो भुज (विष्णु), चार चतुर्भुज (ब्रम्हा), दसभुज (शिव) अति सोहे..

अक्षमाला (रुद्राक्ष माला, ब्रम्हाजी ), वनमाला (विष्णु ) रुण्डमाला (शिव) धारी..

चंदन (ब्रम्हा ), मृगमद (कस्तूरी विष्णु ), चंदा (शिव) भाले शुभकारी (मस्तक पर शोभा पाते हैं)..

श्वेताम्बर (सफेदवस्त्र, ब्रम्हा) पीताम्बर (पीले वस्त्र, विष्णु) बाघाम्बर (बाघ चर्म ,शिव) अंगे..

ब्रम्हादिक (ब्राह्मण, ब्रह्मा) सनकादिक (सनक आदि, विष्णु ) प्रेतादिक (शिव ) संगे (साथ रहते हैं)..

कर के मध्य कमंडल (ब्रम्हा), चक्र (विष्णु), त्रिशूल (शिव) धर्ता..

जगकर्ता (ब्रम्हा) जगहर्ता (शिव ) जग पालनकर्ता (विष्णु)..

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका (अविवेकी लोग इन तीनो को अलग अलग जानते हैं।)

प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका

(सृष्टि के निर्माण के मूल ऊँकार नाद में ये तीनो एक रूप रहते है… आगे सृष्टि-निर्माण, सृष्टि-पालन और संहार हेतु त्रिदेव का रूप लेते हैं.

संभवतः इसी *त्रि-देव रुप के लिए वेदों में ओंकार नाद को ओ३म्* के रुप में प्रकट किया गया है ।
🙏🙏🙏

फोटो – गोपेश्वर का मंदिर, फोटो हरीश भट्ट

🕉️ *जय श्री राम* 🕉️
🕉️ *जय श्री कृष्ण*🕉️
✍️🏵️ *विश्वास और आशीष दिखते नहीं हैं, लेकिन असंंभव को भी संभव बना देते हैं।*
✍️🏵️ *जो व्यक्ति सदैव यही कहता हो कि मेरे पास भगवान के लिए समय नहीं है, लेकिन कहने वाला सदैव वयस्त नहीं बल्कि अस्तव्यस्त होता है।।*
✍️🏵️ *अखंड भारत की चारों दिशाओं में,ऐसे बहुत से मंदिर है जिनके दर्शन करने के लिए जीवन में एक बार जरूर जाना चाहिए।*
1. *काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी, उत्तरप्रदेश*
2.* *श्रीरामनथा स्वामी मंदिर रामेश्वरम्,तमिलनाडु*
3. *श्रीजगन्नाथ मंदिर, पुरी, ओडिशा*
4. *सूर्य मंदिर कोणार्क, ओडिशा*
5. *श्रीपद्मनाभस्वामी मंदिर तिरूअनंतपुरम, केरल*
6. *श्रीमहाकालेश्वर मंदिर उज्जैन, मध्यप्रदेश*
7. *श्रीगंगा सरस्वती मंदिर बसरा, तेलंगाना*
8. *एकलिंगनाथजी मंदिर, उदयपुर, राजस्थान*
9. *श्रीद्वारकाधीश, गुजरात*
10. *श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर, मथुरा*
11. *श्रीदक्षिणेश्वर मंदिर, कोलकाता*
12. *श्रीसिद्धिविनायक मंदिर, मुंबई*
13. *श्रीवेंकटेश्वर मंदिर, तिरूपति*
14. *कंधारिया महादेव मंदिर, खजुराहो*
15. *केदारनाथ मंदिर पंचकेदार हैं मदमहेश्वर, तुंगनाथ मंदिर, रूद्रनाथ- गोपेश्वर मंदिर, कल्पेश्वर मंदिर उत्तराखंड 
16. *श्रीमुरूदेश्वर स्वामी मंदिर, कर्नाटक*
17. *पशुपतिनाथ मंदिर, काठमांडू*
18. *गंगोत्री मंदिर, उत्तराखंड*
19. *श्रीनाथजी मंदिर, नाथद्वारा*
20. *ब्रह्मा मंदिर, पुष्कर :*
21. *बद्रीनारायण मंदिर, उत्तराखंड* पंच बदरी मंदिर योग बदरी, ध्यान बदरी, वृद्ध बदरी, भविष्य बदरी उत्तराखंड 
22.* *रघुनाथमंदिर जम्मू*
23. *श्रीसोमेश्वर स्वामी,सोमनाथ मंदिर, गुजरात*
24. *श्री अयप्पा मंदिर, केरल*
25. *श्री मीनाक्षी मंदिर, मदुरै*
26. *श्री कृष्ण मंदिर, गुरुवायुर केरल*
27. *श्री रंगनाथा स्वामी मंदिर, श्रीरंगम,तमिलनाडु*
28. *श्री थिल्लई नटराज मंदिर, चिदंबरम,तमिलनाडु*
29. *श्री कनक दुर्गा देवी मंदिर, विजयवाडा,आंध्रप्रदेश*
30. *श्री सीता रामचंद्र स्वामी मंदिर,भद्राचलम, तेलंगाना*
31. *श्री नरसिम्हा मंदिर, अहोबिलम,* आंध्र
प्रदेश
32. *विरूपक्ष मंदिर, हम्पी, कर्नाटक*
33. *एकमबरेश्वर मंदिर, कांचीपुरम, तमिलनाडु*
34. *श्री अंबाजी मंदिर, बनासकांठा, गुजरात*
35. *श्री चामुंडेश्वरी मंदिर, मैसूर, कर्नाटक*
36. *बृहदीश्वरर मंदिर, थंजावुर, तमिलनाडु*
37. *होयसेलेश्वरा मंदिर, हलेबिडु, कर्नाटक*
38. *श्री अरूणाचलेश्वर मंदिर, तिरूवन्नामलाई,तमिलनाडु*
39. *कंधारिया महादेव मंदिर, खजुराहो,मध्यप्रदेश*
40. *श्री चतुर्मुख ब्रह्मलिंगेश्वर मंदिर, चेबरोलु,*
आंध्र प्रदेश
41. *एरावटेश्वर मंदिर, दारासुरम, तमिलनाडु*
42. *श्री मुरूदेश्वर स्वामी मंदिर, भटकल,*
कर्नाटक
43. *शीतला माता मंदिर, गुड़गांव*
44. *श्री मंजुनाथ मंदिर, कर्नाटक*
45. *श्री जोगुलंब मंदिर, तेलंगाना*
46. *मनसा देवी मंदिर, हरिद्वार*
47. *श्री चेन्नकेश्वर मंदिर, कर्नाटक*
48. *श्री बैजनाथ मंदिर, हिमाचल*
49. *कैलाशनाथ मंदिर, तमिलनाडु*
50. *श्री वीरभद्र मंदिर, आंध्र प्रदेश*
51. *श्री ग्रश्नेश्वर मंदिर,एलोरा महाराष्ट्र*
52. *श्री कृष्ण मंदिर, कर्नाटक*
53. *श्री मूकम्बिका देवी मंदिर, कोल्लूर,*
कर्नाटक
44. *श्री वरदराजा स्वामी मंदिर, कांचीपुरम,*
तमिलनाडु
55. *श्री वीर वेंकट सत्यनारायण स्वामी मंदिर,*
अन्नावरम्, आंध्र प्रदेश
56. *श्री बैद्यनाथ मंदिर, झारखंड*
57. *श्री वरह लक्ष्मी नरसिम्हा स्वामी मंदिर,*
सिम्हाचलम, आंध्र प्रदेश
58. *श्री लिंगराज मंदिर, भुवनेश्वर*
59. *श्री राम लला मंदिर, अयोध्या*
60. *श्रीमुखलिंगेश्वर मंदिर, श्रीकाकुलम,* आंध्र
प्रदेश
61. *त्रिपुरेश्वरी मंदिर, उदयपुर, त्रिपुरा*
62. *श्री मुक्तेश्वर मंदिर, भुवनेश्वर*
63. *यमुनोत्री मंदिर, उत्तराखंड*
64. *कामाक्षी अम्मन मंदिर, कांचीपुरम,*
तमिलनाडु
65. *वेदनारायण स्वामी मंदिर, चित्तूर,* आंध्र
प्रदेश
66. *श्रीमुंडेश्वरी मंदिर, बिहार*
67. *वडक्कमनाथन मंदिर, केरल*
68. *श्रीमहालसा नारायणी देवी मंदिर, पोंडा,*
गोवा
69. *श्रीसूर्य मंदिर मोधेरा,* गुजरात
70. *श्रीमल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर, श्रीसैलम,*
आंध्र प्रदेश
71. *श्री राज माता झन्डे वाला मन्दिर शाहदरा दिल्ली*
72. *कामाख्या मंदिर, गुवाहाटी, असम*
73. *त्रयम्बकेश्वर मंदिर, महाराष्ट्र*
74. *रामप्पा मंदिर, तेलंगाना*
75. *श्रीवैकुंटनाथ स्वामी, श्री वैकुंठम,*
तमिलनाडु
76. *श्रीवैकोम महादेव मंदिर, केरल*
77. *दन्तेश्वरी मंदिर, छत्तीसगढ़*
78. *महानन्दीश्वर मंदिर, महानन्दी, आंध्र*
प्रदेश
79. *श्री महालक्ष्मी मंदिर, कोल्हापुर,*
महाराष्ट्र
80. *श्रीवरसिद्धि विनायक मंदिर, कनिपक्कम,*
आंध्र प्रदेश
81. *श्रीमुर्गन मंदिर, तमिलनाडु*
82. *श्रीथिरूनारायण स्वामी मंदिर, मेलकोट,*
कर्नाटक
83. *श्रीलक्ष्मीनारायण मंदिर, चम्बा, हिमाचल*
प्रदेश
84. *भद्र मारूति मंदिर, महाराष्ट्र*
85. *तुलजा भवानी मंदिर, महाराष्ट्र*
86. *श्री सलासर हनुमान मंदिर, सलासर,*
राजस्थान
87. *श्रीनैना देवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश*
88. *मन्नारशाला श्रीनागराज मंदिर, अलप्पुझा,*
केरल
89. *श्रीकरमंध मंदिर, श्रीकरमम, आंध्र प्रदेश*
90. *श्रीशांता दुर्गा मंदिर, कावालेम, गोवा*
91. *जगद्पिता ब्रह्मा मंदिर, पुष्कर*
92. *श्रीविष्णुपद मंदिर, गया*
93. *श्रीबद्रीनारायण मंदिर, बद्रीनाथ*
94. *श्रीचौंसठ योगिनी मंदिर, ओडिशा*
95. *श्रीकैलाशनाथ मंदिर, एलोरा*
96. *श्रीमेहंदीपुर बालाजी, मेहंदीपुर राजस्थान*
98. *श्रीलक्ष्मी नरसिम्हा स्वामी मंदिर,*
यादगिरीगट्टा, तेलंगाना
99. *हनुमानधारा, चित्रकुट उत्तर प्रदेश*
100. *हिंगलाज माता मंदिर, बलूचिस्तान,*
पाकिस्तान
101. *मंचमुख हनुमान मंदिर, कराची, पाकिस्तान*
102. *यशोरेश्वरी, जिला खुलना,* बांग्लादेश
103. *श्री शबरी मंदिर गुजरात*
104. *शनि मंदिर, शिंगणापुर,* महाराष्ट्र
105. *श्रीमहाकालीका मंदिर, पावागढ़, गुजरात*
106. *कैलाश मानसरोवर, तिब्बत, चीन*
107. *बाबा अमरनाथ, कश्मीर,* जम्मू और
कश्मीर
108. *श्रीवेष्णोदेवी मंदिर, जम्मू,* जम्मू और
कश्मीर
109. *श्री गजानन महाराज, शेगांव, महाराष्ट्र*
110. *श्री बाबा रामदेव मंदिर, रुणिचा धाम*
रामदेवरा, राजस्थान
111. *श्री गोरखनाथ मंदिर गोरखिया राजस्थान* ।। 112 *मकर ध्वज बाला जी धाम ब्यावर अजमेर |*| 113 *डेहरु माता मन्दिर खिवसर नागौर।।*
114 *करणी माता मंदिर राजस्थान*
115 *श्री श्याम मंदिर खाटू श्याम*
116 *ओसियमता, राजस्थान*
117 *मीरा मंदिर मेड़ता राजस्थान*
118 *राणीसती मंदिर झुंझुन*
119 *ओम्कारेश्वर मंदिर मध्यप्रदेश*
120 *श्री गंगासागर कपिलमुनि मंदिर, पश्चिमबंगाल*
121 *श्री गिरिराज पर्वत, उत्तरप्रदेश*
122 *श्री द्वारकाधीश मंदिर द्वारका*
123 *श्री भीमाशंकर महाराष्ट्र*
124 *श्री विट्ठल मंदिर, महाराष्ट्र*
125 *श्री कन्याकुमारी मंदिर, तमिलनाडु*
126 *श्री स्वर्णमंदिर, अमृतसर*
127 *श्रीआनन्दसाहिब गुरूद्वरा पंजाब*
128 *गुरुद्वारा पोंटा साहिब पंजाब*
129 *श्री ज्वालामुखी मंदिर, हिमाचल प्रदेश*
130 *श्री नैनादेवी मंदिर*
131 *श्री बांकेबिहारी जी मंदिर वृंदावन*
132 *श्री राधाजी मंदिर बरसाना*
133 *श्री साँवरिया जी मंदिर राजस्थान*
134 *श्री शारदा देवी मंदिर मैहर मध्यप्रदेश*
*और फिर कभी लिखूंगा,*
*जीवन में कमसेकम एक बार जरूर दर्शन करने जाये*
✍️🏵️ *राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे ।* *सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने॥*
🕉️ *सुप्रभात, आपका जीवन मंगलमय हो*
🕉️ *जय श्री श्याम*🕉️
🕉️ *जय गुरुजी* 🕉️
🕉️ *जय माताजी* 🕉️
🙏 *अशोक* *परमार*🙏

भारत में बहुत पहले सिन्धु घाटी सभ्यता हुआ करती थी | मुस्लिम आक्रमणकारी “स” का उच्चारण जानते ही नहीं थे इसलिए उन्होंने इसका नाम “सिन्धु” के बदले “हिन्दू” कर डाला |
अब यहाँ तक का किस्सा तो हमें पता है | कई इतिहासकारों ने लिखा है इस बारे में | मेरी समस्या ये है की भारत के नीचे की तरफ होता है हिन्द महासागर | अब मुस्लिम उधर से तो आये नहीं थे | उसका नाम कभी सिन्ध महासागर होगा भी नहीं क्योंकि सिन्ध प्रान्त से तो कम से कम ढाई हज़ार किलोमीटर दूर है |
तो अब मेरे दो सवाल, ये “सिन्ध” का नाम “हिन्द” क्यों नहीं हुआ, “सिन्ध” प्रांत ही कैसे रह गया वो ?
और दूसरा ये की “हिन्द महासागर” के नाम में “हिन्द” क्यों है ? मुस्लिम आक्रमणकारी ही उसका नाम रखने के लिए जिम्मेदार हैं क्या ?
✍🏻आनन्द कुमार
हिन्दू शब्द और भारतवर्ष
 
गिरिको हिण्डुको
गिरिकः   हिण्डुकः 
महाभारत शान्तिपर्व में दक्ष द्वारा शिवस्तुति किये जाने में शिव को प्रदान किये गये कुछ नामों में 
#हिण्डुक है। हिण्डुक का अर्थ है जो हिण्डन क्रिया करता है।
आप जानते ही हैं कि हिण्डी दुर्गाजी का एक नाम है।
कन्नड़ में #हिण्दु का अर्थ ‘गण’
है।
णोनः पाणिनिसूत्रेण णत्व नत्व विधीयते। यथा णम् नम् ।
हिण्डु-हिण्दु-हिन्दु ।
चीनी भाषा में यिन् दु / यिन् तु
पुराकाल से है।
Yindu जिला  Henan प्रान्त में है।
हिन्दू
भिन्दुः = हिन्दुः
कैसे?
नाट्यशास्त्र में उच्चारण की इस प्रवृत्ति का उल्लेख हुआ है।
ख, घ, थ, ध और भ महाप्राण ध्वनियों को ‘ह’ आदेश होता है।
प्राकृत भाषा में ख, घ, थ, ध और भ को हकारादेश होने पर मुख का मुह, मेघ का मेह, कथा का कहा, वधू का बहु, प्रभूत का पहुअ हो जाता है ।
इसी प्रकार भिन्दुः {भेत्ता, भेदन करने वाला} हिन्दुः कहा जाता है।
वेदमन्त्र में इन्द्र को भिन्दुः कहा गया है। 
खधथधभा उण हत्तं उर्वेति अत्थं अ मुंचंता ॥ 
 उप्परहुत्तरआरो हेटाहुत्तो अ पाअए णत्थि । 
मोत्तूण भद्रचोद्रह पद्रह्वदचन्द्रजाई स ॥  खधथधभाण हआरो मुहमेहकहावहूपह्वएसु । कगतदयवाण णिच्चं वीयम्मि ठिओ सरो होई ॥
#अयथातथादिकेषु_तु_भकारवर्णो व्रजीत 
सस्कृत के शिक्षकाें से प्रधान मन्त्री जी काे ज्ञापनपत्र देने की सूचना मिली है । वस्तुतः संस्कृतशिक्षा में जान भरने के लिए भारतवर्षीय धर्मसंस्कृतिसंस्कृतप्रेमी जन हमारी ”संस्कृतशिक्षा के विकास विस्तार तथा सुदृढीकरण का मार्ग” इस शीर्षक की अथवा ”संस्कृतशिक्षाया विकासाय विस्ताराय सुदृढीकरणाय चाsनुसरणीयाे मार्गः” इस शीर्षक की प्रस्तुति(पाेष्ट्) देखकर विचार करें और भारतवर्षीय शिक्षा के विषय में याेजना और पाठ्यक्रम बनाते समय अत्यन्त विचारणीय बाताें में ध्यान दें । भारतवर्ष में संस्कृतमूलक शिक्षा ही शिक्षा की प्रधान धारा हाेनी चाहिए इस बात में मुख्यतया ध्यान दें। अन्यथा संस्कृत विश्वविद्यालयाें के स्तरवृद्धि से क्या हाेगा? इतने संस्कृत विश्वविद्यालय हैं, उसमें अच्छा ही वेतन पाने वाले अध्यापक हैं, संस्कृतज्ञानाभ्यास का स्तर घटता ही जा रहा दिखाई दे रहा है, समाज में संकृतप्रेम घटता ही जा रहा दिखार्इ दे रहा है, लाेग पाश्चात्त्य खान पान परिधान अाचरण व्यवहरण की अाेर ही अागे बढ रहे दिखार्इ दे रहे हैं, भारतवर्षीय धर्म संस्कृति परिधान अाचरण व्यवहरण का अादर्श पीछे ही पडता  जा रहा दिखार्इ देरहा है, अात्मगाैरवानुभव घटता ही जा रहा दिखार्इ दे रहा है, अच्छा वेतन पाने वाले संस्कृतज्ञाें के घर में ही संस्कृत का  अाैर भारतवर्षीय शास्त्रधर्मसंस्कृति का सफाया हाे रहा दिखार्इ दे रहा है , संस्कृतशिक्षाविचारक महानुभाव  हमारी उक्त प्रस्तुतियां देखें अाैर गम्भीरता से विचार करें । प्रभानमन्त्री माेदी जी से भारतवर्षीय शास्त्रधर्मसंस्कृति गाैरवानुभूति के पक्ष में काम हाेने की सम्भावना का भरपूर उपयाेग करें ।
समुद्रा स्तत्र चत्वारो दर्विणा आहृताः पुरा ।
(वामनपुराणम् ४१)
लोमहर्षण बता रहे हैं कि प्राचीनकाल में ऋषि #दर्वि वहाँ(सरस्वती-अरुणा संगम के निकट) चार समुद्रों को ले आये थे।
दर्वि शब्द पर विचार करने से अनुमान होता है कि दारु(लकड़ी) से निर्मित दार्वि, दार्वी, दर्वि शब्द निष्पन्न होते हैं।
दर्वी का सामान्यतः करछुल अर्थ लिया जाता है।
दर्वि का समुद्र से सम्बन्ध कहे जाने से समुद्रतटवर्ती क्षेत्र दर्विड या द्रविड होगा। द्राविडी भाषा में रेफ का विपर्यय प्रधान है।
भारत भूमि का दक्षिणी भाग भी दर्वी समान ही है। करछुल से आलोडन किया जाता है, भारत का दक्षिणी भूभाग अथाह समुद्र रूपी कड़ाही में करछुल की भाँति पड़ा हुआ दीखता है।
हिन्दी का डब्बी शब्द दर्वी का ही देशज रूप है।
कुछ पश्चिमी ऐतिहासिकों  ने  
यह  अवधारणा  प्रस्तुत की  कि 
Qin  वंश   का  शासन  216 ई.पू. 
में  हुआ  ,  तभी  से   इस  देश  को  
चिन    या   चीन    नाम   से   पुकारा 
जाने   लगा   . 
किन्तु    कौटिलीय अर्थशास्त्र  में  
चीन   शब्द  का   प्रयोग  है  ।  
तया कौशेयं चीन-पट्टाश्च चीन-भूमिजा व्याख्याताः ।। ०२.११.११४ ।।
कौटिल्य    इस  Qin  से  लगभग 
150  वर्ष  पूर्व  हुआ  ।  
अब  यह  सर्वविदित  है  कि   इस  देश   को   चीन   नाम  से  भारतवासियों   ने   ही   पुकारा  था  
इसी  कारण   पर्शियन  भी  इसे  चीन 
कहते  थे  । 
पर्शियनों  से   योरुप  में  यह  नाम  पहुँचा . 
 
इस  देश  का   नामकरण   हमने  (भारतीयों ने )   किया   ।  
 चीन
के निवासी अपनी भाषा में अपने
देश को ‘चंगक्यूह’ कहते हैं । 
और सबसे
प्रचलित और आम नाम है झोंग्गुओ
(中國), जिसका अर्थ है “केंद्रीय
राष्ट्र”, या “मध्य साम्राज्य”।  
ये   चीनी   हमारे   देश   भारत   को  
यिन-तू     कहते   थे   ।  
यिन- तू    हिन्   दू
✍🏻अत्रि विक्रमार्क अन्तर्वेदी 
‘मुझे तुम्हारे इतिहास की अवधारणा पर हंसी आती है । तुम जानते तो हो लेकिन मानना नहीं चाहते । ये बड़ा अजीब सा भी है ।’
हिंदु कौन है वेदों  के अनुसार –जिस के राष्ट्र में गौ की रक्षा होती है 
 
हिङ्कृण्वती वसुपत्नी वसुनां वत्समिच्छन्ती मनसा न्यागन्‌।
दुहाम्श्विभ्यां पयो अघ्न्येयं सा वर्धतां महते सौभगाय।। अथर्व 7.77.8 
 श्रेष्ठ धनों  को पुष्ट  करने  वाली गौ हृदय से बछड़े   की कामना करती हुई हिं हिं  कर के रंभाती हुई नित्य  आवे । यह कभी  न मारने योग्य गोमाता अश्वियों*   के लिए भी दूध का दोहन कराए. वह (गोमाता) हमारे महान  सौभाग्य के लिए वृद्धि को प्राप्त हो. 
• अनाथ घोड़े  के बच्चों को  गाय के  दूध पर पाले जाने  की भारतीय  प्रथा  आज भी विश्व में प्रचलित है
• इस वेद मंत्र में गोपालन और गोसम्वर्धन को  मानव  जाति की समृद्धि और सौभाग्य का मूल मंत्र बताते  हुए हिन्दु जाति के नाम निर्देशपूर्वक उस की विशेषताओं का भी वर्णन किया गया है. मूल मंत्र के दोनों पादों के प्रथम अक्षरों से प्रत्याहार प्रणाली से हिन्दु शब्द की निष्पत्ति हुई है. ऋचा संकेतदेती है कि हिन्दु वह है जिस के  आंगन में हिं हिं करती हुई सवत्सा गाय  यज्ञादिदेवकार्य के लिए दुहीजाती है और जिस के (हिन्दु के) शासन में जिस के देश तथा राज्य में गौ अघन्या बन कर निरंतर फूलती फलती है. जहां गो रक्षण होता है वह राष्ट्र सर्वदा सौभाग्य और समृद्धि को  पाता है. 
अथर्व वेद के अनुसार गौ चार प्रकार से महत्वपूर्ण है।  आधुनिक विज्ञान के अनुसार यह सत्य भी  है।
चतुर्धा रेतो अभवद्‌ वशायाः ।
आपस्तुरीयममृतं तुरीयं यज्ञस्तुरीयम्‌ पशवस्तुरीयम्‌ ॥ अथर्व 10-10-29
गौ प्रकृति में चार रूपों में प्रकट होती है , ( पहली, पर्यावरण की  वर्षा द्वारा  स्वच्छता और  भूमि में आर्द्रता से कृषि सहायक सूक्ष्माणुओ को  जीवनदान, दूसरी मानव शरीर में सदैव चलायमान रस जो मानव को जीवन देते हैं, तीसरी जैविक अन्न जो मृत्यु को दूर रखते हैं और यज्ञ (अग्निहोत्र) जैसे  श्रेष्ठ कर्म करने की मानसिकता और सामर्थ्य | यह चारों गौ के द्वारा ही मिलते हैं | अथर्व10.10.29
गौ व्यक्तित्व का निर्माण करती है।
वचो विदं वाचमुदीरयन्तीं विश्वाभिर्घीभिरुपतिष्ठमानाम्‌।
देवी देवभ्य: पर्येयुषी गा मा मावृक्त मर्त्यो दभ्रचेता।। ऋ 8.101.16
 गौ ही (वच: विदम्‌ ) वाणी को प्रेरणा देने वाली (वाचं उदीरयन्तीं) उदार हृदय के  स्नेहपूर्ण भाव,  वाणी  से व्यक्त करने की क्षमता देने वाली है । गौ ही (विश्वाभिर्घीभिरुपतिष्ठमानाम्‌)  विश्व को  सुंदर रूप देने वाली (मां उप ई युषीं ) समीप आ कर (देवी देवेभ: ) हमें सब देवताओं के गुण देती है । (गा मावृत मर्त्यो दभ्रचेता: )  गौ को अल्प ज्ञानी ही अपने से दूर करते हैं । ऋ8.101.16
ए॒को गौरेक॑ एकऋ॒षिरेकं॒ धामै॑क॒धाशिषः॑ । य॒क्षं पृ॑थि॒व्यामे॑क॒वृदे॑क॒र्तुर्नाति॑ रिच्यते ॥ 
अथर्व 8-9-26
 केवल गौ के आशीर्वाद में ही वर्तमान समय में पृथ्वी (स्वर्ग) धाम है, गौ ही वह व्यापक पूजनीय देव है  जिस की अनुकूलता में ही वह ऋतु चक्र है जो पृथ्वी पर स्वर्ग स्थापित करता है।गौ से बढ़ कर कोइ नहीं।
ऋषियों की  वेद में  गौ के प्रति काव्यात्मक  रचना का एक उदाहरण देखने की कृपा कीजिए 
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सं हि वातेनागत समु सर्वैः पतत्रिभिः ।
वशा समुद्रे प्रानृत्यदृचः सामनि बिभ्रती ।। अथर्व 10-10-14
 गौ एक  ज्ञान, विज्ञान, उपासना और यज्ञादि के माध्यम से मानव विकास का साधन बन कर सम्पूर्ण विश्व में प्रकृति का एक सुंदर नाट्य समोरह जैसा दृष्य उत्पन्न करती है। अथर्व10.10. 14
ऊर्ध्वो बिन्दुरुदचरद्ब्रह्मणः ककुदादधि ।ततस्त्वं जज्ञिषे वशे ततो होताजायत  । ।  अथर्व10.10.19
 कुकुद वाली गौ के दधि को आहार में लेने से मनुष्य ऊर्ध्वरेता बनता है | मनुष्य के  विकास द्वारा सात्विक वृत्तियों, यज्ञादि कर्मों में रुचि, बुद्धिमत्ता और स्वस्थ निरोगी शरीर उपलब्ध होता है। अथर्व10.10.19
श्रेष्ठं यविष्ठ भारताऽग्ने द्युमन्तमा भर । 
वसो पुरुस्पृहं रयिम् ।। RV2.7.1. 
भारत जहां जहां सब जनों की हृदयाग्नि  अपने जीवन में उत्तम समृद्धि की इच्छा से प्रेरित हैं | 
मा नो अरातिरीशत देवस्य मर्त्यस्य च । 
पर्षि तस्या उत द्विष: ।। RV2.7.2 
और उस देश के वासी  ऐसी समृद्धि की इच्छा करते हैं जिस के परिणाम स्वरूप वहां उत्तम और साधरण सब जनों के प्रति उदारता, अहिंसा,अपरिग्रह ,दयालु और द्वेष भावना रहित  मनोवृत्ति का  शासन होता है  |
हिंदू शब्द की व्युत्पत्ति को लेकर आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने साहित्य अमृत में एक बड़ा ही विचारोत्तेजक लेख लिखा है|आचार्य जी के अनुसार ”फारसी में हिंदू शब्द यद्यपि रुढ हो गया है तथापि यह उस भाषा का नहीं है|लोगों का ख्याल की फारसी का हिंदू शब्द संस्कृत सिंधु का अपभ्रंश है, वह लोगों का केवल भ्रम है|ऐसे अनेक शब्द हैं,जो भिन्न-भिन्न भाषाओँ में एक ही रूप में पाये जाते हैं|यहाँ तक की उनका अर्थ भी कहीं कहीं एक ही है; पर वे सब भिन्न भिन्न धातुओं से निकले हैं|” फारसी में हिंदू शब्द का अर्थ है चोर, डाकू, रहजन, गुलाम, काला, काफ़िर इत्यादि|क्या एक ऐसा शब्द जिसमें स्पष्ट रूप से अपमान परिलक्षित होता हो कोई जाति बडे ही गौरव के साथ अपना लेगी और जबकि इससे स्पष्ट रूप से उसकी पहचान जुडी हो| नहीं कदापि नहीं, और क्या अब तक इस तथ्य से हमारे पूर्व पुरुष अनजान रहे होंगे,ऐसा भी नहीं है|अब प्रशन यह उठता है की आखिर हिंदू शब्द का सर्वाधिक प्राचीन उल्लेख किस ग्रन्थ में मिलता है और वहाँ उसका अर्थ क्या है? हिंदू शब्द का सर्वाधिक पुराना उल्लेख अग्निपूजक आर्यों के पवित्रतम ग्रन्थ जेंदावस्ता में मिलता है? क्यों वेदों में क्यों नहीं? क्योंकि अग्निपूजक आर्य और इन्द्र्पुजक आर्य एक ही आर्य जाती की दो शाखाएं थी|इस्लामिक बर्बरता का सबसे पहला निशाना यही बना|अग्निपूजक आर्यों की पूरी प्रजाति ही नष्ट कर दी गयी|उनके पवित्रतम ग्रन्थ का चतुर्थांश भी नहीं बचा| जेंदावस्ता और वेद में ९० फीसदी समानता है, कुरान और वेद में २ फीसदी| वस्तुतः जेंदावस्ता और वेद लगभग समकालीन माने जा सकते हैं| ईसाईयों के अनुसार “बाइबिल” का पुराना भाग ईसा मसीह से भी पांच हजार साल पुराना है| our zendavesta is as anciat as the creation;it is as old as the sun or the moon.इसी जेंदावेस्ता में हनद नाम का एक शब्द मिलता है और हिन्दव नाम के एक पहाड़ का भी वर्णन मिलता है| जेंदावेस्ता का यह हनद ही आज का हिंदू और हिन्दव हिंदुकुश नाम की पहाड़ी है| अब प्रश्न यह उठता है की जब पारसी और वर्तमान हिंदू दोनों ही आर्य फिर उन्हें पारसी और हमें हनद क्यों कहा गया? स्पष्ट है भौगोलिक आधार पर भिन्नता प्रदर्शित करने के लिए| अब इस पारसी/हिब्रू हनद या हिंदू का अर्थ भी समझ लीजिए| इसका अर्थ होता है विक्रम, गौरव, विभव, प्रजा, शक्ति प्रभाव इत्यादि|यह अर्थ न तो अपमानजनक है और न ही अश्लील| इसी लिए हिंदुओं ने इसे अपने प्रत्येक परवर्ती ग्रंथो में भारत,सनातन,आर्य इत्यादि के पर्यायवाची के रूप में ज्यों का त्यों स्वीकार किया है|
एतत्देशप्रसुतस्य सकाशादाग्रजन्म:|
स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन, पृथिव्याः सर्वमानवा:||
अर्थात इस प्रकार देश में उत्पन्न होने वाले, अपने पहले के लोगों से शिक्षा ग्रहण करें|पृथ्वी क्व समस्त मानव अपने अपने चरित्र से इस लोक को शिक्षा प्रदान करें|यह हिंदुत्व का आदर्श है |
त्यजेदेकं कुलस्यार्थे,ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत|
ग्रामं जनपदस्यार्थे, आत्मार्थे पृथ्वीं त्यजेत ||
अर्थात कुल के लिए स्वयं का, ग्राम के लिए कुल का,जनपद के लिए ग्राम का और मानवता के लिए पृथ्वी तक का परित्याग कर दे| इस तरह का उपदेश हिंदुओं को परंपरा से प्राप्त है|
यूँ तो कहने को बहुत से लोग अपने आपको धरती पुत्र कहते मिल जायेंगे किन्तु माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः अर्थात धरती माता है और हम पृथ्वी के पुत्र हैं का स्पष्ट उद्घोष करने के कारण वास्तव में हिंदू ही समाजवादी धरतीपुत्र कहलाने का वास्तविक अधिकारी है| हिंदू नमक शब्द पर भ्रम का वातावरण सृजित करने वाले तथाकथित छद्म (अ)बुद्धिजीवी प्राणी हिंदू शब्द के कुछ और विशलेषण देखें –
हिन्सायाम दुश्यते यस्य स हिंदू – अर्थात हिंसा से दूर रहने वाला हिंदू
हन्ति दुर्जनं यस्य स हिंदू – अर्थात दुष्टों का दमन करने वाला हिंदू
हीं दुष्यति यस्य स हिंदू – अर्थात हिंसकों का विनाश करने वाला हिंदू
हीनं दुष्यति स हिंदू – अर्थात निम्नता को दूषित समझने वाला हिंदू
आपको इसमें से जो भी हिंदू अच्छा लगता हो आप चुन सकते है….यहाँ कम से कम इतनी आजादी तो है ही| अच्छा अब हिंदू शब्द की एक परिभाषा भी दिए देते है, हो सकता है आपको कुछ अच्छा लग जाये|
गोषु भक्तिर्भवेद्यस्य प्रणवे च दृढ: मति:|
पुनर्जन्मनि विश्वास:,स वे हिन्दुरिती स्मृत:||
अर्थात गोमाता, ओंकार और पुनर्जन्म में आस्था रखने वाला हिंदू |डॉ भीमराव अम्बेडकर जी भी इस तथ्य से अपरिचित नहीं थे इसीलिए जब विभाजनकारी सिखों ने अपने आपको हिंदुओं से अलग चिन्हित किये जाने की मांग की, तो वे तन कर खड़े हो गए और बौद्ध,जैन,सनातनी,सिख सभी को हिंदू माना|वेदों में हिंदू का पर्यायवाची शब्द भारत या आर्य शताधिक बार आया है| विष्णुपुराण में तो हिंदुओं के नाम भारत की पक्की रजिस्ट्री ही हो गयी है, वह भी चौहद्दी बांधकर|ध्यान दीजियेगा –
उत्तरं यद् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिण|
वर्षं तद भारतं नाम भारती यत्र संतति:||
अर्थात जो समुद्र से उत्तर है (चौहद्दी न. १ ) और हिमालय से दक्षिण है (चौहद्दी न. २ ) वह भारत नाम का भूभाग है और उसकी संतति, संतान (हिंदू ) भारतीय हैं|
जहाँ तक मेरी जानकारी है| यह श्लोक ईसा या मूसा से कुछ पहले का तो होगा ही और नहीं तो गुप्तकाल का होना तो निश्चित ही है| कलिका पुराण और मेरु तंत्र में हिंदू ज्यों का त्यों आया है|वर्तमान हिंदू ला के मुताबिक वेदों में विश्वास रखने वाला हिंदू माना गया है|आज तो ९० प्रतिशत हिंदुओं ने वेद देखा भी नहीं होगा तो क्या हिंदू ला के अनुसार वे हिंदू नहीं होने चाहिए| स्पष्ट है की हिंदू शब्द आर्य और भारत की ही भांति श्रेष्ठता और गौरव का बोधक होने के कारण स्वयं में पूर्ण है और आस्तिक, नास्तिक वेद, लवेद के आधार पर कोई भेद विभेद नहीं करता|
हिंदुओं को उनके जातीय चेतना से पृथक करने और आत्म विस्मृति के निरंतर प्रयासों ने ही आज पुरे भारत में विभाजन से पूर्व की स्थिति का निर्माण कर दिया है|आश्चर्य की बात तो यह है की लगातार २ सौ सालों तक जिस आत्मविस्मृति की मदिरा पिलाकर अंग्रजों ने सम्पूर्ण भारत में शासन किया,आजादी के पश्चात कांग्रेस और अन्य तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल और छद्म बुद्धिजीवी आज भी जनता को वही मदिरा पिला रहे हैं|विभाजन के समय लीगी नेताओं द्वारा लड़ के लिया है पाकिस्तान,हंस के लेंगे हिंदुस्तान जैसा नारा लगाया जाता था और आज इंडियन मुजहिद्दीन अथवा हिंदू मुजाहिद्दीन (अर्थ का अनर्थ न किया जाये…इंडियन का अर्थ हिंदू ही होता है) जैसे हिंदू इस्लामिक आतंकवादियों द्वारा धमाके करके किया जा रहा है| कुछ लोग हिंदी को एक भाषा मानते हैं ………………
मैं हिंदी ठेठ हिंदी खून हिंदी जात हिंदी हूँ , यही मजहब यही फिरका यही है खानदा मेरा|
जहाँ जहाँ मैंने गलती से हिंदी लिख दिया होगा हिंदू हिंदू कर लीजियेगा|
“हिन्दू” शब्द गाली है जो अरबी लोग प्रयोग में लाते थे जिसका मतलब ‘काला चोर’ होता है : प्रखर भीम सह हलेलुइया वाले।
इसमें हुंवा-हुंवा करने को अरबियों के डीएनए सह कल्चरल एक्सटेंशन ‘भाय जान’ लोग भी पहुँच जाते।
हमें ऐसा कभी-कभी लगता कि ये ‘हिन्दू’ से ‘मुस्लिम’ खाली इसलिए ही बन गए कि इन्हें अरबी लोगों द्वारा ‘काला चोर’ का संबोधन भोत अखरता था.. और इसलिए ही ये बौरा के कन्वर्ट हो लिए और ‘काले चोर’ से ‘गोरका कोतवाल’ बन गए।
अच्छा चलो ये तनिक मेलोडी चॉकलेट वाला मजाक हो गया।
अब आते हैं इनकी ही बात पे.. कि हिन्दू मने गाली जो अरबी लोग यूज करते थे भारत के लोगों के लिए। यहीच न ?? कि कुछ और है ?? 
चलो देखते है कि ये गाली का और क्या यूज है ??
अरबी लोगों को गिनती गिनना आता था ??
इनके पुतर लोग बता पाएंगे कायदे से जो काले चोर से गोरका कोतवाल बन गए हैं। 
अच्छा नहीं पता ?? 
चलो हम बताते है…
तो अरबियों को गिनती गिनना नहीं आता था.. !! तो ये सीखे कहाँ से और किनसे ??
अब जब गणित और नम्बर सिस्टम की बात हो तो विश्व में कहीं और जाना है क्या ?? नहीं न ??
तो सिम्पल सी बात है कि इन्होंने गिनती हम भारतीयों से सीखा।
अब जब हमसे गिनती सीख लिए तो ये इस मामले में ज्यादा हेराफेरी न किये… बराबर क्रेडिट दिये .. इसके लिए भाई इनको धन्यवाद बनता है।
तो क्रेडिट किस प्रकार दिए ??
तो इन लोगों ने जो हमसे गिनती सीखी और जो नम्बर डेवलप किये उस न्यूमरल सिस्टम को इन्होंने नाम दिया “हिन्दसा”।।
बोले तो नाम क्या दिया “हिन्दसा”।
मने अब इसको क्या समझे हम ??
मने जो गाली के तौर पे वे इसे यूज करते हैं उसे ये अपने नम्बर सिस्टम को नाम दे देंगे ?? हाउ फनी !!!
मने बात कुछ अइसन हो जायेगा कि किसी को हम सारा जीवन ‘@##@##’ बोलते रहे और जीवन के किसी पड़ाव में उन्होंने हमारी बहुत भयानक मदद की जिसका कर्ज आप कभी चुका नहीं सकते, लेकिन उनको सम्मान देने के लिए अगर आपके घर कोई नया बच्चा आता है तो उसका नाम बड़े फकर से ‘@##@#’ रख देंगे ?? हांई ??
मने समझ गए न !!!
रुको अभी बात खत्म नहीं हुई है…
आगे बताते है…
तो ये जो हिन्दसा सिस्टम था वो पूर्वी अरब का था.. ये फिर पश्चिम अरब पहुँचा जहाँ कुछ और डेवलप किया गया.. फिर ये यहाँ से यूनान पहुँचा और यहाँ भी कुछ फेरबदल हुए.. और जो फेरबदल हुआ उसी को हम और आप आज यूज कर रहे हैं फिलहाल।
हां तो ये जब पूरब अरब से पश्चिम याने मग़रिब अरब को पहुँचा तो इसका नाम क्या हुआ मालूम है ??
तो नाम हुआ “गोबर” ।
जी हाँ.. गोबर।
मने “गोबर न्यूमरल सिस्टम”!
गोबर शब्द अरबी के घुब्बर (Ghubbar) शब्द से बना जिसका मतलब धूल या फिर बालू होता है। 
इसी धूल में भारतीय गणितज्ञ इनको गणित सिखाते थे।
इसलिए इसको घुब्बर सिस्टम नाम दिए.. लेकिन ये आगे बढ़ के गोबर हो गया.. जिसका भारतीय गोबर के समानार्थी ही मतलब है। धूल .. गोबर।
तो अबकी जब कोई अरबियों के डीएनए सह कल्चरल एक्सटेंशन ‘हिन्दू’ व ‘गोबर’ शब्द के ऊपर ज्यादा ज्ञान बाँटते हुए मिले तो इतना ही कहने का कि बेटा इसी हिन्दू और गोबर के चलते तुम्हारे अब्बुओं ने गिनती गिनना सीखा..।। तो जास्ती का इल्म फिल्म बाँटने का नहीं।
और जे भीम वालों…. छोड़ो तुमको बोलना ही क्या है।
✍🏻गंगवा, खोपोली से।