आज का पंचाग आपका राशि फल, संस्कृत आधुनिक-भाषाओं के संपोषण की भूमिका निभाती है यह संसार की श्रेष्ठ वैज्ञानिक भाषा है, जब राजा छत्रसाल युद्ध में घिरने लगे

 🕉श्री हरिहरो विजयतेतराम🕉
🌄सुप्रभातम🌄
🗓आज का पञ्चाङ्ग🗓
🌻मंगलवार, २४ अगस्त २०२१🌻

सूर्योदय: 🌄 ०५:५८
सूर्यास्त: 🌅 ०६:४५
चन्द्रोदय: 🌝 २०:१६
चन्द्रास्त: 🌜०७:२१
अयन 🌕 दक्षिणायने (उत्तरगोलीय)
ऋतु: ❄️ शरद
शक सम्वत: 👉 १९४३ (प्लव)
विक्रम सम्वत: 👉 २०७८ (आनन्द)
मास 👉 भाद्रपद
पक्ष 👉 कृष्ण
तिथि 👉 द्वितीया (१६:०४ तक)
नक्षत्र 👉 पूर्वाद्रपद (१९:४८ तक)
योग 👉 सुकर्मा (०७:०० तक)
प्रथम करण 👉 गर (१६:०४ तक)
द्वितीय करण 👉 वणिज (२८:०६ तक)
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॥ गोचर ग्रहा: ॥
🌖🌗🌖🌗
सूर्य 🌟 सिंह
चंद्र 🌟 मीन (१३:३८ से)
मंगल 🌟 सिंह (अस्त, पश्चिम, मार्गी)
बुध 🌟 सिंह (अस्त, पूर्व, मार्गी)
गुरु 🌟 कुम्भ (उदय, पूर्व, वक्री)
शुक्र 🌟 कन्या (उदय, पश्चिम, मार्गी)
शनि 🌟 मकर (उदय, पूर्व, वक्री)
राहु 🌟 वृष
केतु 🌟 वृश्चिक
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शुभाशुभ मुहूर्त विचार
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अभिजित मुहूर्त 👉 ११:५३ से १२:४५
अमृत काल 👉 ११:४० से १३:१८
त्रिपुष्कर योग 👉 ०५:४९ से १६:०४
सर्वार्थसिद्धि योग 👉 १९:४८ से २९:५०
विजय मुहूर्त 👉 १४:२९ से १५:२१
गोधूलि मुहूर्त 👉 १८:३६ से १९:००
निशिता मुहूर्त 👉 २३:५७ से २४:४१
राहुकाल 👉 १५:३४ से १७:११
राहुवास 👉 पश्चिम
यमगण्ड 👉 ०९:०४ से १०:४१
होमाहुति 👉 मंगल
दिशाशूल 👉 उत्तर
नक्षत्र शूल 👉 दक्षिण (१९:४८ तक)
अग्निवास 👉 आकाश
भद्रावास 👉 मृत्यु (२८:०६ से पूर्ण)
चन्द्र वास 👉 पश्चिम (उत्तर १३:३९ से)
शिववास 👉 सभा में (१६:०४ क्रीड़ा में)
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☄चौघड़िया विचार☄
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॥ दिन का चौघड़िया ॥
१ – रोग २ – उद्वेग
३ – चर ४ – लाभ
५ – अमृत ६ – काल
७ – शुभ ८ – रोग
॥रात्रि का चौघड़िया॥
१ – काल २ – लाभ
३ – उद्वेग ४ – शुभ
५ – अमृत ६ – चर
७ – रोग ८ – काल
नोट– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
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शुभ यात्रा दिशा
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उत्तर-पश्चिम (धनिया अथवा दलिये का सेवन कर यात्रा करें)
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तिथि विशेष
🗓📆🗓📆
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फल द्वितीया, विवाहादि मुहूर्त (हिमाचल, पंजाब, कश्मीर और हरियाणा) के लिये मीन-कारक लग्न सायं ०७:५९ से रात्रि ०३:११ तक आदि।
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आज जन्मे शिशुओं का नामकरण
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आज १९:४८ तक जन्मे शिशुओ का नाम
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ चरण अनुसार क्रमशः (सो, द, दी) नामाक्षर से तथा इसके बाद जन्मे शिशुओ का नाम उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के प्रथम एवं द्वितीय चरण अनुसार क्रमश (दू, थ) नामाक्षर से रखना शास्त्रसम्मत है।
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उदय-लग्न मुहूर्त
सिंह – २९:२० से ०७:३९
कन्या – ०७:३९ से ०९:५७
तुला – ०९:५७ से १२:१८
वृश्चिक – १२:१८ से १४:३७
धनु – १४:३७ से १६:४१
मकर – १६:४१ से १८:२२
कुम्भ – १८:२२ से १९:४८
मीन – १९:४८ से २१:११
मेष – २१:११ से २२:४५
वृषभ – २२:४५ से २४:४०
मिथुन – २४:४० से २६:५५
कर्क – २६:५५ से २९:१६
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पञ्चक रहित मुहूर्त
शुभ मुहूर्त – ०५:४९ से ०७:३९
चोर पञ्चक – ०७:३९ से ०९:५७
शुभ मुहूर्त – ०९:५७ से १२:१८
रोग पञ्चक – १२:१८ से १४:३७
शुभ मुहूर्त – १४:३७ से १६:०४
मृत्यु पञ्चक – १६:०४ से १६:४१
अग्नि पञ्चक – १६:४१ से १८:२२
शुभ मुहूर्त – १८:२२ से १९:४८
रज पञ्चक – १९:४८ से १९:४८
शुभ मुहूर्त – १९:४८ से २१:११
शुभ मुहूर्त – २१:११ से २२:४५
रज पञ्चक – २२:४५ से २४:४०
शुभ मुहूर्त – २४:४० से २६:५५
चोर पञ्चक – २६:५५ से २९:१६
शुभ मुहूर्त – २९:१६ से २९:५०
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आज का राशिफल
🐐🐂💏💮🐅👩
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मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)
आज दिन के आरम्भ में बनते कार्यो में रुकावट आने से अधिक भाग-दौड़ करनी पड़ेगी। मध्यान तक थोड़े बहुत कार्य सफल होने से धन की आमद होगी परन्तु खर्च भी अधिक रहने से बचत नहीं कर पाएंगे। दोपहर के बाद से घर एवं बाहर सहयोगी वातावरण बनने से कार्यो में सरलता रहेगी। समय से पहले ही कार्यो को पूर्ण करने में जुट जाएंगे संध्या के समय तक अधिकांश कार्य पूर्ण होने से धन की आवक होने लगेगी। धार में शांति रहेगी सामाजिक क्षेत्र से प्रतिष्ठा बढ़ेगी।

वृष🐂 (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)
आज के दिन आप व्यापारिक गतिविधियों की व्यस्तता के चलते परिवार के लिए ज्यादा समय नहीं निकाल पाएंगे। वाणी एवं व्यवहार के बल पर कार्यो में थोड़े परिश्रम से अधिक सफलता मिल सकेगी। मनोबल भी आज बढ़ा हुआ रहेगा। परंतु आज आपको कोई ना कोई कमी भी अनुभव होगी। धन का आगमन होने से थकान भूल जाएंगे। संतानों पर ध्यान देंने की आवश्यकता है। स्त्री से सम्बन्ध भावनात्मक रहेंगे। सुख के साधनों पर खर्च करेंगे।

मिथुन👫 (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)
आज का दिन मिला-जुला रहेगा। सेहत लगभग सामान्य रहेगी। आज किसी अनुबंध के आगे रुकने से धन लाभ की कामना अधूरी रहेगी। व्यवसाय के ऊपर अधिक ध्यान देने के बाद भी कार्य विलम्ब से पूर्ण होंगे लाभ के कई अवसर मिलेंगे परन्तु धनागम के लिए थोड़ी प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। अधिकारी वर्ग भी गर्म हो सकते है। सफ़ेद वस्तुओ के कार्य से जुड़े जातको को आकस्मिक धन लाभ अथवा नए अनुबंध मिल सकते है। परिवार के लिए आप महत्त्वपूर्ण रहेंगे। व्यर्थ की यात्रा हो सकती है।

कर्क🦀 (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)
आज आप अधिक लापरवाह रहने के कारण हानि उठा सकते है। प्रातः काल से ही यात्रा पर्यटन की योजना बनेगी परन्तु इसमें व्यवधान भी आएंगे। कार्य क्षेत्र पर अल्प लाभ से संतोष करना पड़ेगा। नौकरों के ऊपर ज्यादा विश्वास हानि का कारण बन सकता है। वाणी में कठोरता रहने से घर में कलह रहेगी। आर्थिक लेन-देन सोच समझ कर करें। पारिवारिक सदस्य अथवा अन्य भी अपने काम से ही बात करेंगे। संध्या के समय किसी महत्त्वपूर्ण कार्य के बनने से प्रसन्न रहेंगे।

सिंह🦁 (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)
व्यवसाय के क्षेत्र में किये जा रहे प्रयास आज फलीभूत होने से आर्थिक समस्याओं का समाधान होगा। बेरोजगार व्यक्तियों को भी रोजगार मिलने की सम्भावना अधिक है। आपसे वाद-विवाद में कोई नहीं जीत पायेगा। बड़बोलेपन के कारण महिलाओं से मतभेद हो सकते है। दिन के उत्तरार्ध में कार्य भार बढ़ने से कमर अथवा अन्य अंगों में दर्द की शिकायत रहेगी। पारिवारिक वातावरण में उतार-चढ़ाव आएंगे फिर भी आनंद रहेगा। आकस्मिक लाभ होगा।

कन्या👩 (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)
आज का दिन मिश्रित फल देगा पूर्वार्ध में सेहत थोड़ी नरम रह सकती है जिसके कारण आलस्य भी रहेगा। काम बेमन से करने पड़ेंगे व्यवहार में भी रुखापन रहने से संबंधो में खटास रहेगी। धीरे धीरे स्थिति में सुधार होगा कार्य स्थल पर महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी मिलने से व्यस्तता बढ़ेगी। अधिकारी वर्ग आज आप पर ज्यादा भरोसा दिखाएँगे। व्यवसायी वर्ग आज चाह कर भी बेहतर सेवा नहीं दे पाएंगे जिस कारण आलोचना हो सकती है। पुराने कार्यो को पूर्ण करने के बाद ही नए कार्य हाथ लें। परिवार में तनाव रह सकता है।

तुला⚖️ (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)
आज भी दिन का अधिकांश समय शांति से व्यतीत होगा। थोड़ी आर्थिक परेशानियां रह सकती है परंतु मानसिक रूप से दृढ़ रहेंगे। जिस भी कार्य को करने की ठानेंगे उसे हानि-लाभ की परवाह किये बिना पूर्ण करके छोड़ेंगे। कार्य क्षेत्र पर अन्य व्यक्ति अथवा भगीदारो की दखलंदाजी से थोड़ी परेशानी एवं बहस हो सकती है। किसी मांगलिक आयोजन में सम्मिलित होने का अवसर भी मिलेगा। बाहर की अपेक्षा घर में समय बिताना पसंद करेंगे। संध्या के समय धन लाभ हो सकता है।

वृश्चिक🦂 (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)
आज का दिन आपको सुख शांति प्रदान करेगा। कुछ दिनों से चल रही मानसिक खींच तान कम होने से राहत अनुभव होगी। कार्य क्षेत्र पर केवल धन लाभ पाने के उद्देश्य से कार्य ना करे व्यवहार में कुशलता एवं मिठास रखने से अप्राप्त लक्ष्मी भी प्राप्त कर सकते है। पारिवारिक जीवन में आनंद रहेगा। मित्र रिश्तेदारो से घर में चहल पहल बनेगी कही घूमने की योजना बन सकती है। धन लाभ में विलम्ब होगा परन्तु कार्य रुकेंगे नहीं। सेहत में थोड़ा उतार-चढ़ाव लगा रहेगा।

धनु🏹 (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)
आर्थिक दृष्टिकोण से आज का दिन पिछले कुछ दिनों से बेहतर रहेगा। कार्य क्षेत्र पर अतिरिक्त आय के साधन बनेंगे। रुके हुए कार्य पूर्ण होने से भी धन लाभ होगा। सामाजिक गतिविधियों में पूरा समय ना दे पाने से लोगो से किसी से नाराजगी रहेगी। संध्या का समय मनोरंजन वाला रहेगा। उत्तम भोजन के साथ गृहस्थ का सुख मिलेगा। सन्तानो के ऊपर खर्च करना पड़ेगा। किसी गुप्त चिंता के कारण बेचैनी भी रह सकती है। सेहत आज अच्छी बनी रहेगी।

मकर🐊 (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)
आज के दिन ग्रह स्थिति में थोड़ा बदलाव आने से आपको घरेलु मामलो में सफलता मिलेगी। परन्तु आज कार्य क्षेत्र पर अन्य व्यक्ति आपकी कमजोरी का फायदा उठा सकता है। आज किसी के आगे समर्पण कर सकते है इसका फल शुभ ही रहेगा। बाहरी स्थान के कार्यो में सफलता की संभावना ज्यादा रहेगी। नए अनुबंध भी मिल सकते है। पत्नी अथवा किसी अन्य महिला के भाग्य से लाभ होगा। अविवाहितो कि लिए नए रिश्ते आएंगे। मानसिक रूप से संतोषी रहेंगे।

कुंभ🍯 (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)
आज के दिन आप कार्य क्षेत्र से कुछ समय निकालकर मित्र परिवार के साथ मनोरंजन में व्यतीत करेंगे परन्तु आज गलतफहमियों से दूर रहना अति आवश्यक है व्यर्थ के टकराव होने की संभावना है। परोपकार का शुभ फल भी मिलने से प्रसन्नता भी रहेगी। कार्य क्षेत्र पर कम समय देने के बाद भी संतोषजनक धन लाभ हो जाएगा। दाम्पत्य जीवन पहले से बेहतर रहेगा। सन्तानो की प्रगति की सूचना मिलेगी। स्वयं एवं परिजनों की सेहत का विशेष ध्यान रखें। आयवश्यक वस्तुओ पर ही खर्च करेंगे।

मीन🐳 (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)
आज के दिन आप भावनाओ में बहकर अनुचित कदम उठा सकते है। लोगो के बहकावे में ना आये अन्यथा मान हानि कोर्ट-कचहरी की नौबत आ सकती है। प्रेम प्रसंगों से आज दूरी बनाना ही बेहतर रहेगा। आलसी प्रवृति का लाभ प्रतिस्पर्धी उठा सकते है सावधान रहें। धन लाभ के लिये आज विशेष परिश्रम करना पड़ेगा फिर भी संतोष जनक लाभ हो जाएगा। घर में भाई बंधू अथवा स्त्री से अनबन हो सकती है। सरकारी कार्यो में सफलता मिलेगी। जोड़ो सम्बन्धित समस्या रह सकती है।_______________________
🙏राधे राधे🙏

श्रावणी संकल्प का पर्व है। संस्कृत दिवस भी है। श्रवण होने से सुनने की क्षमता बढ़ाने का प्रेरक पर्व भी। इस अवसर पर समयबद्ध संस्कृत के स्वाध्याय का संकल्प लेना चाहिए। हमारा यह एक संकल्प विवेक के उदय, चिंतन की प्रतिष्ठा और चेतना के संचलन में सहायक हो सकता है।

संस्कृत में क्या नहीं है? संस्कृत से क्या नहीं है? दुनिया भर के ज्ञानियों ने संस्कृत से बहुत कुछ पाया है और हमने? यह बड़ा सच है कि बढ़ती आयु के साथ खेद होगा कि हम भारतीय होकर संस्कृत नहीं पढ़े! यह भी सच है कि संस्कृत स्वयं और सहज सीखी जा सकती हैं। बस, कोई भी संस्कृत ग्रन्थ पढ़ना आरम्भ कीजिए ( व्याकरण से शुरू किया तो भाग छूटेंगे, वह बाद में ) ! मैं भी एक उदाहरण हो सकता हूं!

विलम्ब क्यों? हिचक क्यों?
ज्ञानान्मुक्ति:।
बन्धो विपर्ययात् । (सांख्य• 3.23, 24)
ज्ञान द्वारा ही उलझनों से मुक्ति सम्भव है अज्ञान से बन्धन ही होता है।
पाणिनि का एक संकल्प उन्हें वैयाकरण बना गया!
🦚
सावन पूर्णिमा श्रावणी पर्व पर संस्‍कृत दिवस भी है। सभी भाषा प्रेमियों, संस्‍कृत अनुरागियों और संस्‍कृति के प्रहरियों को बधाई।…. यह सभी भाषाओं की जननी है। नियमित भाषा, व्‍याकरण को देने वाली भाषा। संस्‍कृत इसलिए है कि यह संस्‍कारित है। एकदम संस्‍कारों से ओतप्रोत। टकसाली। कल्‍चर्ड। प्‍योर। गुणवाली। इसलिए इसको देवभाषा भी कहा गया है- गीर्वाणवाणी।

भारत के साथ इसका संबंध कभी टूट नहीं सकता। 1835 में जब मैकाले ने आंग्‍लभाषा को देश में उतारा तब कलिकाता संस्‍कृत विद्यालय के श्री जयगोपाल तर्कालंकारजी ने उक्‍त विद्यालय के संस्‍थापक प्रो. एच. एच. विल्‍सन (कालिदास के नाटकों के अनुवादक, विष्‍णुपुराण, मत्‍स्‍यपुराण के संपादक, अनुवादक) को लिखा : मैकाले रूपी शिकारी आ गया है, वह हम भाषा के मानसरोवर में विचरण करने वाले हंस रूपी संस्‍कृतजीवियों पर धनुष ताने हुए हैं और हमें समाप्‍त कर देने का संकल्‍प किए हुए है। हे रक्षक! इन व्याधों से इन अध्यापक रूपी हंसों की यदि आप रक्षा करें तो आपकी कीर्ति चिरायु होगी :

अस्मिनसंस्कृत पाठसद्मसरसित्वत्स्थापिता ये सुधी
हंसा: कालवशेन पक्षरहिता दूरं गते ते त्वयि।
तत्तीरे निवसन्ति संहितशरा व्याधास्तदुच्छित्तये
तेभ्यस्त्वं यदि पासि पालक तदा कीर्तिश्चिरं स्थास्यति।।

इस पर प्रो. विल्‍सन ने जो पत्र लिखा, वह आज भी भारतीयों के लिए एक आदर्श है –

विधाता विश्वनिर्माता हंसास्तत्प्रिय वाहनम्।
अतः प्रियतरत्वेन रक्षिष्यति स एव तान्।।

अमृतं मधुरं सम्यक् संस्कृतं हि ततोSधिकम्।
देवभोग्यमिदं यस्माद्देवभाषेति कथ्यते।।

न जाने विद्यते किन्तन्माधुर्यमत्र संस्कृते।
सर्वदैव समुन्नत्ता येन वैदेशिका वयम्।।

पंडितों की चिंता दूर करते हुए विल्सन ने यह भी लिखा :

“हमें घबराने की जरूरत नहीं है.. संस्‍कृत भारत के रक्‍त में बसी है… बकरियों के पांव तले रौंदाने से कभी घास के बीज खत्‍म नहीं हो जाते- “दूर्वा न म्रियते कृशापि सततं धातुर्दया दुर्बले।” जब तक गंगा का प्रवाह इस भूमितल पर रहेगा, जन-जन में देश प्रेम प्रवाहित होता रहेगा, संस्‍कृत का महत्‍व बना रहेगा। वह कभी समाप्‍त नहीं होगी बल्कि मौका पाकर फलेगी, फूलेगी।”

मेरा मानना है कि संस्कृत सबसे बड़ी और सबसे पुरानी तकनीकी शब्दावली की व्यवहार्य भाषा है। इसके शब्द यथा रूप विश्व ने स्वीकारे हैं। जब तक संसार में पारिभाविक और पारिभाषिक शब्दों की जरूरत होती रहेगी, संस्कृत के कीर्ति कलश उनकी पूर्ति करते रहेंगे। संसार की कोई भी भाषा हो, उसके नियम संस्कृत से अनुप्राणित रहेंगे। ( राग, रंग, शृंगार : श्रीकृष्ण)

प्रो. विल्‍सन ने तब जैसा कहा, वैसा आज तक कोई नहीं कह पाया। संस्‍कृत साहित्‍य का संपादन, अनुवाद का जो कार्य विल्‍सन ने किया, वह आज तक दुनिया की 234 यूनिवर्सिटीज के स्‍कोलर्स के लिए मानक और अनुकरण के योग्य बना हुआ है। और हाँ, उनके बाद दुनियाभर में 134 विदेशियों ने संस्कृत के लिये जो काम किया, उसकी बदौलत संस्कृत के अधिकांश ग्रन्थ और उसकी जानकारी विदेशी भाषाओं में पहले मिलती है। और, हम उन मान्यताओं को दोहराते रहे!

संस्कृत दिवस हमारी संस्कृत की संस्कृति को धारण करने के संकल्प का अवसर है, यह संभाषण और अध्यापन ही नहीं हमारा कालजयी दायित्व तय करने का भी अनूठा अवसर है।
✍🏻श्रीकृष्ण “जुगनू”

संस्कृत का विरोध करनेवाले कभी संस्कृत को आधुनिक-भाषाओं के विरोध में खडा कर देते हैं,
तो कभी समतावादी-समाज के विरोध में ,
कभी सेकुलरवाद के विरोध में खडा कर देते हैं ।
जबकि स्थिति ठीक इसके उलट है ।
संस्कृत आधुनिक-भाषाओं के संपोषण की भूमिका निभाती है , जब-जब कोई रचनाकार शब्द की गहराई में जाना चाहता है , वह संस्कृत की ओर सतृष्ण दृष्टि से निहारता है, वहीं से उसे शब्द की नई-नई संभावना की उद्भावना मिलती है ।
जब वैज्ञानिक को किसी वस्तु-निरीक्षण के लिये पद-रचना करनी होती है , तब वह संस्कृत की ओर दृष्टि डालता है ।
संस्कृत स्वयं समीपवर्ती आधुनिक-भाषाओं से शब्द और लय लेती रही है ।जहां कहीं मूल्य की चर्चा करनी होती है , वहां संस्कृत के वाक्य लिये जाते हैं ,संस्कृत-विरोधी लोग भी अपने बच्चों के नामकरण के लिये संस्कृत का सहारा लेते हैं ।
संस्कृत-साहित्य ने जिस सत्य की प्रतिष्ठा की है , वह मानुष-भाव है !
✍🏻पं.विद्यानिवासमिश्र

एक समय था, जब भारत सम्पूर्ण विश्व में प्रत्येक क्षेत्र सबसे आगे था । प्राचीन काल में सभी भारतीय बहुश्रुत,वेद-वेदाङ्गज्ञ थे । राजा भोज को तो एक साधारण लकडहारे ने भी व्याकरण में छक्के छुडा दिए थे ।व्याकरण शास्त्र की इतनी प्रतिष्ठा थी की व्याकरण ज्ञान शून्य को कोई अपनी लड़की तक नही देता था ,यथा :- “अचीकमत यो न जानाति,यो न जानाति वर्वरी।अजर्घा यो न जानाति,तस्मै कन्यां न दीयते”

यह तत्कालीन लोक में ख्यात व्याकरणशास्त्रीय उक्ति है ‘अचीकमत, बर्बरी एवं अजर्घा इन पदों की सिद्धि में जो सुधी असमर्थ हो उसे कन्या न दी जाये” प्रायः प्रत्येक व्यक्ति व्याकरणज्ञ हो यही अपेक्षा होती थी ताकि वह स्वयं शब्द के साधुत्व-असाधुत्व का विवेकी हो,स्वयं वेदार्थ परिज्ञान में समर्थ हो, इतना सम्भव न भी हो तो कम से कम इतने संस्कृत ज्ञान की अपेक्षा रखी ही जाती थी जिससे वह शब्दों का यथाशक्य शुद्ध व पूर्ण उच्चारण करे :-
यद्यपि बहु नाधीषे तथापि पठ पुत्र व्याकरणम्।
स्वजनो श्वजनो माऽभूत्सकलं शकलं सकृत्शकृत्॥

अर्थ : ” पुत्र! यदि तुम बहुत विद्वान नहीं बन पाते हो तो भी व्याकरण (अवश्य) पढ़ो ताकि ‘स्वजन’ ‘श्वजन’ (कुत्ता) न बने और ‘सकल’ (सम्पूर्ण) ‘शकल’ (टूटा हुआ) न बने तथा ‘सकृत्’ (किसी समय) ‘शकृत्’ (गोबर का घूरा) न बन जाय। “

भारत का जन जन की व्याकरणज्ञता सम्बंधित प्रसंग “वैदिक संस्कृत” पेज के महानुभव ने भी आज ही उद्धृत की है जो महाभाष्य ८.३.९७ में स्वयं पतञ्जलि महाभाग ने भी उद्धृत की हैं ।

सारथि के लिए उस समय कई शब्द प्रयोग में आते थे । जैसे—सूत, सारथि, प्राजिता और प्रवेता ।

आज हम आपको प्राजिता और प्रवेता की सिद्धि के बारे में बतायेंगे और साथ ही इसके सम्बन्ध में रोचक प्रसंग भी बतायेंगे ।

रथ को हाँकने वाले को “सारथि” कहा जाता है । सारथि रथ में बाई ओर बैठता था, इसी कारण उसे “सव्येष्ठा” भी कहलाता थाः—-देखिए,महाभाष्य—८.३.९७

सारथि को सूत भी कहा जाता था , जिसका अर्थ था—-अच्छी प्रकार हाँकने वाला । इसी अर्थ में प्रवेता और प्राजिता शब्द भी बनते थे । इसमें प्रवेता व्यकारण की दृष्टि से शुद्ध था , किन्तु लोक में विशेषतः सारथियों में “प्राजिता” शब्द का प्रचलन था ।

भाष्यकार ने गत्यर्थक “अज्” को “वी” आदेश करने के प्रसंग में “प्राजिता” शब्द की निष्पत्ति पर एक मनोरंजक प्रसंग दिया है । उन्होंने “प्राजिता” शब्द का उल्लेख कर प्रश्न किया है कि क्या यह प्रयोग उचित है ? इसके उत्तर में हाँ कहा है ।

कोई वैयाकरण किसी रथ को देखकर बोला, “इस रथ का प्रवेता (सारथि) कौन है ?”

सूत ने उत्तर दिया, “आयुष्मन्, इस रथ का प्राजिता मैं हूँ ।”

वैयाकरण ने कहा, “प्राजिता तो अपशब्द है ।”

सूत बोला, देवों के प्रिय आप व्याकरण को जानने वाले से निष्पन्न होने वाले केवल शब्दों की ही जानकारी रखते हैं, किन्तु व्यवहार में कौन-सा शब्द इष्ट है, वह नहीं जानते । “प्राजिता” प्रयोग शास्त्रकारों को मान्य है ।”

इस पर वैयाकरण चिढकर बोला, “यह दुरुत (दुष्ट सारथि) तो मुझे पीडा पहुँचा रहा है ।”

सूत ने शान्त भाव से उत्तर दिया, “महोदय ! मैं सूत हूँ । सूत शब्द “वेञ्” धातु के आगे क्त प्रत्यय और पहले प्रशंसार्थक “सु” उपसर्ग लगाकर नहीं बनता, जो आपने प्रशंसार्थक “सूत” निकालकर कुत्सार्थक “दुर्” उपसर्ग लगाकर “दुरुत” शब्द बना लिया । सूत तो “सूञ्” धातु (प्रेरणार्थक) से बनता है और यदि आप मेरे लिए कुत्सार्थक प्रयोग करना चाहते हैं, तो आपको मुझे “दुःसूत” कहना चाहिए, “दुरुत” नहीं ।

उपर्युक्त उद्धरण से यह स्पष्ट है कि सारथि, सूत और प्राजिता तीनों शब्दों का प्रचलन हाँकने वाले के लिए था । व्याकरण की दृष्टि से प्रवेता शब्द शुद्ध माना जाता था । इसी प्रकार “सूत” के विषय में भी वैयाकरणों में मतभेद था । इत्यलयम् 🌺 संलग्न कथानक के लिये “वैदिक संस्कृत” पृष्ठ के प्रति कृतज्ञ हूँ।💐

म्लेच्छभाषा किसे कहते हैं?

समाधानम्…

संस्कार रहित (असंस्कृत) कुत्सित तथा अपशब्दों से युक्त भाषा को म्लेच्छभाषा कहा जाता है।
तथा
प्रकृति-प्रत्यय विभागपुरस्सर नियतार्थबोधक शब्दयुक्त भाषा को संस्कृत भाषा कहते हैं।

इसीलिए संस्कृत को सुरभाषा कहा जाता है,तद्
भिन्ना भाषा….स्वयं कल्पना करें।

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पाणिनि व्याकरणानुसार
म्लेछँ (धातु चुरादि) अव्यक्तायां वाचि =म्लेच्छयति
म्लेछँ (भ्वादि) अव्यक्तशब्दे =म्लेच्छति
अव्यक्तशब्द का अर्थ है अपशब्दना

म्लेच्छति म्लेच्छयति =असंस्कृतं वदतीति अपभाषणं करोतीति म्लेच्छः।

इसीलिए कहा जाता है कि “धृतव्रतो विद्वान् न म्लेच्छयति/म्लेच्छति परन्तु मूढो मूर्खस्तु म्लेच्छयति/म्लेच्छति एव।”

महाभाष्य पस्पशाह्निक में व्याकरणाध्ययन् के प्रयोजन प्रकरण में लिखा है.. “तस्मात् ब्राह्मणेन न म्लेच्छितवै नापभाषितवै म्लेच्छो ह वा एष यदपशब्दः।”
कैयट कहते हैं म्लेच्छितवै का अर्थ है अपभाषितवै।।

साभार: समर्थ श्री
✍🏻पवन शर्मा की वॉल से

संस्कृत से सम्बद्ध महत्वपूर्ण 24 तथ्य-

1. संस्कृत भाषा के दो स्वरूप दिखाई देते हैं, प्रथम – सरल “समझने में सहज” बोली जाने वाली संस्कृत भाषा और द्वितीय – विद्वतापूर्ण, आलंकारिक “समझने में कठिन” साहित्यिक संस्कृत भाषा। उनके दोनों स्वरूपों के बीच कोई व्याकरणात्मक, संरचनात्मक या उच्चारण सम्बन्धी भेद नहीं है। दोनों ही व्याकरण की दृष्टि से पाणिनीय हैं। प्रथम सरल मानक संस्कृत है जिसमें न्यूनतम शब्दावली, न्यूनतम संरचनाएँ और अधिकतर वे संस्कृत शब्द विद्यमान हैं जो भारतीय भाषाओं में सामान्यतः उपलब्ध होते हैं।

2. संस्कृत भाषा बृहत्तर भारत में बोली जाने वाली एक लोकप्रिय भाषा थी। जिसके पर्याप्त प्रमाण पतंजलि के व्याकरण महाभाष्य में उपलब्ध हैं।

3. संस्कृत भाषा और साहित्य का अध्ययन जाति एवं लिंग भेद के बिना सभी लोगों द्वारा किया जाता था। इस तथ्य को प्रोफेसर धर्म पाल द्वारा विरचित “द ब्यूटीफुल ट्री” नामक पुस्तक में दिए गए आँकड़ों से जाना जा सकता है।

4. ब्रह्मा द्वारा बोली गई आद्य भाषा संस्कृत है। इसलिए इसे देववाणी के अतिरिक्त “चतुर्मुख-मुखोद्भव” भी कहा जाता है।

5. विश्व में संस्कृत ही एकमात्र ऐसी भाषा है जिसमें शास्त्रीयता, परिष्कृतता, प्राचीनता और निरंतरता की अप्रतिम और अविच्छिन्न परम्परा है।

6. वस्तुतः प्रत्येक भारतीय भाषा एक सांस्कृतिक भाषा है। संस्कृत को सम्पूर्ण भारत के प्रत्येक जन सामान्य व्यक्ति की सर्वमान्य सांस्कृतिक भाषा के रूप में स्वीकार किया जाता है ।

7. संस्कृत भाषा और साहित्य ने सर्वदा समावेशी विचारों को बढ़ावा दिया है। संस्कृत भारतवर्ष की सर्व-समावेशी संस्कृति के लिए मुख्य रूप से कारणभूत है।

8. संस्कृत साहित्य अधिकांश भारतीय भाषाओं के साहित्य के लिए प्राचीन काल से ही प्रेरणा एवं विषय का मूल स्रोत रहा है।

9. सम्पूर्ण भारत में अधिकांश भारतीय भाषाओं में प्रयुक्त होने वाली सामान्य संस्कृत शब्दावली, पूजा और कर्मकांड के लिए संस्कृत स्तोत्र और मंत्र, शास्त्रोक्त जीवन पद्धति और समय के परिवर्तन के अनुरूप धार्मिक दृष्टि से संस्कृत में उनकी नवीन व्याख्याएँ, पुराण एवं इतिहास द्वारा स्थापित मानवमूल्य प्रणाली को आत्मसात् करना आदि विषयों के कारण राष्ट्र की एकता और समरसता आज भी अक्षुण्ण हैं ।

10. संस्कृत भाषा की शब्द निर्माण शक्ति विश्व में अद्वितीय है। क्रिया, उपसर्ग, प्रत्यय, सामासिक-शब्द और उत्तम व्याकरण आदि के समृद्ध भण्डार के कारण संस्कृत अनन्त-कोटि शब्दों का निर्माण करने में समर्थ है।

11. संस्कृत भाषा उतनी ही प्राचीन है जितनी कि सृष्टि, क्योंकि सृष्टि के समय सृष्टिकर्ता ब्रह्मा के मुख से ही संस्कृत का आविर्भाव हुआ था।

12. तथ्य यह है कि संस्कृत योग की भाषा, आयुर्वेद की भाषा, वेदांत की भाषा, भगवद्गीता की भाषा, नाट्यशास्त्र की भाषा, भारतीय गणित की भाषा, भारतीय खगोल विज्ञान की भाषा, भारतीय अर्थशास्त्र की भाषा, भारतीय राजनीति विज्ञान की भाषा, न्याय (तर्क) आदि की भाषा है। इस तथ्य को ठीक से समझते हुए प्रकाशित करना चाहिए।

13. संस्कृत उन तीन भाषाओं में से एक है (अंग्रेजी और हिंदी अन्य दो भाषाएँ) जिसका सम्पूर्ण भारत में विद्यालयीय शिक्षा और उच्च शिक्षा दोनों में अध्ययन एवं अध्यापन किया जाता है। अन्य भाषाओं का क्षेत्रीय स्तर पर अध्ययन अध्यापन किया जाता है।

14. वर्तमान समय में विद्यालयस्तर पर संस्कृत-भाषा-शिक्षण में प्रयुक्त शिक्षण पद्धति, जिसे व्याकरण-अनुवाद-पद्धति कहा जाता है, वह एक विदेशी पद्धति है और यह पद्धति संस्कृत भाषा के ह्रास का मुख्य कारण है। भारत में अंग्रेजी माध्यम आरम्भ होने से पूर्व संस्कृत को संस्कृत के माध्यम से ही पढ़ाया जाता था। संस्कृत को छोड़कर विश्व की प्रत्येक भाषा लक्ष्य भाषा के माध्यम से पढ़ाई जाती है। जब तक इस विदेशी पद्धति को परिवर्तित नहीं किया जाएगा और संस्कृत को संस्कृत के माध्यम से नहीं पढ़ाया जाएगा, तब तक संस्कृत भाषा का विकास सम्भव नहीं है।

15. भारत की सात भाषाओं में से प्रत्येक भाषा के लिए एक-एक भाषा-विश्वविद्यालय हैं, जबकि संस्कृत के लिए सत्रह विश्वविद्यालय स्थापित हैं।

16. भारत और विदेशों में लगभग 3800 पुस्तकालयों और वैयक्तिक संग्रहालयों में उपलब्ध लगभग 40 लाख पांडुलिपियों में से 80% से अधिक पाण्डुलिपियाँ संस्कृत भाषा में हैं और उनमें से अधिकांश असम्पादित एवं अप्रकाशित हैं।

17. वस्तुतः अधिकांश भारतीय भाषाओं की शब्दावली का 50% से अधिक भाग संस्कृत है और ध्वनि प्रणाली, वाक्य संरचना और उनमें अंतर्निहित व्याकरण भी संस्कृत पर आधारित है, अतः किसी भी भारतीय भाषा को जानने वाले व्यक्ति के लिए संस्कृत सीखना कोई नवीन भाषा सीखने जैसा नहीं है। यह केवल उसके परोक्ष ज्ञान को प्रत्यक्ष करने जैसा है।

18. भारत और विदेशों में हजारों बच्चे हैं जिनकी मातृभाषा संस्कृत है। जिनका घर में पालन पोषण संस्कृत माध्यम से ही किया जाता है। वैश्विक जगत् से उनका परिचय भी संस्कृत माध्यम से ही हुआ। उनका चिन्तन एवं मनन संस्कृत में होता है एवं वे संस्कृत बोलते हैं।

19. जहां तक भारत में विद्यालयीय स्तर पर विभिन्न भाषाओं का चयन करने वाले छात्रों की संख्या का संबंध है, अंग्रेजी और हिंदी के बाद संस्कृत के छात्रों की तीसरी सबसे बड़ी संख्या है।

20. डॉ भीम राव अम्बेडकर संस्कृत को भारत संघ की राजभाषा बनाना चाहते थे। वास्तव में, उन्होंने इस संबंध में संविधान सभा में एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया था लेकिन दुर्भाग्य से वह प्रस्ताव पारित नहीं हो सका।

21. अंग्रेजी भाषा के भारत में आने से पूर्व, संस्कृत अखिल भारतीय संपर्क भाषा रूप में प्रचलित थी तथा शिक्षा, संचार, वाणिज्य, बौद्धिक परिचर्चा आदि की माध्यम भाषा भी थी, जैसे कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अंग्रेजी भारत में विद्यमान है। अखिल भारतीय जन सामान्य संपर्क भाषा के रूप में इसे पुनः स्थापित करना हमारे संकल्प – हमारी राष्ट्रीय इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है।

22. संस्कृत – १) भारत की एकता का आधारभूत स्तम्भ है, २) भारतभूमि की समग्रता एवं सर्व-समावेशी संस्कृति की गुणवत्ता एवं स्वरूप की प्रदात्री है, ३) विश्व धर्म, समृद्धि, स्थिरता और शांति का सर्वश्रेष्ठ मार्ग दर्शाने वाला है। इस तथ्य से बहुत कम लोग परिचित हैं।

23. संस्कृत भाषा और संस्कृत ज्ञान प्रणाली भारत की महत्तम मृदु-शक्ति (soft power) है।

24. वस्तुतः योग, आयुर्वेद, वेदांत, भगवद्गीता, ध्यान, भक्ति आदि सम्पूर्ण विश्व में लोकप्रिय हो रहे हैं और संस्कृत इन सभी विषयों का मूल स्रोत है, इसलिए संस्कृत भाषा धीरे-धीरे विश्व भाषा के रूप में उभर रही है।
✍🏻साभार- श्री चमूकृष्णशास्त्री

80 साल की उम्र के #राजपूत #_राजा__छत्रसाल जब मुगलो से घिर गए,और बाकी राजपूत राजाओं से कोई उम्मीद ना थी तो उम्मीद का एक मात्र सूर्य था ” ब्राह्मण बाजीराव बलाड़ पेशवा”
एक राजपुत ने एक ब्राह्मण को खत लिखा:-

जो गति ग्राह गजेंद्र की सो गति भई है आज!
बाजी जात बुन्देल की बाजी राखो लाज!

( जिस प्रकार गजेंद्र हाथी मगरमच्छ के जबड़ो में फंस गया था ठीक वही स्थिति मेरी है, आज बुन्देल हार रहा है , बाजी हमारी लाज रखो) ये खत पढ़ते ही बाजीराव खाना छोड़कर उठे उनकी पत्नी ने पूछा खाना तो खा लीजिए तब बाजीराव ने कहा

अगर मुझे पहुँचने में देर हो गई तो इतिहास लिखेगा कि एक #क्षत्रिय_राजपूत ने #मदद मांगी और #ब्राह्मण भोजन करता रहा “-

ऐसा कहते हुए भोजन की थाली छोड़कर #बाजीराव अपनी सेना के साथ राजा #छत्रसाल की मदद को बिजली की गति से दौड़ पड़े । दस दिन की दूरी बाजीराव ने केवल पांच सौ घोड़ों के साथ 48 घंटे में पूरी की, बिना रुके, बिना थके आते ही

ब्राह्मण योद्धा बाजीराव बुंदेलखंड आया और फंगस खान की गर्दन काट कर जब राजपूत राजा छत्रसाल के सामने गए तो छत्रसाल से बाजीराब बलाड़ को गले लगाते हुए कहा:-

जग उपजे दो ब्राह्मण: परशु ओर बाजीराव।
एक डाहि राजपुतिया, एक डाहि तुरकाव।।