आज का पंचाग आपका राशि फल, बिना अग्नि के दिया जलाते हैं निमाड़ के सियाराम बाबा, रूस में हिंदू धर्म संस्कृति का इतिहास, देवता की परिभाषा और भगवान का अर्थ

🚩🌹जय जय सियाराम 🌹🚩

कलयुग में सिद्ध संत श्री सियाराम बाबा जो नर्मदा किनारे तेली भटयाण (निमाड़) में है ,जहा बिना माचिस दीपक प्रज्वलित होता है श्री हनुमान जी की प्रतिमा में प्राण आ जाते है जो बातें करने लग गए जिन्हें दीवार में बंद किया गया है वह पर आप 2000हजार भी भेट करेंगे तो आपको 1990 वापस मिलेंगे और चाय दिन भर प्रसाद में मिलती है और नर्मदा परिक्रमा वासियो की सेवा की जाती है इतनी उम्र के बाद भी बाबा बच्चो जैसी दौड़ लगाकर पूजन करते है कई सीढ़िया उतर चढ़ कर घाट पर पूजन करते है ऐसे अलौकिक दिव्य सिद्ध संत के कलयुग में दर्शन अवश्य करे एक बार 
सियाराम बाबा की जय 
जय जय सियाराम
हर हर नर्मदे 
रूस में हिंदू धर्म संस्कृति का इतिहास
रूस ने एक हजार वर्ष पहले रूस ने ईसाई धर्म स्वीकार किया। माना जाता है कि इससे पहले यहां असंगठित रूप से हिन्दू धर्म प्रचलित था और उससे पहले संगठित रूप से वैदिक पद्धति के आधार पर हिन्दू धर्म प्रचलित था। वैदिक धर्म का पतन होने के कारण यहां मनमानी पूजा और पुजारियों का बोलबाला हो गया अर्थात हिन्दू धर्म का पतन हो गया। यही कारण था कि 10वीं शताब्दी के अंत में रूस की कियेव रियासत के राजा व्लादीमिर चाहते थे कि उनकी रियासत के लोग देवी-देवताओं को मानना छोड़कर किसी एक ही ईश्वर की पूजा करें।
उस समय व्लादीमिर के सामने दो नए धर्म थे। एक ईसाई और दूसरा इस्लाम, क्योंकि रूस के आस-पड़ोस के देश में भी कहीं इस्लाम तो कहीं ईसाइयत का परचम लहरा चुका था। राजा के समक्ष दोनों धर्मों में से किसी एक धर्म का चुनाव करना था, तब उसने दोनों ही धर्मों की जानकारी हासिल करना शुरू कर दी।
 
उसने जाना कि इस्लाम की स्वर्ग की कल्पना और वहां हूरों के साथ मौज-मस्ती की बातें तो ठीक हैं लेकिन स्त्री स्वतंत्रता पर पाबंदी, शराब पर पाबंदी और खतने की प्रथा ठीक नहीं है। इस तरह की पाबंदी के बारे में जानकर वह डर गया। खासकर उसे खतना और शराब वाली बात अच्छी नहीं लगी। ऐसे में उसने इस्लाम कबूल करना रद्द कर दिया।
 
इसके बाद रूसी राजा व्लादीमिर ने यह तय कर लिया कि वह और उसकी कियेव रियासत की जनता ईसाई धर्म को ही अपनाएंगे। ईसाई धर्म में किसी भी तरह की पाबंदी की चर्चा नहीं थी। लोगों को स्वतंत्रता के साथ जीने का अधिकार था और उनमें किसी भी प्रकार का सामाजिक भय भी नहीं था। उसने ईसाई धर्म अपनाने के लिए यूनानी वेजेन्टाइन चर्च से बातचीत करनी शुरू कर दी। वेजेन्टाइन चर्च कैथोलिक ईसाई धर्म से थोड़ा अलग है और उसे मूल ईसाई धर्म या आर्थोडॉक्स ईसाई धर्म कहा जाता है। इस तरह रूस के एक बहुत बड़े भू-भाग पर ईसाई धर्म की शुरुआत हुई।
********************************************
👉🏽 Kindly Support Us :-
****************************
▪️Name – Raj Deep Singh
▪️Bank Name – State Bank of India
▪️Account Number – 51043419829
▪️IFSC Code – SBIN0031009
▪️GPay, PhonePe, Paytm – 9837279122
▪️UPI – 9837279122@ybl
              9837279122@paytm
********************************************
 
रूस की कियेव रियासत के राजा व्लादीमिर ने जब आर्थोडॉक्स ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया और अपनी जनता से भी इस धर्म को स्वीकार करने के लिए कहा तो उसके बाद भी कई वर्षों तक रूसी जनता अपने प्राचीन देवी और देवताओं की पूजा भी करते रहे थे। बाद में ईसाई पादरियों के निरंतर प्रयासों के चलते रूस में ईसाई धर्म का व्यापक प्रचार-प्रसार हो सका है और धीरे-धीरे रूस के प्राचीन धर्म को नष्ट कर दिया गया।
 
प्राचीनकाल के रूस में लोग जिन शक्तियों की पूजा करते थे, उन्हें तथाकथित विद्वान लोग अब प्रकृति-पूजा कहकर पुकारते हैं। प्रकृति-पूजकों के लिए तो सूरज भी ईश्वर था और वायु भी ईश्वर थी और प्रकृति में होने वाला हर परिवर्तन, प्रकृति की हर ताकत को वे ईश्वर की हरकत ही समझते थे।
 
वे अग्नि, सूर्य, पर्वत, वायु या पवित्र पेड़ों की पूजा किया करते थे जैसा कि आज भारत में हिन्दू करता है। हालांकि वे प्रकृति को सम्मान देने के अलावा यह भी मानते थे कि कोई एक ईश्‍वर है जिसके कारण संपूर्ण संसार संचालित हो रहा है।
 
सबसे प्रमुख देवता थे- विद्युत देवता या बिजली देवता। आसमान में चमकने वाले इस वज्र-देवता का नाम पेरून था। कोई भी संधि या समझौता करते हुए इन पेरून देवता की ही कसमें खाई जाती थीं और उन्हीं की पूजा मुख्य पूजा मानी जाती थी। विद्वानों का कहना है कि प्राचीनकाल में रूसियों द्वारा की जाने वाली प्रकृति की यह पूजा बहुत कुछ हिन्दू धर्म के रीति-रिवाजों और रस्मों से मिलती-जुलती थी।
 

प्राचीनकाल में रूस के दो और देवताओं के नाम थे- रोग और स्वारोग। सूर्य देवता के उस समय के जो नाम हमें मालूम हैं, वे हैं- होर्स, यारीला और दाझबोग

सूर्य के अलावा प्राचीनकालीन रूस में कुछ मशहूर देवियां भी थीं जिनके नाम हैं- बिरिगिन्या, दीवा, जीवा, लादा, मकोश और मरेना। प्राचीनकालीन रूस की यह मरेना नाम की देवी जाड़ों की देवी थी और उसे मौत की देवी भी माना जाता था। हिन्दी का शब्द मरना कहीं इसी मरेना देवी के नाम से तो पैदा नहीं हुआ? हो सकता है न? इसी तरह रूस का यह जीवा देवता कहीं हिन्दी का ‘जीव’ ही तो नहीं? ‘जीव’ यानी हर जीवंत आत्मा। रूस में यह जीवन की देवी थी।
 
रूस में आज भी पुरातत्ववेताओं को कभी-कभी खुदाई करते हुए प्राचीन रूसी देवी-देवताओं की लकड़ी या पत्थर की बनी मूर्तियां मिल जाती हैं। कुछ मूर्तियों में दुर्गा की तरह अनेक सिर और कई-कई हाथ बने होते हैं। रूस के प्राचीन देवताओं और हिन्दू देवी-देवताओं के बीच बहुत ज्यादा समानता है। यह हो सकता है कि रूस में भी पहले लोग हिन्दू ही होंगे। लेकिन बाद में वे ईसाई और मुसलमान हो गए। लेकिन रूस के प्राचीन धर्म के बहुत से निशान अभी भी रूसी संस्कृति में बाकी रह गए हैं। रूस के विद्वान अक्सर इस बारे में लिखते हैं और इस ओर इशारा करते हैं कि रूस का पुराना धर्म और हिन्दू धर्म करीब-करीब एक जैसे हैं।
 
अगले पन्ने पर जानिए रूस में खुदाई के दौरान मिलती विष्णु की मूर्ति…
 
वोल्गा क्षेत्र में मिली विष्णु की मूर्ति : कुछ वर्ष पूर्व ही रूस में वोल्गा प्रांत के स्ताराया मायना (Staraya Maina) गांव में विष्णु की मूर्ति मिली थी जिसे 7-10वीं ईस्वी सन् का बताया गया। यह गांव 1700 साल पहले एक प्राचीन और विशाल शहर हुआ करता था। स्ताराया मायना का अर्थ होता है गांवों की मां। उस काल में यहां आज की आबादी से 10 गुना ज्यादा आबादी में लोग रहते थे। माना जाता है कि रूस में वाइकिंग या स्लाव लोगों के आने से पूर्व शायद वहां भारतीय होंगे या उन पर भारतीयों ने राज किया होगा।
महाभारत में अर्जुन के उत्तर-कुरु तक जाने का उल्लेख है। कुरु वंश के लोगों की एक शाखा उत्तरी ध्रुव के एक क्षेत्र में रहती थी। उन्हें उत्तर कुरु इसलिए कहते हैं, क्योंकि वे हिमालय के उत्तर में रहते थे। महाभारत में उत्तर-कुरु की भौगोलिक स्थिति का जो उल्लेख मिलता है वह रूस और उत्तरी ध्रुव से मिलता-जुलता है।
 
अर्जुन के बाद बाद सम्राट ललितादित्य मुक्तापिद और उनके पोते जयदीप के उत्तर कुरु को जीतने का उल्लेख मिलता है। यह विष्णु की मूर्ति शायद वही मूर्ति है जिसे ललितादित्य ने स्त्री राज्य में बनवाया था। चूंकि स्त्री राज्य को उत्तर कुरु के दक्षिण में कहा गया है तो शायद स्ताराया मैना पहले स्त्री राज्य में हो। खैर…!
 
2007 को यह विष्णु मूर्ति पाई गई। 7 वर्षों से उत्खनन कर रहे समूह के डॉ. कोजविनका कहना है कि मूर्ति के साथ ही अब तक किए गए उत्खनन में उन्हें प्राचीन सिक्के, पदक, अंगूठियां और शस्त्र भी मिले हैं।
 
मौजूदा रूस की जगह पहले ग्रैंड डची ऑफ मॉस्को का गठन हुआ। आमतौर से यह माना जाता है कि ईसाई धर्म करीब 1,000 वर्ष पहले रूस के मौजूदा इलाके में फैला। यह भी उल्लेखनीय है कि हिन्दी के प्रख्यात विद्वान डॉ. रामविलास शर्मा के अनुसार रूसी भाषा के करीब 2,000 शब्द संस्कृत मूल के हैं।
 
यूक्रेन की राजधानी कीव से भी पहले का यह गांव 1,700 साल पहले आबाद था। अब तक कीव को रूस के सभी शहरों की जन्मस्थली माना जाता रहा है, लेकिन अब यह अवधारणा बदल गई है।
 
ऊल्यानफस्क स्टेट यूनिवर्सिटी के पुरातत्व विभाग के रीडर डॉ. एलिग्जैंडर कोझेविन ने सरकारी न्यूज चैनल को बाताया कि हम इसे अविश्वनीय मान सकते हैं, लेकिन हमारे पास इस बात के ठोस आधार मौजूद हैं कि मध्यकालीन वोल्गा क्षे‍त्र प्राचीनकालीन रूस की मुख्य भूमि है।
 
डॉ. कोझेविन पिछले साल साल से मैना गांव की खुदाई से जुड़े रहे हैं। उन्होंने कहा कि वोल्गा की सहायक नदी स्तराया के हर स्क्वैयर मीटर जमीन अपने आप में अनोखी है और पुरातत्व का खजाना मालूम होती है।
लेखन – पृथ्वीराजसनातन

देवता का अर्थ और भ्रम

बहुदेव वाद तथा एक देव-इन शब्दों के बारे में बहुत भ्रम है जो बाइबिल की नकल के कारण हुआ है। लोगों की धारणा है कि वेद में बहुदेववाद था जो सुधार होते होते उपनिषद् काल में एकदेव वाद हो गया। इन लोगों ने न वेद देखे, न उपनिषद्। अंग्रेजों से सुन लिया कि १५०० ई.पू. में वैदिक सभ्यता आरम्भ हुई तथा ऋक, यजु, साम, अथर्व के बाद धीरे धीरे उपनिषद् काल आया। विकास का अर्थ मान लिया कि बाइबिल की तरह बाद में सभी एक देव मानने लगे।

अब्राहम परम्परा में कहीं भी एक देव वाद नहीं है जिसके नाम से वे हर वर्ष करोड़ों की हत्या करते आ रहे हैं। उनका मत है कि केवल मेरा देव ही ठीक है, बाकी सभी देवों को मानने वालों को मेरे देव को मानना चाहिये। यदि वे एक देव को मानते हैं, तो मत परिवर्तन के लिए संघर्ष क्यों?

१. भ्रम निवारण-

किसी भी स्थान या वस्तु का का प्राण (ऊर्जा, उसके कारण क्रिया या निर्माण) देव है। असुर भी प्राण है, पर वह तम या निष्क्रिय है, उससे कोई निर्माण नहीं होता। आकाश के भागों या वस्तुओं का जितने प्रकार से विभाजन करते हैं, उतने प्रकार के देव हैं। पूरे विश्व को एक रूप में देखने पर उसका प्राण एक ही देव है। उसे ब्रह्म कहते हैं। भूत, भविष्य, वर्तमान का जो विश्व है, वह मूल स्रोत का १ ही पाद (१/४) है। १ पाद का विश्व पुरुष है, बिना निर्मित भाग (३/४) मिला कर वह पूरुष है। विश्व के अलग अलग रूप भी पुरुष हैं, उनका आधार उससे बड़ा होने के कारण अधि-पूरुष है। अन्य प्रकार से देखने पर ब्रह्म एक ही था, निर्माण के लिए उसने अपने २ भाग किये-चेतन या कर्ता तत्त्व पुरुष तथा पदार्थ तत्त्व स्त्री हुआ (मातृ = matter)। बाइबिल में भी निर्माण का वर्णन ड्यूटेरोनौमी (द्वैत) कहा गया है। व्यक्ति के स्तर पर चेतन तत्त्व आत्मा तथा क्रिया तत्त्व जीव कहा जाता है। इनको बाइबिल में आदम तथा ईव कहा गया है। स्पष्टतः मनुष्य आदम-ईव से पशु-पक्षी तथा अन्य वस्तुओं की सृष्टि नहीं हो सकती है। विश्व की सृष्टि के बाद ब्रह्म उनमें प्रवेश कर गया जिसे अन्तर्यामी कहते हैं। कुरान की भाषा में- निर्माता खुदा है, निर्मित विश्व या उसके कण खुदाई हैं। खुदाई के भी हर कण में खुदा है। ब्रह्म किसी दूर के ७वें आसमान में नहीं है, वह हर विन्दु पर है। विन्दु आकाश चित् है, उसमें मूल स्रोत आनन्द (रस या समरूप) है, दृश्य जगत् का भाग सत् है। इन तीनों का समन्वय सच्चिदानन्द (सत् + चित् + आनन्द) है।

द्विधा कृत्वाऽऽत्मनो देहमर्धेन पुरुषोऽभवत्। 

अर्धेन नारी तस्यां स विराजमसृजत् प्रभुः॥ (मनुस्मृति, १/३२)

पुरुष एवेदं सर्वं यद् भूतं यच्च भाव्यम्॥२॥ 

एतावानस्य महिमा-अतो ज्यायांश्च पूरुषः। 

पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि॥३॥

ततो विराडजायत विराजो अधिपूरुषः॥ 

स जातो अत्यरिच्यत पश्चाद् भूमिमथो पुरः॥४॥ 

(पुरुष सूक्त, वाज, यजु, अध्याय, ३१)

सो ऽकामयत्। बहु स्यां प्रजायेयेति। स तपोऽतप्यत। 

स तपस्तप्त्वा इदं सर्वमसृजत यदिदं किंच। 

तत् सृष्ट्वा तदेवानु प्राविशत्॥ (तैत्तिरीय उप, २/६)

यद् वै तत् सुकृतं रसो वै सः। रसं ह्येवाय लब्ध्वाऽऽनन्दी भवति। (तैत्तिरीय उप. २/७)  

२. वेद में एक देव वाद-

एक इद् राजा जगतो बभूव। (ऋक्, १०/१२३/३, वाज. यजु, २३/३, २५/११, तैत्तिरीय सं. ४/१/८/४, ७/५/१६/१) = जगत् का एक ही राजा हुआ था।

एक ईशान ओजसा (ऋक्, ८/६/४१)

भुवनस्य यस्पतिरेक एव नम्स्यो विक्ष्वीड्यः (अथर्व, २/२/१)  

एक एव रुद्रो न द्वितीयाय तस्थे (तैत्तिरीय सं. १/८/६/१)

एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति (ऋक्, १/१६४/४६, अथर्व, ९/१०/२८)

एकं वा इदं वि बभूव सर्वम् (ऋक्, ८/५८/२)

एकत्वं अनुपश्यतः (वाज. यजु. ४०/७)

एकः सन् अभिभूयसः (ऋक्, ८/१७/१५)

एको विश्वस्य भुवनस्य राजा (ऋक्, ३/४६/२, ६/३६/४)

३. उपनिषद् में बहुदेववाद-

देवा अग्रे तदब्रुवन् (चित्युपनिषद्, १३/२)

देवानामसि वह्नितमः (प्रश्नोपनिषद्, २/८)

देवानामेव महिमानं गत्वाऽऽदित्यस्य सायुज्यं गच्छति (महानारायण उप. १८/१)

देवाः पितरो मनुष्याः (बृहदारण्यक उप. १/५/६)

देवा वा असुरा वा ते परा भविष्यन्ति (छान्दोग्य उप. ८/८/४)

देवेभ्यो लोकाः (कौषीतकि उपनिषद्, ३/३)

कत्येव देवा याज्ञवल्क्येत्येक इत्योमिति होवाच। 

कतमे च ते त्रयश्च, त्री शता च, त्रयश्च त्री च सहस्रेति॥१॥ 

कतमे च ते त्रयस्त्रिंशदिति। अष्टौ वसव एकादश रुद्रा द्वादशादित्यास्त एकत्रिंशदिन्द्रश्चैव प्रजापतिश्च त्रयस्त्रिंशाविति॥२॥ (बृहदारण्यक उपनिषद्, ३/९/१-२) = याज्ञवल्क्य से पूछा गया कितने देवता हैं? उत्तर दिया-३ हैं, ३०० हैं, ३००३ भी हैं॥१॥ देव ३३ हैं-८ वसु, ११ रुद्र, १२ आदित्य, इन्द्र, प्रजापति।

३३३९ देवों की गणना ग्रहण चक्र से सम्बन्धित है-

त्रीणि शता त्री सहस्राण्यग्निं त्रिंशच्च देवा नव चा सपर्यन् (ऋक्, ३/९/९, १०/५२/६)

ब्रह्माण्ड पुराण (अध्याय १/२३)-सोमस्य कृष्णपक्षादौ भास्कराभिमुखस्य तु। प्रक्षीयन्ते पितृदेवैः पीयमानाः कलाः क्रमात्॥६७॥

त्रयश्च त्रिंशतश्चैव त्रयस्त्रिंशत्तथैव च। 

त्रयश्च त्रिसहस्राश्च देवाः सोमं पिबन्ति वै॥६८॥

इत्येतैः पीयमानस्य कृष्णा वर्द्धति वै कलाः। 

क्षीयन्ति त्स्स्माच्छुक्लाश्च कृष्णा आप्यायन्ति च॥६९॥

३३३९ तिथि के बाद ग्रहण चक्र पुनः आरम्भ होता है। इसका २ गुणा राहु-सूर्य गति का अन्तर है। चन्द्रकक्षा पृथ्वी कक्षा को जिन २ विन्दुओं पर काटती है, उनको राहु-केतु कहते हैं। इसका आधा ३३३९ तिथि है, जिसके बाद चन्द्र पुनः राहु या केतु स्थान (पृथ्वी कक्षा पर) आता है।

४. आकाश के देव, असुर-

असु प्राण हैं, इससे असुर हुआ है। उसमें दिवा रूप देव सृजन करते हैं, जो असूर्य्य (अनुत्पादक, सूयते = जन्म देता है) वे असुर हैं।

प्राणो वा असुः (शतपथ ब्राह्मण, ६/६/२/६)

तेनासुनासुरानसृजत। तदसुराणामसुरत्वम्। (तैत्तिरीय ब्राह्मण, २/३/८/२)

दिवा देवानसृजत नक्तमसुरान् यद्दिवा देवानसृजत तद्देवानां देवत्वं यदसूर्य्यं तदसुराणामसुरत्वम्। (षड्विंश ब्राह्मण, ४/१)

असुर प्राण निष्क्रिय रहता है, देव प्राण से तेज या प्रकाश निकलता है जिससे सृष्टि होती है। 

ऋषिभ्यः पितरो जाताः पितॄभ्यो देवदानवाः। 

देवेभ्यश्च जगत्सर्वं चरं स्थाण्वनुपूर्वशः॥ (मनु स्मृति, ३/२०१)

अपने स्थान की उर्जा से जब अधिक ऊर्जा किसी विदु पर होती है तब उससे विकिरण होता है तथा ऊर्जा निकलती है जिससे गति होती है। असुर देवों से ३ गुणे हैं-ये ३ प्रकार से क्रिया को रोकते हैं-बल (गति को मोड़ना), वृत्र (घेरना), नमुचि (२ क्षेत्रों के बीच अस्पष्ट सीमा या फेन)।

बलं वै शवः (वाज. यजु. १२/१०६, १८/५१, शतपथ ब्राह्मण, ७/३/१/२९, ९/४/४/३)

वृत्रो ह वा इदं सर्वं वृत्वा शिश्ये। (शतपथ ब्राह्मण, १/१/३/४)

अपां फेनेन नमुचेः शिर इन्द्रोदवर्तयः विश्वा यदजयः स्पृधः (ऋक्, ८/१४/१३) पाप्मा वै नमुचिः (शतपथ ब्राह्मण, १२/७/३/४)

 अतः पूरुष के ४ पाद में केवल एक पाद से ही सृष्टि हुई, बाकी ३ पाद ज्यों का त्यों बने रहे (अमृत)। 

एतावानस्य महिमा अतो ज्यायांश्च पूरुषः। 

पादो ऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि। (पुरुष सूक्त, ३) 

सौर मण्डल में ३३ धामों के ३३ देव हैं और हर धाम के ३ असुर अर्थात् ९९ को इन्द्र (किरण) द्वारा मारने से सृष्टि होती है।

त्रयस्त्रिंशो वै स्तोमानामधिपतिः (ताण्ड्य महाब्राह्मण, ६/२/७)

देवता एव त्रयस्त्रिंशस्यायतनम् (ताण्ड्य महाब्राह्मण, १०/१/१६)

त्रिं॒शद्धाम॒ वि रा॑जति॒ वाक् पत॒ङ्गाय॑ धीयते। प्रति॒ वस्तो॒रह॒द्युभिः॑॥

(ऋक्, १०/१८९/३, साम, ६३२, १३७८, अथर्व, ६/३१/३, २०/४८/६, वा. यजु, ३/८, तैत्तिरीय सं, १/५/३/१)

त्रयस्त्रिंशद्वै देवाः प्रजापतिश्चतुस्त्रिंशः। (शतपथ ब्राह्मण, १२/६/१/३७,४/५/७/२, ताण्ड्य महाब्राह्मण, १०/१/१६, १२/१३/२४)

इन्द्रो दधीचो अस्थभिर्वृत्राण्यप्रतिष्कुतः। जघान नवतिर्नव॥ (ऋक्, १/८४/१३) 

सौर मण्डल में देव प्रभावी हैं, यह देव स्वर्ग है। ब्रह्माण्ड में असुर प्राण मुख्य है, यह असुर या वरुण स्वर्ग है।

अयं वै (पृथिवी) लोको, मित्रो ऽसौ (द्युलोकः) वरुणः (शतपथ ब्राह्मण, १२/९/१/१६)

स वा एषो (सूर्य्यः) ऽपः प्रविश्य वरुणो भवति। (कौषीतकि ब्राह्मण, १८/९)

५. देव संख्या-

सृष्टि के मूल कण रूप में देव अनन्त हैं जो ऋषि (रस्सी जैसा मूल पदार्थ), पितर से उत्पन्न हुए। 

ऋषिभ्यः पितरो जाताः पितॄभ्यो देवदानवाः। 

देवेभ्यश्च जगत्सर्वं चरं स्थाण्वनुपूर्वशः॥ (मनु स्मृति, ३/२०१) 

सौर मण्डल के ३३ धामों के ३३ देव हैं। यह पृथ्वी केन्द्रित धाम हैं जो क्रमशः २-२ गुणा बड़े हो जाते हैं। (बृहदारण्यक उपनिषद्, ३/३/२) सूर्य केन्द्रित गणना से १०० सूर्य व्यास दूर तक शतरुद्री क्षेत्र है जिसके बाद शान्त या शिव भाग में पृथ्वी पर जीवन है। १००० सूर्य व्यास तक चक्र है। पुरुष सूक्त १ में सहस्राक्ष, अक्ष = आंख, धुरी, सूर्य आंख है-चक्षोः सूर्यो अजायत (पुरुष सूक्त, १२)। ३००० व्यास दूरी तक ईषादण्ड या सौर वायु है (विष्णु पुराण, २/८/३ में इसकी परिधि १८००० योजन)। लक्ष योजन तक तेज है, कोटि योजन तक सौरमण्डल है जहां तक इसका तेज ब्रह्माण्ड से अधिक है। सूर्य केन्द्रित भाग १ कोटि हैं, पृथ्वी केन्द्रित ३३ भागों को मिलाने पर ३३ कोटि क्षेत्र हैं जिनके ३३ कोटि देव होंगे। 

त्रीणि शता त्री सहस्राण्यग्निं त्रिंशच्च देवा नव चा सपर्यन् (वाज. यजु. ३३/७)

इसकी टीका में महीधर ने ३३ कोटि देवता अर्थ किया है, आगम के अनुसार ९ स्थानों पर ३-३ हैं-

नवैवाङ्कास्त्रिवृद्धाः स्युर्देवानां दशकैर्गणैः। 

ते ब्रह्मविष्णुरुद्राणां शक्तीनां वर्ण भेदतः॥

अर्थात्, ब्रह्मा-विष्णु- रुद्र की शक्तियों के रूप में ३३,३३,३३,३३३ देव हैं।

मनुष्य शरीर के भीतर, पृथ्वी की विभिन्न वस्तुओं में, आकाश के शक्ति रूपों में कई प्रकार के देव हैं-

अग्निर्देवता वातो देवता सूर्यो देवता, चन्द्रमा देवता वसवो देवता रुद्रो देवता आदित्या देवता मरुतो देवता विश्वेदेवा देवता बृहस्पतिर्देवता, इन्द्रो देवता, वरुणो देवता। (वाज. यजु. १४/२०)

यः पृथिव्या तिष्ठन्॥३॥ योऽप्सु तिष्ठन्॥४॥ योऽग्नौ तिष्ठन्॥५॥ योऽन्तरिक्षे तिष्ठन्॥६॥ यो वायौ तिष्ठन्॥७॥ यो दिवि तिष्ठन्॥८॥ य आदित्ये तिष्ठन्॥९॥ य दिक्षु तिष्ठन्॥१०॥ यश्चन्द्रतारके तिष्ठन्॥११॥ य आकाशे तिष्ठन्॥१२॥ यस्तमसि तिष्ठन्॥१३॥ यस्तेजसि तिष्ठन्॥१४॥ यः सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्॥१५॥ यः प्राणे तिष्ठन्॥१६॥ यो वाचि तिष्ठन्॥१७॥ यश्चक्षुषि तिष्ठन्॥१८॥ यः श्रोत्रे तिष्ठन्॥१९॥ यो मनसि तिष्ठन्॥२०॥ यस्त्वचि तिष्ठन्॥२१॥ यो विज्ञाने तिष्ठन्॥२२॥ यो रेतसि तिष्ठन्॥२३॥ (बृहदारण्यक उपनिषद्, ३/७/३)

सौर मण्डल के ३३ धामों के देवता हैं, ८ वसु, ११ रुद्र, १२ आदित्य, इनके बीच की २ सन्धियों में २ अश्विन या नासिक्य हैं। सूर्य तेज रुद्र है, सौर मण्डल रोदसी है। उसमें अग्नि (ताप क्षेत्र), वायु (सौरवायु), रवि (प्रकाश या तेज) क्षेत्र हैं। 

अग्नि वायु रविभ्यस्तु त्रयं ब्रह्म सनातनम् । 

दुदोह यज्ञसिद्ध्यर्थमृग्यजुः साम लक्षणम् ॥(मनुस्मृति, १/२३) 

शत योजने ह वा एष (आदित्यः) इतस्तपति । (कौषीतकि ब्राह्मण ८/३)

सहस्रं हैत आदित्यस्य रश्मयः। (जैमिनीय ब्राह्मण उपनिषद् १/४४/५)

भूमेर्योजन लक्षे तु सौरं मैत्रेय मण्डलम् । (विष्णु पुराण २/७/५)

इदंविष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् । (ऋक् १/२२/१७)

अग्नि रूप में सूर्य तेज ८ वसु हैं, वायु रूप में ११ रुद्र तथा प्रकाश रूप में १२ आदित्य।

८ वसु-ध्रुवो धरश्च सोमश्च आपश्चैवोनिलोऽनलः। 

प्रत्यूषश्च प्रभासश्च वसवोऽष्टौ प्रकीर्तिताः॥

(भविष्य पुराण, १/१२५/१०, महाभारत, अनुशासन पर्व, १५०/१६)

११ रुद्र-अजैकपादहिर्बुध्न्यः पिनाकी चापराजितः। 

ॠतश्च पितृरूपश्च त्र्यम्बकश्च महेश्वरः॥१२॥

वृषाकपिश्च शम्भुश्च हवनोऽथेश्वरस्तथा। 

एकादशैते प्रथिता रुद्रास्त्रिभुवनेश्वराः॥१३॥ 

१२ आदित्य-अंशो भगश्च मित्रश्च वरुणश्च जलेश्वरः॥१४॥

तथा धातार्यमा चैव जयन्तो भास्करस्तथा। 

त्वष्टा पूषा तथैवेन्द्रो द्वादशो विष्णुरुच्यते॥१५॥

इत्येते द्वादशादित्याः काश्यपेया इति श्रुतिः। 

अश्विनी द्वय-नासत्यश्चापि दस्रश्च स्मृतौ द्वावश्विनावपि॥१७॥ (भविष्य पुराण, १/१२५)

मत्स्य पुराण, अध्याय ५-आपो ध्रुवश्च सोमश्च धरश्चैवानिलोऽनलः। 

प्रत्यूषश्च प्रभासश्च वसवोऽष्टौ प्रकीर्तिताः॥२१॥

अजैकपादहिर्बुध्न्यो विरूपाक्षोऽथ रैवतः। 

हरश्च बहुरूपश्च त्र्यम्बकश्च सुरेश्वरः॥२९॥

सावित्रश्च जयन्तश्च पिनाकी चापराजितः। 

एते रुद्राः समाख्याता एकादश गणेश्वराः॥३०॥

अध्याय ६-वैवस्वतेऽन्तरे चैते ह्यादित्या द्वादश स्मृताः॥३॥

इन्द्रो धाता भगस्त्वष्टा मित्रोऽथ वरुणो यमः। 

विवस्वान् सविता पूषा अंशुमान् विष्णुरेव च॥४॥

सौर मण्डल के बाहर विश्वेदेव तथा ब्रह्माण्ड के बाहर तपो लोक में वैराज देव हैं। (विष्णु पुराण, २/७/१४) पृथ्वी को मापदण्ड मान कर ब्रह्माण्ड की माप २ घात ४६ (४६.३) है, अर्थात् ४९ धाम हैं (३ धाम पृथ्वी के भीतर)। इन धामों के प्राण ४९ मरुत् हैं। ब्रह्माण्ड का निर्माण स्थल वेद में कूर्म तथा ब्रह्मवैवर्त्त पुराण प्रकृति खण्ड में गोलोक कहा है। अभी यह ब्रह्माण्ड के आभा मण्डल रूप में दीखता है। इसमें ५२ धाम हैं। ३३ देवों के चिह्न क से ह तक ३३ व्यञ्जन वर्ण हैं। चिह्न रूप में देवों का नगर होने के कारण इसे देवनागरी कहते हैं। १६ स्वर मिलाकर ४९ वर्ण ४९ मरुत् हैं। अ से ह तक पूर्ण विश्व है, उसकी प्रतिमा रूप मनुष्य भी अहम् है। इसका क्षेत्रज्ञ आत्मा है (गीता, अध्याय १३)। उसके लिए ३ अक्षर जोड़ते हैं-क्ष, त्र, ज्ञ। ये ५२ अक्षर गोलोक या कूर्म चक्र की माप है। अतः मनुष्य शरीर में ५२ शक्ति केन्द्र ६ चक्रों में हैं तथा भारत में ५२ शक्ति पीठ हैं।

ऋग्वेद के १० आप्री-सूक्त में देवों की सूची है। आप्री का अर्थ अग्नि के सहचारी गण-देवता हैं। ये गण-देवता ११ हैं-

(१) समिद्धोऽग्निः। (२) तनूनपात्। (३) इऴः, (४) बर्हिः, (५) देवीर्द्वारः, (६) उषासानक्ता, (७) देव्यौ होतारौ, (८) सरस्वती इऴा भारत्यः, (९) त्वष्टा, (१०) वनस्पतिः, (११) स्वाहाकूतयः। 

इन सूक्तों में अन्य देवता भी आये हैं—(१२) नराशंसः, (१३) इन्द्रः। 

सभी आप्री-सूक्तों की रचना याज्ञिक दृष्टिकोण से की गई है। प्रत्येक सूक्त में सामान्यः ११ मन्त्र हैं। प्रत्येक मन्त्र की देवता भिन्न-भिन्न हैं।

ऋग्वैदिक आप्री सूक्तों का विभाजन ऋषि अनुसार इस प्रकार है- (१) ऋ. १/१३ मेधातिथि (२) ऋ. १/१४२ दीर्घतमा, (३) १/१८८ अगस्त्य, (४) २/३ गृत्समद, (५) ३/४ विश्वामित्र (६) ५/५ अत्रि, (७) ७/२ वशिष्ठ, (८) ९/५ असित, (९) १०/७० वध्र्यश्व, (१०) १०/११० जमदग्नि।

६. पृथ्वी पर देव असुर- 

असुर मनुष्यों की जाति है। जो अपनी जरूरत की वस्तु का स्वयं उत्पादन करें वह देव है। जो दूसरों की सम्पत्ति बल (असु) द्वारा लूटें, वह असुर हैं। देवों का यज्ञ परस्पर के समर्थन के लिये होता है। असुर भी यज्ञ करते हैं, पर दूसरों के नाश के लिये।

यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।

तेह नाकं महिमानः सचन्तः यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः॥ (पुरुष-सूक्त, १६)

मेगास्थनीज ने भी लिखा है कि भारत सदा से अन्न और अन्य सभी चीजों में स्वावलम्बी रहा है अतः पिछले १५,००० वर्षों से भारत ने अन्य देशों पर आक्रमण नहीं किया। (१९२७ संस्करण में मैक क्रिण्डल ने १५,००० वर्ष हटा दिया, जिससे भारतीय सभ्यता प्राचीन नहीं लगे। इसमें १ शून्य हटा कर मैक्समूलर ने वैदिक सभ्यता का आरम्भ १५०० ई.पू. घोषित कर दिया था) 

इन्द्र की त्रिलोकी भारत, चीन, रूस थे। असुरों की कई जातियां थीं। भारत पर मुख्यतः असीरिया (सीरिया, इराक) के असुर आक्रमण करते थे, जहां आइसिस का आतंकवाद चल रहा है। इनके अन्तिम संस्करण ने भारत पर ६५६ ई, से आक्रमण आरम्भ किया। प्रह्लाद तलातल लोक अफ्रीका के थे। दक्षिण अफ्रीका के असुर निर्ऋति (भारत से नैर्ऋत्य कोण) थे। हिरण्याक्ष रसातल (जेन्द अवेस्ता में आमेजन) का था। वहीं का वासुकि नाग था। उत्तर अमेरिका के महिष असुर थे (वहां का मुख्य पशु महिष था)। यूरोप के पूर्व में दानव (डैन्यूब नदी) तथा पश्चिम भाग में दैत्य (डच, ड्युट्श) थे। मध्य एशिया में कालक, कालकेय, निवातकवच (साइबेरिया) दौर्हृद (डार्डेनल, २ ह्रदों का क्षेत्र), तुरुष्क (तुर्क) थे। उत्तर अफ्रीका में मुर तथा मौर्य असुर थे। कोटिवीर्य अरब में, कम्बु (कामभोज) ईरान के उत्तर पश्चिम में थे।

७. देव शब्द के विभिन्न अर्थ –

देव तथा देवता प्रायः समान अर्थ में व्यवहार होते हैं। देव तत्त्व तथा उसके भेदों के लिए व्यवहार होता है। किसी एक दृश्य या अदृश्य तत्त्व या मूर्ति के लिए देवता शब्द का व्यवहार है। 

देवी शब्द-वेद में पुरुष-स्त्री का विभाजन कई प्रकार से है_

(१) पुरुष-प्रकृति-चेतन तत्त्व पुरुष है, उपादान या पदार्थ तत्व स्त्री है।

मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते स चराचरम् (गीता, ९/१०)

वेद में प्रकृति को श्री या अदिति कहा है।

(२) वाक् और अर्थ-वाक् का अर्थ शब्द है, तथा उसका प्रसार आकाश। उसमें जो सीमाबद्ध पिण्ड या पुर है, वह अर्थ है। पुर में निवास करने वाला पुरुष है। पृथ्वी भी एक अर्थ है, जिसे अंग्रेजी में अर्थ (Earth) कहते हैं। एक वस्तु अर्थ या पुरुष है। उसका विस्तार वाक् स्त्री है। केश पुल्लिङ्ग है पर उसका समूह दाढ़ी, मूंछ, चोटी आदि स्त्रीलिङ्ग है। सैनिक पुल्लिङ्ग है पर उसका समूह सेना, वाहिनी, पुलिस आदि स्त्रीलिङ्ग है। मनुष्य रूप में जन्म देने के लिए स्त्री का गर्भ ही क्षेत्र या स्थान है, पुरुष का योग विन्दु मात्र है। 

इयं या परमेष्ठिनी वाग्देवी ब्रह्म संशिता। (अथर्व १९/९/३)

वाचीमा विश्वा भुवनानि अर्पिता (तैत्तिरीय ब्राह्मण, २/८/८/४)

वागिति पृथिवी, वागित्यन्तरिक्षं, वागिति द्यौः। (जैमिनीय ब्राह्मण उपनिषद्, ४/२२/११)

त्वं सोम क्रतुभिः सुक्रतुर्भूस्त्वं दक्षैः सुदक्षो विश्ववेदाः। (ऋक् १/९१/२) 

विश्वा अपश्यद् बहुधा ते अग्ने जातवेदस्तन्वो देव एक। (ऋक् १०/५१/१) 

(३) वृषा-योषा -वृषा का अर्थ है वर्षा करने वाला। समुद्र या मेघ जैसे विस्तार से ब्रह्माण्ड या तारा जैसे विन्दुओं की वर्षा हुई। द्रव रूप में निकले इसलिए इनको द्रप्स (drops) कहा गया। स्रोत से निकलने या अलग होने के कारण इनको स्कन्न या स्कन्द कहा गया। सभ्यता या ज्ञान का स्रोत रूप में पुरुष ऋषभ या वृषभ है। जो क्षेत्र निर्माण के लिए युक्त होता है या ग्रहण करता है, वह योषा या स्त्री है।

द्रप्सश्च स्कन्द पृथिवीमनुद्याम्। (ऋक् १०/१७/११, अथर्व १८/४/२८, वाज. यजु. १३/५, तैत्तिरीय सं. ३/१/८/३, ४/२/८/२, मैत्रायणी संहिता २/५/१०, ४/८/९, काण्व सं. १३/९, १६/१५,३५/८) 

यः सप्तरश्मिः वृषभस्तु विष्मानवासृजत् सर्तवे सप्तसिन्धून्। (ऋक्, २/१२/१२)

स एष आदित्यः सप्तरश्मिः वृषभस्तु विष्मान् (जैमिनीय उपनिषद् ब्राह्मण, १/२८/२)

(वाज. यजु, ३८/२२ में वृषा शब्द) एष वै वृषा हरिः य एष (सूर्यः) तपति (शतपथ ब्राह्मण, १४/३/१/२६)

योषा वै वेदिः, वृषा अग्निः (शतपथ ब्राह्मण, १/२/५/१५)

ऋषियों को प्रेरित करने वाला ऋषभ-

प्रचोदिता येन पुरा सरस्वती, वितन्वताऽजस्य सतीं स्मृतिं हृदि।

स्वलक्षणा प्रादुरभूत् किलास्यतः, स मे ऋषीनां ऋषभः प्रसीदताम्॥

(भागवत पुराण, २/४/२२)

असौ वा आदित्यो द्रप्सः (शतपथ ब्राह्मण, ७/४/१/२०)

स्तोको वै द्रप्सः (गोपथ ब्राह्मण, २/१२)

योषा हि वाक् (शतपथ ब्राह्मण, १/४/४/४)

योषा वै वेदिः (शतपथ ब्राह्मण, १/३/३/८)

योषा वै पत्नी (शतपथ ब्राह्मण, १/३/१/१८)

तस्मात् यदा योषा रेतो धत्ते, अथ पयो धत्ते (शतपथ ब्राह्मण, ७/१/१/४४)

पुरन्धिः योषा (वाज. यजु, २२/२२) इति। योषित्येव रूपं दधाति, तस्मात् रूपिणी युवतिः (शतपथ ब्राह्मण, १३/१/९/६)

(४) अग्नि-सोम-सघन पिण्ड या ऊर्जा अग्नि है, जो सीमा के भीतर है। आकाश में फैला विरल पदार्थ या ऊर्जा सोम है, जिसकी सीमा नहीं है। इसी को सत्य-ऋत भी कहा गया है। अस्पष्ट सीमा वाले पदार्थ इनके मिश्रण हैं, जिनको ऋत-सत्य कहा है।

इयं पृथिवी अग्निः (शतपथ ब्राह्मण, ६/१/२/१४, १४/९/१/१४)

श्रीर्वै सोमः (शतपथ ब्राह्मण, ४/१/३/९)

सत्यस्य सत्यं ऋत-सत्य नेत्रं, सत्यात्मकं त्वां शरणं प्रपद्ये)। (भागवत, १०/२/२६)

पण्डित मधुसूदन ओझा ने यज्ञ मधुसूदन के प्रथम आधिदैविक अध्याय में देवता शब्द के ५ अर्थ कहे हैं।

(१) ज्योतिष्मती-आकाश के ज्योतिष्मान् तत्त्वों जैसे अग्नि, सोम, सूर्य, वरुण आदि तत्त्व जिनसे सृष्टि हुई है।

चित्रं देवानामुदगादनीकम् (ऋक्, १/११५/१, अथर्व, १३/२/३५, २०/१०७/१४, वाज. यजु, ७/४२, तैत्तिरीय संहिता, १/४/४३/१, २/३/८/२, ४/१/४/४, मैत्रायणी सं. १/३/३७, ४/१४/४)

आदित्यं वा अस्तं यन्त सर्वे देवा अनुयन्ति (शतपथ ब्राह्मण, ११/६/२/४)

(२) रोचनावती-प्रकाशशील नक्षत्रों के लिए भी देव शब्द का व्यवहार हुआ है। 

चत्वार एकमभिकर्म देवाः प्रोष्ठपदास इति यान् वदन्ति (तैत्तिरीय ब्राह्मण, ३/१/२/९)

अष्टौ देवा वसवः सौम्याश्चतस्रो देवीरजराः श्रविष्ठाः, यज्ञ नः पान्तु वसवः पुरस्ताद्दक्षिणतोऽभियन्तु प्रतिष्ठाः। (तैत्तिरीय ब्राह्मण, ३/१/२/६)

यस्य भान्ति रश्मयो यस्य केतवो यस्येमा विश्वा भुवनानि सर्वा।

स कृतिकाभिरभिसंवसानो अग्निर्नो देवः दधातु। (तैत्तिरीय ब्राह्मण, ३/१/१/१, मैत्रायणी संहिता, ४/१४/१४)

(३) विग्रहवती-विग्रह (रूप) धारी चेतन सत्त्व प्रधान ब्रह्म प्रजापति आदि प्राणियों के लिए भी हुआ है। इनको लिङ्गाभिमानी (शरीरधारी) देव भी कहा गया है। ११ इन्द्रियां (५ कर्मेन्द्रिय, ५ ज्ञानेन्द्रिय, १ मन), ८ सिद्धियां, ९ तुष्टियां-ये २८ शक्तियां इनमें स्वभावसिद्ध होती हैं। जन्म, जरा, मरण आदि सम्पन्न होते हुए भी इनका शरीर अपञ्चीकृत भूतों से बना होता है, और इनके चरण पृथ्वी को नहीं छूते हैं।

एवं गजेन्द्रमुपवर्णित निर्विशेषं, ब्रह्मादयो विविध लिङ्गभिधाभिमानाः। 

(गजेन्द्र मोक्ष स्तुति, भागवत पुराण, ८/३/३०)

सप्तद्वीपानि पातालविधयश्च महामुने।

सप्त लोकाश्च येऽन्तःस्था ब्रह्माण्डस्यास्य सर्वतः॥२॥

स्थूलैः सूक्ष्मैस्तथा सूक्ष्म सूक्ष्मात्सूक्ष्मतरैस्तथा।

स्थूलात्स्थूलतरैश्चैव सर्वप्राणिभिरावृतम्॥३॥

अङ्गुलस्याष्ट भागोऽपि न सोऽस्ति मुनिसत्तम।

न सन्ति प्राणिनो यत्र कर्म बन्धनिबन्धनाः॥४॥

सर्वे चैते वशं यान्ति यमस्य भगवन् किल।

आयुषोऽन्ते तथा यान्ति यातनास्तत् प्रचोदिताः॥५॥

यातनाभ्यः परिभ्रष्टा देवाद्यास्वथ योनिषु।

जन्तवः परिवर्तन्ते शास्त्राणामेष निर्णयः॥६॥

(विष्णु पुराण, ३/७)

(४) मान्त्र-वर्णिक-मान्त्रवार्णिक देवता अर्थ में भी देवता शब्द प्रयुक्त हुआ है। जो कर्म जिस उद्देश्य से किया जाता है, अथवा जिस मन्त्र का जिस उद्देश्य से उच्चारण किया जाता है, उस कर्म एवं मन्त्र का वही उद्देश्यभूत देवता होता है।

देवता यजत्राः (काठक संहिता, २६/८)

देवता वै यज्ञस्य शर्म यज्ञो यजमानस्य (मैत्रायणी संहिता, ३/६/६) 

प्रत्यक्षं देवता नाम यस्मिन् मन्त्रेऽभिधीयते।

तामेव देवतां विद्यान् मन्त्रे लक्षणसम्पदा॥११॥

देवता नामधेयानि मन्त्रेषु विविधानि हि।

सूक्तभाञ्ज्यथवर्ग्भाञ्जि तथानैपातिकानि तु॥१७॥

मन्त्रेन्य दैवतेऽन्या निगद्यन्ते ऽत्र कानिचित्॥१८॥

सालोक्यात् साहचर्याद्वा तानि नैपातिकानि तु॥१९॥

अनादिष्टा देवता चेत् कल्प्या प्रकरणादितः।

यज्ञस्य वा तदङ्गस्य यासां मन्त्रेऽपि देवता॥

यज्ञादन्यत्र मन्त्राणां देवता स्यात् प्रजापतिः।

अथ वा तादृशो मन्त्रो नराशंसो भविष्यति॥

स कामदेवतो वा स्यात् स प्रायो देवतोऽथवा।

स याज्ञदैवतो मन्त्र इत्येव विविधा स्थितिः॥ 

(बृहद्देवता, अध्याय १)

(५) भूदेवता-जाति या वर्ण से जो ब्राह्मण हैं उनमें विप्र, ऋषि एवं देव ब्राह्मण उत्तरोत्तर श्रेष्ठ हैं। विद्या प्राप्त करने वाले ब्राह्मण विप्र हैं। विप्र में दोनों अक्षर उपसर्ग हैं-वि = विशेष, प्र = प्रकृष्ट। इनमें जो किसी विषय में पारंगत या आचार्य हैं, वे सत्य अनुसन्धान करने वाले ऋषि हैं।

✍🏻अरुण उपाध्याय

🕉श्री हरिहरो विजयतेतराम🕉
🌄सुप्रभातम🌄
🗓आज का पञ्चाङ्ग🗓
🌻मंगलवार, १५ फरवरी २०२२🌻

सूर्योदय: 🌄 ०७:०१
सूर्यास्त: 🌅 ०६:०७
चन्द्रोदय: 🌝 १६:४७
चन्द्रास्त: 🌜३०:५६
अयन 🌕 उत्तरायने (दक्षिणगोलीय
ऋतु: 🌫️ शिशिर
शक सम्वत: 👉 १९४३ (प्लव)
विक्रम सम्वत: 👉 २०७८ (आनन्द)
मास 👉 माघ
पक्ष 👉 शुक्ल
तिथि 👉 चतुर्दशी (२१:४२ तक)
नक्षत्र 👉 पुष्य (१३:४९ तक)
योग 👉 सौभाग्य (२१:१८ तक)
प्रथम करण 👉 गर (०९:०९ तक)
द्वितीय करण 👉 वणिज (२१:४२ तक)
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰️〰️
॥ गोचर ग्रहा: ॥
🌖🌗🌖🌗
सूर्य 🌟 कुम्भ
चंद्र 🌟 कर्क
मंगल 🌟 धनु (उदित, पश्चिम, मार्गी)
बुध 🌟 मकर (अस्त, पश्चिम, मार्गी)
गुरु 🌟 कुंम्भ (उदय, पूर्व, मार्गी)
शुक्र 🌟 धनु (उदित, पूर्व, वक्री)
शनि 🌟 मकर (अस्त, पश्चिम, मार्गी)
राहु 🌟 वृष
केतु 🌟 वृश्चिक
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
शुभाशुभ मुहूर्त विचार
⏳⏲⏳⏲⏳⏲⏳
〰〰〰〰〰〰〰
अभिजित मुहूर्त 👉 १२:०९ से १२:५३
सर्वार्थसिद्धि योग 👉 १३:४९ से ३०:५६
रवियोग 👉 ०६:५७ से १३:४९
विजय मुहूर्त 👉 १४:२२ से १५:०७
गोधूलि मुहूर्त 👉 १७:५४ से १८:१८
निशिता मुहूर्त 👉 २४:०५ से २४:५६
राहुकाल 👉 १५:१८ से १६:४२
राहुवास 👉 पश्चिम
यमगण्ड 👉 ०९:४४ से ११:०८
होमाहुति 👉 चन्द्र
दिशाशूल 👉 उत्तर
अग्निवास 👉 पाताल (२१:४२ से पृथ्वी)
भद्रावास 👉 मृत्यु (२१:४२ से)
चन्द्रवास 👉 उत्तर
शिववास 👉 भोजन में (२१:४२ से श्मशान में)
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
☄चौघड़िया विचार☄
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
॥ दिन का चौघड़िया ॥
१ – रोग २ – उद्वेग
३ – चर ४ – लाभ
५ – अमृत ६ – काल
७ – शुभ ८ – रोग
॥रात्रि का चौघड़िया॥
१ – काल २ – लाभ
३ – उद्वेग ४ – शुभ
५ – अमृत ६ – चर
७ – रोग ८ – काल
नोट– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
शुभ यात्रा दिशा
🚌🚈🚗⛵🛫
उत्तर-पश्चिम (धनिया अथवा दलिए का सेवन कर यात्रा करें)
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰️〰️〰️〰️〰️
तिथि विशेष
🗓📆🗓📆
〰️〰️〰️〰️
करपात्री जी महाराज पुण्य दिवस, आदि।
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰️〰️
आज जन्मे शिशुओं का नामकरण
〰〰〰〰〰〰〰〰〰️〰️
आज १३:४९ तक जन्मे शिशुओ का नाम
पुष्य नक्षत्र के तृतीय एवं चतुर्थ चरण अनुसार क्रमश (हो, डा) नामाक्षर से तथा इसके बाद जन्मे शिशुओं का नाम आश्लेषा नक्षत्र के प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय चरण अनुसार क्रमश: (डी, डू, डे) नामाक्षर रखना शास्त्रसम्मत है।
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
उदय-लग्न मुहूर्त
कुम्भ – ३०:५४ से ०८:२०
मीन – ०८:२० से ०९:४३
मेष – ०९:४३ से ११:१७
वृषभ – ११:१७ से १३:१२
मिथुन – १३:१२ से १५:२६
कर्क – १५:२६ से १७:४८
सिंह – १७:४८ से २०:०७
कन्या – २०:०७ से २२:२५
तुला – २२:२५ से २४:४६
वृश्चिक – २४:४६ से २७:०५
धनु – २७:०५ से २९:०९
मकर – २९:०९ से ३०:५०
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
पञ्चक रहित मुहूर्त
शुभ मुहूर्त – ०६:५७ से ०८:२०
मृत्यु पञ्चक – ०८:२० से ०९:४३
रोग पञ्चक – ०९:४३ से ११:१७
शुभ मुहूर्त – ११:१७ से १३:१२
मृत्यु पञ्चक – १३:१२ से १३:४९
अग्नि पञ्चक – १३:४९ से १५:२६
शुभ मुहूर्त – १५:२६ से १७:४८
रज पञ्चक – १७:४८ से २०:०७
शुभ मुहूर्त – २०:०७ से २१:४२
चोर पञ्चक – २१:४२ से २२:२५
शुभ मुहूर्त – २२:२५ से २४:४६
रोग पञ्चक – २४:४६ से २७:०५
शुभ मुहूर्त – २७:०५ से २९:०९
मृत्यु पञ्चक – २९:०९ से ३०:५०
अग्नि पञ्चक – ३०:५० से ३०:५६
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
आज का राशिफल
🐐🐂💏💮🐅👩
〰️〰️〰️〰️〰️〰️
मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)
आज दिन का पहला भाग अशान्त रहेगा। घरेलु समस्याओं के कारण मन विचलित बनेगा जिससे कार्यो में चाह कर भी उत्साह नहीं दिखा पाएंगे। परिवार में किसी महिला के कारण ग़लतफ़हमी से विवाद हो सकता है। सन्तानो का व्यवहार विपरीत रहेगा। परन्तु दोपहर के बाद का समय लाभ दिला सकता है इसके लिए व्यवसाय को पूरा समय देना आवश्यक है। कार्य क्षेत्र पर हास्य के अवसर मिलने से मन को राहत मिलेगी। धन लाभ अकस्मात होने से अधूरे कार्य पूर्ण कर सकेंगे। आज मित्रो अथवा अन्य कारणों से यात्रा पर्यटन यथा संभव टालने का प्रयास करें दुर्घटना हो सकती है।

वृष🐂 (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)
आज के दिन लाभ की संभावना बनते बनते अनिर्णय की स्थिति के कारण बिगड़ सकती है कार्यो को अधिक ध्यान से करना आवश्यक है। लाभ पाने के लिए अधिक परिश्रम एवं मन को एकाग्रचित रखना पड़ेगा। प्रतिस्पर्धी अतिरिक्त प्रलोभन देकर आपके बनते कार्य को बिगाड़ने का प्रयास करेंगे फिर धन लाभ आवश्यकता अनुसार हो ही जाएगा। आज आपकी महात्त्वकांक्षाएँ भी अधिक रहेगी पूरी ना होने पर बेवजह दुःख रहेगा। परिजन का व्यवहार अनुकूल रहेगा महत्त्वपूर्ण कार्यो में मार्गदर्शन भी मिलेगा परन्तु आप इसकी अनदेखी करेंगे।

मिथुन👫 (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)
आज आप अपने किये सभी कार्यो में संतोष रखेंगे। पारिवारिक वातावरण भी आपके निर्णयों के समर्थन में रहेगा। आज विशेषकर महिलाएं परिवार में सक्रिय भागीदारी निभाएंगी धन सम्बंधित समस्याओं को सुलझाने में भी सहयोग करेंगी। आज आप लाभ-हानि के चक्कर में ज्यादा नहीं पड़ेंगे लेकिन सुखोपभोग की मानसिकता अवश्य रहेगी। स्नेहीजन से आनंददायक भेंट रहेगी। पड़ोसियों से किसी कारण बहस हो सकती है जिसका कोई परिणाम नहीं निकलेगा। सरकारी कार्य करने के लिए किसी की सहायता आवश्यक रहेगी। धन लाभ प्रयास करने पर ही होगा।

कर्क🦀 (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)
आज के दिन आप अपना ध्यान आवश्यक कार्यो पर एकाग्र करने का प्रयास करें अन्यथा जहाँ लाभ होना है वहां हानि मिलेगी। मन अनर्गल कार्यो में अधिक भटकेगा। विष्योपभोग में अधिक रुचि रहने के कारण धन खर्च की परवाह नहीं करेंगे। मौज-शौक पर अधिक खर्च रह सकता है। धन लाभ लापरवाही के चलते आगे के लिए टलेगा। व्यवसाय में निवेश अतिआवश्यक होने पर ही करें। स्वयं अथवा परिजन की स्वास्थ्य सम्बंधित समस्याओं की अनदेखी आगे भारी पड़ सकती है। परिवार में आपके कारण खींच-तान रह सकती है। विवेकी व्यवहार अपनाए बेवजह की परेशानी से बचेंगे।

सिंह🦁 (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)
आज की परिस्थितियां पहले से अधिक ख़राब रहने वाली है। नौकरी-व्यवसाय में छोटी गलती के कारण बड़ा नुकसान हो सकता है इसलिये सहकर्मी अथवा नौकरों के ऊपर आश्रित ना रहें जितना संभव हो स्वयं की देखरेख में कार्य संपंन्न करवाये। सेहत में भी उतार चढ़ाव आने से कार्य प्रभावित हो सकते है उदर शूल अथवा अन्य पेट सम्बंधित व्याधि के कारण असहजता बनेगी। महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा अधिक खर्चीली रहेंगी। सरकारी एवं जमीनी कार्य आगे के लिए टलेंगे जिससे समय एवं धन नष्ट होगा। लोग आपके नरम स्वभाव का फायदा उठायेंगे। गृहस्थ जीवन में थोड़ी बहस होगी परन्तु शांति बनी रहेगी।

कन्या👩 (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)
आज आपको कार्य क्षेत्र पर कई व्यवधानों का सामना करना पड़ सकता है परन्तु आत्मविश्वास बनाये रखें सोची योजनाएं अवश्य पूरी होंगी। कार्य आज थोड़े विलम्ब से शुरू होने के कारण पूर्ण होने में भी विलम्ब होगा आर्थिक मामले इस वजह से प्रभावित हो सकती है। विपरीत लिंगीय व्यक्ति के प्रति अधिक आकर्षण बेवजह परेशानी का कारण बनेगा। प्रेम प्रसंगों में किसी ग़लतफ़हमी के कारण अचानक दूरी आ सकती है। धन सम्बंधित व्यवहारों के कारण असहजता रहेगी। नौकरी पेशा जातक भी कार्य स्थल पर असुरक्षित अनुभव करेंगे। अधिकारी वर्ग अकारण भी क्रोध कर सकते है।

तुला⚖️ (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)
आज का दिन सरकारी कार्यो के लिए विशेष लाभदायक रहेगा किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता अथवा रुके कार्य आज अवश्य ही आगे बढ़ेंगे। व्यवसाय में प्रतिस्पर्धा कम रहने से लाभ की संभावना अधिक रहेगी। आस-पड़ोसियों से वैर-विरोध मिटेगा लेकिन अभिमानी स्वभाव रहेगा। आज आप किसी से भी मधुर वाणी द्वारा आसानी से काम निकाल सकेंगे। अधिकारी वर्ग आपके ऊपर कृपा दृष्टि बनाएंगे। मध्यान के समय आकस्मिक यात्रा से थोड़ी थकान रहेगी। पारिवारिक वातावरण सुखद रहेगा। संताने प्रगति करेंगी फिर भी नजर अवश्य रखें।

वृश्चिक🦂 (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)
आज का दिन थोड़ा उठा पटक वाला रहेगा। सेहत प्रातः काल से नरम रहेगी मन अकारण ही अशांत रहेगा। भावुकता भी स्वभाव में अधिक रहेगी जिससे अन्य लोग आपकी भावनाओं का गलत लाभ उठा सकते है। आज किसी के ऊपर जल्दी विश्वास करना हानि कराएगा सावधान रहें। धन सम्बंधित व्यवहार देख-भालकर एवं लिख कर ही करें। व्यवसाय आज आशा के अनुकूल नहीं रहेगा परन्तु खर्च अधिक रहने से आर्थिक संतुलन प्रभावित होगा। गृहस्थ में भी धन खर्च करने पर ही सुख की प्राप्ति हो सकेगी। सायंकाल का समय अपेक्षाकृत आराम से बितायेंगे। थकान मिटाने के लिए मनोरंजन के अवसर उपलब्ध होंगे।

धनु🏹 (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)
आज के दिन सम्मान हानि की संभावना अधिक है प्रत्येक कार्य विशेषकर सामाजिक क्षेत्र पर अत्यन्त सावधानी बरतें। किसी के कहे में आकर कोई अनैतिक कार्य ना करें। कार्य व्यवसाय में भी आज प्रलोभन के अवसर मिलेंगे जिनमे शीघ्र लाभ हो सकता है परन्तु भविष्य में इनका दुष्प्रभाव देखने को मिलेगा। व्यावसायिक क्षेत्र पर लाभ पाने के लिए व्यवहारिकता काम आएगी इसलिए स्वभाव में नरमी रखें। विरोधी आपके प्रयासों को विफल कर सकते है। जल्दबाजी में धन का निवेश ना करें ना ही किसी को उधार दें। घर में आज मौन साधन ही तकरार से बचने का उत्तम उपचार है।

मकर🐊 (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)
आज के दिन आप जोड़-तोड़ की नीति अपनायेंगे। कार्य क्षेत्र पर भी किसी से समझौता करना पड़ सकता है। एकल स्वामित्व वाले व्यवसाय में निवेश हानि करा सकता है इसके विपरीत भागीदारी के व्यवसाय में लाभ की संभावना अधिक रहेगी। आर्थिक कारणों से किसी से झगड़ा भी हो सकता है शांत व्यवहार से काम् चलाएं। स्वभाव में कामुकता अधिक रहेगी विपरीत लिंगीय के प्रति जल्दी आकर्षित हो जाएंगे सतर्क रहे हानि हो सकती है। गृहस्थ जीवन में सुख के साधन पर अधिक खर्च होगा। स्त्री संतान का सुख मिलेगा।

कुंभ🍯 (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)
आज के दिन भी लाभ-हानि बराबर रहेगी। किसी के ऊपर आवश्यकता से अधिक निर्भर रहना हानि करा सकता है। कार्य व्यवसाय में आज किसी से धोखा मिलने की भी सम्भावना है सतर्क रहें। व्यवसाय आशा के।विपरीत रहेगा फिर भी बीच-बीच में थोड़ा बहुत धन प्राप्त होने से कार्य चलते रहेगे। आलस्य एवं लापरवाही के कारण कार्यो में विलम्ब होने से अधिकारियो की डांट सुननी पड़ेगी। आज आपका मन कार्य करते हुए भी कही और रहेगा जिससे कार्य बिगड़ सकते है। आज अधिक धैर्य का परिचय दें। क्रोध के भी कई प्रसंग बनेंगे जो सम्बन्धो के कटुता लायेगी। घर की शांति अचानक भंग हो सकती है।

मीन🐳 (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)
आज के दिन आपमे बुद्धि विवेक होने पर भी ईर्ष्यालु प्रवृति से ग्रसित रहेंगे। इस कारण घर एवं बाहर का वातावरण असामान्य बनेगा। हर कार्य में संदेह करना सहकर्मियो को अखरेगा। व्यापार में लाभ की संभावनाएं तो रहेंगी परन्तु आपकी व्यवहार शून्यता के चलते आर्थिक लाभ विलम्ब से होगा अथवा निरस्त भी हो सकता है। परिवार के बड़े सदस्य आपकी मनोदशा को समझ आज शांत ही रहेंगे। नौकरी पेशा जातक कार्यो को जल्द पूर्ण करने के कारण गलती कर सकते है। सामजिक क्षेत्र में आज आपका योगदान बढ़ने से सम्मान मिलेगा। संताने जिद्दी व्यवहार करेंगी।
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
〰〰〰〰〰🙏राधे राधे🙏