शराब पिलाना बंद करो, नहीं तो बनाना शुरू करो

डाॅ हरीश मैखुरी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के परामर्श पर उत्तराखंड को विचार करना चाहिए? शराब के सेवन को किसी भी स्तर पर  मनुष्य और मानवता के लिए  उचित नहीं ठहराया जा सकता, महात्मा गांधी ने कहा है कि “शराब आत्मा और शरीर दोनों का नाश करती है”। उत्तराखंड के कुछ जिले काफी वर्षों तक ड्राई एरिया रहे। लेकिन उस समय उत्तराखंड के इन जिलों में  शराब पीकर सड़क पर लड़खड़ाने वालों की तादाद आज के मुकाबले ज्यादा रहती थी। आज तो उत्तराखंड में भी शराब का प्रचलन अत्यधिक बढ़ गया है। एक तो उत्तराखंड के अधिकांश परिवार सैनिक पृष्ठभूमि से होने की वजह से कैंटीन से मिलने वाली शराब पर भी डिपेंडेंसी रखते हैं। जबकि उत्तराखंड में सरकारी शराब के ठेके भी यहां के पियक्कड़ों से अच्छी खासी रकम बटोर लेते हैं, जिसमें से थोड़ा बहुत राजस्व सरकार के पल्ले भी पड़ जाता है। लेकिन यदि शराब बेचनी जरूरी ही है तो उत्तराखंड अपनी शराब बनाकर क्यों ना व्यवसाय करे? हमारा तो एक व्यावहारिक सुझाव है शराब पीना, पिलाना, शराब की बिक्री करना उत्तराखंड में पूरी तरह बंद हो क्यों कि यह देवभूमि है। और यहां पर  चीड़ के पिरूल से बनने वाले  कोयले और गत्ते के उद्योग लगे  स्थानीय फलों के उत्पादन को बढ़ावा दिया जाए  उन पर आधारित उद्योग लगे  गंगाजल और उसकी सहायक नदियों के जल की पैकिंग हो उस उद्योग को बढ़ावा दिया जाए। यहां गोबर की खाद की पैकेजिंग हेतु उद्योग स्थापित और भी बहुत सारी संभावनाएं हैं लेकिन लेकिन जब सरकार इस तरफ ध्यान नहीं दे पा रही और शराब बेचना को जरूरी समझती है, यदि शराब बंद हो ही नहीं सकती है तो उत्तराखंड अपनी शराब बनाकर बेचे न कि बाहर की शराब की बिक्री करके राज्य का पैंसा शराब लाबी की जेब में डालें। और यह शराब भी पर्वतीय जनपदों में पहाड़ी अनाजों और फलों से बने, शराब को लघु उद्योग का दर्जा मिले यह उच्च क्वालिटी की शराब हो जिसे हम एक्सपोर्ट क्वालिटी की बना सकें और १० हजार रुपे से ज्यादा की बोतल विदेशों में बेच सकें। शदियों से उत्तराखंड के सीमावर्ती क्षेत्रों की अनेक जनजातियां परंपरागत रूप से अनाज से बनी हुई शराब का खुद भी सेवन करती है और इस मेडिसिनल शराब को बहुत कम मात्रा में स्थानीय स्तर पर बेचती भी रही हैं। इस स्थानीय शराब का फायदा यह था कि एक तो यह अनाज की बनी हुई होती है। दूसरी यह सस्ती होने की वजह से आम आदमी दिहाड़ी मजदूर की भी पहुंच में रहती थी। तीसरा जब किसी स्थानीय गरीब विधवा महिला की घर की बनी हुई अनाज की शराब बिकती है तो पीने वालों का ज्यादा नुकसान नहीं होता, लेकिन विधवा महिला का बेटा डॉक्टर इंजीनियर बन रहा होता है, और इस लोकल शराब का पैसा भी लोकली सर्कुलेट होता है। लेकिन हमारी व्यवस्था इस दवा दारू की परम्परागत पद्धति पर शोध करने व बढ़वा देने की  बजाय विदेशी अंग्रेजी शराब को उत्तराखंड में जबरदस्ती लोगों के हलक में ठूंसने का प्रयास करती है, तो यहां की अनेक महिलाएं विधवा हो रही होती हैं, और बच्चे डाक्टर इंजीनियर बनने की बजाय परिवार बर्बाद हो जाते हैं। जबकि महंगी अंग्रेजी शराब खरीदने से पैसा सीधे बाहर चले जाता है, और उसका स्थानीय आर्थिकी की वृद्धि में कोई योगदान नहीं  रहता। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद शराब माफियों का सरकार में दखल बढ़ा तो इन स्थानीय शराब बनाने वालों की खैर नहीं रही, उनकी अनेक स्तर पर कठोर मॉनिटरिंग और चेकिंग की जाने लगी, उनका लहंन उठा कर उन्हें जेल में भेजा जाने लगा। जबकि बरेली चंडीगढ़ हिमाचल आदि में बनने वाली शराब  की उत्तराखंड सरकार बोली लगवाने लगी। अब पहली बार इस दिशा में कदम उठाया जा रहा है कि उत्तराखंड में देवप्रयाग के पास बोटलिंग की कवायद शुरू हुई। हमारा मानना है कि उत्तराखंड से शराब का प्रचलन पूरी तरह से समाप्त हो, उत्तराखंड में शराब पीना और शराब बेचना संगीन अपराध की श्रेणी में रखा जाए। और सबसे पहले सरकारी ठेके बंद हों। लेकिन यदि यह संभव ना हो तो उत्तराखंड के सभी पर्वतीय जिलों में शराब बनाने की लघु इकाइयां स्थापित हों, प्रतिबंध यह हो कि इनमें स्थानीय लोगों द्वारा स्थानीय उत्पादों और अनाजों से बनी हुई शराब तैयार हो और वह एक्सपोर्ट क्वालिटी की हो। उसकी कीमत कम से कम ₹10000 बोतल रखी जाए, इससे उत्तराखंड के किसानों को अच्छा लाभ होगा। विदेशों में शराब लाखों रुपए की बोतल भी होती है भारत में भी यह महंगी शराब बिकती है तो क्यों ना उत्तराखंड में ऐसी एक्सपोर्ट क्वालिटी की शराब तैयार की जाए??? इससे रिवर्स पलायन की भी संभावना है लोग शराब बनाने वापस पहाड़ लौटेंगे।

या तो उत्तराखंड में शराब पीने पिलाने का प्रचलन बंद हो सामाजिक रुप से बंद हो शासकीय रुप से बंद हो नैतिक रूप से बंद हो क्यों कि इससे शरीर, परिवार, समाज, स्वास्थ्य सभी पर दुष्प्रभाव पड़ता है। और यदि ऐसा संभव नहीं है तो कथित रूप से उत्तराखंड में शराब बनाने का विरोध करना भी एक तरह का दिखावा ही है। सरकार को उत्तराखंड की समृद्धि के लिए शराब बनाने के विकल्प पर परिचर्चा करनी चाहिए। ११-०७-२०१९? ?