मणिपुर में देखते ही गोली मारने के आदेश, हिंसा को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने लिया कठोर निर्णय

 मणिपुर में देखते ही गोली मारने के आदेश, हिंसा को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने लिया कठोर निर्णय

 Manipur Violence: मणिपुर में हिंसा पर नियत्रण के लिए सरकार ने बड़ा निर्णय लिया है. सरकार की ओर से एक्सट्रीम केस में ‘शूट एट साइट’ का ऑर्डर दिया गया है. हिंसाग्रस्त इलाकों में सेना का फ्लैग मार्च जारी है. हैलिकॉप्टर के द्वारा भी दृष्टि की जा रही है

मणिपुर सरकार ने दिया शूट एट साइट का ऑर्डर. (PTI)

मणिपुर सरकार ने दिया शूट एट साइट का ऑर्डर. (PTI)

हाइलाइट्स

मणिपुर में ‘शूट एट साइट’ का आदेश

हिंसा को रोकने सरकार का फैसला

कई जिलों में इंटरनेट सेवा भी बंद

नई दिल्ली. मणिपुर (Manipur Violence) में सरकार ने हिंसा पर काबू पाने के लिए ‘शूट एट साइट’ का ऑर्डर दिया है. हालांकि यह केवल एक्ट्रीम केस में ही इस्तेमाल किया जाएगा. बता दें कि मणिपुर में मैतेई समुदाय को एसटी कैटेगरी में शामिल करने के खिलाफ एक आदिवासी स्टूडेंट यूनियन ने मार्च बुलाया था. इसमें हिंसा भड़क गई थी. इसके बाद कई जिलों में कर्फ्यू लगा दिया गा था. इतना ही नहीं पूरे मणिपुर में 5 दिनों के लिए इंटरनेट सर्विस को सस्पेंट कर दिया गया है. फिलहाल मणिपुर में स्थिति तनावपूर्ण है. दंगों को रोकने सेना और असम राइफल्स को भी डिप्लोय कर दिया गया है.

मणिपुर के हिंसाग्रस्त इलाकों में सेना का फ्लैग मार्च जारी है. हैलिकॉप्टर के जरिए भी निगरानी की जा रही है. सेना और असम राइफल्स ने चुराचंदपुर के खुगा, टाम्पा, खोमौजनब्बा के क्षेत्र, इंफाल के मंत्रीपुखरी, लाम्फेल कोइरंगी क्षेत्र और काकचिंग जिलों के सुगनू में फ्लैग मार्च और हवाई सर्वेक्षण किया है. कानून व्यवस्था की बहाली के लिए सेना और असम राइफल्स के कुल 55 कॉलम तैनात किए गए हैं. अतिरिक्त 14 कॉलम को भी शॉर्ट नोटिस पर तैनाती के लिए तैयार रखा गया है.

मैरी कॉम ने किया ट्वीट

मणिपुर की स्थिति पर महिला मुक्केबाज मैरी कॉम ने भी ट्वीट किया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मदद मांगी. मैरी कॉम ने अपने ट्वीट में लिखा,’मेरा राज्य मणिपुर जल रहा है. प्लीज मदद कीजिए.’ उन्होंने अपने ट्वीट में पीएम नरेंद्र मोदी, पीएमओ ऑफिस, गृहमंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को भी टैग किया है. उन्होंने मणिपुर हिंसा की कुछ तस्वीरों को भी अपने ट्वीट में शेयर किया है.

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भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में अचानक हिंसा भड़क गई. राज्य के 8 जिले हिंसा की चपेट में आ गए हैं, जिसके वजह से यहां धारा 144 के साथ-साथ राज्य में अगले 5 दिनों के लिए इंटरनेट सेवाएं भी बंद कर दी गई हैं. हिंसा प्रभावित जिलों में किसी भी अनहोनी से निपटने के लिए असम राइफल्स की 34 और सेना की 9 कंपनियां तैनात कर दी गई हैं.

इंफाल: भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में अचानक हिंसा भड़क गई है. राज्य के 8 जिले हिंसा की चपेट में आ गए हैं. जिसकी वजह से यहां धारा 144 के साथ-साथ राज्य में अगले 5 दिनों के लिए इंटरनेट सेवाएं भी बंद कर दी गई हैं. हिंसा प्रभावित जिलों में किसी भी अनहोनी से निपटने के लिए असम राइफल्स की 34 और सेना की 9 कंपनियां तैनात कर दी गई हैं. वहीं, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मुख्यमंत्री बीरेन सिंह से फोन पर घटना की जानकारी ली और उन्होंने केंद्र की ओर से राज्य को हरसंभव मदद का भरोसा दिया. 

विवाद की मूल वजह समझेंमणिपुर के कुल क्षेत्रफल का लगभग 89% हिस्सा पहाड़ी है. यहां तीन समुदाय के लोग रहते हैं- मैतई, नागा, और कुकी. इनमें नागा और कुकी को आदिवासी समुदाय का दर्जा मिला हुआ है जबकि मैतई को गैर-आदिवासी का दर्जा प्राप्त है. जहां, मैतई हिंदू धर्म से संबंध रखते हैं, वहीं अधिकतर नागा और कुकी ईसाई धर्म से संबंधित हैं. विवाद की वजह ये है कि मणिपुर के कानून के अनुसार सिर्फ आदिवासी समुदाय (Scheduled Tribe) के ही लोग पहाड़ी इलाकों में बस सकते हैं. यानी अपना घर बनाकर जीवकोपार्जन कर सकते हैं. राज्य का 90 प्रतिशत हिस्सा पहाड़ी है. जहां मैतई समुदाय के लोगों को अनुसूचित जाति (SC) का दर्जा प्राप्त है, तो ये जनजाति इन पहाड़ी इलाकों में अपना घर बनाकर बस नहीं सकती है.

कब्जे की जंगबात ये है कि राज्य में मैतई समुदाय के लोगों की संख्या 53% है जबकि 40% नागा और कुकी लोग हैं. 7 फीसद लोग अन्य समुदाय जैसे कि मयांग हैं, जो देश के अन्य भागों से आकर यहां बसे हुए हैं. मयांग समुदाय के लोग मुस्लिम धर्म से संबंध रखते हैं. बताया जाता है कि यहां ‘कब्जे की जंग’ है. यानी मैतई समुदाय के लोग भी पहाड़ी इलाकों में बसने की मांग कर रहे हैं. चूंकि, राज्य की कानून के अनुसार सिर्फ अनुसूचित जनजाति (ST) समुदाय के ही लोग पहाड़ी इलाकों में बस सकते हैं. इसलिए सालों से मैतई समुदाय के लोग अपना दर्जा अनुसूचित जाति (SC) से हटाकर अनुसूचित जनजाति (ST) करने की मांग कर रहे हैं, ताकि वे लोग भी पहाड़ी इलाकों में जाकर बस सकें। 

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