धारा 377 की समाप्ति यानी भविष्य में यौनाचार , दुराचार , व्यभिचार ,बालशोषण और समलैंगिंक सम्बन्धों से निर्मित विकृत समाज

लेख – सच्चिदानंद शर्मा ” शून्य”

मेरा देश बदल रहा है
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गिनती के मुट्ठी भर समलैंगिक समुदाय के लोगों के मौलिक अधिकारों और हितों को ध्यान में रखते हुए माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही पूर्ववर्ती निर्णयों को पलट कर आज के बदलते परिवेश में 158 साल पुरानी आईपीसी की धारा 377 को खारिज कर वयस्कों के बीच आपसी सहमति से समलैंगिक संबंध को अपराध मुक्त कर दिया है । अब से पहले धारा 377 के अंतर्गत जो कृत्य अमानवीय , अप्राकृतिक,अनैतिक माना जाता रहा वही अब सामाजिक नैतिकता की आड़ में किसी के मौलिक अधिकारों का हनन , प्रेम के मानवीय स्वभाव को पिंजरे में कैद करने वाला कानून आदि-आदि….….. कहलाने लगा है ,यहां तक की न्यायाधीश इंदु मल्होत्रा ने अपने निर्णय में कहा कि ” इतिहास समलैंगिंक समुदाय और उनके परिवारों के लोगों को दशकों तक अपमान और बहिष्कार सहते रहने और उन्हें न्याय देने में देरी के लिए क्षमा प्रार्थी है ।
विचारणीय प्रश्न यह भी है कि विश्व पटल पर भारत की विश्वगुरु की छवि, कालजयी सनातन संस्कृति, चिर निरंतर चली आ रही सदाचार और नैतिक समाज की संरचना, पौराणिक चिंतन और दर्शन की नींव पर खड़ा भारतीय समाज सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय को कहां तक आत्मसात कर पाएगा यह तो भविष्य के गर्भ में ही निहित है , किंतु भविष्य में बढ़ते यौनाचार , दुराचार , व्यभिचार ,बालशोषण और समलैंगिंक सम्बन्धो से नवनिर्मित विकृत समाज की परिकल्पना से इंकार नहीं किया जा सकता। समलैंगिकों के विवाह से लेकर तलाक संतान से लेकर संपत्ति और भविष्य में उत्पन्न होने वाले तमाम विवादों का भार समाज और सरकार के कंधों में आने वाला है।
मुझे आभास होता है कि अब समाज के इस क्रांतिकारी परिवर्तन युग में आरक्षण व समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दे निकट भविष्य में धीरे – धीरे गोंण होने लगेंगे । पाश्चात्य संस्कृति की तर्ज पर निर्मित स्वछंद समाज में एससी एसटी अगड़े- पिछड़े दलित – स्वर्ण आरक्षण – अनारक्षण जैसे मुद्दे भी स्वतः हाशिए पे होंगे । बदलते परिवेश में जाति विहीन समाज की परिकल्पना से भी इंकार नही किया जा सकता । सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय ने संविधान और संविधान निर्मात्री सभा की प्रासंगिकता को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है , अब लगने लगा है कि हमारा संविधान आज की बदलती हुई परिस्थितियों के अनुकूल खरा नहीं उतरता है , अब संविधान के पुनरावलोकन का सही समय आ गया है , समय रहते सरकार को चेत जाना चाहिए , अन्यथा ………..
यह जब्र भी देखे हैं तारीख़ की नज़रों ने, लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पाई ।