नयी पीढ़ी मांगल और जागरों से होगी मालामाल

मंगल कार्यों में “मांगल”  और देव कार्यों में “जागर” उत्तराखंड की समृद्धि लोक विरासत के मुख्य अंग रहे हैं, लेकिन आधुनिकीकरण और पाश्चात्य  संगीत के आगमन से हमारी यह विरासत कुंद सी पड़ गई ।  सौभाग्य की बात है कि अब नई पीढ़ी  अपनी विरासत खोने का मर्म समझ रही है और इसको संजोने के लिए आगे भी आ रही है। इसी दिशा में डा डीआर पुरोहित, लखपत राणा, शैलेंद्र तिवारी एवं सहयोगी टीम द्वारा पहल कर मांगल जागर थड़िया चौंफला झोड़ा जैसी विधा को संजोने और नयी पीढ़ी को इसे रोजगार के रूप में अपनाने के लिए  प्रभावशाली कदम उठाए जा रहे हैं। इसी क्रम में गुप्तकाशी में कार्यशाला का आयोजन किया गया,  इस पर एक रिपोर्ट – डॉ हरीश मैखुरी,  ब्रेकिंग उत्तराखंड डाट काम)

डॉ जैक्स वीन नेशनल स्कूल गुप्तकाशी में बिगुल सामाजिक साहित्यिक संस्था एवम सांस्कृतिक संस्था देहरादून व डेढ़ दशक से शिक्षा,संस्कृति सहित सामाजिक सरोकारों से जुड़ी जीवन निर्माण एजुकेशन सोसाइटी भैंसारी गुप्तकाशी के संयुक्त तत्वावधान में तीन दिवसीय माँगलगीत कार्यशाला का यादगार आयोजन कई माामलों ऐतिहासिक पहल कही जा सकती है । डॉ जैक्स वीन नेशनल स्कूल गुप्तकाशी में बिगुल सामाजिक साहित्यिक एवम सांस्कृतिक संस्था देहरादून व डेढ़ दशक से शिक्षा,संस्कृति सहित सामाजिक सरोकारों से जुड़ी जीवन निर्माण एजुकेशन सोसाइटी भैंसारी गुप्तकाशी के संयुक्त तत्वावधान में तीन दिवसीय माँगलगीत विशेष कार्यशाला का का आयोजन किया गया । मुख्य अतिथि पूर्व ब्लॉक प्रमुख श्रीमती ममता नौटियाल ने कहा कि पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव के कारण आज हमारी लोक परम्पराएं व लोक मान्यताएं हाशिये पर आ गयी हैं ऐसी दशा में नई पीढ़ी तक माँगलगीतों के महत्व की जानकारी देने वाली इस कार्यशाला की सार्थकता सिद्ध होगी।कार्यशाला निदेशक आकाशवाणी की पूर्व महिला संगीत निर्देशक डॉ माधुरी बड़थ्वाल ने कहा कि माँगलगीत संस्कार के गीत हैं।। ये हमें विरासत के  रूप में मिले हैं। किंतु आज बढ़ते भौतिकवाद और भोगवाद की वजह से इनका अस्तित्व खतरे में है।लोक संस्कृति एवम लोक साहित्य के आधार इन गीतों का संरक्षण होने के साथ मंगलकामना के इन गीतों को विभिन्न शुभ अवसरों पर गाया जाना चाहिए।तीन दिवसीय कार्यशाला की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए संस्थापक शैलेन्द्र तिवारी ने कहा है कि माँगलगीतों के संरक्षण हेतु आयोजित इस कार्यशाला में तीन वर्गों क्रमश वृद्ध महिलाओं, युवा एवम छात्राओं को अलग अलग अवसरों पर गाये जाने वाले  माँगलगीतों का प्रशिक्षण के उपरांत समापन  दिवस पर माँगलगीतों का गायन प्रदर्शन होगा। संस्था का प्रयास विभिन्न क्षेत्रों में माँगलगीत कार्यशालाएं आयोजित कर 500 महिलाओं एवम छात्राओं को माँगलगीतों से जोड़ना है। कार्यशाला संयोजक लखपत राणा ने कहा कि माँगलगीतों की इस कार्यशाला में प्रतिभागियों को गढ़वाल के विभिन्न क्षेत्रों में गाए जाने वाले माँगलगीतों की शैली के साथ ही लोकनृत्यों से भी अवगत कराना है। प्रतिभागी  विश्वनाथ कीर्तन मण्डली एवम दुर्गा कीर्तन मण्डली के सदस्य क्रमश  राजेश्वरी बगवाड़ी, रामेश्वरी शुक्ला, अंजनी बगवाड़ी, दर्शनी तिवाड़ी,अनिता रूवाड़ी, उषा सेमवाल, यशोदा देवी, श्रीमती जसमती देवी,महिला मंगलदल श्रीमती राजेश्वरी देवी के साथ ही सृजन निकेतन श्यामावन संस्था खुमेरा की संचालिका सुश्री अर्चना बहुगुणा एवम उनकी संस्था के प्रशिक्षु,आसपास के विद्यालयों व डॉ जैक्स वीन नेशनल स्कूल के शिक्षक शिक्षिकाओं, क्रमश  रामकृष्ण गोस्वामी, अरविंद नेगी, जितेंद्र नेगी, सुमन शुक्ला,हेमंती सजवाण, प्रदीप बिष्ट, रेखा चौहान,बीना राणा  आदि ने प्रतिभाग किया 

 
आयोजन के मुख्य संचालक लखपत  राणा ने कहा कि उत्तराखंड की विरासत माँगल गीतों को आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाना प्रमुख लक्ष्य है। 
        कार्यशाला के समापन अवसर पर बिगुल संस्था के मुख्य कार्यकारी मोहन वशिष्ठ एवं जे एन ई एस के पदाधिकारियों ने सभी अतिथियों एवं प्रतिभागियों का स्वागत किया।समापन अवसर पर कार्यशाला निदेशक डॉ. माधुरी बड्थ्वाल ने तीन दिन की इस कार्यशाला में उपस्थित प्रत्येक प्रतिभागी के मांगलगीतों को सीखने के प्रति लगन हेतु उन्हें धन्यवाद दिया एवं कहा कि पूर्वजों से मिली इस विरासत को संजोने की जरूरत है। उन्होंने कीर्तन मण्डलियों से भी निवेदन किया कि वे विभिन्न अवसरों पर कीर्तन के साथ ही मांगलगीतों का गायन भी करें। बिगुल के संरक्षक प्रसिद्व रंगकर्मी एवं संस्कृतिकर्मी प्रो. डी. आर. पुरोहित ने कहा कि मांगल गायन की परम्परा हजारों वर्षों पुरानी है,बीच में यह परम्परा क्षीण हो गयी थी किन्तु अब यह तेजी से पुनर्जीवित हो रही है और बड़े शहरों में हमारे पहाड़ के प्रवासी इस परम्परा को हाथों-हाथ ले रहे हैं।प्रो. पुरोहित ने बताया कि देहरादून में डॉ. माधुरी बड्थ्वाल, श्रीनगर में गिरीश पैन्युली, पौड़ी में अनिल बिट, चमोली में लक्ष्मी शाह और अब गढ़वाल क्षेत्र में बिगुल संस्था एवं जीवन निर्माण एजुकेशन सोसाइटी इस परम्परा को पुनर्जीवित करने के लिए प्रतियोगिताएं एवं कार्याशालाएं आयोजित कर इस परम्परा के संरक्षण के लिए प्रयास कर रहे हैं।उन्होंने  कहा कि मांगल एवं ढोल कार्यक्रम को उचित पैसा न देने वाली मानसिकता के लोगों के मन में ऐसे आयोजनों से मांगलगीतों एवं ढ़ोल के प्रति सम्मान बढ़ेगा।इस अवसर पर कार्याशाला की सह-निर्देशक श्रीमती यशोदा देवी राणा एवं श्रीमती रामेश्वरी देवी ने गणेश पूजन, हल्दीहाथ, बेदी निर्माण, मंगलस्नान, नवग्रह पूजन, सात फेरे, कन्यादान, गायदान, विदाई,गृह प्रवेश आदि के मांगल गीतों का गायन तो किया ही साथ में प्रतिभागियों को सिखाकर कार्यशाला में उत्सव का माहौल बना रौनक बिखेर दी।इसके साथ ही मुण्डन, धार्मिक अनुष्ठान भागवत कथा एवं अन्य अवसरों पर गाये जाने वाले मांगल गीतों का गायन एवं प्रशिक्षण भी दिया गया। मोहन वशिष्ठ ने कविता पाठ व माधव सिंह नेगी, प्रधानाध्यापक रा0प्रा0 वि0 जैली द्वारा स्वरचित नंदा देवी के मांगलों एवं जागरों का गायन किया गया। प्रतिभागी महिलाओं, डॉ जैक्स वीन नेशनल स्कूल एवं सृजन निकेतन श्यामावन खुमेरा के छात्र-छात्राओं ने भी मांगल गीतों का गायन, चौंफला एवं थड्या नृत्य गीतों की सुन्दर प्रस्तुति दी। इस अवसर पर तीन दिवसीय कार्याशाला में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले प्रतिभागियों को दोनों संस्थाओं द्वारा प्रमाण-पत्र वितरति किये गये। बिगुल संस्थापक शैलेन्द्र तिवारी ने तीन दिवसीय कार्याशाला की रिर्पोट एवं इन मांगल गीतों के डाकुमेंटेशन की रिकाडिंग भी प्रस्तुत की। कार्यशाला की समन्वयक सुनीता देवी प्राचार्य डॉ. जैक्स वीन नेशनल स्कूल ने सभी अतिथियों एवं प्रतिभागियों का धन्यवाद करते हुए कहा कि मांगल हमारी संस्कृति की पहचान हैं और इनको अक्षुण बनाये रखने के लिए इस तरह के कार्यक्रमों का आयोजन सराहनीय है। कार्यक्रम का संचालन रंगकर्मी एवं कार्यशाला के मुख्य सहयोगी लखपत सिंह राणा ने विभिन्न प्रकार के लोककथा, गाथा एवं बोलियों के प्रस्तुतिकरण के साथ रोचक ढंग से किया।

इस अवसर पर गुप्तकाशी एवं आसपास के गांवों से कई महिलायें,बच्चे व डॉ जैक्स वीन नेशनल स्कूल की प्रिंसिपल सुनीता देवी,  स्टाफ एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे। संक्षेप में कहें तो यदि सीख गई नयी पीढ़ी तो मांगल और जागरों से होगी मालामाल ।