*न्यूजीलैंड से एक बेहद तल्ख आर्टिकिल।*
*भारतीय लोग होब्स विचारधारा वाले है (सिर्फ अनियंत्रित असभ्य स्वार्थ की संस्कृति वाले)*
भारत मे भ्रष्टाचार का एक कल्चरल पहलू है। भारतीय भ्रष्टाचार मे बिलकुल असहज नही होते, भ्रष्टाचार यहाँ बेहद व्यापक है। भारतीय भ्रष्ट व्यक्ति का विरोध करने के बजाय उसे सहन करते है। कोई भी नस्ल इतनी जन्मजात भ्रष्ट नही होती
*ये जानने के लिये कि भारतीय इतने भ्रष्ट क्यो होते हैं उनके जीवनपद्धति और परम्पराये देखिये।*
भारत मे धर्म लेनेदेन वाले व्यवसाय जैसा है। भारतीय लोग भगवान को भी पैसा देते हैं इस उम्मीद मे कि वो बदले मे दूसरे के तुलना मे इन्हे वरीयता देकर फल देंगे। ये तर्क इस बात को दिमाग मे बिठाते हैं कि अयोग्य लोग को इच्छित चीज पाने के लिये कुछ देना पडता है। मंदिर चहारदीवारी के बाहर हम इसी लेनदेन को भ्रष्टाचार कहते हैं। धनी भारतीय कैश के बजाय स्वर्ण और अन्य आभूषण आदि देता है। वो अपने गिफ्ट गरीब को नही देता, भगवान को देता है। वो सोचता है कि किसी जरूरतमंद को देने से धन बरबाद होता है।
*जून 2009 मे द हिंदू ने कर्नाटक मंत्री जी जनार्दन रेड्डी द्वारा स्वर्ण और हीरो के 45 करोड मूल्य के आभूषण तिरुपति को चढाने की खबर छापी थी। भारत के मंदिर इतना ज्यादा धन प्राप्त कर लेते हैं कि वो ये भी नहीं जानते कि इसका करें क्या। अरबों की सम्पत्ति मंदिरो मे व्यर्थ पड़ी है।*
*जब यूरोपियन इंडिया आये तो उन्होनें यहाँ स्कूल बनवाये। (ईसाकरण के लिए) जब भारतीय यूरोप और अमेरिका जाते हैं तो वो वहाँ मंदिर बनाते हैं।(मंदिर बनाना अपराध कब से हुआ ये तो भारतीय संस्कृति का मूल है)
*भारतीयो को लगता है कि अगर भगवान कुछ देने के लिये धन चाहते हैं तो फिर वही काम करने मे कुछ कुछ गलत नहीं है। इसीलिये भारतीय इतनी आसानी से भ्रष्ट बन जाते हैं।*(ये विदेशियों का अपना चश्मा है। बदल लो भारत को देखने का ये गलत नजरिया)
*भारतीय कल्चर इसीलिये इस तरह के व्यवहार को आसानी से आत्मसात कर लेती है, क्योंकि*
1 नैतिक तौर पर इसमे कोई नैतिक दाग नहीं आता। एक अति भ्रष्ट नेता जयललिता दुबारा सत्ता मे आ जाती है, जो आप पश्चिमी देशों मे सोच भी नहीं सकते ।
2 भारतीयों की भ्रष्टाचार के प्रति संशयात्मक स्थिति इतिहास मे स्पष्ट है। भारतीय इतिहास बताता है कि कई शहर और राजधानियों को रक्षकों को गेट खोलने के लिये और कमांडरों को सरेंडर करने के लिये घूस देकर जीता गया। ये सिर्फ भारत में है
भारतीयों के भ्रष्ट चरित्र का परिणाम है कि भारतीय उपमहाद्वीप मे बेहद सीमित युद्ध हुये। ये चकित करने वाला है कि भारतीयों ने प्राचीन यूनान और माडर्न यूरोप की तुलना मे कितने कम युद्ध लडे। (हमारे यहां युद्ध नहीं शांति का कन्सैपट है रे भाई) दिरशाह का तुर्को से युद्ध तो बेहद तीव्र और अंतिम सांस तक लडा गया था। भारत मे तो युद्ध की जरूरत ही नहीं थी, घूस देना ही सेना को रास्ते से हटाने के लिये काफी था। कोई भी आक्रमणकारी जो पैसे खर्च करना चाहे भारतीय राजा को, चाहे उसके सेना मे लाखो सैनिकों हो, हटा सकता था।
प्लासी के युद्ध मे भी भारतीय सैनिको ने मुश्किल से कोई मुकाबला किया। क्लाइव ने मीर जाफर को पैसे दिये और पूरी बंगाल सेना 3000 मे सिमट गई। भारतीय किलो को जीतने मे हमेशा पैसो के लेनदेन का प्रयोग हुआ। गोलकुंडा का किला 1687 मे पीछे का गुप्त द्वार खुलवाकर जीता गया। मुगलो ने मराठो और राजपूतो को मूलतः रिश्वत से जीता श्रीनगर के राजा ने दारा के पुत्र सुलेमान को औरंगजेब को पैसे के बदले सौंप दिया। ऐसे कई केसेज हैं जहाँ भारतीयो ने सिर्फ रिश्वत के लिये बडे पैमाने पर गद्दारी की।
सवाल है कि भारतीयो मे सौदेबाजी का ऐसा कल्चर क्यो है जबकि जहाँ तमाम सभ्य देशो मे ये सौदेबाजी का कल्चर नही है
3- *भारतीय इस सिद्धांत मे विश्वास नहीं करते कि यदि वो सब नैतिक रूप से व्यवहार करेंगे तो सभी तरक्की करेंगे क्योंकि उनका “विश्वास/धर्म” ये शिक्षा नहीं देता।(अपने हिसाब से व्याख्या) उनका कास्ट सिस्टम उन्हे बांटता है। वो ये हरगिज नही मानते कि हर इंसान समान है। इसकी वजह से वो आपस मे बंटे और दूसरे धर्मो मे भी गये। कई हिंदुओ ने अपना अलग धर्म चलाया जैसे सिख, जैन बुद्ध, और कई लोग इसाई और इस्लाम अपनाये। परिणामतः भारतीय एक दूसरे पर विश्वास नही करते। भारत मे कोई भारतीय नही है, वो हिंदू ईसाई मुस्लिम आदि हैं। भारतीय भूल चुके हैं कि 1400 साल पहले वो एक ही धर्म के थे। इस बंटवारे ने एक बीमार कल्चर को जन्म दिया। ये असमानता एक भ्रष्ट समाज मे परिणित हुई, जिसमे हर भारतीय दूसरे भारतीय के विरुद्ध है, सिवाय भगवान के जो उनके विश्वास मे खुद रिश्वतखोर है।*
लेखक-ब्रायन,
गाडजोन