गैरसैंण राजधानी के समर्थन में दून में उमड़ा जनसैलाब

मोहन भुलानी    

र्मपुर से अस्थाई विधानसभा भवन तक निकाली  जन चेतावनी रैली। 

मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंप बजट सत्र में गैरसैंण को स्थाई राजधानी घोषित करने की मांग की। देहरादून: गैरसैंण को प्रदेश की राजधानी बनाए जाने को लेकर चल रहा आंदोलन दिनो दिन बड़ा होता जा रहा है। प्रदेशभर में चल रहे प्रदर्शनों के बीच रविवार को देहरादून में आराघर चौक (धर्मपुर) से रिस्पना पुल स्थित अस्थाई विधानसभा भवन तक विशाल रैली निकाली गई जिसके बाद मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन सौंपा गया। राजधानी गैरसैंण निर्माण अभियान’ के तहत निकाली गई रैली में हजारों की संख्या में लोगों ने भागीदारी की। रैली को पचास से अधिक समाजिक संगठनों ने अपना समर्थन दिया। रैली के दौरान, ‘हमारी राजधानी: गैरसैंण’ ‘है हक हमारा: गैरसैंण’ ‘उत्तराखंड सरकार: होश में आओ’ ‘ देहरादून मंजूर नहीं: गैरसैंण अब दूर नहीं’ जैसे नारे गूंजते रहे।

सुबह ग्यारह बजे शुरू हुई रैली एक बजे विधानसभा पहुंची। यहां पर मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपा गाया। ज्ञापन के माध्यम से सरकार से तीन मांगे की गईं।
1- आगामी 2 मार्च से शुरू होने जा रहे बजट सत्र में गैरसैंण को प्रदेश की स्थाई राजधानी घोषित किया जाए।
2- गैरसैंण और उसके चारों और के पचास किलोमीटर क्षेत्र को राजधानी क्षेत्र घोषित करते हुए, उसका विस्तृत मास्टर प्लान तैयार किया जाए।
3- गैरसैंण में जो भी सरकारी निर्माण कार्य किए जाएं, वे कम से कम अगले 100 वर्षों को ध्यान में रखते हुए किए जाएं।

रैली के बाद आगामी 20 मार्च को गैरसैंण में प्रदर्शन करने का ऐलान किया गया। रैली के दौरान वक्ताओं ने गैरसैंण के समर्थन में तर्क रखे। राजधानी गैरसैंण निर्माण अभियान के सदस्य रघुबीर बिष्ट ने कहा कि, ‘उत्तराखंड को अलग राज्य बने सत्रह वर्ष पूर्ण हो चुके हैं मगर दुर्भाग्यपूर्ण है कि अभी तक राज्य की स्थाई राजधानी तय नहीं है। उन्होंने कहा कि राजधानी का निर्णय पहली निर्वाचित सरकार द्वारा लिया जाना था लेकिन राजधानी चयन आयोग की आड़ में अभी तक की सभी निर्वाचित सरकारें स्थाई राजधानी के मुद्दे को टालती रही हैं।
उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी योगेश भट्ट ने कहा कि, ‘स्थाई राजधानी न होने के कारण सबसे बड़ा नुकसान विकास प्रक्रिया का हुआ है और सत्रह वर्षों से राज्य एक अनियोजित विकास प्रक्रिया के दौर से गुजर रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार को पर्वतीय प्रदेश की अवधारणा को देखते समझते हुए गैरसैंण को इसी बजट सत्र में प्रदेश की राजधानी घोषित करना चाहिए।
राज्य आंदोलनकारी देवसिंह रावत ने कहा कि, ‘देश में हिमालयी राज्यों की श्रृंखला में कोई भी राज्य ऐसा नहीं है जिसकी राजधानी पर्वतीय क्षेत्र में न हो। उन्होंने कहा कि राजधानी चयन आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट कहा है कि प्रदेश की जनभावना, पर्वतीय राज्य की राजधानी पर्वतीय क्षेत्र में बनाने के पक्ष में है। छात्रनेता सचिन थपलियाल ने कहा कि, प्रदेश की युवाशक्ति किसी भी सूरत में अब गैरसैंण की अनदेखी बर्दाश्त नहीं करेगी। उन्होंने कहा कि सरकार ने यदि इस सत्र में गैरसैंण को प्रदेश की राजधानी घोषित नहीं किया तो प्रदेशभर में विशाल जनांदोलन छेड़ा जाएगा। 


आंदोलनकारी और युवा पत्रकार प्रदीप सती ने कहा कि, गैरसैंण कोई एक स्थान विशेष नहीं बल्कि इस पर्वतीय प्रदेश के लिए विकास के विकेंद्रीकरण का माडल है। उन्होंने कहा कि राज्य गठन से पहले ही आंदोलनकारियों ने बहुत सोच समझ कर गैरसैंण को प्रदेश की राजधानी के तौर पर चुना था ताकि नीति नियोजन में यहां की आम जनता की भागीदारी हो सके, मगर सत्ताधारियों अपने ऐशो आराम के लिए इस मांग को हाशिए पर डाल दिया। उन्होंने सरकार को चेताते हुए कहा कि, यदि सरकार गैरसैंण को प्रदेश की राजधानी घोषित नहीं करती तो उसे इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।
रैली का समापन जयदीप सकलानी और सतीश धौलाखंडी ने ‘ये कैसी राजधानी है’ और ‘ लड़ना है भाई ये तो लंबी लड़ाई है’ गाकर किया। रैली में शामिल होने वालों में लक्ष्मी प्रसाद थपलियाल, मोहन भुलानी, डाॅ हरीश मैखुरी, पुष्कर सिंह नेगी, ललित जोशी, प्रदीप कुकरेती, पी सी थपलियाल, हरी किशन किमोठी, लुसुन टोडरिया, अनिल पंत, रविंद्र जुगरान, भगवती प्रसाद मैंदोली, किशोर रावत, रविंद्र रावत, बलबीर परमार, बबिता लोहानी, प्रिय चमोला, एन. के. गुसाईं, देवेंद्र नेगी, सतीश पंत, भगवती प्रसाद किमोठी, चंद्र प्रकाश बुड़ाकोटी, प्रदीप कुंवर, मोहन भंडारी आदि भारी संख्या में लोग शामिल थे।